Allah की क़ुदरत से फ़ायदा हासिल करने के लिए यक़ीन दुआ के रास्ते से अपनी ज़रूरतों का अल्लाह से पूरा कराना Dua के ज़रिए से अल्लाह तुमको ज़रूर कामयाब करेगा।

Arafat का मैदान-Hazratji Yousuf
हज़रत मौलाना मुहम्मद यूसुफ़ साहब (रह०) का ख़िताब
यौमे अरफ़ा 9 जुलहिज्जा 1384 हि० मुताबिक
21 अप्रैल 1964 ई० शंबा (शनिवार)
बुजुर्गों और दोस्तो !
अल्लाह तआला का बड़ा एहसान है कि हमको बावजूद हमारी नाअल्ली के और इस बात के कि इस पाक मैदान(अरफ़ात) में आने के क़ाबिल नहीं हैं, क्योंकि हम में बहुत ज़्यादा गन्दगियां भरी हैं, इस पाक मैदान में बुलाया, जहां आदम अलैहिस्सलाम से लेकर हुजूरे अक्रम सल्ल० तक तमाम नबियों को बुलाकर हज नसीब कराया, जिस जगह हजारों, लाखों नबियों और रसूलों का पसीना गिरा और आंसू गिरे और उनके अन्चार अब तक इस सरज़मीन में मौजूद हैं, उसकी ज्ञात से उम्मीद है कि हमें ऐसी जगह बुलाकर उनके आंसुओं, ज़िक्र व इस्तरफ़ार, तलबिया, चीख़ व पुकार की निस्बत से अल्लाह तआला हमें भी मग्फ़िरत नसीब फ़रमाएगा, हमें यही उम्मीद रखनी चाहिए कि ज़रूर हमारी मग्फ़िरत होगी। यहीं हज़रत आदम अलैहि० और हज़रत हव्वा की तौबा कुबूल फ़रमाई और मुलाक़ात भी इसी मैदान में करवाई। इसी वजह से इस मैदान का नाम अरफ़ात हुआ। अल्लाह तआला हमें भी अपनी मारफ़त से एक क़तरा अता फरमाएं। (आमीन)
हुजूरे अक्रम सल्ल० ने इस मैदान में ख़ुत्बा दिया और आख़िर में फ़रमाया कि हर आदमी यहां से मुबल्लिग बनकर जाए, इससे पहले फ़रमाया, यह कौन-सा दिन है? कौन-सा महीना है? कौन-सी जगह है? क्या यह फ़्लां दिन नहीं? फ़्लां महीना नहीं ? फ़्लां जगह नहीं? सहाबा रजि० ने अर्ज किया, बेशक है, फिर फ़रमाया कि जिस तरह ये सभी एहतराम के काबिल हैं, मुतनब्बह हो जाओ कि इसी तरह तुम्हारी जान का एक-एक कतरा, एक-एक बाल और माल का एक-एक पैसा एक दूसरे के ऊपर हराम है, भले ही दुनिया के किसी हिस्से का मुसलमान हो, सारी दुनिया के मुसलमानों की जिम्मेदारी है कि उसकी जान और माल की हिफ़ाज़त करें।
भाइयो! यह ज़मीन जिस पर अल्लाह ने हमें और आपको सिर्फ़ अपने करम से बिला किसी हक़ के पहुंचाया, सारे नबियों के दुआ मांगने की जगह है और क्रियामत तक सारे इंसानों की दुआओं का मर्कज़ हैdc। जैसा जिसको अल्लाह की ज्ञात पर यक़ीन होगा, उसी क़दर उसकी दुआ में कूवत होगी। पहले सब नवियों से यक़ीनों के बदलने की और अल्लाह जैसे हैं, उनकी जात को पहचानने के लिए और अल्लाह से लेने के लिए इबादतों पर मेहनत करवाई, फिर उनकी दुआओं की ताक़त उनके इलाक़े में दिखलायी। नूह अलैहि० की दुआ पर पूरी क़ौम को ग़र्क़ कर दिया। इसी तरह सारे नबियों से मेहनत करा