काम की बरकत, 70 जमाअतें निकलीं , उम्मत कैसे बनी?, जमाअत लेकर जाओ। , दिल की हरकत, Oxygen का इन्तिज़ाम , Hazaratji Molana Yousuf का intekal | आख़िरी सफ़र | Dawat-e-Tabligh
– हजरत मौलाना जमील अहमद साहब मेवाती ख़लीफ़ा मजाज
हज़रते अवदस रायपुरी (रह०)

परिचय
जो बाक्रियात मैंने अपनी आंखों से देखे, उनको जिक किया गया है, बाक़ी बहुत-सी बातें किसी से नक़ल की हैं और बहुत-सी बातें ख़ास ख़ास दोस्तों की जुबानी मालूम हुई। इस पर यह मज़्मून पूरा किया गया है।
– जमील अहमद
मुलतान के बाद कंगनपुर, टल, रावलपिंडी का सफ़र रहा। कंगनपुर में मज्मा काफ़ी था, मगर दिलजमई कम थी। टल में हज़रत जी नव्वरल्लाहु मरक़दहू की अजीब कैफ़ियत थी। आपने सादगी और जफ़ाकशी को एक नेमत फ़रमाया कि इस्लाम की असल माया (पूंजी) है और उनकी जवांमर्दी पर फ़रमाया कि यह आज माल हासिल करने पर खर्च हो रही है, उसको दीन की इशाअत पर खर्च होना चाहिए था। टल के सारे ताजिरों ने तमाम दुकानें और बाजार बन्द कर दिए थे रावलपिंडी में पेशावर मरवान और 1 सुवात तक से देहाती तबक़ा काफ़ी आया हुआ था। जामा मस्जिद सदर में इन्तिमा हुआ और मामूल के मुताबिक खूद बारिश हुई। रायविन्ड में तशरीफ़ ले गए। दस पन्द्रह हज़ार का मज्मा होगा। खाने-पीने का निज़ाम भी बहुत अच्छा चला। शहरी तबका काफ़ी आया था। हजरत जी नव्वरल्लाहु मरक़दहू के बयानात भी निराले थे ।
काम की बरकत
कलिमा के नम्बर के साथ रब की इबादत पर बहुत जोर दिया था। एक अरब के शेख मुहम्मद सुलैमान साहब, जो कि दम्माम म्युनिसिपेलटी के सदर हैं और इंश्योरेंस के मुहकमा डायरेक्टर भी हैं, वे भी भाई अब्दुस्सत्तार अल-ख़बर वालों के साथ रायविन्ड पहुंच गए थे। उनका बयान भी हुआ। उन्होंने उलेमा किराम की तालीम के साथ हलके में शिरकत भी फरमाई और बयान भी अजीब अन्दाज़ और दर्द से फ़रमाया कि अलग-अलग दौरों में अल्लाह तआला मुख्तलिफ़ बुजुर्गों से अपने दीन का काम लेते रहे और इस सदीमें हजरत शेख मुहम्मद इलयास साहब नव्वरल्लहु मर्कदहू से काम लिया है और उम्मत की रहबरी फ़रमाई है। अब मसला उलेमा किराम के हाथ में है। अगर आप खड़े हो जाएं तो उम्मत की डूबती कश्ती सलामती के साथ मंजिल तक पहुंच जाएगी और इस काम के जाहिर होने के बाद अगर इसमें सफ़लत हुई तो अजीम ख़तरा है उत्तेमा किराम के मम्मे को खूब रुलाया और ख़ुद भी रोए। तीन-चार अलग-अलग कॉलेजों के तलबा भी आए हुए थे। उनसे ख़ालिद साहब लेक्चरार अलीगढ़ युनिवर्सिटी ने खुसूसी बातचीत की । तलबा ने बहुत अच्छा असर लिया। उन्होंने बतलाया कि किस तरह अलीगढ़ युनिवर्सिटी कम्युनिज्म का अड्डा बनी हुई है और अब फिर किस तरह दीन की फ़िज़ा इस काम की बरकत से पैदा हो रही थी और अब के अलीगढ़ के तमाम प्रोफेसरों का इज्तिमा हुआ और उसमें हजरत जी नव्यल्लाहु मदद्दू की तकरीर हु ई।
70 जमाअतें निकलीं
