Alcohol का इस्तेमाल medicine में। 90 फ़ीसद दवाओं में अल् कोहल ज़रूर शामिल होता है। इस क़िस्म की दवाएँ अक्सर नजला, खांसी, गले की खराश जैसी….. Alcohol वाली dawa (Medicine) लेना जाइज़ है या नहीं ? Dawaty~e~Tabligh in Hindi…

Alcohol वाली dawa (Medicine) लेना जाइज़ है या नहीं ?
- अल्कोहल का इस्तेमाल
सवाल :- यहाँ मग़रिबी मुमालिक में अक्सर दवाओं में एक फ़ीसद से लेकर पच्चीस फ़ीसद तक “अल्-कोहल” शामिल होता है। इस क़िस्म की दवाएँ अक्सर नजला, खांसी, गले की खराश जैसी मामूली बीमारियों में इस्तेमाल होती हैं और तक़रीबन 90 फ़ीसद दवाओं में अल् कोहल ज़रूर शामिल होता है। अब मौजूदा दौर में अल् कोहल से पाक दवाओं को तलाश करना मुश्किल, बल्कि नामुमकिन हो चुका है। इन हालात में ऐसी दवाओं के इस्तेमाल के बारे में शरअन क्या हुक्म है ?
जवाब :- अल् कोहल मिली हुई दवाओं का मसला अब सिर्फ मग़रिबी मुमालिक तक महदूद नहीं रहा बल्कि इस्लामी मुमालिक समेत तमाम मुमालिक में आज यह मसला पेश आ रहा है।
इमाम अबू हनीफ़ा रहमतुल्लाह अलैह के नज़दीक तो इस मस्ले का हल आसान है इसलिए कि इमाम अबू हनीफ़ा रह० और इमाम यूसुफ़ रह० के नज़दीक अंगूर और खजूर के अलावा दूसरी चीज़ों से बनाई हुई शराब को बतौर दवा के हुसुले ताक़त के लिए इतनी मिकदार में इस्तेमाल करना जायज़ है जिस मिक्दार से नशा पैदा न होता हो।
– फ़तहुल कदीर, हिस्सा 8, पेज 16 दूसरी तरफ दवाओं में जो “अल् कोहल ” मिलाया जाता है उसकी बड़ी मिक्दार अंगूर और खजूर के अलावा दूसरी चीजें जैसे चीड़, गंधक, शहद, शीरा, दाना, जो वगैरह से हासिल की जाती है। लिहाजा दबाओं में इस्तेमाल होने वाली “अल् कोहल” अगर अंगूर और खजूर के अलावा दूसरी चीज़ों से हासिल किया गया है तो इमाम अबू हनीफ़ा रह० और इमाम अबू यूसुफ़ रह० के नज़दीक इस दवा का इस्तेमाल जाइज़ है बशर्ते कि वह हदे सकर तक न पहुंचे और इलाज की जरूरत के लिए उन दोनों इमामों के मस्लक पर अमल करने की गुंजाइश है। और अगर “अल्कोहल” अंगूर और खजूर ही से हासिल किया गया है तो फिर दबा के इस्तेमाल नाजायज है अलबत्ता अगर माहिर डाक्टर यह कहे कि इस मर्ज़ की इसके अलावा कोई और दवा नहीं है तो इस सूरत में इसके इस्तेमाल की गुंजाइश है इसलिए कि इस हालत में हफ़िया के नज़दीक तदावी बिल-मुहारिम जायज है।
– सिलसिला फ़िकही मक्कालात, मौलाना तक़ी उस मानी
आजकल ज़ब्ते-तौलीद के नाम से जो दवाएँ या मुआलिजात किए जाते हैं शरअन जायज़ नहीं हैं
कोई ऐसी सूरत इख़्तियार करना जिससे हमल क़रार न पाये जैसे आज कल दुनिया में ज़ब्ते-तौलीद के नाम से इसकी सैकड़ों सूरतें राइज हो गई हैं। इसको भी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने वादे खुफ़िया फ़रमाया है यानी खुफ़िया तौर से बच्चे को ज़िन्दा दरगोर कर दें।
-कमा वाहु मुस्लिम अन जुदामतु बिन्त वहब और कुछ दूसरी रिवायात में जो अजुल ऐसी तदबीर करना कि नुत्फ़ा रहम में न जाये इस पर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की तरफ़ से सुकूत या अदमे-मुमानिअत मन्कूल है। वह ज़रूरत के मौक़ों के साथ मख़्सूस है। वह भी इस तरह कि हमेशा के लिए क़त्अ – नसल की सूरत न बने ।
-मज़हरी
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