इंसान की हकीकत। हयाते दो रोज़ा का क्या ऐश व आराम, मुसाफ़िर रहे जैसे-तैसे रहे। Duniya की जिंदगी खेल-तमाशे हैं | 5 चीज़ों में जल्दबाज़ी जाइज़ है – Dawat~e~Tabligh in Hindi..

Duniya की जिंदगी खेल-तमाशे हैं
मुकर्रम व मुहतरम अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह व वरकातुहू
सवाल : बाद सलाम, गुज़ारिश है कि अल्लाह तआला ने कुरआन मजीद में दुनिया को खेल-तमाशा क्यों फ़रमाया ?
जवाब : क़ुरआन में अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया :
“और यह दुनिया की जिंदगी नहीं मगर खेल-तमाशा है,
और आखिरत की जिंदगी तो हमेशा रहनेवाली है। काश यह जान लेते!”
(कुरआन, 29:64)
जवाब : (1) दुनिया में सबसे जल्दी ख़त्म होने वाली चीज़ खेल-तमाशा है। जितने भी खेल-तमाशे हैं वे चन्द घड़ियों के होते हैं। स्क्रीन पर तमाशा देखें तो भी चन्द घड़ियों का होता है। सरकस का तमाशा भी चन्द घड़ियों का होता है, रीछ- बन्दर का तमाशा भी चन्द्र घड़ियों का होता है। अल्लाह तआला ने भी दुनिया को खेल-तमाशे से तशवीह दी है, ताकि लोगों को पता चल जाए कि दुनिया घड़ी दो घड़ी का मामला है। यही वजह है कि क़यामत के दिन कहेंगे :
“वे नहीं ठहरे मगर एक घड़ी।” (अर-रूम : 55 ) हत्ताकि कुछ तो यहां तक कहेंगे
“वे दुनिया में नहीं रहे मगर थोड़ा-सा वक़्त या शाम का थोड़ा-सा वक़्त ।”
सौ साल की ज़िन्दगी भी थोड़ी-सी नज़र आएगी गोया : “ख्वाब था जो कुछ देखा, जो सुना अफ़साना था।”
जवाब 2. दुनिया को खेल-तमाशे से तशबीह देने में दूसरी बात यह थी कि आम तौ पर खेल तमाशा देखने के बाद बन्दे को अफ़सोस ही होता है। और वह कहता है कि बस पैसे भी ज़ाया किए और वक़्त भी ज़ाया किया। अक्सर देखने में आता है कि जो लोग खेल-तमाशा देखते हैं वे बाद में कहते हैं कि बस हम ऐसे ही चले गए, हमारे कई ज़रूरी काम रह गए हैं। दुनियादार का भी बिल्कुल यही हाल होता है कि अपनी मौत के वक्त अफ़सोस करता है कि मैंने तो अपनी जिन्दगी जाया कर दी।
जवाब 3. एक वजह यह भी है कि आजकल के खेल-तमाशे आम तौर पर साए की मानिन्द होते हैं। स्क्रीन पर तो नज़र आता है कि बन्दे चल रहे हैं मगर हकीकत में उनका साया चल रहा होता है और जो उनके पीछे भागते हैं वे साए के पीछे भाग रहे होते हैं। दुनिया का मामला भी ऐसा ही है, जो उसके पीछे भागता है वह भी साए के पीछे भाग रहा होता है, उससे कुछ हासिल नहीं होता।
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इंसान की हकीकत
- खुद की हक़ीक़त
अगर सारी दुनिया हमारी तारीफ़ करे तो उस तारीफ़ से हमारा कुछ भला न होगा, जब तक कि अल्लाह तआला क़ियामत के दिन यह न फ़रमा दें कि मैं तुमसे राजी हो गया। अल्लामा सय्यद सुलैमान नदवी रह० फ़रमाते हैं कि दुनिया में अगर बहुत-से लोग तुम्हारी तारीफ़ करें तो तुम अपनी कीमत न लगा लेना क्योंकि गुलामों के क्रीमत लगाने से गुलामों की कीमत नहीं बढ़ती गुलामों की क़ीमत मालिक की रजा से बढ़ती है। लिहाजा सव्यद सुलैमान रह० का एक शेर है :
हम ऐसे रहे या कि वैसे रहे,
वहां देखना है कि कैसे रहे।
