औरत ka किसी एक mard ko चुन ना | बीवी से Mohabbat की बातें सुनिए- Dawat~e~Tabligh

Pati – patni के बीच इतनी लड़ाई क्यों होती है? Pati-patni के बीच किसी तीसरे का आनाबीवी का pyara नाम रखना। औरत ka किसी एक mard ko चुन ना | बीवी से Mohabbat की बातें सुनिए- Dawat~e~Tabligh in Hindi….

औरत ka किसी एक mard ko चुन ना Web Stories | बीवी से Mohabbat की बातें सुनिए- Dawat~e~Tabligh
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Pati – patni के बीच इतनी लड़ाई क्यों होती है? 

  • मियां-बीवी को शैतान जल्दी लड़ा देता है

शैतान खुशगवार इन्दवाजी जिन्दगी को क़तअन नापसन्द करता है। वह चाहता है कि मियां-बीवी में रंजिश पैदा हो और इन्दवाजी ताल्लुकात में खराबी पैदा हो वह ख़ास तौर पर खाविन्दों के दिमाग में फ़्लूर डालता है। लिहाजा खाविन्द बाहर दोस्तों के अंदर गुलाब का फूल बना रहता है और घर के अंदर करेला नीम चढ़ा बन जाता है। नौजवान आकर कहते हैं, हज़रत ! पता नहीं क्या वजह है कि घर में आते ही दिमाग गरम हो जाता है। असल में शैतान गरम कर रहा होता है। वह मियां-बीवी के दर्मियान उल्झने पैदा करना चाहता है।

शैतान पहले मियां बीवी के दर्मियान झगड़ा करवा कर नाविन्द के मुंह से तलाक़ के अल्फ़ाज़ कहलवाता है। जब उसकी अक्ल ठिकाने आती है तो वह कहता है मैंने तो गुस्से में तलाक़ के अल्फ़ाज़ कह दिए थे। चुनांचे वे बगैर किसी बो बताए मियां-बीवी के तौर पर आपस में रहना शुरू कर देंगे। वह जितना अर्सा इसी हाल में एक-दूसरे से मिलते रहेंगे तब तक उन्हें जिना का गुनाह मिलता रहेगा। अब देखें कि कितना बड़ा गुनाह करवा दिया, यह ऐसे कलीदी गुनाह करवाता है।

हदीस पाक में आया है कि कुर्बे क़यामत की अलामत में से है कि खाविन्द अपनी बीवियों को तलाक देंगे औ फि बगैर निकाह और रुजूअ के उनके साथ इसी तरह अपनी ज़िन्दगी गुजारेंगे।

Pati-patni के बीच किसी तीसरे का आना

  • अपनी बीवी का दिल प्यार से जीतिए, तलवार से नहीं

जो ख़ाविन्द अपनी बीवी का दिल प्यार से नहीं जीत सका, वह अपनी बीवी का दिल तलवार से हरगिज़ नहीं जीत सकता। दूसरे अल्फाज़ में जो औरत अपने ख़ाविन्द को प्यार से अपना न बना सकी वह तलवार से भी अपने ख़ाविन्द को अपना नहीं बना सकेगी। कई मर्तबा औरतें सोचती हैं कि मैं अपने भाई को कहूंगी। वह मेरे ख़ाविन्द को उटिगा में अपने अब्बू को बताऊंगी तो वह मेरे खाविन्द को सीधा कर देंगे। ऐसी औरतें इतिहाई वेवकूफ होती हैं बल्कि परले दरजे की बेवकूफ़ होती हैं। यह कैसे हो सकता है कि आपके भाई और आपके बाप डांटेंगे और आपका खाविन्द ठीक हो जाएगा। यह तीसरे बन्दे के दर्मियान में आने से हमेशा फ्रासने वढ़ जाते हैं। जब आपने अपने और खाविन्द के मामले में अपने मां-बाप को डाल दिया तो आपने तो तीसरे बन्दे को दर्मियान में पाल कर खुद फैसला कर लिया जब आप मुद अपने और अपने मियां के दर्मियान फ़ासला कर चुके तो अब यह कुर्ब कैसे होगा इसलिए अपने घर की बातें अपने घर में समेटी जाती हैं, लिहाज़ा याद रखिए:

अपना घोंसला अपना, कच्चा हो या पक्का

बीवी अच्छी हो या बुरी फ़ायदा ही फायदा है

सवाल मुहतरमुल मकाम अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू

बाद सलाम, गुज़ारिश है कि मैं नीजवान हूं। शादी का तक़ाज़ा होने के बावजूद दिल गवारा नहीं करता कि शादी करूं। पता नहीं बद अख़्लाक़ बीवी या खुश-अलाक़ बीवी से पाला पड़ता है तसल्लीचा जवाब मरहमत फ़रमाइए, ऐन नवाज़िश होगी।

फ़क़त वस्सलाम जवाब आप बहरसूरत शादी कर लीजिए। एक नौजवान शादी से कतरा रहा था। सुकरात ने उसे नसीहत करते हुए कहा, “तुम हर हाल में शादी कर लो। अगर तुम्हारी बीवी नेक रही तो ख़ुश व ख़ुर्रम रहोगे और अगर तुम्हारे नसीब में बद अख़्लाक़ बीवी लिखी होगी तब भी तुम्हारे अंदर हिक्मत और दानाई आ जाएगी और ये दोनों चीजें इंसान के लिए सूदमंद हैं।”