के उनकी दुआओं की ताक़त को उनके इलाक़े में जाहिर किया। अपने-अपने इलाक़े में मेहनत करके, इलाक़े की तर्तीब को बदलवा कर सारे अबिया किराम बैतुल्लाह पर पहुंचा करते थे, जिस तरह एक गुलाम अपने आक़ा के काम को मेहनत से करके उसके पास आता है। वे बहुत डरते हुए, हिचकियों से रोते-पीटते, भिखारी बनकर अल्लाह के दर पर आते थे, फिर अरफ़ात के मैदान में हाजिर हुआ करते थे।
Prophet muhammad की मेहनत- Hazratji Yousuf
सारे अंबिया अलैहिमुस्सलाम की तरह हुजूरे अक्रम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने भी एक मेहनत का मैदान क़ायम किया और सारे सहाबा रजि० को नवियों के तरीक़े पर ईमान और नेक आमाल की बुनियाद पर उठाया और ज़ाहिर के ख़िलाफ़ मेहनत करके ख़ुदा के यक़ीन की बुनियाद पर दुआ मांग कर अल्लाह से अपनी हाजतों को पूरा करा लेना सिखाया। सहाबा रजि० ने अल्लाह की इताअत में ज़ाहिर के खिलाफ़ किया और फिर दुआ मांगी तो अल्लाह ने अपनी क़ुदरत से ज़ाहिर के ख़िलाफ़ करके दिखाया।
एक बार हज़रतमीत के इलाक़े में सहाबा रजि० को पानी न मिलने की वजह से मौत नज़र आ रही थी। सहाबा रजि० पड़ाव करने के लिए एक मैदान में रुके ही थे कि सारे जानवर भाग गए। पानी न मिलने की वजह से मौत पहले ही सामने थी, अब जानवर भी भाग गए। पहले एक ही मौत थी, अब दो मौतें नज़र आने लगीं। उनके अमीर हज़रत अला हजरमी रजि० ने कहा, क्या तुम मुसलमान नहीं? क्या अल्लाह के रास्ते में निकले हुए नहीं हो ? क्या अल्लाह की मददें हक़ नहीं हैं? सब ने कहा, हैं। उन्होंने कहा, फिर तयम्मुम करो और अल्लाह से दुआ मांगो। चुनांचे फ़ज्र की नमाज़ तयम्मुम करके पढ़ी और फिर दुआ मांगी, और उस वक्त तक दुआ के हाथ नहीं छोड़े जब तक ज़मीन से फट कर पानी नहीं निकल आया। मारे ख़ुशी के उनकी जुबान पर था कि यह है, जिसका वायदा अल्लाह ने किया था। ख़ुशी से पानी में कूद पड़े और फिर देखा कि जानवर भी चले आ रहे हैं, इस तरह कि जैसे कोई उनको पकड़ कर ला रहा है।
दुआ के ज़रिए सारे मस्अलों का हल- Hazratji Yousuf
हुजूर सल्ल० अपने सहाबा रजि० को जाहिर के ख़िलाफ़ अमल करके दुआ मांग कर अल्लाह की क़ुदरत के ज़रिए अपने सारे मस्अलों को हल कराना सिखा गए थे। अल्लाह की क़ुदरत से फ़ायदा हासिल करने के लिए यक़ीन और अल्लाह की इबादत और ख़ुदा के बन्दों से हमदर्दी ख़िदमते ख़ल्क और इख़्लासे अमल के ज़रिए उनको दुआ की क्रूवत हासिल हो गई थी। दुआ एक ऐसी बुनियाद है कि माल से तो तुम नाकाम हो सकते हो, लेकिन तुम मालदार हो या मुफ़्लिस, अमीर हो या फ़क़ीर, हाकिम हो या महकूम, बीमार हो या तन्दुरुस्त, हर सूरत में दुआ के ज़रिए से अल्लाह तुमको ज़रूर कामयाब करेगा। चुनांचे हुजूरे अक्रम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने सहाबा रजि० को दुआ के रास्ते से अपनी ज़रूरतों का अल्लाह से पूरा कराना खूब सिखाया । इन्फ़िरादी और इज्तिमाई दोनों मस्अलों में उनकी दुआएं खूब चला करती थीं।
