Ghar ma TV rakhne ke 10 nuksan web Stories| Bure लोगों की nishani- Dawat~e~Tabligh

छोटे और बड़े गुनाह ke nuksan। ख़त / paper  में Bismillah लिखना जायज़ है या नाजायज़ । 2 बडे gunha in Hindi Ghar ma TV rakhne ke 10 nuksan web Stories| Bure लोगों की nishani- Dawat~e~Tabligh…

Ghar ma TV rakhne ke 10 nuksan web Stories| Bure लोगों की nishani- Dawat~e~Tabligh
Ghar ma TV rakhne ke 10 nuksan web Stories| Bure लोगों की nishani- Dawat~e~Tabligh

छोटे और बड़े गुनाह ke nuksan

  • छोटे और बड़े गुनाह की अजीब मिसाल

मुस्नद अहमद में है कि हज़रत आइशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा ने हज़रत मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु को एक ख़त में लिखा कि बंदा जब ख़ुदा तआला की नाफ़रमानी करता है तो उसके मद्दाह भी मज़म्मत करने लगते हैं और दोस्त भी दुश्मन हो जाते हैं, गुनाहों से बेपरवाई इंसान के लिए दाइमी तबाही का सबब है।

सहीह हदीस में है कि रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि मोमिन जब कोई गुनाह करता है तो उसके दिल पर एक स्याहन नुक्ता लग जाता है, फिर अगर तौबा और इस्तिग़फ़ार कर लिया तो यह नुक्ता मिट जाता है और अगर तौबा न की तो यह नुक्ता बढ़ता रहता है यहां तक कि उसके पूरे दिल पर छा जाता है और उसका नाम कुरआन में रैन है। 

यानी उनके दिलों पर जंग लगा दिया उनके आमाले बद ने। अलबत्ता गुनाहों के मुफ़ासिद और नताइज़े-बद और मुज़िर समरात के एतिबार से उनका आपस में फ़र्क़ ज़रूरी है, इस फ़र्क़ की वजह से किसी गुनाह को बड़ा और किसी को छोटा कहा जाता है।

किसी बुजुर्ग ने फ़रमाया कि छोटे गुनाह और बड़े गुनाह की मिसाल महसूसात में ऐसी है जैसे छोटा बिच्छू और बड़ा बिच्छू, या आग के बड़े अंगारे और छोटी चिंगारी, कि इंसान इन दोनों में से किसी की तकलीफ़ को भी बर्दाश्त नहीं कर सकता, इसी लिए मुहम्मद बिन कअब क़रज़ी ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला की सबसे बड़ी इबादत यह है कि गुनाहों को छोड़ दिया जाये। जो लोग नमाज़ तस्बीह के साथ गुनाहों को नहीं छोड़ते उनकी इबादत क़बूल नहीं होती। हज़रत फ़ुज़ैल बिन अयाज़ अलैहि ने फ़रमाया कि तुम जिस क़द्र किसी गुनाह को हल्का समझोगे उतना ही वह अल्लाह के नज़दीक बड़ा जुर्म हो जाएगा। और सलफ़ सालिहीन ने फ़रमाया कि हर गुनाह कुफ़ का क़ासिद है जो इंसान को काफ़िराना आमाल व अख़्लाक़ की तरफ़ दावत देता है।

– मआरिफुल कुरआन, हिस्सा 2, पेज 384

Ghar ma TV rakhne ke 10 nuksan

एक आलमी आफ़त का शरओ हुक्म

T.V पर मैच देखना जाइज़ नहीं, इसमें कई गुनाह और ख़राबियाँ हैं।

  • पहला गुनाह खेलने वालों की तसावीर क़सदन देखने का है, जिसको हज़रत मुफ्ती मुहम्मद शफ़ी साहब रहमतुल्लाहि अलैहि ने जवाहरुल फ्रिकह, हिस्सा 3, पेज 399 पर लिखा है। टी०वी० में बेशुमार लोगों की तसावीर होती है इसलिए हर तस्वीर को देखना अलग-अलग गुनाह होगा।
  • दूसरा गुनाह खेल देखने के दौरान बीच-बीच में उन औरतों की तसावीर देखने का है जो खेल देखने के लिए स्टेडियम में होती हैं।
  • तीसरा गुनाह TV ख़रीदने और घर में रखने का है अगरचे उसको इस्तेमाल न किया जाये जैसा कि फतावा रहीमिया, हिस्सा 6, पेज 298 पर लिखा हुआ है। अगर कोई शख़्स गाने बजाने के आलात और गफलत में डालने वाले सामान अपने घर में रखें तो यह रखना मक्रूह ( तहरीमी) है और गुनाह है, अगरचे वह उनको इस्तेमाल ने करे, इसलिए कि ऐसे आलात को रखना आम तौर पर दिल्लगी के लिए होता है। -खुलासतुल-फ़तावा, पेज 358
  • चौथा गुनाह जमाअत की नमाज़ को छोड़ने का है जैसा कि आम तौर पर इसका मुशाहिदा किया जाता है।
  • पाँचवी खराबी अपने कीमती वक्त को बर्बाद करना होता है।
  • छठी खराबी ला-यानी (वे-फ़ायदा काम) में अपने को मल रखना है। जबकि हदीस में इस्लाम की खूबी यह बतलाई गई है कि बेकार कामों को छोड़ दो।
  • सातवीं ख़राबी यह है कि इससे दीन और दुनिया के ज़रूरी कामों से गुफलत पैदा हो जाती है जैसा कि मुशाहिदा है।
  • आठवीं खराबी यह है कि इससे टी०वी० से उन्सियत पैदा होती है फिर उसके बाद बहुत-से गुनाह और खराबियों वुजूद में आती हैं।
  • नवीं खराबी यह है कि इससे रोज़ी में बरकत ख़त्म हो जाती है क्योंकि हर गुनाह का यही असर है।
  • दसवीं खराबी यह है कि टी०वी० के प्रोग्रामों से दिलचस्पी रखने वाला भलाई के कामों से महरूम रहता है।

