Dil कितने kism के होते हैं ? दिल की क़सावत और सख़्ती का इलाज। दिल व दिमाग़ को चोट पहुंचानेवाला क़िस्सा। Web Stories in Hindi Dil रो रहा है पर आंखो में आसु नहीं | दिल की बीमारी को दूर करने का नुस्खा- Dawat~e~Tabligh….

Dil कितने kism के होते हैं ?
- दिल चार क़िस्म के हैं
मुस्नद अहमद में है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि दिल चार क़िस्म के हैं-
1. एक तो साफ़ दिल जो रौशन चिराग की तरह चमक रहा हो।
2. दूसरे वह दिल जो गिलाफ़-आलूद हो।
3. तीसरे वह दिल जो उलटे हों।
4. चौथे वह दिल जो मख़्लूत है।
पहला दिल तो मोमिन का है जो पूरी तरह नूरानी है। दूसरा काफ़िर का दिल है जिस पर पर्दे पड़े हुए हैं। तीसरा दिल ख़ालिस मुनाफ़िकों का है जो जानता है और इनकार करता है। चौथा दिल उस मुनाफ़िक्र का है जिसमें ईमान और निफ़ाक़ दोनों जमा हैं। ईमान की मिसाल उस सब्जे की तरह है जो पाकीज़ा पानी से बढ़ रहा हो और निफ़ाक़ की मिसाल उस फोड़े की तरह है जिसमें पीप और खून बढ़ता ही जाता है। अब जो माद्दा बढ़ जाये वह दूसरे पर गालिब आ जाता है।
इस हदीस की इस्नाद बहुत ही उम्दा हैं।
-तफ्सीर इब्ने कसीर, हिस्सा 1, पेज 89
Dil कितने Prakar के होते हैं ? – Web Stories
Dil ko naram कैसे करें?
- दिल की क़सावत और सख़्ती का इलाज
हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि एक शख्स ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अपनी क्रसावते-कल्बी (सख्त दिली) की शिकायत की, आप सल्ल० ने इर्शाद फ़रमाया कि यतीम के सिर पर हाथ फेरा करो और मिस्कीन को खाना खिलाया करो।
-मुस्नद अहमद फायदा:- सख्त – दिली और तंग-दिली एक रूहानी मर्ज है और इंसान की बद्-बख्त की निशानी है, साईल (मांगने वाले) ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अपने दिल और अपनी रूह की इस बीमारी का हाल अर्ज़ करके आप से इलाज पूछा था। आप सल्ल० ने उनको दो बातों की हिदायत फ़रमाई- एक यह कि यतीम के सर पर शफ़क़त का हाथ फेरा करो और दूसरा यह कि फ़कीर मिस्कीन को खाना खिलाया करो। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का बतलाया हुआ यह इलाज इलमुन-नफ्स के एक ख़ास उसूल पर भब्नी है बल्कि यह कहना चाहिए कि हुज़ूर सल्ल० के इस इर्शाद से इस उसूल की ताइंद और तौसीक़ होती है, वह उसूल यह है कि अगर किसी शख्स के नएस या दिल में कोई ख़ास कैफ़ियत न हो और वह उसको पैदा करना चाहे तो एक तदबीर उसकी यह भी है कि इस कैफ़ियत के आसान और लवाज़िम को वह इख़्तियार कर ले, इंशाअल्लाह कुछ अर्से के बाद वह कैफ़ियत भी नसीब हो जाएगी। दिल में अल्लाह तआला की मुहब्बत पैदा करने के लिए कस्रते – ज़िक्र का तरीका जो हज़रात सूफ़िया-ए-किराम में चलता था उसकी बुनियाद भी इसी उसूल पर है। बहरहाल यतीम के सर पर हाथ फेरना और मिस्कीन को खाना खिलाना असल में जज्बे-ए-रहम के आसार में से हैं लेकिन जब किसी का दिल उस जज्बे से खाली हो वह अगर यह अमल ब-तकल्लुफ़ ही करने लगे तो इंशाअल्लाह उसके दिल में भी रहम की कैफियत पैदा हो जायेगी।