आपने फ़रमाया कि विलायत की दो किस्में है—
एक यह कि सब कुछ छोड़ कर जंगलों में निकल जाना और तन्क्रिया अख्तियार कर लेना और अल्लाह तआला जल-ल शानुहू की तरफ़ चलना। यह विलायत का अदना दर्जा है।
और दूसरा विलायत का आला दर्जा है कि जिस शोबे में चल रहे हैं, उसको विलायत वालों की सिफ़तों से चलाना, उसके लिए अपने-अपने शोबों से निकल कर, अपना-अपना यक्क्रीन, इबादत और अख़लाक़ बनाने की ज़रूरत है। इन चीजों को बनाकर फिर शोबों में लगा जाए। अब के कॉलेज के तलबा ने कसरत से औकात लिखाए, सत्तर जमाअतें निकलीं। जमाअतें रुख्सत होने के वक्त हजरत जी रह० की रिक्क़त अंगेज तक़रीर ने अरब शेख तक को रुला दिया । इज्तिमा के बाद जनरल साहब के यहां और अब्दुर्रहमान साहब कुरैशी जी.एम.ए.डी.सी. के यहां अफ़सरों का इज्तिमाअ हुआ। दोनों जगह मिलाकर तक़रीबन एक सौ अफ़सरों, कॉलेज के प्रोफेसरों ने बात को सुना। लाहौर में तीन रात क्रियाम के बाद एक दिन के लिए नौनार गांव नारुवाल के पास मेवाती लोगों का इज्तिमाअ रहा।
इस इज्तिमाअ में हज़रत जी नव्वरल्लाहु मरक्क़दहू ने सकरातुल मौत और ग़मरातुल मौत से बचने की बार-बार दुआ की। हज़रत जी रह० को इससे पहले कभी इतनी कसरत से यह दुआ करते हुए नहीं सुना था। इस इलाके के इज्तिमाअ से हज़रत जी नव्वरल्लाहु मरक़दहू बहुत ख़ुश हुए और इलाक़ को दुआ भी दी। इस इज्तिमाअ में एक पीर साहब भी बैअत हुए, ईसाई भी बयान में शरीक रहे और बहुत असर लिया।
उम्मत कैसे बनी?
फिर तीन दिन रायविन्ड ठहरे और हर सुबह मुख़्तलिफ़ ईमान अफ़रोज़ बयान हुए। एक दिन बयान किया, उम्मत कैसे बनी? और उसका उरूज व ज़वाल क्या होता है? एक दिन फ़रमाया, यह काम क्या है? दावत, नज़्म, जिक्र व नमाज को जिंदा करना और इंतिज़ामी मामले सब इसके ताबेअ हैं, असल नहीं हैं और इनको काम न बनाया जाए और तीसरे दिन यह फ़रमाया, इस काम से माहौल बनेगा और किसी के दिल में दर्द पैदा होगा और फ़िक्र लगेगा कि यह उम्मत किस तरह से यहूदियों और ईसाइयों के हाथ से छूटे और उसकी दर्द भरी आह व जारी पर अल्लाह की जानिब से इस उम्मत के दोबारा चमकने की शक्ल पैदा होगी, जैसे तातारियों के ज़मानें में 22 लाख मुसलमानों में से 17 लाख मुसलमानों को शहीद कर दिया था, फिर हज़रत शेखुल मशाइख सैयदना शहाबुद्दीन सहरवरदी नव्वरल्लाहु मर्कदहू के फ़िक्र पर दरवाजा खुला। अकबर के दीने इलाही पर हज़रत मुजद्दिद अल्फ़ सानी कुद्दिस सिह के हाथों दरवाज़ा खुला । खुसूसी मज्लिसों और मश्वरों में अजीब-अजीब नसीहतें फ़रमाते रहे तबियत पर मश्रिक्क़ व मग्रिब के 52 रोजा सफ़र का असर था। कमजोरी और नक़ाहत के असरात थे, देहातों के काम के बढ़ाने पर खुसूसी जोर दिया और फ़रमाया, अगले साल हमारे सफ़र में इज्तिमाओं को देहातों में रखा जाए और शहरी तबक्रे को देहात की फ़िज़ा में लाकर बात सुनाई जाए, सरहदी इलाक़े में काम को बढ़ाया जाए और मरिरक्री पाकिस्तान (अब बंगलादेश) में कोशिश को बढ़ावा दिया जाए और इस्लामी मुल्कों में जमाअतों को भेजा जाए। खुसूसी तक़ाजे बयान फ़रमाए । शफ़क़त बहुत थी ।