नवियों कि एक दुआ- Hazratji Yousuf
जाहिर तो सिर्फ़ ख़ुदा के हाथ में है। उसे जैसा चाहे बदल दे। तेरह साल की लगातार मेहनत पर तफ़्सीली दुआ का तरीक़ा आया और उसके बाद जब आप यहां पहुंचे, तो आपने और आपके सहाबा ने उम्मत के लिए दुआएं मांगीं। हर नवीं को एक दुआ ऐसी दी जाती थी कि जिस वक्त वह दुआ मांगेंगे, अल्लाह वह कर देंगे। यह दुआ उस नबी की मेहनत के बदले में दी जाती थी। सारे नवियों ने अपनी क़ौम या उम्मत के बारे में दुआएं या बद-दुआएं दीं और अल्लाह तआला ने फ़ौरन उनको कुबूल फ़रमाया। नबी के मानने वालों को उनकी दुआ ने चमका दिया और न मानने वालों को बर्बाद कर दिया। कहीं आसमान से खाने उतार दिए, इस तरह उनकी मेहनतों वाली दुआएं दुनिया ही में निमट गई और ख़त्म हो गई ।
Prophet muhammad कि एक दुआ- Hazratji Yousuf
हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को भी दूसरे नवियों की तरह अल्लाह ने एक दुआ मेहनत वाली अता फ़रमाई, लेकिन हुजूर सल्ल० ने वह दुआ दुनिया में नहीं मांगी, बल्कि उसको पूरी उम्मत के आखिरत के मसूअले हल करने के लिए महफूज रखा, फ़रमाया कि सब नबी आकर अपनी-अपनी दुआ कर गए, लेकिन मैं अपनी मेहनत वाली दुआ को आख़िरत में लेकर जा रहा हूं, वही ‘शफ़ाअत’ है। वह मेरी मेहनत वाली दुआ है और अल्लाह का यह वायदा है कि तुमको राज़ी कर दूंगा और जब तक मेरी सारी उम्मत जन्नत में दाखिल नहीं हो जाएगी, मैं राजी नहीं हूंगा।
एक दुआ नबी की मेहनत पर कुबूल होती है, एक दुआ नबी की नमाज़ पर, रोज़े पर, हज पर क़ुबूल होती है। एक उम्मती की दुआ भी इसी तरह क़ुबूल होती है। जिस जात ने हज को सही किया और क़ियामत तक के लिए उसको चालू किया और ऐसा बढ़िया हज किया कि आदम अलैहि० से लेकर आज तक न ऐसा बढ़िया हज हुआ और न आगे क़ियामत तक होगा, तो उस ज्ञात की हज वाली दुआ कितनी ऊंची और क़ुबूलित वाली होगी। आपने अपनी मेहनत वाली दुआ को भी आख़िरत में उम्मत की अबदी जिंदगी के लिए महफ़ूज़ फ़रमा दिया, न अपने लिए कुछ मांगा, न अपने ख़ानदान या सहाबा रज़ि० के लिए। इसी तरह हज की दुआएं भी सिवाए उम्मत के, किसी और के लिए कुछ न मांगा, न यह मांगा कि हुसैन रजि० क़त्ल न किए जाएं, हजरत उस्मान रजि० शहीद न किए जाएं और चैन की जिंदगी गुजारें, बल्कि इन दोनों को तो इसकी ख़बर दे गए, सारी उम्मत के लिए कुर्बानी देते रहे। हज़रत इमाम हुसैन रजि० जिसके हाथों कत्ल हुए, अली रजि० कत्ल हुए, हज़रत उस्मान रजि० कत्ल हुए, उसको तो पी गए और सारी उम्मत में उन कातिलों को भी शामिल करके पूरी उम्मत की दुआ मांग गए, चाहे कितनी तक्लीफ़ पहुंच जाएं, उनको बरदाश्त कर लिया जाए, तो अल्लाह अपना प्यारा बना लेते हैं।