-मआरिफुल हदीस, हिस्सा 2, पेज 179
दिल व दिमाग़ को चोट पहुंचानेवाला क़िस्सा
कहते हैं कि औरंगज़ेब आलमगीर रह० के पास एक बहरूपिया आता था, वह मुख्तलिफ़ रूप बदलकर आता था। औरंगज़ेब एक फ़रज़ाना व तजुर्बेकार शख़्स थे जो उस तवील व अरीज़ मुल्क पर हुकूमत कर रहे थे, उसको पहचान लेते। वह फ़ौरन कह देते कि तू फ़लां है, मैं जानता हूं। वह नाकाम रहता, फिर दूसरा भैस बदल कर आता फिर वह ताड़ जाते और कहते कि मैंने पहचान लिया, तू फ़लां का भैस बदल कर आया है तू तो फ़्लां है, बहरूपिया आजिज़ आ गया, आखिर में कुछ दिनों तक ख़ामोशी रही, एक अर्से तक वह बादशाह के सामने नहीं आया, साल दो साल के बाद शहर में यह अफ़वाह गर्म हुई कि कोई बुज़ुर्ग आए हुए हैं, और वह फलां पहाड़ की चोटी पर खिल्वतनशीन हैं चिल्ला खींचे हुए हैं। बहुत मुश्किल से लोगों से मिलते हैं। कोई बड़ा खुशकिस्मत होता है, जिसका वह सलाम या नज़र कबूल करते हैं और उसको बारयादी का शर्फ बाते हैं बिल्कुल यकसू और दुनिया से गोशागीर हैं।
बादशाह हज़रत मुजद्दि अल्फ़ी सानी रह० की तहरीक के मकतब के परवरदा थे और उनको इत्तिबा-ए-सुन्नत का ख़ास एहतिमाम था । वह इतनी जल्दी किसी के मोतक़िद होनेवाले नहीं थे। उन्होंने उसका कोई नोटिस नहीं लिया। उनके अराकीन दरबार ने कई बार अर्ज़ किया कि कभी जहां पनाह भी तशरीफ़ से चलें और बुजुर्ग की जियारत करें और उनकी दुआ लें, उन्होंने टाल दिया। दो-चार मर्तबा कहने के बाद बादशाह ने फ़रमाया कि अच्छा भई चलो ! क्या हर्ज है, अगर ख़ुदा का कोई मुख्लिस बन्दा है और खिल्वतगुज़ी है तो उसकी ज़ियारत से फ़ायदा ही होगा। बादशाह तशरीफ़ ले गए और मुअदब होकर बैठ गए और दुआ की दरारत की और हदिया पेश किया, दुर्वेश ने लेने से माज़रत की। बादशाह वहां से रुख्सत हुए तो दुर्वेश खड़े हो गए और आदाब बजा लाए। फ़रशी सलाम किया और कहा कि जहांपनाह! मुझे नहीं पहचान सके, मैं वही बहरूपिया हूं जो कई बार आया और सरकार पर मेरी क़ली खुल गई।
बादशाह ने इक़रार किया। कहा कि भाई बात ठीक है, मैं अब कि नहीं पहचान सका लेकिन यह बताओ कि मैंने जब तुम्हें इतनी बड़ी रकम पेश की जिसके लिए तुम यह सब कमालात दिखात थे, तो तुमने क्यों नहीं कबूल किया? उसने कहा सरकार मैंने जिनका भेस बदला था उनका यह शैवा नहीं, जब मैं उनके नाम पर बैठा और मैंने उनका किरदार अदा करने का बेड़ा उठाया तो फिर मुझे शर्म आई कि मैं जिनकी नकल कर रहा हूं, उनका यह तर्ज नहीं कि वह बादशाह की रक्रम क़बूल करें, इसलिए मैंने नहीं क़बूल किया इस वाक्रिए से दिल व दिमाग को एक चोट लगती है कि एक बहरूपिया यह कह सकता है तो फिर संजीदा लोग साहिबे दावते अंबिया अलैहि० की दावत क़बूल करके उनका मिज़ाज इख़्तियार न करें, यह बड़े सितम की बात है।
