हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु को मुट्ठी भर खजूरें दीं और वह 27 साल तक खाते रहे, खिलाते रहे, यह दीन की बरकत थी..Barkat का Kissa|Thode अमल में bohat jada Sawab – Dawat-e-Tabligh….

Barkat
- हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु को मुट्ठी भर खजूरें दीं और वह 27 साल तक खाते रहे, खिलाते रहे, यह दीन की बरकत थी
हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं इस्लाम में मुझ पर तीन ऐसी बड़ी मुसीबतें आई हैं कि वैसी कभी भी मुझ पर नहीं आई। एक तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विसाल का हादिसा क्योंकि मैं आप सल्ल० के हमेशा साथ रहने वाला मामूली सा साथी था। दूसरे हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की शहादत का हादसा, तीसरे तोशेदान का हादिसा। लोगों ने पूछा ऐ अबू हुरैरा ! तोशेदान के हादिसे से क्या मतलब है? फ़रमाया। हम एक सफ़र में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ थे। आप सल्ल० ने फ़रमाया: ऐ अबू हुरैरा : तुम्हारे पास कुछ है? मैंने कहा तोशादान में कुछ खजूरें हैं, आप सल्ल० ने फ़रमाया ले आओ, मैंने खजूरें निकालकर आप सल्ल० की ख़िदमत में पेश कर दीं। आप सल्ल० ने उन पर हाथ फेरा और बरकत के लिए दुआ फ़रमाई, फिर फ़रमाया। दस आदमियों को बुला लाओ। मैं दस आदमियों को लाया, उन्होंने पेट भरकर खजूरें खाई, फिर उसी तरह दस दस आदमी आकर खाते रहे, यहाँ तक कि सारे लश्कर ने खा लिया और तोशेदान में बुला फिर भी खजूरें बच रहीं। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : ऐ अबू हुरैरा ! जब तुम इस तोशेदान में से खजूरें निकालना चाहो तो इसमें हाथ डालकर निकालना और इसे उलटाना नहीं। हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि मैं हुजूर सल्ल० की सारी ज़िन्दगी में इसमें से निकाल कर खाता रहा फिर हज़रत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु की सारी ज़िन्दगी में इसे खाता रहा, फिर हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की सारी जिन्दगी में इसमें से खाता रहा फिर हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की सारी ज़िन्दगी में इसमें से खाता रहा, फिर जब हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु शहीद हो गये तो मेरा सामान भी लुट गया और वह तोशादान भी लुट गया। क्या मैं आप लोगों को बता न दूँ कि मैंने उसमें से कितनी खजूरें खाई हैं? मैंने उसमें से 200 वस्क यानी एक हज़ार पचास मन से भी ज़्यादा खजूरें खाई हैं।
-हयातुस्सहाबा हिस्सा 3 पेज 711
Barkat का Kissa
- हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने पाँच कलिमात सिखाये फिर हज़रत मुहम्मद सल्ल० ने भी पाँच कलिमात हज़रत फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा को सिखाये, फिर हज़रत फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा के वास्ते से पूरी उम्मत को मिले
