40 din ki jammat (चिल्ले) मैं क्यों निकला जाता है ? | Hazarat Muhammad की Tabligh

Tabligh वाले चिल्ले में निकलने पर बहुत ज़ोर देते हैं, क्या चिल्ले की कोई असलियत है जिसकी वजह पर लोग चिल्ला लगाने के लिए कहते हैं ? 40 din ki jammat (चिल्ले) मैं क्यों निकला जाता है ? | Hazarat Muhammad की Tabligh in Hindi…

40 din ki jammat (चिल्ले) मैं क्यों निकला जाता है ? | Hazarat Muhammad की Tabligh
40 din ki jammat (चिल्ले) मैं क्यों निकला जाता है ? | Hazarat Muhammad की Tabligh

40 din ki jammat (चिल्ले) मैं क्यों निकला जाता है ? 

  • चिल्ले की असलियत

सवाल :- तब्लीग़ वाले चिल्ले में निकलने पर बहुत ज़ोर देते हैं, क्या चिल्ले की कोई असलियत है जिसकी वजह पर लोग चिल्ला लगाने के लिए कहते हैं?

जवाब :- चिल्ला यानी 40 दिन लगातार अमल की बहुत बरकत और तासीर है, 40 दिन तक अमल करने से रूह और बातिन पर अच्छा असर मुरत्तब होता है। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने कोहे- तूर पर 40 दिन का एतिकाफ़ फ़रमाया उसके बाद आपको तौरात मिली।

सूफ़िया-ए-किराम के यहाँ भी चिल्ले का एहतिमाम है लिहाजा यह बिल्कुल बे-असल नहीं है। एक हदीस में है हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :

जिस शख्स ने सिर्फ़ ख़ुदा की रजामंदी के लिए 40 दिन तक्बीरे-ऊला के साथ नमाज़ पढ़ी तो उसके लिए दो परवाने लिखे जाते हैं, एक परवाना जहन्नम से नजात का, दूसरा निफ़ाक़ से बरी होने का ।

– तिर्मिज़ी शरीफ़ हिस्सा 1, पेज 33, मिश्कात शरीफ़, पेज 102 बाब मा अल्ल मामून

मिनल मताबअतः व हुक्मुल मस्बूकुल फ़ज़्ल सानी इससे मालूम हुआ कि चिल्ले को हालात के बदलने में ख़ास असर है। देखिए जब नुत्फ़ा मादरे-रहम में क़रार पाता है तो पहले चिल्ले में वह नुत्फ़ा अल्का (यानी बंधा हुआ ख़ून) बनता है और दूसरे चिल्ले में वह अल्का मुज्आ (यानी गोश्त की बोटी बनता है) और तीसरे चिल्ले में मुज़गा के कुछ हिस्सों को हड्डियाँ बना दिया जाता है और उन हड्डियों पर गोश्त चढ़ता है फिर उसके बाद (यानी तीन चिल्लों के बाद जिसके चार महीने होते हैं) उसमें जान पड़ती है।

-व्यानुल कुरआन हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु के ज़माने में एक शख़्स एक औरत पर आशिक़ हो गया और उसकी मोहब्बत में दीवाना हो गया, वह औरत बड़ी पाकदामन अफ़ीफ़ा और समझदार थी, उसने उस शख़्स को कहलवाया कि 40 दिन तक हज़रत उमर फारूक रजि० के पीछे तवबीरे ऊला के साथ नमाज़ पढ़ो उसके बाद फ़ैसला होगा। उसने 40 दिन तक उसी तरह नमाज़ पढ़ी तो उसकी काया पलट गई और उसका इश्क़ मज़ाज़ी इश्क़ हक़ीक़ी में बदल गया, अब तक वह उस औरत का आशिक़ था अब अल्लाह का आशिक़ हो गया। और इश्क़ भी ऐसा कि अल्लाह की मोहब्बत उसके रग-व-पै में सरायत कर गई। हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को इस वाक़िए का बारे में इत्तिला हुई तो फ़रमाया :

बेशक अल्लाह और उसके रसूल ने सच कहाः यक़ीनन नमाज़ बेहयाई और बुराई की बातों से रोकती है।

-फ़तावा रहीमिया, हिस्सा 6, पेज 384 

नोटः- एक हदीस में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इर्शाद है कि जो शख़्स 40 दिन इख्लास के साथ अल्लाह की इबादत करे तो अल्लाह उसके दिल से हिक्मत के चश्मे जारी फ़रमा देते हैं।

– रूहुल ब्यान, मआरिफुल कुरआन, हिस्सा 4, पेज 58

Hazarat Muhammad की Tabligh

आपका तब्लीगी दौर सिर्फ़ 23 साला है, इस मुख़्तसर मुद्दत में इतनी जबरदस्त कामयाबी हासिल की, दावत वाले काम को एक बैनुल अकुवामी काम बना कर हर तबके और हर ज़ेहन के लोगों को इस कसरत से मुतासीर किया। एक बुजुर्ग के अलफ़ाज़ हैं कि :

“इसकी नजीर व मिसाल करीब की पिछली सदियों में मुश्किल से मिलेगी “इन हजरात के दुनिया से जाने के बाद उनके मलफ़ज़ात व मकतूबात हमारे लिए उसूल और सही रहनुमाई का जरिया हैं। हजरत मौलाना मुहम्मद इलयास साहब नव्वरल्लाहु मरकदहू के मलफूजात व मकातीब तो कई सालों पहले किताबी शक्ल में आ चुके हैं, जिन से दावत का काम करने वाले अहबाब को जबरदस्त फायदा हुआ, और हो रहा है। इस नाकारा के दिल में कई दिनों से ये ख़्याल गश्त कर रहा था कि हजरत जी मौलाना मुहम्मद यूसुफ साहब रहमतुल्लाह मलफ़ूज़ात व मकातीब मन्ज़रे आम पर किताबी शक्ल में आ जाएं तो के बहुत ही फायदे और नफे की उम्मीद है। मगर तसनीफ व तालीफ के सिलसिले में कलम उठाने के मुतअल्लिक इस नाकारे को अपने बारे में इल्म व अमल की कमी नीज दीगर अवारिज़ व मवाने की बिना पर बड़ा तरहुद था। इसी लिए पसोपेश में कई दिन गुजर गए।

बिलआखिर मेरे खैरख्वाहों में से एक जिनको उलूमे दीनिया और तदरीस और दावत वाले उमूमी काम में हक तआला शानहू ने एक खास मलका अता फरमाया है। उनसे इस बारे में मश्विरह किया तो उन्होंने “अलमुसतशारू मुअतमिनुन” (जिस से मश्विरह तलब किया जाता है। वो अमीन होता है)। के तहत बन्दे के इस इरादे की ताईद फरमा कर हिम्मत अफजाई फरमाई और साथ ही दो-तीन मौजूआत पर किताबें तालीफ़ करने की निशानदेही फरमाई इससे मेरी मुराद उस्ताज़ी मौलाना अब्दुस्सलाम साहब पूनवी जी-द मज-द-हुम हैं।

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