(जुमारात, पहली अप्रैल को) अस बिलाल पार्क में पढ़ी। बुध के दिन से गले से मेदे तक सांस की नली में चुभन की शिकायत करते रहे। उस दिन बयान फ़रमाने को तबियत आमादा नहीं हो रही थी। लाहौर के दोस्तों ने जोर दिया कि शहरी मज्मा कसीर तायदाद में आया हुआ है और मस्जिद ऊपर नीचे से भरी हुई है और यह इस सफ़र की आखिरी तक़रीर होगी, क्योंकि जुमा को रेल से रवानगी थी। तबियत के ख़िलाफ़ हिम्मत करके उठ खड़े हुए और सवा घंटे तक लम्बी तक़रीर फ़रमाई। आवाज़ में कमजोरी थी और दर्द जाहिर था । तकरीर से पहले मौलाना इनामुल हसन से फ़रमाया कि हमारी मंज़िल पूरी हो चुकी है। उन्होंने अर्ज किया, अभी तो मुल्कों के फ़ैसले कराने हैं। हज़रत जी कुद्दिस सिह ने फ़रमाया, स्कीम तो तैयार हो गई है, अब करने वाले तो करते रहेंगे। फ़रमाया, बड़े हज़रत रहमतुल्लाहि अलैहि ने किस उम्र में विसाल फ़रमाया? अर्ज़ किया, 63 साल फ़रमाया हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ? अर्ज़ किया 63 साल और हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने? अर्ज किया 63 साल में इंतिकाल फ़रमाया। कुछ देर सकता फ़रमाया, फिर फ़रमाया, 63 साल ठीक है। मौलाना इनामुल हसन साहब ने फ़रमाया, यह मश्वरा की चीज़ थोड़ी है कि सब अपने लिए तै कर लें।
मौलवी शम्सुद्दीन क़ारी बदरुद्दीन मेवाती के भाई से फ़रमाया, तुम सब हिन्दुस्तान छोड़ आए हो। वह ख़ामोश मुअद्दव खड़े रहे, फ़रमाया, अच्छा, हज़रत शेख वहां हैं, बहुत काफ़ी हैं, फिर तक़रीर के लिए तशरीफ़ ले गए और तक़रीर के दौरान पसीना आता रहा। डेढ़ घंटा बयान फ़रमाया। तश्कील के वक़्त थक चुके थे, मगर जब करके बैठे रहे क्योंकि इज्जत पुरी साहब के यहां का निकाह पढ़ाना था और सर से टोपी उतार दी और पसीना पोंछते रहे। ठंडा पानी मंगवा कर दिया। सांस की नाली की तकलीफ़ को इस तरह पानी पी-पीकर दूर किया करते थे निकाह और दुआ मुख्तसर कराई और अन्दर से निकल कर बाहर तशरीफ़ ले आए, मस्जिद से निकल कर बाहर तशरीफ़ ले आए। मस्जिद से निकल कर हाजी साहब की बैठक के सामने फ़रमाया, मुझको संभालो ।
जमाअत लेकर जाओ।
साद दिन सिद्दीक़ साहब और रियाज लाहौरी ने गले और कमर को हाथों से सहारा दिया भाई बालू के दरवाजे में दाखिल होते ही लड़खड़ाए और 1 अशी छा गई। भाई एहसान याकूब वगैरह को आवाज़ दी गई और सबने मिलकर चारपाई पर लिटाया नब्ज बन्द हो चुकी थी। मोलवी जियाउद्दीन के भाई हकीम अब्दुल हई साहब को और उनके साहबजादे हकीम अहमद हसन साहब थे, उनके पास जेब में जवाहर मोहरा था, वह दूध में दिया गया तो हो आया लगभग चार-पांच मिनट बेहोश रहे थे, कुछ तबियत संभली तो कर्नल जियाउल्लाह साहब को बुलाया