Deen की दावत कियो जरूरी है ? | Hazrat Abbu Bakar के इस्लाम लेन के बाद Dawat~e~Tabligh

Hazrat abbu bakar का इस्लाम काबुल करना। दीन kya Hai ? Deen की सही समझ। Islam मैं बाकी रहना। Deen की दावत कियो जरूरी है ? | Hazrat abbu bakar के इस्लाम लेन के बाद Dawat~e~Tabligh in Hindi..

Deen की दावत कियो जरूरी है ? | Hazrat Abbu Bakar के इस्लाम लेन के बाद Dawat~e~Tabligh
Deen की दावत कियो जरूरी है ? | Hazrat Abbu Bakar के इस्लाम लेन के बाद Dawat~e~Tabligh

दीन kya Hai ? 

नबी सल्ल० का इरशाद है, “ख़ुदा जिसको भलाई से नवाज़ना चाहता है, उसको दीन की गहरी समझ अता फरमा देता है।” हकीकत यह है कि दीन की सही समझ ख़ुदा की बहुत बड़ी नेमत है अगर दीन की समझ से आदमी महरूम हो तो कभी दीन पर सही अमल नहीं कर सकता। ज़िंदगी के बहुत-से मामलात में दीन का तकाज़ा कुछ होगा और वह कुछ अमल करेगा और इस तरह उसकी जात से दीन को फ़ायदा पहुंचने के बजाए नुक्सान पहुंचेगा। बहुत सी बातों को वह दीनदारी समझकर इख्तियार करेगा, हालांकि ये बातें दीन के खिलाफ़ होंगी।

ख़ुदा का दीन एक फ़ितरी दीन है वह इंसानी जरूरतों का लिहाज करता है। इंसान के जज्बात का लिहाज़ करता है और हर बात में अतिदाल और मयानारवी को बड़ी अहमियत देता है। वह बन्दों को ख़ुदा के हुक्कूक़ भी बताता है और बन्दों के हुकूक भी, और ऐसी जामे हिदायत देता है कि अगर आदमी उन हिदायात को ठीक-ठीक समझकर उनकी पैरवी करे तो वह दुनिया के लिए रहमत का साया बन जाता है। वह दुनिया के मामलात को रौशनी में देखता है और कभी किसी का हक़ नहीं मारता । 

Deen की दावत कियो जरूरी है ? 

मसलन आप सोचिए कि एक शख़्स कुरआन पाक की तिलावत करते हुए एक जंगल का सफ़र कर रहा है, उसके साथ उसका साथी भी सफ़र कर रहा है। यह शख़्स बड़े जज्बे के साथ कुरआन की तिलावत में मशगूल है। आगे एक नदी आई। नदी में पानी थोड़ा मालूम हो रहा है और उसका साथी पार जाने के लिए बेधड़क नदी में कूद पड़ता है। इत्तिफाक की बात कि जहां वह कूदता है वह गहरा गड्ढा है, और वह डूबते-डूबते बचता है। जब वह बाहर निकल कर आता है तो अपने साथी से कहता है कि आप तो अक्सर व बेशतर इस रास्ते पर सफ़र करते हैं, आपको यह नहीं मालूम कि यहां इतना गहरा गढ्ढा है। इतनी देर में वह कुरआन पाक की सूरत पूरी करके अपने ऊपर दम कर लेता है और कहता है, भाई मुझे तो खूब मालूम था कि यहां गहरा गड्ढा है और ख़ुदा ने खैर कर दी कि तुम बच गए, मगर मैं तुम्हें कैसे बताता; मैं तो कुरआन पाक की तिलावत कर रहा था और सूरह पूरी नहीं हुई थी।

आप ही सोचिए उस शख़्स का यह अमल कैसा है? बेशक कुरआन शरीफ़ की तिलावत एक बहुत बड़ी नेमत है लेकिन जब उस शख्स की जान । जा रही हो तो क्या उसके लिए यह जाइज़ है कि यह कुरआन पढ़ता रहे, और रुक कर उसको यह न बताए कि आगे जान का ख़तरा है। दरअस्ल यह दीन की सही समझ से महरूमी का नतीजा है। यह दीनदारी की ग़लत मिसाल है।