हज़रत सुवेद बिन गुफला रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु पर एक मर्तबा फ़ाक़ा आया तो उन्होंने हज़रत फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा से कहा अगर तुम हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में जाकर कुछ मांग लो तो अच्छा है। चुनांचे फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा हुजूर सल्ल० के पास गई, उस वक्त हुजूर के पास हज़रत उम्मे ऐमन रज़ियल्लाहु अन्हा मौजूद थीं। हज़रत फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने दरवाज़ा खटखटाया तो हुजूर सल्ल० ने हज़रत उम्मे ऐमन रज़ियल्लाहु अन्हा से फ़रमाया यह खटखटाहट तो फ़ातिमा की है। आज इस वक्त आई है पहले तो कभी इस वक्त नहीं आया करती थी। फिर हज़रत फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ( अन्दर आ गई और उन्हों) ने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह ! इन फ़रिश्तों का खाना इलाह इल्लल्लाह, सुबहान अल्लाह और अल्हम्दु लिल्लाह कहना है, हमारा खाना क्या है? आप सल्ल० ने फ़रमाया उस जात की क़सम जिसने मुझे हक़ देकर भेजा है, मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के घराने के किसी घर में तीस दिन से आग नहीं जली, हमारे पास चन्द बकरियाँ आई हैं अगर तुम चाहो तो पाँच बकरियाँ तुम्हें दे दूँ और अगर तुम्हें वह वाँच कलिमात सिखा दूँ जो हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने मुझे सिखाये हैं। हज़रत फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ किया नहीं, बल्कि मुझे तो वही पाँच कलिमात सिखा दें जो आप को हज़रत जिव्रील अलैहिस्सलाम ने सिखाये हैं।
फिर हज़रत फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा वापस चली गई। जब हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के पास पहुंची तो हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने पूछा क्या हुआ? हज़रत फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा मैं आप (सल्ल.) के पास से दुनिया लेने गई थी लेकन वहाँ से आखिरत लेकर आई हूँ, हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा फिर तो यह दिन तुम्हारा सबसे बेहतरीन दिन है।
-हयातुस्सहाबा हिस्सा 9, पेज 56
- हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने दीन को दुनिया पर मुक़द्दम कर दिया और पाँच कलिमात हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सीखे
(Note: आज का मुसलमान होता तो कहता कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पाँच हज़ार बकरियों भी दीजिए और पाँच कलिमात भी सिखाइये) हज़रत अली बिन अबी तालिब रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि नवी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुझ से फ़रमाया मैं तुम्हें पाँच हज़ार बकरियाँ दे दूँ या ऐसे पाँच कलिमात सिखा दूँ जिनसे तुम्हारा दीन और दुनिया दोनों ठीक हो जाएं, मैंने अर्ज़ किया, या रसूलुल्लाह ! पाँच हज़ार बकरियाँ तो बहुत ज़्यादा हैं। लेकिन आप मुझे वे कलिमात सिखा दें। हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया यह कहो :
तर्जमा:- ऐ अल्लाह ! मेरे गुनाह माफ़ फ़रमा और मेरे अख़लाक़ वसीअ फ़रमा और मेरी कमाई को पाक फ़रमा और जो रोज़ी तूने मुझे अता फ़रमाई उस पर मुझे क़नाअत नसीब फ़रमा और जो चीज़ तू मुझ से हटा ले उसकी तलब मुझमें बाक़ी न रहने दे।
-हयातुस्सहावा, हिस्सा 3, पेज 208
Thode अमल में jada Sawab
- अमल बहुत मुख़्तसर सवाब और फ़ायदा बहुत ज़्यादा