गया। यह दिल के माहिर डॉक्टर हैं। उन्होंने फ़रमाया कि दिल की बीमारी का ज़बरदस्त हमला है, इससे बच जाना एक करामत है। हाथ-पांव ठंडे, नव्ज़ 56, खून का दबाव 90 था। डॉक्टर ने अस्पताल के लिए बहुत ताकीद की और क़तई हरकत से मना किया, यहां तक कि करवट भी ख़ुद न बदलें और कम्बल भी ख़ुद न लिया करें। रात के पौने तीन बजे इशा की नमाज पढ़ी रात बेचैनी में गुजरी, नींद का टीका लगाया गया, कुछ नींद हुई, सुबह को उठे तो तबियत में बशाशत थी। पूछते रहे, रात को क्या हुआ था? एक दोस्त औरंगजेब पठान के इलाके और वहां के लोगों में काम करने की अहमियत को बताया, फरमाया कि यह हमारी रीढ़ की हड्डी है। हकीम अब्दुल हई को फ़रमाया कि जमाअत लेकर जाओ। रात को डॉक्टर साहब ने इशारे से नमाज़ पढ़ने और मुकम्मल आराम करने और बीस दिन क्रियाम करने को फ़रमाया जुमा की सुबह को हकीम साहब से मालूम किया गया कि आपकी भी यही राय है। उन्होंने कहा कि हमारे दोस्तों में भी इसी राय का ज़िक्र हो रहा है, क्योंकि हरकत होने से दौरे का फिर ख़तरा हो जाता है। कुरैशी साहब से फ़रमाया कि आराम के दौरान में तक़रीर की सिफ़ारिश तो न करोगे। अर्ज किया, नहीं। फ़रमाया, अगर तुम्हारा कोई ख़ास आदमी आ गया तो? अर्ज किया गया, फिर भी नहीं फ़रमाया, अगर हमारे जी में आ गया तो? इस पर क़ारी रशीद साहब ने अर्ज किया कि हजरत ! हम सब मिलकर आपको रोक देंगे।
अगले दिन सुबह कर्नल जियाउल्लाह साहब ने तशरीफ़ लाते ही पूछा, सांस की कैफ़ियत और खांसी तो नहीं है। कहा गया, नहीं। डॉक्टर साहब ने जोर से अलहम्दु लिल्लाह कहा और कहा, इतनी जल्दी सेहत में तरक़्क़ी हमारे ख्याल से बाहर की चीज़ है।
दिल की हरकत
अक्सर नब्ज़ 130 रहा करती थी। खून का दवाव 128 था, हालत अच्छी थी। चाय, डबल रोटी खाई। दिल की हरकत का तहरीरी चार्ट कार्डियोग्राम भी लिया। मरज्ञ अपना असर कुछ छोड़ गया था। अब डॉक्टर साहब ने अस्पताल का जोर नहीं दिया कि डॉक्टर असलम साहब निगरानी करते रहेंगे। नींद आती और आठ-दस मिनट बाद उखड़ जाती। सहारनपुर जाने का इरादा मुलतवी कर दिया गया, ताकि कुछ दिन आराम के बाद जाएं। जुमा का वक़्त हुआ तो हम सब नमाज़ को चले गए। खुत्वे के ख़त्म होने पर सफ़ें सीधी हो रही थीं कि भाई ख़ुदा बख़्श ने डॉक्टर मुहम्मद असलम साहब को ऊंची-ऊंची आवाज़ दी, वह गए, सांस की तकलीफ़ शुरू हो चुकी थी। क़ाजी अब्दुल क़ादिर साहब को बुलवाया। उनका माथा पहले ही ठनक चुका था। उन्होंने कहा, वक़्त क़रीब है, आप पढ़ें। फ़रमाया, तुम भी पढ़ो। यह तक्लीफ़ दोपहर दो गोलियां खाने के बाद शुरू हो चुकी थी। फ़रमाया, मुझे नमाज़ पढ़ाओ और मुख़्तसर पढ़ाओ। मौलाना इनामुल हसन साहब ने नमाज़ पढ़ाई। डॉक्टर साहब ने फ़रमाया, दोबारा हमला शुरू हो गया है। आक्सीजन के लिए अस्पताल ले जाना जरूरी है, तैयार नहीं हो रहे थे। जब हजरत मुफ़्ती जैनुल आविदीन ने