अपने और अपने ख़ानदान वालों के बारे में आपने हर क़िस्म की तकलीफ़ बरदाश्त करके हज वाली दुआ मांगी, तो वह भी सारी उम्मत ही के लिए मांगी। आपको अपनी उम्मत से बहुत ज़्यादा मुहब्बत और ताल्लुक़ था। आज दीन के दुश्मन बे-इंतिहा माल ख़र्च करके उम्मत को इस्लाम से निकालने की कोशिश कर रहे हैं। उम्मत आमाल तो छोड़ ही रही है, लेकिन अब भी दीन छोड़ने पर तैयार नहीं। यह बरकत और सदक़ा है उन दुआओं का, जो आप उम्मत के लिए कर गए हैं।
एक बार हज़रत आइशा रजि० ने दुआ की दरख्वास्त की। आपने दुआ दी। हज़रत आइशा रज़ि० इस दुआ को सुनकर ख़ुशी में लोट-पोट हो गईं और कहा कि यह दुआ मुझको पसन्द आई। हुजूर सल्ल० ने फ़रमाया, ऐ आइशा रज़ि० ! मैं यह दुआ हर नमाज़ के बाद अपनी उम्मत के लिए रोज़ाना करता हूं। यह हज़रत आइशा रज़ि० कौन हैं? हुज़ूर सल्ल० से पूछा गया कि आपको सबसे ज्यादा महबूब कौन है? फ़रमाया, आइशा रज़ि० !
ऐसी आइशा रजि० को तो वह दुआ उम्र में एक बार दी और उम्मत के लिए वह दुआ हो रोज़ाना, हर नमाज़ के बाद, हज पर अपने या अपने रिश्तेदारों के लिए दुआ मांगने के बजाए उम्मत ही के लिए दुआ मांगी। आप इस क़दर रोए कि आंसुओं से ज़मीन तर हो गई। अर्ज किया कि पहले नबी आए थे, वे गिरती हुई उम्मतों को संभाल लिया करते थे। अब कोई नबी आने वाला नहीं। शैतान बहकाने के लिए मौजूद है, उम्मत गिरेगी, तो गिरती चली जाएगी। अब आप यह तै फ़रमा दीजिए कि यह सारी उम्मत जन्नत में जाएगी। अल्लाह तआला ने आपके बहुत रोने, गिड़गिड़ाने पर उम्मत की मफ़िरत फ़रमा दी सिवाए जालिम के कि उसको नहीं बख्शृंगा। अब मुजदलफ़ा तशरीफ़ लाकर उन जालिमों के लिए भी आप रोए जो मुसलमानों को सताएं और परेशान करें और अल्लाह से दुआ की।
Prophet muhammad कि लोगों के लिए मोहब्बत- Hazratji Yousuf
आपको उम्मत से कितना ताल्लुक़ था, हम तो इसको समझ ही नहीं सकते। आपके सामने एक चोर लाया गया। आपने उसका हाथ काटने का हुक्म फ़रमाया। जिस वक़्त उसका हाथ काटा जा रहा था, आपका चेहरा पीला पड़ गया और आंखों से आंसू जारी हो गए। सहाबा रजि० ने अर्ज किया, ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! आपको तो हाथ कटने का बहुत रंज हुआ, अगर ऐसा था तो आप इसका हुक्म न फ़रमाते। आपने फ़रमाया कि वह सबसे बुरा अमीर (सरदार) है जो हद (सज़ा) को जारी न करे। तुम अपने भाई को मेरे पास तक