Allah के रास्ते में kharch करने के फायदे Web Stories| Paiso में barkat – Dawat~e~Tabligh

Allah के लिए एक दिरहम ख़र्च कर, अल्लाह के ख़ज़ाने से दस दिरहम लो, Garib का Sadka Allah के रास्ते में kharch करने के फायदे Web Stories | Paiso में barkat- Dawat~e~Tabligh…. रोज़ी में बरकत के लिए नब्बी नुस्खा, ग़रीब साथी का सदका क़बूल करना

Allah के रास्ते में kharch करने के फायदे Web  Stories| Paiso में barkat- Dawat~e~Tabligh
Allah के रास्ते में kharch करने के फायदे Web Stories| Paiso में barkat- Dawat~e~Tabligh

Allah के रास्ते में kharch करने के फायदे

  • अल्लाह के लिए एक दिरहम ख़र्च कर, अल्लाह के ख़ज़ाने से दस दिरहम लो

हज़रत उबैदुल्लाह बिन मुहम्मद बिन आइशा रहमतुल्लाहि अलैहि कहते हैं कि एक मांगने वाला अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के पास आकर खड़ा हुआ। हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने हज़रत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु या हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु से कहा कि अपनी वलिदा के पास जाओ और उनसे कहो कि मैंने आपके पास छः दिरहम रखवाये थे उनमें से एक दिरहम दे दो, और उन्होंने वापस आकर कहा कि अम्मी जान कह रही हैं कि वह छः दिर्हम तो आपने आटे के लिए रखवाये थे। हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा, किसी भी बंदे का ईमान उस वक्त तक सच्चा साबित नहीं हो सकता जब तक कि उसको जो चीज़ उसके पास है उससे ज़्यादा एतिमाद उस चीज़ पर न हो जाये जो अल्लाह के खजानों में है। अपनी वलिदा से कहो कि छः दिरहम भेज दें, चुनांचे उन्होंने छः दिरहम हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को भिजवा दिए जो हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने उस मांगने वाले को दे दिए।

बयान करने वाले कहते हैं कि हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपनी महफ़िल भी नहीं बदली थी कि इतने में एक आदमी उनके पास से एक ऊँट लिए गुज़रा जिसे वह बेचना चाहता था। हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा यह ऊँट कितने में दोगे? उसने कहा 140 दिरहम में। हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा इसे यहाँ बांध दो, अलबत्ता इसकी कीमत कुछ अर्से के बाद देंगे। वह आदमी ऊँट वहाँ बांधकर चला गया। थोड़ी ही देर में एक आदमी आया और उसने कहा, यह ऊँट किसका है? हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा, मेरा। उस आदमी ने कहा क्या आप इसे बेचेंगे? हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा, हाँ उस आदमी ने कहा, कितने में? हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा 200 दिरहम में। उसने कहा मैंने इस क़ीमत में यह ऊँट ख़रीद लिया और हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को 200 दिर्हम देकर वह ऊँट लेकर चला गया। हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने जिस आदमी से ऊँट ख़रीदा था उसे 140 दिर्हम दिये और बाक़ी 60 दिरहम लाकर हज़रत फ़तिमा रज़ियल्लाहु अन्हा को दिये। उन्होंने पूछा यह क्या है? हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा, यह वह है जिसका अल्लाह तआला ने अपनी नबी की ज़बानी हमसे वादा किया है।

तर्जमाः- जो शख़्स नेक काम करेगा, उसको उसके दस हिस्से मिलेंगे।

– सूरः इनआम, आयत 16, हयातुस्सहावा, हिस्सा 2, पेज 202

Paiso में barkat

  • रोज़ी में बरकत के लिए नब्बी नुस्खा

घर में दाखिल होकर सलाम करे चाहे घर में कोई हो या न हो, फिर ऐक मर्तबा दुरूद शरीफ़ पढ़े फिर एक मर्तबा सूरः इख्लास पढ़े।

 -हिस्ने-हसीन

Paiso में barkat Web Stories

Musalmano के paiso में savdhani

  • मुसलमानों के इज्तिमाई माल में हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की एहतियात

1. हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया कि मैं अल्लाह के माल को (यानी मुसलमानों के इज्तिमाओ माल को जो बैतुलमाल में होता है) अपने लिए यतीम के माल की तरह समझता हूँ अगर मुझे ज़रूरत न हो तो इसके इस्तेमाल से बचता हूँ। और अगर मुझे ज़रूरत हो तो ज़रूरत के मुताबिक मुनासिब मिक्दार में इसे लेता हूँ। दूसरी रिवायत में यह है कि मैं अल्लाह के माल को अपने लिए यतीम के माल की तरह समझता हूँ। अल्लाह तआला ने यतीम के माल के बारे में कुरआन मजीद में फ़रमाया है:

तर्जमा:- जो शख़्स गुनी हो सो वह अपने को बिल्कुल बचाये और जो शख्स हाजतमन्द हो तो वह मुनासिब मिक्दार से खाय – हयातुस्सहाबा हिस्सा 2, पेज 311

2. हज़रत बरा बिन मारूर रज़ियल्लाहु अन्हु के एक बेटे कहते हैं कि हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु एक मर्तबा बीमार हुए, उनके लिए इलाज में शहद तज्वीज़ किया गया और उस वक़्त बैतुलमाल में शहद की एक कुप्पी मौजूद थी। (उन्होंने खुद इस शहद को न लिया बल्कि ) मस्जिद में जाकर मिम्बर पर तशरीफ़ ले गय और फ़रमाया कि मुझे इलाज के लिए शहद की ज़रूरत है और शहद बैतुलमाल में मौजूद है, अगर आप लोग इजाजत दें तो मैं उसे ले लूँ वर्ना वह मेरे लिए हराम है, चुनांचे लोगों ने खुशी से उनको इजाज़त दे दी। -हयातुस्सहाबा हिस्सा 2, पेज 311

3. हज़रत इस्माईल बिन मुहम्मद बिन सजूद बिन अबी वकास रहमतुल्लाहि अलैहि कहते हैं कि एक मर्तबा हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के पास बहरीन से मुश्क और अम्बर आया। हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया : अल्लाह की क़सम ! मैं चाहता हूँ कि मुझे कोई ऐसी औरत मिल जाये जो तौलना अच्छी तरह जानती हो और वह मुझे यह ख़ुश्बू तौल दे ताकि मैं इसे मुसलमानों में तक्सीम कर सकूँ, उनकी बीवी हज़रत आतिका बिन्त ज़ैद बिन अम्र बिन नुफ़ैल रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा मैं तौलने में बड़ी माहिर हूँ, लाइये मैं तौल दूँ । हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया : नहीं! तुमसे नहीं तुलवाना। उन्होंने कहा क्यूँ? हज़रत उमर रज़ि० ने फ़रमाया : मुझे डर है कि इसे अपने हाथों से तराज़ू में रखोगी (यूँ कुछ न कुछ खुश्बू तेरे हाथों को लग जाएगी और कनपटी और गर्दन की तरफ़ इशारा करते हुए फ़रमाया) और यूँ तू अपने कनपटी और गर्दन पर अपने हाथ फेरेगी, इस तरह तुझे मुसलमानों से कुछ ज्यादा खुश्बू मिल जाएगी। 

-हयातुस्सहावा, हिस्सा 2, पेज 315

4. हज़रत मालिक बिन औस बिन हदसान रहमतुल्लाहि अलैहि कहते हैं कि हज़रत उमर बिन ख़त्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु के पास रूम के बादशाह का एक क़ासिद आया। हज़रत उमर रज़ि० की बीवी ने एक दीनार उधार लेकर इतर ख़रीदा और शीशीयों में डालकर इतर उस क़ासिद के हाथ रुम के बादशाह की बीवी को तोहफ़े में भेज दिया। जब यह क़ासिद बादशाह की बीवी के पास पहुँचा और उसे वह इतर दिया तो उसने वह शीशीयाँ ख़ाली करके जवाहरात से भर दीं और क़ासिद से कहा जाओ, यह हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की बीवी को दे आओ। जब यह शीशीयाँ हज़रत उमर रज़ि० की बीवी के पास पहुँची तो उन्होंने उन शीशीयों से वह जवाहरात निकालकर एक बिछौने पर रख दिए। इतने में हज़रत उमर बिन ख़त्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु आ गये, और उन्होंने पूछा यह क्या है? उनकी बीवी ने उनको सारा क़िस्सा सुनाया। हज़रत उमर रज़ि० ने वह तमाम जवाहरात बेच दिये और उनकी क़ीमत में से सिर्फ़ एक दीनार अपनी बीवी को दिया और बाक़ी सारी रक़म मुसलमानों के लिए बैतुल माल में जमा करा दी। -हयातुस्सहाबा हिस्सा 2, पेज 316

