दुनियवी ज़िंदगी की मिसाल कुरआन ने पानी से क्यों दी है ? दुनिया इस्तिग़ना से आती है। ख़ुशी का दिन सबसे जयादा बुरा दिन सावित हुआ। दुनिया की अजीब मिसाल। दुनिया की जिंदगी किसकी तरह है ? | दुनिया कैसे हासिल होगा ? – Dawat~e~Tabligh in Hindi…

दुनिया की अजीब मिसाल
इमाम ग़ज़ाली रह० ने यह बात बड़े अच्छे अंदाज़ में समझाई। वह फ़रमाते हैं कि एक आदमी जा रहा था। एक शेर उसके पीछे भागा। उसके क़रीब कोई भी दरख्त नहीं था कि जिस पर वह चढ़ जाता। उसे एक कुआँ नज़र आया, उसने सोचा कि मैं कुए में छलांग लगा देता हूं, जब शेर चला जाएगा तो मैं भी कुए से बाहर निकल आऊंगा। जब उसने नीचे छलांग लगाने के लिए देखा तो कुए में पानी के ऊपर एक काला नाग तैरता हुआ नज़र आया। अब पीछे शेर था और नीचे कुएं में काला नाग था। वह और ज़्यादा परेशान होकर सोचने लगा कि अब मैं क्या करूं। उसे कुऐ की दीवार पर कुछ घास उगी हुई नज़र आई। उसने सोचा कि मैं इस घास को पकड़ कर लटक जाता हूं, न ऊपर रहूं कि शेर खा जाए और न नीचे जाऊं कि सांप इसे, 音 दर्मियान में लटक जाता हूं। जब शेर चला जाएगा तो मैं भी बाहर निकल आऊंगा। थोड़ी देर के बाद उसने देखा कि एक काला और एक सफ़ेद चूहा दोनों उसी घास को काट रहे हैं जिस घास को पकड़ कर वह लटक रहा था। अब उसे और ज़्यादा परेशानी हुई।
इस परेशानी के आलम में जब उसने इधर-उधर देख तो उसे क़रीब ही शहद की मक्खियों का एक छत्ता नज़र आया। उस पर मक्खियां तो नहीं थीं मगर वह शहद से भरा हुआ था। यह छत्ता देखकर उसे ख्याल आया कि ज़रा देखूं तो सही इसमें कैसा शहद है। चुनांचे उसने एक हाथ से घास को पकड़ा और दूसरे हाथ की उंगली पर जब शहद लगा कर चखा तो उसे बड़ा मज़ा आया। अब वह उसे चाटने में मशगूल हो गया। न उसे शेर याद रहा, न नाग याद रहा और न ही उसे चूहे याद रहे, अब आप सोचें कि उसका अंजाम क्या होगा।
यह मिसाल देने के बाद इमाम गज़ाली रह० फ़रमाते हैं: “ऐ दोस्त तेरी मिसाल इसी इंसान की-सी है।
मलकुल मौत शेर की मानिन्द तेरे पीछे लगा हुआ है, क़ब्र का अज़ाब उस सांप की सूरत में तेरे इंतिज़ार में हैं, काला और सफ़ेद चूहा, यह तेरी जिंदगी के दिन और रात हैं, पास तेरी जिंदगी है जिसे चूहे काट रहे हैं, और यह शहद का छत्ता दुनिया की लज्जते है जिनसे लुत्फअंदोज़ होने
में तू लगा हुआ है। तुझे कुछ याद नहीं सोच कि तेरा अंजाम क्या होगा। वाकई बात नहीं है कि इंसान दुनिया की लज्जतों में फंसकर अपने रब को नाराज कर लेता है। कोई खाने पीने की लज्जतों में फंसा हुआ है और कोई अच्छे ओहदे और शोहरत की लज्जत में फंसा हुआ है, वहीं लज्जत इंसान को आखिरत से गाफिल कर देती हैं इसलिए जहां तर्के दुनिया का शब्द आएगा, उससे मुराद तर्के दुनियावी लज्जत होगी।
दुनिया की जिंदगी किसकी तरह है ?
- दुनियवी ज़िंदगी की मिसाल कुरआन ने पानी से क्यों दी है?