Deen की सही समझ

और सोचिए, एक शख्स हर वक्त ख़ुदा की इबादत में लगा रहता है। जब देखो नफ़्त पड़ रहा है, तस्वीह पढ़ रहा है, कुरआन की तिलावत कर रहा है और लोगों को दीन की बातें भी समझा रहा है। लेकिन उसके बच्चे अक्सर फ़ाके से रहते हैं, उनके बदन पर कपड़े नहीं हैं, वह भूख से बेताब होकर पास पड़ोस से मांगने के लिए पहुंच जाते हैं और जब उस शख्स से कहा जाता है कि भाई तुम दिन-रात वज़ीफ़े पढ़ने और तिलावत करने में मशगूल रहते हो, आखिर कुछ मेहनत-मजदूरी क्यों नहीं करते? तुम्हारे बच्चों का यह हाल है। वह बड़े फ़न से कहता है, ख़ुदा के दरबार से फ़ुरसत ही नहीं मिलती। अल्लाह की बड़ी मेहरबानी है कि बहुत-सा वक़्त उसकी इबादत में गुज़र जाता है। कमाना और दुनिया जमा करना तो दुनियादारों का काम है मोमिन को तो ख़ुदा ने इबादत के लिए पैदा किया है। तो बताइए उस शख़्स का यह अमल दीन की हिदायत के लिहाज से कितना ग़लत है? लेकिन वह समझता है कि में दीनदार हूँ, और बच्चों को भूखा मारकर नपल पढ़ते रहना बहुत बड़ी दीनदारी है।

हक़ीक़त यह है कि आदमी अगर दीन की सही समझ से महरूम हो तो वह कभी भी दीन पर सही अमल नहीं कर सकता और लोग उसको देखकर हमेशा दीन के बारे में ग़लत तसव्वुर क़ायम करेंगे। अगर आदमी दीन की सही समझ रखता हो तो वह कभी ऐसी हरकतें नहीं कर सकता। नबी सल्ल० ने एक बार फ़रमाया, “मैं नमाज़ पढ़ाने के लिए खड़ा होता हूं और सोचता हूं कि नमाज लम्बी पढ़ाऊं कि इतने में किसी बच्चे के रोने की आवाज़ आती है तो मैं नमाज़ को मुख़्तसर कर देता हूं। मुझे यह बात सख़्त नापसन्द है कि लम्बी नमाज पढ़ाकर बच्चे की मां को परेशान करूं ।”

Islam मैं बाकी रहना

  • हजरत अब्दुल्लाह बिन सलाम का अजीब ख्वाब और उसकी अजीब ताबीर

मुस्नद अहमद रह० की एक हदीस में है कि हज़रत क़ैस बिन उबादा रह० फ़रमाते हैं कि मैं मस्जिदे नबवी में था, एक शख्स आया जिसका चेहरा ख़ुदातर्स था। दो हल्की रकअतें नमाज़ की उसने अदा की। लोग उन्हें देखकर कहने लगे यह जन्नती हैं। जब वह बाहर निकले तो मैं भी उनके पीछे हो गया, बातें करने लगा। जब वह मुतवज्जह हुए तो मैंने कहा, जब आप तशरीफ़ लाए थे तब लोगों ने आपकी निस्बत यूं कहा था। कहा सुव्हानल्लाह ! किसी को वह न कहना चाहिए जिसका इल्म उसे न हो। हां, अलबत्ता इतनी बात तो है कि मैंने हुज़ूर सल्ल० की मौजूदगी में एक ख्वाब देखा था कि गोया मैं एक लहलहाते हुए सरसब्ज़ गुलशन में हूं। उसके दर्मियान एक लोहे का सुतून है जो ज़मीन से आसमान तक चला गया है। उसकी चोटी पर एक कड़ा है। मुझसे कहा गया कि इसपर चढ़ जाओ। मैंने कहा, मैं तो नहीं चढ़ सकता । चुनांचे एक शख्स ने मुझे थामा और मैं बआसानी चढ़ गया और उस कड़े को थाम लिया। उसने कहा, देखो मज़बूत पकड़े रहना। बस इस हालत में मेरी आंख खुल गई कि वह कड़ा मेरे हाथ में था। मैंने हुज़ूर सल्ल० से अपना यह स्वाब बयान किया तो आप सल्ल० ने फ़रमाया, गुलशने बाग़ इस्लाम है और सुतून, सुतूने दीन है और कड़ा उरवा-ए-चुसना है तू मरते दम तक इस्लाम पर कायम रहेगा। यह शख़्स हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम रजि० हैं। यह हदीस बुखारी व मुस्लिम दोनों में मरवी है।

(तफ़्सीर इब्ने कसीर, जिल्द 1 पेज 354)