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कमेन्ट्री / News सुनने की दिलचस्पी रखने की खराबियाँ और गुनाह

  • पहला गुनाह जमाअत की नमाज़ छोड़ने का है।
  • दूसरी ख़राबी लव (बेकार काम) में मश्गुल होना है हालांकि अल्लाह तआला ने कुरआन पाक में कामयाबी के लिए एक शर्त बयान फ़रमाई है कि लग्ख कामों से दूर रहे। -पारा-18, रुकूज 1
  • तीसरी ख़राबी यह है कि इसमें वक़्त की नाक़द्री होती है हालांकि अल्लाह तआला ने “वत्-असर” में वक्त की क़सम खाकर उसकी अहमियत और क़द्र दानी की तालीम दी है।
  • चौथी ख़राबी यह है कि इसकी वजह से अल्लाह तआला की याद और आख़िरत की फ़िक्र से गफ़्लत पैदा होती है।
  • पाँचवी ख़राबी यह है कि इसकी वजह से दुनिया के ज़रूरी कामों का नुक्सान होता है जैसा कि मुशाहिदा है।

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ख़त / paper  में Bismillah लिखना जायज़ है या नाजायज़

  • खुतूत में विस्मिल्लाह लिखना जायज़ है या नाजायज़

ख़त लिखने की असल सुन्नत तो यही है कि हर ख़त के शुरू में विस्मिल्लाह लिखी जाये लेकिन कुरआन व सुन्नत के नुसूस व इर्शादात से हजुरात फुक़हा ने यह कुल्लिया कायदा लिखा है कि जिस जगह विस्मिल्लाह या अल्लाह तआला का कोई नाम लिखा जाये अगर उस जगह उस कागज़ की बे-अदबी से महफ़ूज़ रखने का कोई एहतिमाम नहीं बल्कि वह पढ़कर डाल दिया जाता है तो ऐसे तृत और ऐसी चीज़ में बिस्मिल्लाह या अल्लाह तआला का कोई नाम लिखना जाइज़ नहीं कि वह इस तरह बे-अदबी के गुनाह का शरीक हो जाएगा। आज कल आम तौर से एक दूसरे को जो खुतूत लिखे जाते हैं उनका हाल सब जानते हैं कि नालियों और गंदगियों में पड़े नज़र आते हैं। इसलिए मुनासिब यह है कि अदा-ए-सुन्नत के लिए जवान से विस्मिल्लाह कह ले तहरीर में न लिखे

 – मआरिफुल कुरआन, हिस्सा 6 पेज 567

Bure लोगों की nishani

  • बदबख़्ती की चार अलामतें

हदीस शरीफ़ में है कि बदबख़्ती की चार अलामतें हैं:.

1. आँखों से आँसू का जारी न होना । 

2. दिल की सख्ती

3. तू-अमल यानी लम्बी उम्मीदें बांधना ।

4. दुनिया की हिर्स । 

-मआरिफुल क़ुरआन, हिस्सा 5, पेज 279

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2 बडे gunha

  • हासिले-तसव्वुफ़

हज़रत थानवी रहमतुल्लाहि अलैहि ने इर्शाद फ़रमाया कि तमाम सुलूक और तसव्वुफ़ का हासिल सिर्फ़ यह है कि ताअत के वक्त हिम्मत करके ताअत को बजा लाये और मासियत के तक़ाज़े के वक्त हिम्मत करके मासियत से रुक जाये। इससे तअल्लुक़ अल्लाह के लिए पैदा होता है, महफ़ूज़ रहता है, तरक्की करता है। – कश्कुल मारिफ़त, पेज 528

पीराने-पीर हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैहि ने एक मुरीद को ख़िलाफ़त दी और फ़रमाया कि फ़्लां मक़ाम पर जाकर दीन की तब्लीग़ व इशाअत करो, चलते-चलते मुरीद ने अर्ज़ किया कि कोई नसीहत फ़रमा दीजिए। शेख ने फ़रमाया कि दो बातों की नसीहत करता हूँ –

1. कभी खुदाई का दावा मत करना 

2. नुबुव्वत का दावा न करना ।

वह हैरान हुआ कि मैं सालों साल आप की सोहबत में रहा, क्या अब भी यह एहतिमाल और ख़तरा था कि मैं खुदाई और नबूव्यत का दावा करूंगा? आपने फ़रमाया कि खुदाई और नुबूब्बत के दावे का मतलब समझ लो फिर बात करो खुदा की जात वह है कि जो कह दे वह अटल होता है, इससे इख्तिलाफ़ नहीं हो सकता। जो इंसान अपनी राये को इस दर्जा पेश करे कि वह अटल हो, उसके ख़िलाफ़ न हो सके तो उसको खुदाई का दावा होगा। और नबी वह है जो ज़वान से फ़रमा दे वह सच्ची बात है, कभी झूठ नहीं हो सकता। जो शख़्स अपने क़ौल के बारे में कहे कि यह इतनी सच्ची बात है कि इसके ख़िलाफ़ हो ही नहीं सकता वह दर-पर्दा नुबूब्बत का मुद्दई है कि मेरी बात गलत हो ही नहीं सकती हालांकि यह उसकी जाती राय है।

– हिकायतों का गुलदस्ता, मौलाना अस्लम शेखूपुरी , पेज 92

  • Chair में बैठ कर बयान करने की दलील Dawat~e~Tabligh

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  • नाखून कब काटना चाहिए? Dawat~e~Tabligh

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