अल्लाह रब्बुल इज्जत फ़रमाते हैं: “और उनको बता दें कि दुनिया की जिंदगी की मिसाल ऐसी है जैसे हमने उतारा पानी आसमान से।”
(कुरआन, 18:45)
इस आयत में अल्लाह तआला ने ज़िंदगी की मिसाल पानी से दी है। दुनिया और पानी में आपको कई चीजें मुश्तरका नज़र आएंगी। इस सिलसिले में चन्द मिसालें पेशे ख़िदमत हैं-
1. पानी की सिफ़त है कि वह एक जगह पर कभी नहीं ठहरता। उसे जहां बहने का मौक़ा मिले बहता है। जिस तरह पानी एक जगह पर कभी नहीं ठहरता, उसी तरह दुनिया भी एक जगह नहीं ठहरती। जहां मौक़ा मिलता है। दुनिया हाथ से निकल जाती है। जो बन्दा यह समझता है कि मेरे पास दुनिया है, उसके पास से दुनिया रोज़ाना खिसक रही होती है। याद रखें कि यह आहिस्ता-आहिस्ता खिसकती है। किसी के पास से पचास साल में खिसकती है, किसी के पास से सत्तर साल में खिसकती है और किसी के पास से सौ साल में खिसकती है। मगर बन्दे को पता नहीं चलता। यह हर बन्दे के पास जाती है। मगर यह किसी पास ठहरती नहीं है।
इसने कई लोगों निकाह किए और उन सबको रंडवा किया। एक बुजुर्ग ने एक मर्तबा ख्वाब में दुनिया को एक कुंवारी लड़की की मानिन्द देखा। उन्होंने पूछा कि तूने लाखों निकाह किए इसके बावजूद कुँवारी ही रही? कहने लगी कि जिन्होंने मुझसे निकाह किए वे मर्द नहीं थे और जो मर्द थे वे मुझसे निकाह करने पर आमादा नहीं हुए।
इसलिए अल्लाहवाले दुनिया की तरफ़ मुहब्बत की नज़र से नहीं देखते। उनकी नज़र में मत्लूबे हक़ीक़ी अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की ज्ञात होती है । लिहाज़ा उनकी तवज्जोह उसी की तरफ़ होती है। वह आखिरत की लज़्ज़तों के ख़्वाहिशमंद होते हैं। बल्कि जब उनको दुनिया की लज़्ज़तें मिलती हैं तो वे इस बात से घबराते हैं कि ऐसा न हो कि नेक आमाल का अज्र आखिरत के बजाए कहीं हमें दुनिया ही में न दे दिया जाए।
2. दूसरी सिफ़त यह है कि जो आदमी भी पानी में दाख़िल होता है वह तर हुए बगैर नहीं रहता। इसी तरह दुनिया भी ऐसी है कि जो आदमी भी इसमें घुसेगा वह मुतास्सिर हुए बगैर नहीं रहता ।
3. तीसरी सिफ़त यह है कि पानी जब ज़रूरत के मुताबिक़ हो फ़ायदेमंद होता है और जब ज़रूरत से बढ़ जाए तो नुक़सानदेह होता है। इसी तरह दुनिया भी अगर ज़रूरत के मुताबिक़ हो तो बन्दे के लिए फ़ायदेमंद होती है और जब ज़रूरत से बढ़ जाए तो फिर यह नुक़सान पहुंचाना शुरू कर देती है। पानी का सैलाब जब आता है तो बन्द भी तोड़ देता है क्योंकि वह ज़रूरत से ज्यादा होता है। इसी तरह जिन लोगों के पास भी ज़रूरत से ज़्यादा माल होता है वे अय्याशियां करते हैं और शरीअत की हुदूद को तोड़ देते हैं। जो लोग जुए की बाज़ियां लगाते हैं और एक-एक रात में लाखों गंवाते हैं वे उनकी ज़रूरत का पैसा नहीं होता है। उन्हें तो इसकी बिल्कुल परवाह ही नहीं होती।
दुनिया कैसे हासिल होगा ?