फ़रमाया कि हज़रत ! औरतें नहीं होंगी तो तैयार हो गए। इतने में सांस की खड़खड़ाहट शुरू हो चुकी थी। रब्बी अल्लाह रब्बी अल्लाह फ़रमा रहे थे। मौलवी इलयास ने बताया कि शाम की दुआएं पढ़नी शुरू कर दीं, (आख़िर तक) भाई याक़ूब ने कहा कि एक उंगली उठाकर जिस दिन मक्का शरीफ़ फ़ळ हुआ था, उस दिन जो हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जो दुआ पढ़ी थी, वह पढ़ने लगे) हुज़ूरे अक्रम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम वाली दुआ पढ़ते रहे और फिर कलिमा पढ़ना शुरू कर दिया और क़ुरैशी साहब की कार में लिटाया गया और लेटते वक़्त अपने जिस्म को अन्दर कार में खींचा जिससे मौलवी इलयास साहब को काफ़ी ताक़त महसूस हुई।
Oxygen का इन्तिज़ाम
मुफ़्ती साहब भाई गुलज़ार की कार में डॉक्टर मुनीर साहब को आगे लेकर चले, ताकि ऑक्सीजन का इन्तिज़ाम करें। हजरत जी की कार पीछे आ रही थी। इसमें मौलाना इनामुल हसन साहब, डॉक्टर असलम साहब, मौलवी मुहम्मद इलयास साहब मेवाती थे। रेलवे वर्कशाप का पुल पार करके गढ़ी शाहू के चौक के क़रीब दरयाफ़्त फ़रमाया, अस्पताल कितनी दूर है? अर्ज किया गया, अभी आधा फ़ासला बाक़ी है, कलिमा पढ़ रहे थे कहा, इसके बाद जुबान फूल गई, आंखें पथरा गई। मौलाना इनामुल हसन साहब ने यासीन पढ़नी शुरू कर दी थी। बस वक़्त मौऊद आ चुका सूरः था (29 जीक़ादा 1384 हि०, 2 अप्रैल 1965 ई०, 2 बजे दिन, रूहे मुबारक परवाज़ कर गई। 14 इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन’ । इक्कीस वर्ष, जो दिन-रात जान खपती रही, यों अल्लाह की राह में वतन से दूर चली गई। मौलाना इनामुल हसन साहब ने फ़रमाया कि अस्पताल मत ले जाओ, वापस चलो, मगर डॉक्टर असलम साहब का ख्याल ऑक्सीजन देने का था। पांच-छः मिनट बाद अस्पताल आया। मौलाना इनामुल हसन साहब ने कार में से निकालने को मना फ़रमाया, मगर डॉक्टर असलम के फ़रमाने पर निकाला गया और अस्पताल में लाया गया। चार-पांच मिनट दो-तीन डॉक्टर मिलकर ऑक्सीजन देते रहे, जिस्म को दबाते रहे और दो टीके भी दिए कि दिल की हरकत शायद शुरू हो जाए, मगर न हुआ। जब डॉक्टर साहब ने मायूसी का इज़हार किया तो कुछ दोस्त रोने लगे। मौलवी इलयास साहब और हाफ़िज़ सिद्दीक़ साहब ऊंची-ऊंची आवाज़ से रो रहे थे और बेकाबू थे। मौलाना इनामुल हसन की तबियत भी भरी हुई थी, मगर जब्त था और इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन० अल्लाहुम-म आजुर्नी फ़ी मुसीबती वल्लुफ़ ली खैरम मिन्हा० पढ़ते थे और पढ़ने की ताकीद फ़रमाते थे।
अलग-अलग जगहों पर टेलीफोन
