Allah पर याकिन। अल्लाह तआला फ़रमाएंगे मेरा बन्दा सच्चा है- तेरा क़र्ज़ा मैं अदा करूंगा। Allah का shukar दिल से अदा करना। Allah karz कब माफ कर देंगे ? | Allah का shukar दिल से अदा करना – Dawat~e~Tabligh in Hindi…

Allah के डर से रोना
- ख़ुदा और आख़िरत के ख़ौफ़ से निकला हुआ एक आँसू जहन्नम की बड़ी से बड़ी आग को बुझा देगा।
इमाम अहमद रहमतुल्लाहि अलैहि ने किताबुज्जुहद में ब- रिवायत हज़रत हाज़िम रज़ियल्लाहु अन्हु नक़ल किया है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास एक मर्तबा जिब्रीले अमीन तशरीफ़ लाये तो वहाँ कोई शख़्स ख़ौफ़े-ख़ुदा से रो रहा था, तो जिब्रीले अमीन ने फ़रमाया कि इंसान के तमाम आमाल का तो वज़न होगा मगर खुदा और आख़िरत के ख़ौफ़ से रोना ऐसा अमल है जिसको तौला न जाएगा बल्कि एक आँसू भी जहन्नम की बड़ी से बड़ी आग को बुझा देगा।
-मआरिफुल कुरआन, हिस्सा 3, पेज 535
Allah पर याकिन
- अल्लाह ने एक मोती को हिदायत दी।
सय्यद अहमद शहीद रह० ने जब सिखों के ख़िलाफ़ जिहाद किया था. तो दिल्ली के कोठे पर एक बहुत मशहूर रक्कासा थी, मोती उसका नाम था । शाह इसमाईल शहीद रह० इशा की नमाज पढ़कर निकले और बाज़ारे हुस्न में पहुंचे और मोती के घर पर दस्तक दी। वहां से उनको ख़रात दी जाने लगी? तो उन्होंने कहा, फ़क़ीर पहले सदा लगाता है, फिर खैरात लेता है, तुम मेरी सदा सुन लो सब लोग जमा हो गए तो कुरआन की आयात तिलावत की क्त्तीनि कीतून…. आखिर तक “कसम है तीन (इंजीर) की और जैतून की और तूरे सीनीन की और पाक शहर की सबसे बेहतरीन हमने इंसान को बनाया, फिर उसी को हमने सबसे ज़लील बनाकर पीछे भी लौटाया ” सबसे बेहतरीन और सबसे जलील की तशरीह बयान करनी शुरू की तो मोती की आंखों से आंसू निकलने लगे और उन आंसुओं से उसकी पिछली ज़िंदगी के सब दाग अल्लाह ने धो दिए और उसने तौबा की और कहा, अब मैं साथ जाऊंगी। उसका निकाह एक शख्स के साथ कराया और फिर वह मुजाहिदीन के लिए आटा पीसती थी, और मुजाहिदीन की खिदमत करते हुए शहीद हो गई।
उस मोती का कोठा किसने छुड़ाया? अल्लाह ने वह कौन-सी हलावत थी, लज्जत थी? वह कुरआन की हलावत थी। काश! हम इस मिठास से बाख़बर हो जाएं। अल्लाह ही का नूर है कायनात में अल्लाह की क़सम, अल्लाह कहता है कि जो आंखों के पर्दे हराम से गिरा लेता है, अल्लाह उसे चप्पे-चप्पे पर अपना नूर दिखाता है। कायनात का एक-एक ज़र्रा अल्लाह की तस्वीह पढ़ रहा है। और अल्लाह की क़सम, अल्लाह सुनाता है और जो अपने कानों को गाने-बजाने से महफ़ूज़ कर लेता है! अल्लाह उसे सुनाता है जिसकी आंखों ने हराम देखना छोड़ा, जिसके कानों ने हराम सुनना छोड़ा, अल्लाह उसको दुनिया ही में दिखा देता है अल्लाह पर ईमान लाओ, सब कुछ अल्लाह ही के हाथ में है। अल्लाह कह रहा है कि मेरे हुक्मों पर तिजारत करो, मैं तुम्हारी तिजारत के मुनाफ़े की गारंटी देता हूँ। कोई शय अपनी ज्ञात में कुछ नहीं, जो है मेरे अल्लाह का अम्र है।
(इस्लाही वाक्रियात पेज 526)
Allah karz कब माफ कर देंगे ?
