हक kiska अदा करे ? | Umar bin Khatab ki 6 नसीहतें- Dawat~e~Tabligh

जो बातें ज्यादा करता है, उसकी लग्जिशें ज़्यादा जाती हैं। जो आदमी ज़्यादा हंसता है, उसका रौब कम हो जाता है। हक अदा kiska करे | Umar bin Khatab 6 नसीहतें Web Stories – Dawat~e~Tabligh in Hindi…

हक अदा kiska करे | Umar bin Khatab  6 नसीहतें - Dawat~e~Tabligh
हक अदा kiska करे | Umar bin Khatab 6 नसीहतें – Dawat~e~Tabligh

Umar bin Khatab ki 6 नसीहतें

  • हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की 6 नसीहतें 

1. जो आदमी ज़्यादा हंसता है, उसका रौब कम हो जाता है।

2. जो मज़ाक़ ज़्यादा करता है लोग उसको हल्का और बे-हैसियत समझते हैं।

3. जो बातें ज्यादा करता है, उसकी लग्जिशें ज़्यादा जाती हैं। 

4. जिसकी लग्ज़िशें ज्यादा होती जाती हैं, उसकी हया कम हो जाती है ।

5. जिसकी हया कम हो जाती है उसकी परहेज़गारी कम हो जाती है। 

6. जिसकी परहेज़गारी कम हो जाती है उसका दिल मुर्दा हो जाता है।

 – हयातुस्सहाबा हिस्सा 3, पेज 562

Umar bin Khatab ki 6 नसीहतें – Web Stories

हक अदा करो 

  • हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु का बुढ़िया की नसीहत से रोना

हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु एक मर्तबा चन्द सहाबा की जमाअत के साथ बड़े ज़रूरी काम से तशरीफ़ ले जा रहे थे रास्ते में एक बुढ़िया मिली जिसकी कमर मुबारक भी झुक गई थी और लाठी के सहारे से आहिस्ता-आहिस्ता चल रही थी हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से फ़रमाया, क़िफ़ या उमर उमर ठहर जा कहाँ लपका जा रहा है? हज़रत उमर रज़ि० ठहर गये और बुढ़िया लाठी के सहारे सीधी खड़ी हो गई और फ़रमाया, ऐ उमर ! मेरे सामने तेरे ऊपर तीन दौर गुज़र चुके हैं। एक दौर तो यह था कि तू सख्त गर्मी के ज़माने में ऊँट चराया करता था, और ऊँट भी चराने नहीं आते थे, सुबह से शाम तक हजरत उमर रजि० चराकर आते थे तो ख़त्ताव की मार पढ़ती थी कि ऊँटों को अच्छी तरह चराकर क्यों नहीं लाया? उनकी बहन उमर को यह कहती थी कि उमर तुझ से तो फली नहीं फूटती। तो उस बुढ़िया ने कहा तू ऊँट चराया करता था और तेरे सर पर टाट का टुकड़ा होता था और हाथ में पत्ते झाड़ने का आंकड़ा होता था, दूसरा दौर वह आया कि लोगों ने तुझे उमैर कहना शुरू किया इसलिए कि अबू जहल का नाम भी उमर था।

उसकी तरफ़ से पाबन्दी थी कि मेरे नाम पर नाम न रखा जाये। घर वालों ने हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के नाम में तसगीर करके उमैर कहना शुरू कर दिया था। 2 हिजूरी में गुज़द-ए-बद्र हुआ और उसमें अबू जहल मारा गया उस वक्त तक उनको उमैर ही कहा जाता था । बुढ़िया ने कहा कि अब तेरा दौर यह है कि अब तुझे न कोई उमैर कहता था, न उमर, बल्कि अमीरुल मोमिनीन कहकर पुकारते हैं, इस तम्हीद के बाद बुढ़िया ने कहा : रिआया के बारे में अल्लाह से डरते रहना, अमीरुल मोमिनीन बनना आसान है मगर हक़ वाले का हक़ अदा करना मुश्किल है, कुल हुक्कूक़ के बारे में बाज़ पुर्स होगी, इसलिए हर हक़ वाले का हक अदा करो उमर रज़ियल्लाहु अन्हु जार-व- कतार रो रहे हैं यहां तक कि दाढ़ी-मुबारक से टप-टप आँसू गिर रहे हैं।

सहाबा जो साथ थे उन्होंने बुढ़िया की तरफ़ इशारा किया कि बस तशरीफ ले जाओ। हज़रत उमर रजि० के रोने की वजह से ज़बान भी न उठ सकी इशारे से ही मना फ़रमा दिया कि इनको फ़रमाने दो जो फ़रमा रही हैं। जब यह चली गई तब सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम में से किसी ने पूछा : कि यह बुढ़िया कौन थीं जिसने आपका इतना वक्त जाये किया? 