- दुनिया इस्तिग़ना से आती है।
हमारे अकाबिरीन पर ऐसे-ऐसे वाक़िआत पेश आए कि उन्हें वक़्त के बादशाहों ने बड़ी-बड़ी जागीरें पेश कीं, मगर उन्होंने अपनी जात के लिए कभी क़बूल न कीं। हज़रत उमर इब्ने खत्ताव रजि० के पोते हज़रत सालिम रह० एक मर्तबा हरमें मक्का में तशरीफ़ लाए। मताफ़ में आपकी मुलाक़ात वक्त के बादशाह हिशाम विन अब्दुल मलिक से हुई। हिशाम ने सलाम के बाद अर्ज किया, हजरत! कोई जरूरत हो तो हुक्म फरमाएं ताकि मैं आपकी कोई खिदमत कर सकूं। आपने फ़रमाया कि हिशाम मुझे बैतुल्लाह के सामने खड़े होकर गैरुल्लाह के सामने हाजत बयान करते हुए शर्म आती है, क्योंकि अदबे इलाही का तकाजा है कि यहां प्रकृत उसी के सामने हाथ फैलाया जाए।
हिशाम लाजवाब हो गया। कुदरतन जब आप हरम शरीफ़ से बाहर निकले तो हिशाम भी ऐन उसी वक़्त बाहर निकला। आपको देखकर वह फिर क़रीब आया और कहने लगा कि हजरत अब फरमाइए कि मैं आपकी क्या खिदमत कर सकता हूं? आपने फ़रमाया कि हिशाम बताओ मैं तुमसे क्या मांगूं दीन या दुनिया? हिशाम जानता था कि दीन के मैदान में तो आपका शुमार वक्त की बुजुर्गतरीन हस्तियों में होता है। लिहाज़ा कहने लगा, हज़रत ! आप मुझसे दुनिया मांगें। आपने फ़ौरन जवाब दिया कि “दुनिया तो मैंने कभी दुनिया के बनाने वाले से भी नहीं मांगी, भला तुमसे क्या मांगूंगा।” यह सुनते ही हिशाम का चेहरा लटक गया और वह अपना-सा मुंह लेकर रह गया।
ख़ुशी का दिन बुरा दिन कैसे बना ?
- ख़ुशी का दिन सबसे जयादा बुरा दिन सावित हुआ
यज़ीद मलिक उमवी ख़लीफ़ा गुज़रे हैं। यह नए ख़लीफ़ा थे। उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ के बाद आए थे। एक दिन वह कहने लगे कि कौन कहता है कि बादशाहों को खुशियां नसीब नहीं होतीं? मैं आज का दिन खुशी के साथ गुज़ार कर देखाऊंगा। अब में देखता हूं कि कौन मुझे रोकता है? कहा, आजकल बगावत हो रही है, यह हो रहा है, वह हो रहा है, तो मुसीबत बनेगी। कहने लगा, आज मुझे कोई मुल्की ख़बर न सुनाई जाए, चाहे बड़ी से बड़ी बगावत हो जाए। मैं कोई खबर सुनना नहीं चाहता, आज का दिन खुशी के साथ गुजारना चाहता हूं। उसकी बड़ी खूबसूरत लौंडी थी, उसके हुस्न व जमाल का कोई मिस्ल न था। उसका नाम हुबाबा था। बीवियों से ज़्यादा उसे प्यार करता था । उसको लेकर महल में दाखिल हो गया। फल आ गए, चीजें आ गईं, मशरूबात आ गए। आज का दिन अमीरुल मोमिनीन ख़ुशी से गुजारना चाहते हैं, आधे से भी कम दिन गुजरा है हुबाबा को गोद में लिए हुए है, उसके साथ हंसी-मजाक कर रहा है, और अंगूर अपने हाथ से तोड़ तोड़कर उसको खिला रहा है।
एक अंगूर का दाना लिया और उसके मुंह में डाल दिया, वह किसी बात पर हंस पड़ी तो वह अंगूर का दाना सीधा उसकी सांस की नाली में जाकर अटका और एक झटके के साथ उसकी जान निकल गई। जिस दिन को वह सबसे ज्यादा ख़ुशी के साथ गुज़ारना चाहता था, उसकी जिंदगी का ऐसा बदतरीन दिन बना कि दीवाना हो गया। पागल हो गया, तीन दिन तक उसको दफ़न करने नहीं दिया, उसका जिस्म गल गया, सड़ गया, ज़बरदस्ती बनू उमैया के सरदारों ने उसकी मय्यत को छीना और दफ़न किया, और दो हफ्ते के बाद वह दीवानगी में मर गया। (हयातुल हैवान)
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