ख़ुदा के दीन की ख़ातिर लुटा दी जिदंगी उसने
ख़ुदा के दीन की ख़ातिर ही वह दुनिया में जीता था।

वह यूसुफ़, वह अमीरे आजमे तब्लीग़ इस्लामी,
ख़ुदा के नाम का आशिक़ ख़ुदा के दीं का मतवाला ।
उसे अब हम न पाएंगे, उसे अब हम न देखेंगे, ख़ुदा के पास जा पहुंचा, ख़ुदा का चाहने वाला ।
लगन थी उसके दिल में हर घड़ी हर लम्हा मज़हब की
उसे हर दम ख्याले इश्क़ मौला मस्त रखता था ।
ख़ुदा के दीन की ख़ातिर लुटा दी जिदंगी उसने
ख़ुदा के दीन की ख़ातिर ही वह दुनिया में जीता था।
ख़ुदा के दीन का परचम उड़ाया उसने दुनिया में
बजाया, चार सू उसने ख़ुदा के दीन का डंका । क़ियामत तक ख़ुदा-ए-पाक की हों रहमतें उस पर
करे अल्लाह उसका आखिरत में मर्तबा ऊंचा ।
– पैकरे ग़म क़ारी मुहम्मद इसहाक़ हाफ़िज़ सहारनपुरी