यहां हमारी खूब तारीफें हो रही हैं लेकिन वहां हमारी क़ीमत क्या होगी यह क्रियामत के दिन मालूम होगा। उनका दूसरा शेर है :
हयाते दो रोज़ा का क्या ऐश व आराम,
मुसाफ़िर रहे जैसे-तैसे रहे।
क्योंकि आरजी हयात से बाज़ वक़्त आदमी को धोखा लग जाता है। जिसे दुनिया का ऐश हासिल हो ज़रूरत नहीं कि उसके कल्ब में भी ऐश हो। मौलाना जलालुद्दीन रूमी रह० फ़रमाते हैं:
“अगर किसी काफ़िर बादशाह की कब्र पर संगमरमर लगा दिया जाए और दुनिया भर के सलातीन अगर वहां फूलों की चादरें चढ़ा दें और बैंड-बाजे बज जाएं और फ़ौज की सलामी हो, लेकिन कब्र के अंदर जो अल्लाह तआला का अज़ाब हो रहा है उसकी तलाफ़ी कब्र के ऊपर संगै मरमर नहीं कर सकते और ऊपर की रौशनियां और बिजलियां और दुनियावालों के सलूट और सलामती कुछ मुफ़ीद नहीं हैं।” इसलिए अगर अल्लाह तआला को राजी नहीं किया, चाहे एयरकंडीशन में बैठे हों, बीवी-बच्चे भी हों और खुब खजाना हो, हर वक़्त रियालों की गिनती हो रही हो और बैंक में भी काफ़ी पैसा जमा हो तो यह जाहिर का आराम है।
यह जिस्म एक क़ब्र है, जिस्म के ऊपर का ठाठ-बाट दिल के ठाठ-बाट. के लिए जरूरी नहीं है। एयरकंडीशन हमारी खालों को तो ठंडा कर सकते हैं, मगर दिल की आग को नहीं बुझा सकते। अगर अल्लाह तआला नाराज़ हैं तो जिम्म लाख आराम में हो लेकिन दिल अज्ञाव में मुब्तला रहेगा और चैन नहीं यह जिस्म एक क़ब्र है, जिस्म के ऊपर का ठाठ-बाट दिल के ठाठ-बाट. के लिए जरूरी नहीं है। एयरकंडीशन हमारी खालों को तो ठंडा कर सकते हैं, मगर दिल की आग को नहीं बुझा सकते। अगर अल्लाह तआला नाराज़ हैं तो जिस्म लाख आराम में हो लेकिन दिल अजाब में मुब्तला रहेगा और चैन नहीं पा सकता। एक बुजुर्ग फ़रमाते हैं।
दिल गुलिस्तां था तो हर शे से टपकती थी बहार,
दिल बयाबा हो गया आलम बयाबा हो गया।
और एक बुजुर्ग का अरबी शेर है जिसके मानी “है हर शै जिससे तुम जुदा होगे उसका बदल मिल सकता है मगर अल्लाह तआला से तुमको जुदाई हो गई तो हक सुदानहू व तआला का कोई हमसर और बदल नहीं।”
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5 चीज़ों में जल्दबाज़ी जाइज़ है
(1) जब लड़की जवान हो जाए तो जितनी जल्दी उसका रिश्ता मिल सके उतना अच्छा है। जब रिश्ता मिल जाए तो फिर उसकी शादी में जल्दी करनी चाहिए।
(2) अगर किसी के जिम्मे कर्ज हो तो उस कर्ज को अदा करने में जल्दी करनी चाहिए।
(3) जब कोई बन्दा फ़ौत हो जाए तो उस मरहूम को दफ़न करने में जल्दी करनी चाहिए।
(4) जब कोई मेहमान आ जाए तो उसकी मेहमान नवाज़ी में जल्दी करनी चाहिए। हमने वस्तु एशिया की रियासतों में देखा है कि जैसे ही मेहमान घर में आता है तो वह फौरन कम-से-कम पानी तो ज़रूर ही मेहमान के सामने रख देते हैं। उसके बाद मशरूवात और खाने-पीने के इंतिज़ाम किए जाते हैं। याद रखें कि पानी पिलाना भी मेहमान नवाजी में शामिल है, लिहाजा जिसने मेहमान के सामने पानी का कटोरा भरकर रख दिया उसने गोया मेहमान नवाजी कर ली।
(5) जब कोई गुनाह सरज़द हो जाए तो उससे तौबा करने में जल्दी करनी चाहिए।
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