बैतुल्लाह जाइए और यह अशआर पढ़िए। जाम ज़मज़म का पिलाया, मैं तो इस क़ाबिल न था। ख़ास अपने दर का रखा तूने ऐ मौला मुझे, यूँ नहीं दर-दर फिराया, मैं तो इस काबिल न था। Hajj ki shayari (Poetry, Status, Quotes in Hindi) Dawat~e~Tabligh

- बैतुल्लाह जाइए और यह अशआर पढ़िए
शुक्र है तेरा खुदाया मैं तो इस काबिल न था
तूने अपने घर बुलावा, मैं तो इस काबिल न था
अपना दीवाना बनाया, मैं तो इस काबिल न था
गिदं कावा के फिरवाया, में तो इस काबिल न था
मुद्दतों की प्यार को सैराथ तूने कर दिया
जाम ज़मज़म का पिलाया, मैं तो इस क़ाबिल न था
डाल दी ठंडक मेरे सीने में तूने साकीया
अपने सीने से लगा लिया, मैं तो इस क़ाबिल न था
भा गया मेरी ज़बान को ज़िक्र इल्लल्लाह का
यह सबक किसने पढ़ाया, मैं तो इस क़ाबिल न था
ख़ास अपने दर का रखा तूने ऐ मौला मुझे
यूँ नहीं दर-दर फिराया, मैं तो इस काबिल न था
मेरी कोताही कि तेरी याद से ग़ाफ़िल रहा
पर नहीं तूने भुलाया, मैं तो इस काबिल न था
मैं कि था बेराह तूने दस्तगीरी आप की
तू ही मुझको दर पर लाया, मैं तो इस क़ाबिल न था
अहद जो रोज़े अज़ल में किया था याद है
अहद वो किसने निभाया, मैं तो इस क़ाबिल न था
तेरी रहमत तेरी शफकत से हुआ मुझको नसीब
गुंबदे ख़िज़रा का साया, मैं तो इस क़ाबिल न था
मैंने जो देखा सो देखा बारगाहे कुद्दस में
और जो पाया सो पाया, मैं तो इस क़ाबिल न था
बारगाहे सय्यदुत कोनेन सल्ल० में आकर यूनुस
सोचता हूं कैसे आया, मैं तो इस क़ाबिल न था