Hazrat abbu bakar का इस्लाम काबुल करना

  • हज़रत सिद्दीक़ – अक्बर रज़ियल्लाहु अन्हु के इस्लाम लाने का अजीब वाक़िआ

हज़रत अल्लामा जलालुद्दीन सुयूती रहमतुल्लाहि अलैह ने लिखा है कि हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ ने इस्लाम से पहले और जुहूरे-नुबूब्बत से पहले शाम की तरफ़ तिजारत के लिए सफ़र फ़रमाया, शाम से क़रीब एक ख़्वाब देखा जिसकी ताबीर आप ने बहीरा राहिब से मालूम की । उस राहिब ने कहा अल्लाह तआला आपका ख़्वाब सच्चा करेगा और आपकी क़ौम से एक नबी मब्ऊस होगा, आप उनकी हयात में उनके वज़ीर होंगे और वफ़ात के बाद उनके ख़लीफ़ा होंगे, तो इस ख्वाब को सिद्दीक़ अक्बर ने किसी से ज़ाहिर नहीं किया यहां तक कि हुजूर अक्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को नबूवत अता हुई और ऐलाने नबूवत सुनकर हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ अक्बर रज़ि० हाज़िर हुए और अर्ज किया, ऐ मुहम्मद सल्ल० ! आपने जो दावा फ़रमाया है उसकी दलील क्या है? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया इसकी दलील वह ख़्वाब है जो तुमने शाम में देखा था तो गुल्ब-ए-खुशी से हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ि० ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से मुआनिक़ा फ़रमाया और आप सल्ल० की पेशानी का बोसा लिया।

– खसाइसे कुबरा हिस्सा 1, पेज 29, कश्कोले -मअरिफ़त, पेज 97 हज़रत मौलाना हकीम मुहम्मद अख्तर सा हब

Hazrat abbu bakar के इस्लाम लेन के बाद

  • हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहुअन्हु की अज़मत 

सही बुख़ारी में एक आयत के तहत ब- रिवायत अबूद्दरदा रज़ियल्लाहु अन्हु नक़ल किया है कि अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु व उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के दर्मियान किसी बात में इख़्तिलाफ़ हुआ, हज़रत उमर रज़ि० नाराज़ होकर चले गये। यह देखकर हज़रत अबू बक्र रजि० उनको मनाने के लिए चले, मगर हज़रत उमर रज़ि० ने न माना यहाँ तक कि अपने घर में पहुंच कर दरवाज़ा बन्द कर लिया। मजबूरन सिद्दीक़ अक्बर रज़ि० वापस आये और आंहज़रत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हो गये, उधर कुछ देर के बाद हज़रत उमर रज़ि० को अपने इस काम पर नदामत हुई और वह भी घर से निकल कर आहज़रत सल्ल० की ख़िदमत में पहुंच गये और अपना वाक़िआ अर्ज़ किया। अबूद्दरदा रज़ि० का बयान है कि इस पर रसूलुल्लाह सल्ल० नाराज़ हो गये। जब सिद्दीक़ अकबर रज़ि० ने देखा कि हज़रत उमर रज़ि० पर अताब (गुस्सा) होने लगा तो अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह ! ज़्यादा क़सूर मेरा ही था, रसूलुल्लाह सल्ल० ने फ़रमाया कि क्या तुमसे इतना भी नहीं होता कि मेरे एक साथी को अपनी इज़ाओं से छोड़ दो, क्या तुम नहीं जानते कि जब मैंने बइज़्ने-खुदावन्दी यह कहा ऐ लोगो ! मैं तुम सबकी तरफ़ ख़ुदा का भेजा हुआ (यानी उसका रसूल) हूँ तो तुम सबने मुझे झुठलाया सिर्फ़ अबू बक्र रज़ि० ही थे जिन्होंने पहली बार मेरी तस्दीक़ की ।

-क़स्स मआरिफुल कुरआन, अज़ माखूज़ तामीरे हयात, पेज 110, अक्तूबर 2001

  • Chair में बैठ कर बयान करने की दलील Dawat~e~Tabligh

    Chair में बैठ कर बयान करने की दलील Dawat~e~Tabligh

  • नाखून कब काटना चाहिए? Dawat~e~Tabligh

    नाखून कब काटना चाहिए? Dawat~e~Tabligh

  • Kiska जूठा खा सकते है? - Dawat~e~Tabligh

    Kiska जूठा खा सकते है? | खाने से पहले और बाद में हाथ धोने Ke फायदा – Dawat~e~Tabligh

Leave a Comment

सिल-ए-रहमी – Rista निभाने से क्या फ़ायदा होता है ? Kin लोगो se kabar में सवाल नहीं होगा ? Part-1 Kin लोगो se kabar में सवाल नहीं होगा ? Part-2 जलने वालों से कैसे बचे ? Dil naram karne ka wazifa