डॉक्टर साहब के जरिए एम्बुलेन्स गाड़ी का इन्तिज़ाम करवाया और हजरत जी नव्वरल्लाहु मरक़दहू को और दूसरे दोस्तों को उसमें सवार कर दिया और बिलाल पार्क पहुंचे। मैंने अजीजुद्दीन साहब को अस्पताल ही से भेज दिया था कि साबरी साहब कड़ी के ताजिर सहारनपुर को टेलीफ़ोन के जरिए इत्तिला भिजवा दें। वह भी टेलीफ़ोन करके आ गए। उन्होंने बतलाया कि साबरी साहब कलकत्ता गए हैं और अब्दुल हफ़ीज़ साहब को पैग़ाम भिजवाया गया। हज़रत शेखुल हदीस साहब ने टेलीफ़ोन पर फ़रमाया कि निज़ामुद्दीन शरीफ़ लाने की कोशिश की जाए और अगर मुश्किल हो तो रायविन्ड की कोशिश कर दी जाए। अलग-अलग जगहों पर टेलीफोन कर दिए गए।
कफ़न पहनाया
जिस वक़्त नाश शरीफ़ अस्पताल से बिलाल पार्क पहुंची तो मज्मा जुमा की नमाज़ के बाद जो सेहत की दुआ मांगने में लगा हुआ था, विसाल की ख़बर पाकर बेचैन हो गया, फ़ौरन मग्फ़िरत की दुआ की तलब में लग गए। अगरचे दिल ग़मगीन और आंखें आंसुओं से भरी हुई थीं। मदरसा काशिफुल उलूम जामे बिलाल पार्क के दक्खिनी कमरे में कफ़नाने के लिए मैयत शरीफ़ा को रखा गया। मौजूदा लोगों में से मियां जी अब्दुल्लाह साहब मेवाती, जनाव क़ारी अब्दुर्रहीम साहब मेवाती, हाफ़िज़ मुहम्मद सुलैमान साहब मेवाती, इमाम मस्जिद रायविन्ड, भाई मुहम्मद इब्राहीम साहब मेवाती और दूसरे साथियों ने मिलकर गुस्ल दिया, कफ़न पहनाया और जनाजे को जियारत के लिए रख दिया गया। जियारत का यह सिलसिला इशा की नमाज से पहले तक जारी रहा। रेडियो पाकिस्तान लाहौर की मुक़ामी ख़बरों में 5½ बजे दिन को यह रामनाक खबर नश की गई।
वफ़ात की ख़बर
सरगोधा, लायलपुर, गुजरानवाला, कसूर, मोनटगोमरी, सियालकोट से अवाम व खवास, उलेमा-मशाइख पहुंचना शुरू हो गए। लाहौर मुलतान, शेखपुरा, के दीनी मदरसों के असातज्ञा, तलबा के अलावा दर्द व फ़िक्र रखने वालों के अलावा दफ़्तर, कॉलेज के प्रोफ़ेसर, तलबा, साथ ही आम लोग कसरत से जनाजे में पहुंच गए थे। आन की आन में मस्जिद बिलाल पार्क और मिला हुआ मैदान भर गया। मुकामी उलेमा में से हजरत मौलाना उबैदुल्लाह साहब अनवर जानशी हजरत सी मौलाना अहमद अली नद लाहौर, हजरत मौलाना रसूल खां साहब मद्दजिल्लहुल आली और दूसरे असातज्ञा किराम जामिया अशरफ़ीया और दूसरे तमाम दीनी मदरसों के उलेमा, हाफ़िज़, क़ारी शरीक थे मज्मे पर जो ग़म व रंज का आलम तारी था, वह बयान से बाहर था। वफ़ात की ख़बर सुनकर भी लोग यक़ीन नहीं करते थे कि हज़रत जी नव्वरल्लाहु मरक़दहू इंतिक़ाल फ़रमा गए हैं, बल्कि इस ख़बर को ग़लत करने के लिए मुख्तलिफ़ तावील करते थे कि मुम्किन है कोई और मौलाना यूसुफ़ हों। हज़रत जी तो माशाअल्लाह अभी जवान हैं, तन्दुरुस्त व तवाना हैं, फिर अल्लाह पाक ने अभी उनको बहुत दिन रखना है और बड़ा काम लेना है। फिर इस कम उम्री में तो शायद ही किसी अहले हक़ को जाते देखा होगा, मगर ये सब तावीलें अपनी जगह ग़लत साबित हुई। जब जनाजे की जियारत की तो वाक़ई सब ने हजरत जी मौलाना मुहम्मद यूसुफ़ नव्वरल्लाहु मरक्रदहू ही को अबदी नींद में सर्क पाया।
Hazaratji Molana Yousuf का intekal