- अल्लाह तआला फ़रमाएंगे मेरा बन्दा सच्चा है- तेरा क़र्ज़ा मैं अदा करूंगा।
हज़रत मुहम्मद सल्ल० फ़रमाते हैं कि एक क़र्ज़दार को अल्लाह तआला क़ियामत के दिन बुलाकर अपने सामने खड़ा करके पूछेगा कि तूने क़र्ज़ क्यों लिया और क्यों रक्कम ज्ञाया कर दी जिससे लोगों के हुकूक़ बर्बाद हुए? वह जवाब देगा कि ख़ुदाया ! तुझे ख़ूब इल्म है कि मैंने न यह रक़म खाई, न पी और न उड़ाई, बल्कि मेरे यहां से मसलन चोरी हो गई या आग लग गई या कोई और आफत आ गई। अल्लाह तआला फ़रमाएगा, मेरा बन्दा सच्चा है। आज तेरे क़र्ज़ के अदा करने का सबसे ज़्यादा मुस्तहिक़ मैं हूं। फिर अल्लाह तआला कोई चीज़ मंगवाकर उसकी नेकियों के पलड़े में रख देगा, जिससे नेकियां बुराइयों से बढ़ जाएंगी और अल्लाह तआला उसे अपने फ़ज़्ल व रहमत से जन्नत में ले जाएगा।
(मुस्नद अहमद, तफ़्सीर इब्ने कसीर, जिल्द 2, पेज 372)
Allah का shukar दिल से अदा करना
- आप के दिल में आ गया कि मैं अल्लाह तआला की नेमतों का शुक्र अदा नहीं कर सकता गोया कि आपने शुक्र अदा कर लिया।
हज़रत मूसा अलैहि० ने एक मर्तबा अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से अर्ज़ किया कि ऐ अल्लाह “कैफ़ अश्रुक मैं आपका शुक्र कैसे अदा करूं? क्योंकि आपकी एक-एक नेमत ऐसी है कि में सारी ज़िन्दगी भी इबादत में लगा रहूं तो मैं सिर्फ एक नेमत का भी शुक्र अदा नहीं कर सकता, और आपकी तो वेइंतिहा नेमतें हैं। मैं उन सब नेमतों का शुक्र कैसे अदा कर सकता हूं? जब उन्होंने यह कहा तो अल्लाह ने उसी वक़्त उन पर वही नाज़िल फ़रमाई और फ़रमाया कि “ऐ मूसा ! अगर आपके दिल में यह बात है कि आप सारी ज़िन्दगी शुक्र अदा करें तो भी शुक्र अदा नहीं कर सकते तो सुन लें कि “अल आ-न शकरतनी” अब तो आपने मेरा शुक्र अदा करने का हक़ अदा कर दिया है” सुहानल्लाह
Allah को राजी करना
- हज़रत मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु के नाम हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा का ख़त
हज़रत मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि उन्होंने उम्मुल मोमिनीन हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा को ख़त लिखा, और उसमें दर्खास्त की कि आप मुझे कुछ नसीहत और वसीयत फ़रमाएं लेकिन बात मुख़्तसर और जामेअ हो, बहुत ज्यादा न हो तो हज़रत उम्मुल मोमिनीन ने उनको यह मुख़्तसर ख़त लिखा :-
सलाम हो तुमपर, अम्मा बाद! मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सुना है आप फ़रमाते थे जो कोई अल्लाह को राज़ी करना चाहता है, लोगों को अपने से ख़फ़ा करके, तो अल्लाह मुस्तग्ना कर देगा उसको लोगों की फ़िक्र और बार-बरदारी से, और खुदा उसके लिए काफ़ी हो जाएगा, और जो कोई बन्दों को राज़ी करना चाहेगा, अल्लाह को नाराज़ करके तो अल्लाह उसको सुपुर्द कर देगा लोगों के । वस्सलाम
-जामेअ तिर्मिज़ी, मआरिफुल कुरआन, हिस्सा 2, पेज 162
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