पेड़ की तरह बनो जो मार खाने के बाद वी फल दे। हक़ का इनकार। नमरूद पर machar का हमला दिखलावा करने वाले। तकब्बुर | Ghamand के एक जुमले, 2 बात Ghamandi ( तकब्बुर ) होने की | Ghar की छत जैसे बन जाओ Dawat~e~Tabligh in Hindi…

पेड़ की तरह बनो जो मार खाने के बाद वी फल दे
- दरख्त ने सिर्री सकती को नसीहत की
एक मर्तबा हज़रत सिर्री सकती रह० जा रहे थे, दोपहर का वक्त था। उन्हें नींद आई। वह केलुला की नीयत से एक दरख्त के नीचे सो गए। कुछ देर लेटने के बाद जब उनकी आंख खुली तो उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी। उन्होंने गौर किया तो पता चला कि उस दरख्त में से आवाज़ आ रही थी जिसके नीचे वह लेटे हुए थे। जी हां, जब अल्लाह तआला चाहते हैं तो ऐसे वाक्रियात रूनुमा कर देते हैं। दरख्त उनसे कह रहा था, ‘या सिर-रि कुन मिसली’ ऐ सिर्री तू मेरे जैसा हो जा। वह यह आवाज़ सुनकर बड़े हैरान हुए।
जब पता चला कि यह आवाज़ दरख्त से आ रही है तो आपने उस दरख्त से पूछा, ‘कै-फ़ अकून मिस-ल-क’ कि ऐ दरख़्त मैं तेरे जैसा कैसे बन सकता हूं? दरख़्त ने जवाब दिया, ‘इन्नल्लज़ी-न यरमूननी बिल अहजाबरि फ़-अरमीहिम बिल असमारि’ ऐ सिर्री जो लोग मुझ पर पत्थर फेंकते हैं मैं उन लोगों की तरफ़ अपने फल लौटाता हूं इसलिए तू भी मेरे जैसा बन जा वह उसकी बात सुनकर और भी ज़्यादा हैरान हुए।
मगर अल्लाह वालों को फ़िरासत मिली होती है लिहाज़ा उनके ज़ेहन में फ़ौरन ख़्याल आया कि अगर यह दरख्त इतना ही अच्छा है कि जो उसे पत्थर मारे, यह उसे फल देता है तो फिर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने दरख्त की लकड़ी को आग की गिज़ा क्यों बनाया? उन्होंने पूछा कि ऐ दरख्त! अगर तू इतना ही अच्छा है तो ‘फ़ के फ़ मसीरु-क इलन्नार?” यह बता कि अल्लाह तआला ने तुझे आग की ग़िज़ा क्यों बना दिया? इस पर दरख़्त ने जवाब दिया, ऐ सिर्री मेरे अंदर ख़ूबी भी बहुत बड़ी है मगर उसके साथ ही एक ख़ामी भी बहुत बड़ी है उस ख़ामी ने मेरी इतनी बड़ी खूबी पर पानी फेर दिया है। अल्लाह तआला को मेरी ख़ामी इतनी नापसन्द है कि अल्लाह तआला ने मुझे आग की ग़िज़ा बना दिया है। मेरी खामी यह है कि ‘फ्रजमले तु बिल-हवा हाकजा हाकजा, जिधर की हवा चलती है मैं उधर को ही डोल जाता हूँ, यानी मेरे अंदर इस्तिक़ामत नहीं है।
घर की छत जैसे बन जाओ
- एक अहम नसीहत
कुछ चीजें वज़न में इतनी हल्की होती हैं कि वह पानी के साथ बह जाती हैं, मसलन कागज़, लकड़ी और घास फूस वगैरह। लेकिन कुछ चट्टानें होती हैं जो पानी के साथ बहती नहीं बल्कि वह पानी का रुख मोड़ देती हैं। हम मोमिन हैं इसलिए हम घास फूस और तिनके न बनें बल्कि हम चट्टान बन जाएं और बहते हुए पानी का रुख फेर दें।
2 बात Ghamandi होने की
- तकब्बुर की दो अलामतें हदीस में है:
1. हक़ का इनकार
2. लोगों को हक़ीर समझना किब्र है ।
– तफ़्सीर मस्जिदे नब्बी सल्ल०, पेज 139
नमरूद पर machar का हमला
- हज़रत इबराहीम अलैहि और नमरूद का मुनाज़िरा
जैद बिन असलम रह० का क़ौल है कि कहतसाली थी। लोग नमरूद के पास जाते थे और गल्ला ले आते थे। हज़रत ख़लीलुल्लाह अलैहि० भी गए। वहां यह मुनाज़िरा हो गया। वदवख्त ने आप अलैहि० को गल्ला न दिया। आप खाली हाथ वापस आए। घर के क़रीब पहुंचकर आपने दोनों बोरियों में रेत भर ली कि घरवाले समझें कुछ ले आए। घर आते ही वोरियां रख कर सो गए। आपकी बीवी साहिया हजरत सारा असेहि उठीं वोरियों को खोला तो उम्दा अनाज से दोनों पुर थीं। खाना पकाकर तैयार किया । आपकी भी आंख खुली, देखा कि खाना तैयार है।
