नौहा-ए-ग़म (कविता) |Hazratji Molana Yousuf| Dawat-e-Tabligh

वह बेकसी है कि आंसू भी ख़ुश्क हैं शाकिर, ग़मों ने अरसा-ए-वहशत में ला के छोड़ दिया।…. नौहा-ए-ग़म

 

नौहा-ए-ग़म (कविता) |Hazratji Molana Yousuf| Dawat-e-Tabligh
नौहा-ए-ग़म (कविता) |Hazratji Molana Yousuf| Dawat-e-Tabligh

रईसुत्तब्लीग़ मुजाहिदे दीन, सरे हल्का-ए-औलिया-ए-मुताखरीन हज़रत मौलाना मुहम्मद यूसुफ़ साहब रहमतुल्लाहि अलैहि के नाक्राविले तलाफ़ी सदमा-ए-रेहलत पर

-ग़मज़दा (मौलाना अब्दुर्रहमान खां शाकिर देहलवी

यह किसने जादा-ए-मंजिल दिखा के छोड़ दिया

दिलों को राह में बिस्मिल बना के छोड़ दिया।

किसी ने खूब यक़ीन व खुलूस का आलम

दिल व नज़र में बसाया, बसा के छोड़ दिया।

अभी हयात की तफ़्सीर ना मुकम्मल थी

अधूरा क़िस्सा-ए-हस्ती सुना के छोड़ दिया।

क़सम है गिरया-ए- याक़ूब व ज़ब्ते यूसुफ़ की

तेरे फ़िराक़ ने सबको रुला के छोड़ दिया ।

अमीरे क़ाफ़िला तुझ पर ख़ुदा की रहमत हो,

क़रीबे मंज़िले मक्सूद ला के छोड़ दिया।

वह इक उम्मीद जो वाबस्ता तेरी ज्ञात से थी,

ग़ज़ब किया उसे हसरत बना के छोड़ दिया।

हर एक शक्ले जमाना को शक्लें दीं के सिवा

मिसाले नक्शा-ए-बातिल मिटा के छोड़ दिया।

तेरे ही सोज़ ने मेवात की फ़िज़ाओं में

चरागे रुश्द व हिदायत जला के छोड़ दिया।

कहां यह दीन पे मेहनत कहां यह दौर मगर

तेरे ख़ुलूस ने आसां बना के छोड़ दिया।

ख़ुदा को सौंप चला अपनी नाख़ुदाई भी

सफ़ीना क़ौम का लंगर उठा के छोड़ दिया।

वह बेकसी है कि आंसू भी ख़ुश्क हैं शाकिर

ग़मों ने अरसा-ए-वहशत में ला के छोड़ दिया।

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