इसमें कोई मुबालग़ा नहीं कि चेहरा अन्वर की हालत से क़तई तौर पर कोई यह नहीं पहचान सकता था कि हजरत का विसाल हो गया, बिल्कुल जैसा कि सोये हुए हैं और यह भी नहीं, बल्कि जिस तरह हयात में दीनी दर्द व फ़िक्र के असरात ये चेहरा-ए-अन्वर पर जाहिर होते थे, बिल्कुल यह हालत उस वक्त भी थी। हजरत मौलाना उबैदुल्लाह अन्दर लाहौरी जनाजे की नमाज की नीयत से बिलाल पार्क तश्रीफ़ लाए और फिर फ़ौरन ही वापस पर तशरीफ़ ले गए। यह तशरीफ़ ले जाना इसलिए था कि हिजाज मुकद्दस से लाया हुआ इत्र जो उन्होंने अपने वालिद मरहूम हजरत शेखुत्तफ़्सीर मौलाना अहमद अली लाहौरी नव्वरल्लाहु मरक़दहू की वफ़ात के वक्त लगाया था, उसमें से आधा बाक़ी रखा था, उसको लाए और इस गुनाहगार को हुक्म फ़रमाया कि अब तो मज्मा ज़्यादा है, मज्मा घट जाने पर हो सके तो हजरत मौलाना नव्वरल्लाहु मरक़दहू के लगा देना। अलहम्दु लिल्लाह ! तहदीसे नेमत के तौर पर यह बात जिक्र करता हूं, वरना कोई और मुराद हरगिज़ नहीं, इन गुनाहगार हाथों ने वह हरे रंग का इत्र चेहरा-ए-अन्दर, दाढ़ी मुबारक पर खूब ही मला और उस वक्त यह भी जज्बा था कि मुम्किन है अल्लाह तआला मुझे अपने इस मक़बूल वन्दे के इत्र लगाने के ही सवय कल क्रियामत में मेरी बख्शिश फ़रमा दें।
दीन की बात पर लब्बैक कहना
एक बात तहदीसे नेमत के तौर पर अर्ज करता हूं कि जिस तरह हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु के इस्लाम लाने की वजह से उनके मुजाहदे और कुर्बानी देने की बरकत से अल्लाह पाक ने हब्शा वालों को और हज़रत सलमान फ़ारसी रज़ियल्लाहु अन्हु की बरकत से फ़ारस वालों को इस्लाम की तरफ़ पलटा दिया, मैं तो उस मेवाती क्रीम के कुपर व शिर्क की सरहदों से पलट आने का सबब और हज़रत मौलाना मुहम्मद इलयास नव्वरल्लाहु मरक़दहू, हज़रत जी मौलाना मुहम्मद यूसुफ़ नव्वरल्लाहु मरक़दहू और इस ख़ानवादा-ए-मुबारक के पिछले बुजुर्गों की तवज्जोह का क्रीम की तरफ मक्तूल होना और क्रीम का दीन की बात पर लब्बैक कहना, जबकि तब्लीग़ की इस तहरीक की यू०पी० के पढ़े-लिखे लोगों ने भी अव्वल – अव्वल क़ुबूल नहीं किया, सिर्फ़ यह ही वजह समझता हूं कि हज़रत सैयद अहमद शहीद मुजाहिदे अजीम नव्वरल्लाहु मरक्रदद्दू के साथ करीमुल्लाह खां मेवाती शहीद, हिम्मत खां मेवाती शहीद और वजीर खां मेवाती शहीद ने आखिर दम तक साथ दिया, बल्कि करीमुल्लाह खां मेवाती को तो हजरत रह० के साथ वालिहाना इश्क़ था। हजरत रह० के साथ ही साथ रहा, यहां तक कि जान दे दी। ये मेवाती शुहदा क़स्बा नूह के रहने वाले थे। सीरत सैयद अहमद शहीद, मुरत्तबा मौलाना गुलाम रसूल मेह्र ने तफ़्सील के साथ इन शहीदों के वाक़िए नक़ल किए हैं। इन तीनों शहीदों की कुर्बानी ने अस्ले हक़ को इस क्रीम की तरफ़ मुतवज्जह किया। असल में तो अल्लाह सुबहानहू की रहमत का मुतवज्जह होना था हजरात अल्लुल्लाह तो मज़हर हैं और जिस तरह वे तीनों शहीद हजरत सैयद अहमद शहीद नब्बरल्लाहु