पूछा, अनाज कहां से आया? कहा दो बोरियां जो आप भरकर लाए उन्ही में से यह अनाज निकाला था। आप समझ गए कि यह ख़ुदा तआला की तरफ़ से बरकत और उसकी रहमत है। उस नाहंजार बादशाह के पास ख़ुदा तआला ने अपना एक फ़रिश्ता भेजा, उसने आकर उसे तौहीद की दावत दी लेकिन उसने क़बूल न की । दोबारा दावत दी लेकिन इंकार किया। तीसरी मर्तबा ख़ुदा तआला की तरफ बुलाया लेकिन फिर भी वह मुंकर ही रहा इस बार-बार के इंकार के बाद फ़रिश्ते ने उससे कहा कि अच्छा तू अपना लश्कर तैयार कर, मैं भी अपना लश्कर लेकर आता हूं ।
नमरूद ने बड़ा भारी लश्कर तैयार किया और ज़बरदस्त फ़ौज को लेकर सूरज निकलने के वक़्त मैदान में आ डटा, उधर अल्लाह तआला ने मच्छरों का दरवाज़ा खोल दिया। बड़े-बड़े मच्छर इस कसरत से आए कि लोगों को सूरज भी नज़र न आता था। यह ख़ुदाई फ़ौज नमरुदियों पर गिरी और थोड़ी देर में उनका खून तो क्या उनका गोश्त-पोस्त सब खा-पी गई और सारे के सारे वहीं हलाक हो गए, हडियों का ढांचा बाकी रह गया। उन्हीं मच्छरों में से एक नमरूद के नथने में घुस गया और चार सौ साल तक उसका दिमाग चाटता रहा। ऐसे सख्त अज़ाब में वह रहा कि उससे मौत हजारों दर्जे बेहतर थी अपना सर दीवारों और पत्थरों पर मारता-फिरता था। हथोड़ों से कुचलवाता था। यूं ही रेंग-रेंग कर बदनसीब ने हलाकत पाई। (अल्लाह हमको अपनी पनाह में रखे) । आमीन!
(तफ्सीर इब्ने कसीर, जिल्द 1 पेज 356)
तकब्बुर | Ghamand के एक जुमले
- तकब्बुर के एक जुमले ने ख़ूबसूरत को बसूरत और पस्त क़द कर दिया
नौफ़ल इब्ने माहक़ कहते हैं कि नजरान की मस्जिद में मैंने एक नौजवान को देखा, बड़ा लम्बा, भरपूर जवानी के नशे में चूर, घटे हुए बदन वाला बांका तिरछा, अच्छे रंग-रोगन वाला, ख़ूबसूरत शक्ल में निगाहें जमाकर उसके जमाल व कमाल को देखने लगा तो उसने कहा क्या देख रहे हो? मैंने कहा आपके हुस्न व जमाल का मुशाहिदा कर रहा हूँ और तअज्जुब हो रहा है। उसने जवाब दिया तू ही क्या खुद अल्लाह तआला को भी तअज्जुब हो रहा है। नौफ़ल कहते हैं कि इस कलिमे के कहते ही वह घटने लगा और उसको रंग-रुप उड़ने लगा और क़द पस्त होने लगा यहाँ तक कि एक बालिश्त के बराबर के रह गया, जिसे उसका कोई क़रीबी रिश्तेदार आस्तीन में डालकर ले गया ।
– तफ़्सीर इब्ने कसीर, हिस्सा 3, पेज 128
दिखलावा करने वाले
- रियाकारों को नसीहत और रुस्वाई की सज़ा
हज़रत जुन्दुब रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि जो शख़्स कोई अमल सुनाने और शोहरत के लिए करेगा उसको शोहरत देगा और जो कोई दिखावे के लिए कोई नेक अमल करेगा अल्लाह तआला उसको ख़ूब दिखाएगा।
– बुखारी व मुस्लिम फ़ायदा:- मतलब यह है कि दिखावे और शोहरत की ग़र्ज़ से नेक आमाल करने वालों को एक सज़ा उनके इस अमल की मुनासिबत से यह भी दी जाएगी कि उनकी इस रियाकारी और मुनाफ़िक़त को ख़ूब मश्हूर किया जायेगा और सबको मुशाहिदा कराया जाएगा कि बदबख़्त लोग यह नेक आमाल अल्लाह के लिए नहीं करते थे, बल्कि नाम व नमूद, दिखावे और शोहरत के लिए किया करते थे, अल्-गर्ज़ जहन्नम के अज़ाब से पहले उनको एक सज़ा यह मिलेगी कि महशर के सामने उनकी रियाकारी और मुनाफ़िक़त का पर्दा चाक करके सबको उनकी बद्-बातिनी दिखाई जायेगी।
– मआरिफुल हदीस, हिस्सा 2, पेज 334
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