लाए, क्यों नहीं समझा-बुझा कर तौबा करा देते। तुमने तो शैतान का साथ दिया। अब मेरे एक उम्मती का हाथ तुम सबके सामने काटा जा रहा है, इस पर मुझे क्यों न रंज हो? आप अपनी उम्मत के चोर तक के लिए इतने शफ़ीक़ हैं और तू यों कहे कि कमबख़्त चोर था, अच्छा हुआ, हाथ कट गया और सज्ञा मिली। लेकिन आपके आंसू उसके लिए जारी हो गए। आज उम्मत के हज़ारों बेगुनाह लोगों, औरतों और बच्चों के गले काटे जा रहे हैं, लेकिन उन पर हमारा एक आंसू भी नहीं निकलता, जैसे हुज़ूर सल्ल० के बेशुमार आंसू एक उम्मती चोर के हाथ कटने पर निकले थे। इस उम्मत पर आपको जबरदस्त शफ़क़त थी। इस उम्मत पर आपने अपना ऐश कुर्बान किया, लज्ज़तें कुर्बान कीं। एक बार एक देहाती हुजूर सल्ल० के पास आया और इस ज़ोर से आपकी चादर खींची कि गला घुट गया और रंग बदल गया। हज़रत अब्बास रजि० ने अर्ज किया, हुजूर! आपके पास ऐसे जाहिल लोग आते हैं, कोई चादर खींचता है, कोई हाथ पकड़ता है, आपके लिए कोई ऊंची जगह बनवा दें, जहां आप तशरीफ़ रखा करें। आपने फ़रमाया, नहीं, मुझको छोड़ दो इन्हीं देहातियों के साथ।
आपको जैसी शफ़क़त उम्मत के साथ थी, किसी दोस्त को किसी दोस्त के साथ नहीं हो सकती थी। आपने रो-रो कर मुज़दलफ़ा में उनकी बख़्शिश कराई। अर्ज किया कि या अल्लाह! आपके ख़ज्ञानों में कमी नहीं। मज़्लूम को अपने खजाने से बदला दे दीजिए और ज़ालिम को माफ़ फ़रमा कर जन्नत में पहुंचा दीजिए। अल्लाह तआला ने इसको भी क़ुबूल फ़रमा लिया,
मुसलमानों को परेशान क्यों किया जा रहा?- Hazratji Yousuf
यह दुआ भी मांगी कि कोई दुश्मन ऐसा न हो कि सौ फ़ीसद उनको खत्म कर दे, यह भी कुबूल हो गई। फिर दुआ मांगी कि ये आपस में न लड़ें। अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि इनकी बदआमालियों की कोई सजा भी तो हो। अब यह होगा कि मुसलमान अल्लाह के दीन से, उसके हुक्म से ऐराज़ करेंगे, तो अल्लाह उनके दिल फाड़ देंगे और इससे उनका जोफ़ होगा और उनके दुश्मन उनको कमज़ोर पाकर उन पर दस्तदराजी करेंगे और उनका खून होगा और इसी में उनके इसयान का कफ़्फ़ारा हो जाएगा।
खवारिज का क़त्ल हो रहा था, वे पकड़ कर लाए जा रहे थे और मारे जा रहे थे। जब किसी ख़ारिजी का सर कटता तो एक सहाबी के साहबजादे ‘फ़िन्नारि’ कहते थे। बाप ने डांटा कि क्या कह रहा है, यह हुजूर सल्ल० का उम्मती है। हुजूर सल्ल० ने फ़रमाया है कि मेरे उम्मती को नाफरमानियों की सजा दुनिया में देकर आख़िरत में जन्नत दे देते हैं।
Allah के रास्ते में निकलना (Tabligh, Jamaat) क्यों चाहिये?- Hazratji Yousuf