मर्कदहुम के साथ आखिर दम तक रहे, उसी तरह मौलाना मुहम्मद इलयास कुद्दिस सिर्रहू हजरत जी मौलाना मुहम्मद यूसुफ़ कुद्दिस सिर्रुहू इन मेवाती लोगों से ख़ुश-ख़ुश रुख्सत हुए। हजरते अवदस कु-त-बुल इर्शाद मौलाना शाह अब्दुल क़ादिर रायपुरी नव्वरल्लाहु मर्कदहू के गुस्ल में अज़ीज़म मुहम्मद सुलैमान मेवाती गोता वाले मियां जी मुहम्मद सुलैमान मर्द खड़ा वाले इस तौर पर शरीक रहे कि पानी लाकर देने की सआदत हासिल करते रहे।
जनाजे की नमाज़ पढ़ी
भाइयो! कोई कहानी सुनाना मक्सूद नहीं हम तो इन चीज़ों को हफ्त अक़्लीम से भी बेहतर समझते हैं। अल्लाह तआला ने इस क़ौम में हज़ारों हाफ़िज़, सैकड़ों आलिम और क़ारी, जिसमें उस्ताजुल उलेमा मेवात हज़रत मौलाना अब्दुस्सुव्हान मेवाती नव्वरल्लाहु मरक़दहू और उनके साहबजादे साथ ही हजरत मौलाना नियाज़ साहब पैदा फ़रमाए। मज्मा बढ़ता चला गया। रात को इशा की नमाज़ के बाद 9 बजे जनाजे की नमाज़ पढ़ी गयी। मौलाना इनामुल हसन साहब ने जनाजे की नमाज़ पढ़ाई। 10 ½ बजे दोबारा हज़रते अवदस जानशीने बरहक़ हज़रत मौलाना अब्दुल अज़ीज़ साहब दा म मज्दुहुम ने रहे सहे लोगों के साथ जनाजा पढ़ा, क्योंकि हज़रात सरगोधा से देर में पहुंचे थे, साथ ही मुलतान से और मुक़ामी सैकड़ों लोग देर से पहुंचने की वजह से जनाजे की नमाज़ से रह गए थे। 11 बजे इत्तिला आई कि चार्टर जहाज एक बजे तैयार रहेगा, 12 बजे हवाई अड्डे पर पहुंचे। एक संदूक में रजाई रखकर लिटाया गया। डेढ़ बजे रात को जहाज उड़ा। मौलाना इनामुल हसन साहब छः साथियों के साथ थे, हाफ़िज़ सिद्दीक़ साहब, मौलवी मुहम्मद उमर साहब, हाजी अहमद साहब, क़ारी रशीद साहब, मौलवी मुहम्मद इलयास साहब मेवाती, मियां जी इस्हाक़ साहब मेवाती मौलाना इनामुल हसन साहब ने फ़रमाया, बाक़ी सब जोड़ियां हैं मेरे सिवा । हवाई अड्डे पर मुख्तसर सी बात भी फ़रमाई कि हज़रत जी नव्वरल्लाहु मरक़दहू कहते चले गए, अब करते रहने की जरूरत है। जो करेगा, अल्लाह की मदद उसके साथ होगी। याद दिलाया कि हज़रत जी नव्वरल्लाहु मरक़दहू भाई ख़ुदा बख़्श, चौधरी नज़ीर साहब से बात करना चाहते थे, मगर न कर सके। चुनांचे उन्होंने फ़रमाया कि हज़रत जी नव्वरल्लाहु मरकदहू यह ही चाहते होंगे कि इस काम को असल बनाया जाए और दूसरे ज्ञाती मशामिल में निगरानी के अलावा कोई काम जिम्मे न लिया जाए। कल’, सनीचर के 11.30 बजे टेलीफ़ोन किया, मालूम हुआ कि ख़ैरियत से रात के तीन बजे पहुंच गए। हजरत शेख दान्म मज्दुहू रात ही को तशरीफ़ ले आए। सुबह 9 ½ जनाजे की नमाज़ पढ़ी गई। लगभग 11 बजे दिन को तद्फ़ीन अमल में आई।
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क़ता
तारीख़े विसाल
आसमां चुप है, दीवार व दर अश्क बार आ रही है कहां से सदा-ए-हजीं किसकी रहलत की हातिफ़ ने दी यह ख़बर कर दो फ़ानी रक्कम ‘तुरबते अंबरी’ (1384)
-फ़ानी कोपागंजी