5. हज़रत इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं एक मर्तबा मैंने कुछ ऊँट ख़रीदे और उनको बैतुलमाल की चरागाह में छोड़ आया। जब वह ख़ूब मोटे हो गये तो मैं उन्हें बैचने के लिए बाज़ार में ले आया, इतने में हज़रत उमर रज़ि० भी बाज़ार में तशरीफ़ ले आये और उन्हें मोटे-मोटे ऊँट नज़र आये तो उन्होंने पूछा यह ऊँट किसके हैं? लोगों ने उन्हें बताया कि यह हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि० के हैं तो फ़रमाने लगः ऐ अब्दुल्लाह बिन उमर ! वाह ! वाह! अमीरुल मोमिनीन के बेटे के क्या कहने! मैं दौड़ता हुआ आया और मैंने अर्ज़ किया: ऐ अमीरुल मोमिनीन! क्या बात है? आप ने फ़रमाया : यह ऊँट कैसे हैं? मैंन अर्ज किया मैंने यह ऊँट ख़रीदे थे और बैतुलमाल की चरागाह में चरने के लिए भेजे थे। (अब मैं इनको बाज़ार ले आया हूँ) ताकि मैं दूसरे मुसलमानों की तरह इन्हें बेचकर नफा हासिल करू । हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया हाँ बैतुलमाल की चरागाह में लोग एक-दूसरे को कहते होंगे अमीरुल मोमिनीन के बेटे के ऊँटों को चराओ और अमीरुल मोमिनीन के बेटे के ऊँटों को पानी पिलाओ (मेरे बेटे होने की वजह से तुम्हारे ऊँटों को ज़्यादा रिआयत की होगी इसलिए) ऐ अब्दुल्लाह बिन उमर ! इन ऊँटों को बेचो और तुमने जितनी रक़म में ख़रीदे थे तो वह तुम ले लो और बाक़ी ज्यादा रक़म मुसलमानों के बैतुलमाल में जमा करा दो।

 -हयातुस्सहाबा हिस्सा 2, पेज 316

Garib का Sadka

  • ग़रीब साथी का सदका क़बूल करना

हज़रत ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु अपनी एक घोड़ी लेकर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए जिसका नाम शिबला था और उन्हें अपने माल में से कोई चीज़ उस घोड़ी से ज्यादा मेहबूब नहीं थी। अर्ज किया कि यह घोड़ी अल्लाह के लिए सद्क़ा है। हुज़ूर सल्ल० ने उसे क़बूल फ़रमाकर उनके बेटे हज़रत उसामा बिन जैद रज़ियल्लाहु अन्हु को सवारी के लिए दे दी। ( हज़रत जैद बिन हारिसा रज़ि० को यह अच्छा न लगा कि उनकी सद्क़ा की हुई घोड़ी उनके ही बेटे को मिल गई, यूँ सद्क़ा की हुई चीज़ अपने ही घर वापस आ गई ) । हुज़ूर सल्ल० को इस नागवारी का असर उनके चेहरे में महसूस हुआ तो इर्शाद फ़रमाया : अल्लाह तुम्हारे इस सद्क़ को क़बूल कर चुके हैं। ( लिहाजा अब यह घोड़ी जिसे भी मिल जाये तुम्हारे अज्र में कोई कमी नहीं आएगी। – हयातुस्सहावा, हिस्सा 2, पेज 212

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्दे रिब्बा रज़ियल्लाहु अन्हु जिन्होंने ख़्वाब में ( फ़रिश्ते को ) अज़ान देते हुए देखा था वह फ़रमाते हैं कि उन्होंने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर होकर अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह! मेरा यह बाग़ सद्क़ा है, मैं अल्लाह और उसके रसूल को दे रहा हूँ, वह जहाँ चाहें ख़र्च कर दें। जब उनके वालदैन को मालूम हुआ तो उन्होंने हुज़ूर सल्ल० की ख़िदमत में हाज़िर होकर अर्ज़ किया : या रसूलुल्लाह ! हमारा गुज़ारा तो इसी बाग़ पर हो रहा था, हमारे बेटे ने इसे सद्क़ा कर दिया। हुज़ूर सल्ल० ने वह बाग़ उन दोनों को दे दिया। फिर जब उन दोनों का इंतकाल हो गया तो फिर वह बाग़ उनके बेटे हज़रत अब्दुल्लाह बिन जैद रज़ियल्लाहु अन्हु को विरासत में मिल गया और वारिस बनकर उस बाग़ के मालिक हो गये।

 – हयातुस्सहावा, हिस्सा 2, पेज 215

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