अफ़सोस, आज इस उम्मत पर मर मिटने वाले ख़त्म हो गए, इस उम्मत पर रोने वाले ख़त्म हो गए, इस उम्मत पर मेहनत करने वाले खत्म हो गए। अगरचे अपने घर पर मेहनत करने वाले बहुत हैं, अपने घर वालों पर रोने वाले बहुत हैं। । बावजूद माल, मुल्क, इमारतों के भी यह उम्मत घटती और गिरती जा रही है और इसकी यही वजह है कि इस पर मेहनत करने वाले, कुरबानी देने वाले आज ख़त्म हो गए। अल्लाह ने तुमको यह तौफ़ीक़ अता फ़रमाई कि उम्मत की मेहनत के लिए तुम खड़े हुए। तुम्हारी थोड़ी-थोड़ी मेहनत से नमाजें क़ायम हुई। हज के सही होने की शक्लें पैदा हुई। उसका शुक्र अदा करो और उम्मत का दर्द अपने दिल में पैदा करो, उम्मत के लिए आंसू बहाओ रोओ। अगर रोना न आए तो रोने की सूरत बनाओ। उम्मत पर मेहनत करने वाला हर सतह पर अपने को कुसूरवार क़रार दे और आगे के लिए और ज्यादा करने के फ़ैसले करे, पिछले पर रोए और आगे को सही चलने का पूरा अज़्म करे, तो अगर बिल्कुल भी करने वाला नहीं, तो इस तरह दुआ कुबूल होगी, जैसे करने वालों की, जो मेहनत करने वाले हैं, वे अपनी मेहनत की कोताहियों की माफ़ी मांगें कि हमने चल-फिर कर जितनी मेहनत करनी चाहिए थी, न की कि उम्मत के अन्दर यक़ीन, आमाल, इल्म और मुआशरत (रहन-सहन ) दुरुस्त हो जाएं। चाहिए तो यह था कि इस राह में हम अपना पूरा माल लुटा देते, जानें झोंक देते, जिस तरह हुजूर सल्ल० ने अपना माल लुटाया और अपनी जान झोंकी।
Allah के रास्ते (Tabligh, Jamaat) में सब लुटा दिया- Hazratji Yousuf
हुजूर सल्ल० के पास बहुत माल आया, लेकिन सब उम्मत पर लुटा दिया और खुद फाके बरदाश्त किए। हजरत अबू बक्र रजि० ने आखिर वक्त में हजरत उमर रजि० से फ़रमाया कि हजरत (सल्ल०) के पास बहुत माल आए, लेकिन हम पर लगा दिए। खाने आए तो हमको खिला दिए। फिर हम आपके लिए हुए माल और कपड़ों और खानों में से जाकर आप (सल्ल०) को देते। हुजूर सल्ल० का फ़क्र अख्तियारी था, इज्तिरारी नहीं था जो कुछ आता, उम्मत पर लगा देते, न अपना मकान बनाया, न खाने-पीने पर लगाया। हुजूर सल्ल० की मेहनत हमें कुसूरवार क़रार देगी कि हमने इस तरह मेहनत नहीं की और वह कुसूरवार नहीं, बल्कि हम ज़्यादा कुसूरवार हैं कि हमने इस मेहनत को कुछ किया और फिर समझा भी, इस तरह न कर सके जैसा उसका हक़ था। हम ज़्यादा कुसूरवार हैं। हक़ीक़त यह है कि हम कुछ भी नहीं कर रहे, करने वाले पहले कर गए। इस पर बहुत इस्तफ़ार और रोना-धोना हो कि हम इस काम की शर्तों पर बहुत कच्चे हैं और आगे के लिए अल्लाह से पूरी तौफ़ीक़ मांगी जाए कि हम इस क़ाबिल नहीं कि हक़ अदा कर सकें। हमारा इस्तिहक़ाक़ नहीं, मगर आप अपने करम से पिछला क़ुबूल फ़रमा लें और आगे को ज़्यादा करने और हक़ अदा करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमा दें, फिर दुआ मांगी जाए कि हुजूर सल्ल० और उनके साथियों की तरह अल्लाह हमको भी मेहनत की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए, कहीं ये हमारी मेहनतें मुल्क व माल पर न पड़ जाएं, बल्कि हम दुनिया में से उसका कुछ भी बदला न लेने वाले बनें और सारे इनाम आखिरत में चाहें।