हज़रत उमर: रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया कि अगर यह सारी रात खड़ी रहतीं तो उमर यहाँ से सरकने वाला नहीं था बजुज़ फ़ज की नमाज़ के यह बीबी साहिबा खौला बिन्त सालबा हैं जिनकी बात की सुनवाई सातवें आसमान के ऊपर हुई और हक़ तआला ने इर्शाद फ़रमाया

तर्जमा बिल्-यक़ीन अल्लाह ने उस औरत की बात सुन ली जो आप से अपने शौहर के बारे में झगड़ रही थी और अल्लाह के आगे झींक रही थी। फ़रमाया उमर की क्या मजाल थी कि उनकी बात न सुने जिनकी बात सातवें आसमान के ऊपर सुनी गई।

– इस्लाम में इमानतदारी की हैसियत और मक्काम, पेज 18,

तक़वे wala amal

  • हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रज़ियल्लाहु अन्हु की एक अहम नसीहत

हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक शख़्त को ख़त में यह नसीहतें लिखीं कि :

“मैं तुझे तक़वे की ताकीद करता हूँ, जिसके बगैर कोई अमल क़बूल नहीं होता, और अहले-तक़वा के सिवा किसी पर रहम नहीं किया जाता, और उसके बगैर किसी चीज़ पर सवाब नहीं मिलता इस बात को कहने वाले तो बहुत हैं मगर अमल करने वाले बहुत कम हैं।” और हज़रत अली मुर्तजा रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया कि तक़वे के साथ कोई छोटा सा अमल भी छोटा नहीं है, और जो अमल मकबूल हो जाये वह छोटा कैसे हो सकता है।

– इब्ने कसीर,

-मआरिफुल कुरआन, हिस्सा 3, पेज 114

Umar bin Khatab ke kabar ka waqia

  • हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु का क़ब्र में मुनकिर नकीर से सवाल करना 

एक रिवायत में है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि उस जात की क़सम जिसने मुझे हक देकर भेजा है, मुझे हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने बताया है कि मुनकिर नकीर क़ब्र में तुम्हारे पास आएंगे और तुमसे सवाल करेंगे-मन रब्ब-क-ऐ उमर ! तेरा रब कौन है? तो तुम जवाब में कहोगे, मेरा रब अल्लाह है। तुम बताओ तुम दोनों का रब कौन है ? और (हज़रत मुहम्मद सल्ल०) मेरे नबी हैं । तुम दोनों के नबी कौन हैं? और इस्लाम मेरा दीन हैं, तुम दोनों का दीन क्या है? इस पर वे दोनों कहेंगे, देखो क्या अजीब बात है, हमें पता नहीं चल रहा है कि हमें तुम्हारे पास भेजा गया है या तुम्हें हमारे पास भेजा गया है।

-हयातुस्सहाबा, हिस्सा 3, पेज 99

एहतियात

  • हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु की एहतियात

हज़रत ताऊस रहमतुल्लाहि अलैहि कहते हैं कि मैं इस बात की गवाही देता हूँ कि मैंने हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु को यह फ़रमाते हुए सुना कि मैं गवाही देता हूँ कि मैंने हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को लब्बैक पढ़ते हुए सुना। उस वक्त हम लोग अरफ़ात में खड़े हुए थे, एक आदमी ने उनसे पूछा क्या आप जानते हैं कि हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने अरफ़ात से कब कूच फ़रमाया? हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया, मुझे मालूम नहीं (यह उन्होंने एहतियात की वजह से फ़रमाया) लोग हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु की इस एहतियात से बहुत हैरान हुए।

-हयातुस्सहाबा हिस्सा 2, पेज 769

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