मैंने यह लतीफ़ तफ़रीह तबा के लिए नहीं, बल्कि एक हक़ीक़त को ज़रा आसान तरीक़े पर ज़ेहन नशीन करने के लिए सुनाया। हम दाओ व मुबल्लिंग हों, या दीन के तर्जुमान या शारेह, हमें यह बात पेशे नज़र रखनी चाहिए कि यह दीन और दावत हमने अंबिया अलैहि० से अखून की हैं, अगर अंबिया अलैहि० यह दावत लेकर न आते तो हमको इसकी हवा भी न लगती।
दिल की बीमारी को दूर करने का नुस्खा
हज़रत सअद इब्ने अबी बक़ास रज़ियल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं कि मैं बीमार हुआ मेरी इयादत को रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तशरीफ़ लाये। उन्होंने अपना हाथ मेरे कंधों के दर्मियान रखा तो उनके हाथ की ठंडक मेरी सारी छाती में फैल गई, फिर फ़रमाया कि इसे दिल का दौरा पड़ा है, इसे हारिस बिन कलदा के पास ले जाओ जो सक़ीफ़ में मतब करता है, हकीम को चाहिए कि वह मदीना की सात अज्चा खजूरें गुठलियों समेत कूटकर उसे खिला दे।
फ़ायदा :- खजूर के फ़ायदों के बारे में यह हदीस बड़ी एहमियत की हामिल है क्योंकि तिब्ब की तारीख में यह पहला मौक़ा है कि किसी मरीज़ के दिल के दौरा की तश्ख़ीस की गई।
-मुसनद अहमद, अबू नुऐम, अबू दाऊद
दिल की बीमारियां दूर करने का मुजर्रब नुस्ख़ा
“या कविय्युल कादिररुल मुक्क़-त-दिरु क़च्चिनी व क़लबी” 7 मर्तबा हर नमाज़ के बाद दाहिना हाथ कल्ब पर रखकर पढ़े। अगर दूसरा पढ़े तो कहे- “या क़विय्युल क़ादिररुल मुक्त-त-दिरु क़व्विहि व क़ल-बहू” तमाम ज़रूरतों को पूरा किए जाने का मुजर्रव नुसखा ।”या अल्लाहु, या रहमानु या रहीम।”कसरत से पढ़ा जाए, अनगिनत ।
Dil रो रहा है पर आंखो में आसु नहीं – Kavita
- दिल रो रहा है मेरा; मगर आंख तर नहीं-
इस राज़ की किसी को भी मुतलक़ ख़बर नहीं
दिल रो रहा है मेरा मगर आंख तर नहीं
गैरों पे तेरी जाती है किस वास्ते नज़र
वल्लाह उनके हाथ में मुनूफ़ा व ज़रर नहीं
जब मैं हूं उनके ज़िक्र की दौलत से मालामाल
क्यों ग़म हो जो अपने पास लालो-गौहर नहीं
तस्कीन ख़ुद वह आके मुझे दे रहे हैं आज
सद शुक्र है आह मेरी बे-असर नहीं
हम हैं मरीज़े इश्क न होगी हमें शिफ़ा
तबीर तेरे बस में कोई चारागर नहीं
सुनना है आपको तो सुनिए शीक से जनाव
यह दास्ताने इश्क मगर मुख्तसर नहीं
उल्फ़त में उनकी अक्लों को जिसने भुला दिया
दोनों जहां में फिर उसे खौफ़ो-व ख़तर नहीं
अहमद किसके इश्क में दीवाना हो गया
वह बेखबर भी होकर मगर बेखबर नहीं
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Chair में बैठ कर बयान करने की दलील Dawat~e~Tabligh
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नाखून कब काटना चाहिए? Dawat~e~Tabligh
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Kiska जूठा खा सकते है? | खाने से पहले और बाद में हाथ धोने Ke फायदा – Dawat~e~Tabligh