औरत ka किसी एक mard ko चुन ना

  • एक औरत का हुस्ने इंतिख़ाब

हज्जाज के दरबार में केस आया? तीन आदमी थे, उनके क़त्ल का हुक्म दिया, एक खातून भी साथ थी, उसने कहो छोड़ दे, तेरी बड़ी मेहरबानी होगी।

हज्जाज कहने लगा, तीनों में एक चुन ले (उस एक को छोड़ दूंगा, बाकी दो को कत्ल करूंगा) एक बेटा था, एक खाविन्द था, एक भाई था औरत ने कहा, खाविन्द दूसरा भी मिल जाएगा, बच्चे और भी पैदा हो जाएंगे, मेरे मां-बाप मर गए। भाई अब कोई नहीं मिलेगा, मेरा भाई छोड़ दे, बाक़ी सबको क़त्ल कर दे।

हज्जाज ने कहा, मैं तेरे हुस्ने इतिखाब पर तीनों को छोड़ता हूँ।

(इस्लाही वाक्रियात, पेज 134 )

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बीवी का pyara नाम रखना

  • बीवी का प्यार वाला नाम रखना सुन्नत है….. मगर ऐसा-वैसा नाम न रखना

नबी करीम सल्ल० अपने अहले खाना के साथ बहुत ही मुहब्बत के साथ पेश आते थे। चुनांचे आप सल्ल० ने इरशाद फ़रमाया : “मैं तुममें से अपने अहले खाना के लिए सबसे बेहतर हूँ।”

एक मर्तबा आप सल्ल० अपने घर तशरीफ़ लाए। उस वक़्त सय्यदा आइशा सिद्दीक़ा रज़ि० प्याले में पानी पी रही थीं। आप सल्ल० ने दूर से फ़रमाया, “हुमैरा ! मेरे लिए भी कुछ पानी बचा देना।” उनका नाम तो आइशा था लेकिन नवी करीम सल्ल० उनको मुहब्बत की वजह से हुमेरा फ़रमाते थे। इस हदीस मुबारका से पता चलता है कि हर ख़ाविन्द को चाहिए कि वह अपनी बीवी का मुहब्बत में कोई ऐसा नाम रखे जो इसे भी पसन्द हो और उसे भी पसन्द हो। ऐसा नाम मुहब्बत की अलामत होता है और जब उस नाम से बन्दा अपनी बीवी को पुकारता है तो बीबी कुर्ब महसूस करती है, यह सुन्नत है।

नबी करीम सल्ल० ने जब फ़रमाया कि हुमेरा! मेरे लिए भी कुछ पानी बचा देना। तो सय्यदा आइशा सिद्दीक़ा रजि० ने कुछ पानी पिया और कुछ पानी बचा दिया। नबी सल्ल० उनके पास तशरीफ़ ले गए और उन्होंने प्याला हाज़िरे ख़िदमत कर दिया। हदीस पाक में आया है कि जब नबी सल्ल० ने यह प्याला हाथ में लिया और आप सल्ल० पानी पीने लगे तो आप रुक गए और सय्यदा आइशा सिद्दीक़ा रजि० से पूछा, “हुमेरा तूने कहां से लब लगाकर पानी पिया था? किस जगह से मुंह लगाकर पानी पिया था?” उन्होंने निशानदेही की कि मैंने वहां से पानी पिया था। हदीस पाक में आया है कि नबी सल्ल० ने प्याले के रुख को फेरा और अपने मुबारक लब उसी जगह पर लगाकर पानी नोश फ़रमाया साविन्द अपनी बीवी को ऐसी मुहब्बत देगा तो वह क्योंकर पर आबाद नहीं करेगी।

अब सोचिए कि रहमतु लिल आलमीन तो आप सल्ल० की ज्ञाते मुबारक है | आप सय्यदुल अव्वलीन कल आखिरीन हैं। इसके बावजूद आप सल्ल० ने अपनी अहलिया का बचा हुआ पानी पिया। होना तो यह चाहिए था कि आप सल्ल० का बचा हुआ पानी वह पीतीं। मगर यह सब कुछ मुहब्बत की वजह से था।

बीवी से मुहब्बत की बातें सुनिए

एक मर्तबा नबी करीम सल्ल० घर में तशरीफ़ फ़रमा थे। आप सल्ल० ने सय्यदा आइशा सिद्दीक़ा रज़ि० से फ़रमाया “हुमैरा ! तुम मुझे मक्खन और छुहारे मिलाकर खाने से ज़्यादा महबूब हो।” वह मुस्कुराकर कहने लगीं, “ऐ अल्लाह के नबी करीम सल्ल० मुझे आप मक्खन और शहद मिलाकर खाने से ज़्यादा महबूब हैं।” नवी करीम सल्ल० ने मुस्कुराकर फ़रमाया, “हुमेरा! तेरा जवाब मेरे जवाब से ज्यादा बेहतर है।”

नबी करीम सल्ल० के दिल में जितनी ख़शीयते इलाही थी उसका तो हम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते, मगर आप सल्ल० का अपने अहले खाना की मवानिसत, प्यार और मुहब्बत का ताल्लुक था। यह चीज़ ऐन मतलूब है और अल्लाह तआला भी इस चीज को पसन्द करते हैं।

सय्यदा आइशा सिद्दीक़ा रजि० फरमाती हैं कि नबी करीम सल्ल० जद भी घर तशरीफ़ लाते थे तो हमेशा मुस्कुराते चेहरे के साथ तशरीफ़ लाते थे।

इस हदीस पाक के आइने में ज़रा हम अपने चेहरे को देखें कि जब हम अपने घर आते है तो त्योरियां चढ़ी होती हैं।

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