18 Akalmandi की points, बेवकूफ़ों की तरह आंख के अंधे और कान के बहरे नहीं। Akalmand लोग कौन हैं ? Dawat~e~Tabligh in Hindi..

Akalmand लोग कौन हैं ?
“आसमानों और जमीन की पैदाइश में और रात-दिन के हेर-फेर में यक़ीनन अक्लमंदों के लिए निशानियां हैं।”
(कुरआन, 3:190)
आयत का मतलब यह है कि आसमान जैसी बुलन्द और वुस्अत वाली मलूक और ज़मीन जैसी पस्त और सख्त लम्बी-चौड़ी मख्लूक फिर आसमानों में बड़ी-बड़ी निशानियां मसलन चलने-फिरने वाले और एक जहग ठहरे रहने वाले और ज़मीन की बड़ी-बड़ी पैदावार मसलन पहाड़ और जंगल और दरख़्त और घास और खेतियां और फल और मुख्तलिफ़ क्रिस्म के जानदार और कानें और अलग-अलग जाएने वाले और तरह-तरह की खुश्बुओंवाले मेवे वगैरह। क्या ये सब आयाते कुदरत एक सोच-समझवाले इंसान की रहबरी ख़ुदा तआला की तरफ़ नहीं कर सकतीं? जो और निशानियां देखने की ज़रूरत बाकी रहे।
फिर दिन-रात का आना-जाना और उनका कम-ज्यादा होना फिर बराबर हो जाना ये सब उस अज़ीज़ व अलीम ख़ुदा तआला की कुदरते कामिला की पूरी-पूरी निशानियां हैं। इसी लिए आखिर में फ़रमाया कि उनमें अक्लमंदों के लिए काफ़ी निशानियां हैं जो पाक नफ़्स वाले हर चीज़ की हक़ीक़त पर नज़र डालने के आदी हैं और बेवकूफ़ों की तरह आंख के अंधे और कान के बहरे नहीं। जिनकी हालत और जगह बयान हुई कि वे आसमान और जमीन की बहुत-सी निशानियां पैरों तले रौंदते हुए गुज़र जाते हैं और गौरो फ़िक्र नहीं करते। उनमें के अक्सर बावजूद ख़ुदा को मानने के फिर भी शिर्क से नहीं छूट सकते। अब उन अक्लमंदों की सिफ़तें बयान हो रही हैं कि-
1. वे उठते-बैठते-लेटते ख़ुदा का नाम जपा करते थे सहीहैन की हदीस में है कि हुज़ूर सल्ल० ने हज़रत इमरान बिन हुसैन रज़ि० से फ़रमाया, खड़े होकर नमाज़ पढ़ा करो, अगर ताक़त न हो तो बैठकर और यह भी न हो तो लेटे-लेटे ही सही। यानी किसी हालत में ज़िक्रे ख़ुदा तआला से ग़ाफ़िल मत रहो। दिल में और पोशीदा और ज़बान से ज़िक्रे ख़ुदा करते रहा करो। ये लोग आसमान और ज़मीन की पैदाइश में नज़र दौड़ाते हैं और उनकी हिक्मतों पर गौर करते हैं जो उस ख़ालिक़ यकता की अज़्मत व कुदरत, इल्म व हिक्मत इख़्यिार व रहमत पर दलालत करती है।
2. हजरत शेख सुलैमान दारानी रह० फरमाते हैं कि “घर से निकलकर जिस-जिस चीज पर मेरी नज़र पड़ती है तो मैं देखता हूं कि उसमें ख़ुदा तआला की एक नेमत मुझ पर मौजूद है और मेरे लिए यह बाइसे इबरत है।”
3. हज़रत हसन बसरी रह० का क़ौल है कि “एक साअत गौर व फ़िक्र करना रात भर के क़याम करने से अफ़ज़ल है।”
4. हजरत फुजेल रह० फरमाते हैं कि हजरत हसन रह० का क़ौल है कि “और व फ्रिक और मुराक्रया एक ऐसा आइना है जो तेरे सामने तेरी बुराइयाँ भलाइयाँ पेश कर देगा।”
5. हजरत सुफियान बिन अईना रह० फ़रमाते हैं, “और और व फ्रिक एक नूर है जो तेरे दिल पर अपना परतो डालेगा” और बता औक़ात यह शेर पढ़ते :
यानी जिस इंसान को बारीक बीनी की और सोच समझ की आदत पड़ गई उसे हर चीज में एक इबरत और आयत नज़र आती है।
6. हज़रत ईसा अलैहि० फ़रमाते हैं, “खुशनसीब है वह शख्स जिसका बोलना जिकरुल्लाह और नसीहत हो और उसका चुप रहना गौरव फ्रिक हो और उसका देखना इबरत और तंबीह हो।”
7. लुकमान हकीम का यह हिक्मत आमेज़ मकूला भी याद रहे कि ” तनहाई की गोशानशीनी जिस क़द्र ज़्यादा हो उसी क़द्र गौर व फ़िक्र और अंजाम बीनी ज़्यादा होती है और जिस क़द्र यह बढ़ जाए उसी क़द्र वह रास्ते इंसान पर खुल जाते हैं जो उसे जन्नत में पहुंचा देंगे”
8. हज़रत वहब बिन मुनब्बा रह० फ़रमाते हैं “जिस क़द्र मुराक्रबा ज़्यादा होगा उसी क़द्र समझ-बूझ तेज़ होगी और जितनी समझ ज़्यादा होगी उतना इल्म नसीब होगा और जिस क्रद्र इल्म नसीब होगा, नेक आमाल भी बढ़ेंगे।”
9. हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रह० का इरशाद है कि “अल्लाह ताआला के ज़िक्र में ज़बान का चलाना बहुत अच्छा है और ख़ुदा की नेमतों में गौर व फ़िक्र करना अफ़ज़ल इबादत है।”
10. हज़रत मुगीस असवद रह० मज्लिस में बैठे हुए फ़रमाते कि “लोगो कब्रिस्तान हर दिन जाया करो, ताकि तुम्हें अंजाम का सवाल पैदा हो फिर अपने दिल में उस मंज़र को हाज़िर करो कि तुम ख़ुदा तआला के सामने खड़े हो, फिर एक जमाअत को जहन्नम में जाने का हुक्म होता है और एक जमाअत जन्नत में जाती है, अपने दिलों को इस हाल में जज्ब कर दो, अपने बदन को भी वहीं हाज़िर जान लो, जहन्नम को अपने सामने देखो। उसके हथोड़ों को, उसकी आग के क़ैदख़ानों को अपने सामने लाओ।” इतना फ़रमाते ही दहाड़े मार-मार कर रोने लगते हैं, यहां तक कि बेहोश हो जाते हैं।
11. हजरत अब्दुल्लाह इब्ने मुबारक रह० फरमाते हैं, “एक शख्स ने एक राहिब से एक क़ब्रिस्तान और एक कूड़ा डालने की जगह पर मुलाकात की और उससे कहा, “ऐ राहिब! तेरे पास इस वक़्त दो ख़ज़ाने हैं। एक खजाना लोगों का यानी क़ब्रिस्तान, एक ख़ज़ाना माल का यानी कूड़ा-करकट, पाखाना-पेशाब डालने की जगह “
12. हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रजि० खंडरा त पर जाते और किसी टूटे-फूटे दरवाजे पर खड़े रहकर निहायत हसरत व अफ़सोस के साथ आवाज़ निकालते और फ़रमाते, “ऐ उजड़े हुए घरो! तुम्हारे रहनेवाले कहां हैं। फिर खुद फ़रमाते, “सब ज़ेरे ज़मीन हो गए, सब फ़ना का जाम पी चुके, सिर्फ़ जाते ख़ुदा को हमेशगीवाली वक्रा है।”
13. हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि० का इरशाद है कि “दो रकअतें जो दिल बस्तगी के साथ अदा की जाएं उन तमाम नमाज़ों से अफ़ज़ल हैं जिनमें सारी रात गुज़ार दी लेकिन दिलचस्पी न थी।”
14. ख़्वाजा हसन बसरी रह० फ़रमाते हैं, “ऐ इब्ने आदम! अपने पेट के तीसरे हिस्से में खा, तीसरे हिस्से में पानी पी और तीसरा हिस्सा उन सांसों के लिए छोड़ जिसमें तू आखिरत की बातों पर, अपने अंजाम पर और अपने आमाल पर गौर व फ़िक्र कर सके।” बाज़ हकीमों का कौल है कि “जो शख्स दुनिया की चीज़ों पर बगैर इवरत हासिल किए नज़र डालता है, उस ग़फ़लत के अंदाज़ से उसकी दिल की आंखें कमज़ोर पड़ जाती हैं।”
15. हज़रत वशर इब्ने हारिस हाफ़ी रह० का फ़रमान है कि “अगर लोग ख़ुदा तआला की अज़्मत का ख़्याल करते तो हरगिज़ उनसे नाफ़रमानियाँ न होतीं।”16. हज़रत आमिर बिन अब्दे कैस रह० फ़रमाते हैं कि “मैंने बहुत-सेसहावा रज़ि० से सुना है कि ईमान की रौशनी गौर व फ़िक्र और मुराक़बा है।”
17. मसीह इब्ने मरयम सय्यदना हज़रत ईसा अलैहि० का फ़रमान है कि “इब्ने आदम! ऐ ज़ईफ़ इंसान! जहां कहीं तू हो अल्लाह तआला से डरता रह, दुनिया में आजिज़ी और मिस्कीनी के साथ रह, अपना घर मस्जिदों को बना ले, अपनी आंखों को रोना सिखा, अपने जिस्म को सब की आदत सिखा, अपने दिल को ग़ौर व फ़िक्र करनेवाला बना, कल की रोज़ी की फ़िक्र आज न कर ।”
18. अमीरुल मोमिनीन हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रह० एक मर्तबा मज्लिस में बैठे हुए रो दिए। लोगों ने वजह पूछी तो आपने फ़रमाया, “मैंने दुनिया में और उसकी लज़्ज़तों में और उसकी ख़्वाहिशों में गौर व फ़िक्र किया और इबरत हासिल की। जब नतीजे पर पहुंचा तो मेरी उमंगें ख़त्म हो गई। हक़ीक़त यह है कि हर शख्स के लिए इसमें इवरत व नसीहत है और बाज़ व पिंद है।” (तफ़्सीर इब्ने कसीर जिल्द 1, पेज 192-193)
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