इमाम बग़वी रहमतुल्लाहि अलैहि ने अपनी सनद के साथ इस जगह एक हदीस नक़ल फ़रमाई है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि हक़ तआला का फ़रमान है कि जो शख़्स हर नमाज़ के बाद सूर : फ़ातिहा और आयतुल कुर्सी और आले इम्रान की दो आयतें एक आयत आखिर तक और दूसरी आयत तक पढ़ा करे तो मैं उसका ठिकाना जन्नत में बना दूंगा और उसको अपने हजीरतुल कुदस में जगह दूंगा और हर रोज़ उसकी तरफ़ 70 मर्तबा नज़रे रहमत करूंगा और उसकी 70 हाजतें पूरी करूंगा और हर हासिद और दुश्मन से पनाह दूंगा और उन पर उसको ग़ालिब रखूंगा।
-मरिल कुरआन, हिस्सा 2 पेड़ 47
हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु का इंतिकाल का Waqut
- हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु का अपने इंतिकाल के वक़्त वसीयत करना
हज़रत यहया बिन अबी राशिद नुसरी रहमतुल्लाह अलैहि कहते हैं कि जब हज़रत उमर बिन ख़त्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु की वफ़ात का वक्त क़रीब आया तो अपने बेटे से फ़रमाया: ऐ मेरे बेटे! जब मुझे मौत आने लगे तो मेरे जिस्म को (दाँए पहलू की तरफ़ मोड़ देना और अपने दोनों घुटने मेरी थोड़ी, मेरी कमर के साथ लगा देना और अपना दायाँ हाथ मेरी पेशानी पर और बायाँ हाथ मेरी ठोड़ी पर रख देना और जब मेरी रूह निकल जाये तो मेरी आँखें बंद कर देना और मुझे दर्मियानी क़िस्म का कफ़न पहनाना क्योंकि अगर मुझे अल्लाह के यहाँ ख़ैर मिली तो फिर अल्लाह तआला मुझे इससे बेहतर कफ़न दे देंगे और अगर मेरे साथ कुछ और हुआ तो अल्लाह तआला इस कफ़न को मुझ से जल्दी से जल्दी छीन लेंगे और मेरी क़ब्र दर्मियानी किस्म की बनाना क्योंकि अगर मुझे अल्लाह के यहाँ ख़ैर मिली तो फिर क़ब्र की जहां तक नज़र जाएगी फैला दिया जाएगा और अगर मामला इसके खिलाफ़ हुआ तो फिर क़ब्र मेरे लिए इतनी तंग कर दी जाएगी कि मेरी पसलियाँ एक-दूसरे में घुस जाएंगी । मेरे जनाजे के साथ कोई औरत न जाये और जो खूबी मुझ में नहीं है उसे मत बयान करना, क्योंकि अल्लाह तआला मुझे तुम लोगों से ज़्यादा जानते हैं, और जब तुम मेरे जनाजे को लेकर चलो तो तेज़ चलना अगर अल्लाह के यहाँ से ख़ैर मिलने वाली है तो तुम मुझे उस खेर की तरफ ले जा रहे हो। (इसलिए जल्दी करो और अगर मामला इसके ख़िलाफ़ है तो तुम एक शर को उठाकर ले जा रहे हो इसे अपनी गर्दन से जल्द उतार दो।
-हयातुस्सहावा, हिस्सा 3, पेज 52-53
हज़रत उमर रज़ि० का Takwa
हज़रत अयास बिन सल्मा अपने वालिद (हज़रत सलमा) से नक़ल करते हैं कि उन्होंने कहा कि एक मर्तबा हज़रत उमर बिन खत्ताव रज़ियल्लाहु अन्हु बाज़ार से गुज़रे, उनके हाथ में कोड़ा भी था, उन्होंने आहिस्ता से वह कोड़ा मुझे मारा जो मेरे कपड़े के किनारे को लग गया और फ़रमाया, रास्ते से हट जाओ। जब अगला साल आया तो आप की मुझसे मुलाक़ात हुई, मुझसे कहा ऐ सलमा ! क्या तुम्हारा हज का इरादा है। मैंने कहा जी हाँ फिर मेरा हाथ पकड़कर अपने घर ले गये और मुझे 600 दिरहम दिये और कहा कि इन्हें अपने सफ़रे हज में काम ले आना और यह उस हल्के कोड़े के बदले में हैं जो मैंने तुमको मारा था। मैंने कहा कि ऐ अमीरुल मोमिनीन ! मुझे तो वह कोड़ा याद भी नहीं रहा फ़रमाया लेकिन मैं तो उसे नहीं भूला। यानी मैंने मार तो दिया लेकिन सारा साल खटकता रहा।
:- हयातुस्सहावा, हिस्सा 2, पेज 145
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Chair में बैठ कर बयान करने की दलील Dawat~e~Tabligh
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नाखून कब काटना चाहिए? Dawat~e~Tabligh
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Kiska जूठा खा सकते है? | खाने से पहले और बाद में हाथ धोने Ke फायदा – Dawat~e~Tabligh