Allah ने जब दौलत दीय- Hazratji Yousuf
जिन्होंने सबसे ज़्यादा किया, वह माल आने पर भी वैसे रहे, जैसे पहले थे।
हज़रत अबू बक्र रजि० एक बेवा औरत की बकरी का जाकर दूध रोजाना निकाला करते थे। आप जब ख़लीफ़ा बने, तो औरत की लड़की ने कहा कि अब आप दूध नहीं निकाला करेंगे। हज़रत अबू बक्र रजि० रोए और फ़रमाया कि उम्मीद है मैं ऐसा ही रहूंगा जैसे पहले था। हजरत उमर रज़ि० ने एक अपाहिज बुढ़िया छांटी जिसका कोई ख़बरगीर नहीं था। उसके घर आए तो सब काम हुआ मिला। फिर आए, फिर काम हुआ मिला। तीसरे दिन बहुत सवेरे आए तो देखा कि हज़रत अबू बक्र रजि० तशरीफ़ लाए। उसका पाखाना साफ़ किया, उसको खाना दिया, उसका घर साफ़ किया। हज़रत उमर रजि० की जुबान से निकला, ऐ अबू बक्र। ख़ुदा की क्रसम! मैं तुमसे आगे नहीं बढ़ सकता, जैसे हुजूर सल्ल० की जिंदगी में थे, वैसे ही दुनिया से गए और वह क्या, एक पूरी क्रीम ऐसी थी, जिससे यह मुजाहदा कराया था कि दुनिया में कुछ लेना नहीं, सिर्फ़ आखिरत में मिलेगा। आज उम्मत को एक ऐसी जमाअत की जरूरत है जो यह कहे कि हम न मुल्क लें, न माल लें, न इज्जत चाहें, बस हुजूर सल्ल० की उम्मत को मुसीबत में से निकलवाने के लिए मेहनत करें, कुर्बानी दें और क़ियामत के दिन हुज़ूर सल्ल० से जाकर कहें।
अगर ऐसे लोग पैदा हो जाएं तो उम्मत की मुसीबतों का खात्मा हो जाए और उम्मत चमक जाए। जो तुम्हारे पास हैं, वह लगा दो। कमाइयां छुड़ाना मक़सूद नहीं, कमाइयां करते रहो और जो ज़्यादा से ज़्यादा हो सकता है, अपनी जान और उम्मत के ऊपर लगाते रहो।
Non-Muslim के लिए हिदायत की दुआ- Hazratji Yousuf
पहले अपने कुसूरों की माफ़ी मांगो, फिर आगे की तौफ़ीक़ और उम्मत के लिए ज़्यादा से ज़्यादा कुर्बानी देने को उम्मत की हिदायत को अल्लाह से मांगो, गर्द व गुबार ने उम्मत की मुहब्बत की चिंगारियों को दबा रखा है। अल्लाह से मांगो कि वह इस गुबार को हटाए और इस चिंगारी को बढ़ाए। कुफ़्फ़ार भी उम्मते दावत हैं, उनके लिए भी दुआएं करनी हैं। अगर अपने मुसलमान भाइयों की बे-दीनी की वजह से हम उनमें अब तक दावत का काम शुरू नहीं कर सके, लेकिन हम पर उनका भी हक़ है, उनकी हिदायत की भी दुआ करो, साथ-साथ वे कुफ़्फ़ार जो शरीर हैं और शरारत के नाके हैं, जिनके दिलों पर अल्लाह ने मुहर लगा दी है, उनकी तबाही की दुआएं भी मांगो।