आजकल में बसवसों का मरीज़ बन चुका हूं। दिन-ब-दिन बसाविस बढ़ते जा रहे हैं जिससे दिल में शदीद बेक़रारी होती है। Dimag में दिन भर बुरे विचार आना से कैसे bache ? Dawat~e~Tabligh in Hindi..

Dimag में दिन भर बुरे विचार आना से कैसे bache ?
वसाविस से दीन का जरर बिल्कुल नहीं होता इत्मीनान रखिए
सवाल : मुकर्रम व मुहतरम जनाब मौलाना साहब अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू बाद सलाम गुज़ारिश है कि आजकल में बसवसों का मरीज़ बन चुका हूं। दिन-ब-दिन बसाविस बढ़ते जा रहे हैं जिससे दिल में शदीद बेक़रारी होती है। बराए करम कोई मुनासिव इलाज मेरे लिए तज्वीज़ फरमाइए।
जवाब : नीचे लिखी बातों का एहतिमाम कीजिए-
1. बसाविस से दीन का जरर बिल्कुल नहीं होता, इत्मीनान रखिए।
2. किसी दीनी या दुनियावी काम में मशगूल हो जाइए।
3. बसाविस को दूर करने की फ़िक्र मत कीजिए, इससे और लिपटते हैं।
4. बसाविस की मिसाल ऐसी है कि जैसे कुत्ता भोंकता है। उसके भगाने की फ़िक्र न की जाए।
5. बसाविस आते ही ‘आमनतु बिल्लाहि व रसूलिही पढ़ लेना काफ़ी है, यानी ईमान लाया में अल्लाह और उसके रसूल सल्ल० पर।
(हिस्ने हसीन, पेज 225)
6. ‘ ला हौ-ल वला कुव्य-त इल्ला बिल्लाहिल अलिय्यिल अज़ीमि’ का विर्द रखिए ।
7. सुबह व शाम इस दुआ का एहतिमाम कीजिए।
अल्लाहुम-म फ़-त- रस्समावाति वल अरज़ि आलिमल गैबि वश्शहा-द-त रब-ब कुल्लि शैइंव व मली-कहू अश-हदू अल्लाइ-ला-ह इल्ला अन त अऊजुबि-क मिन शरि नफसी व मिन शर्रिश्शैतान व शिर्केही व अन अफ़त्तरि-फ़ अला नफसी सूअन औ अजुर्रहू इला मुस्लिम |
(अबू दाऊद, सहीह तिर्मिज़ी, जिल्द 3, पेज 142 )
8. अऊ बिल्लाहि मिनश्शैतानिर्रजीम पढ़िए दस मर्तबा सुबह
(हिस्ने हसीन, पेज 225)
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