क्या हर चिजो का हिसब होगा? |क्या Qayamat के दिन कीमत वसूल hogi ? | Dawat-e-Tabligh

यूँ पूछा जाएगा कि क्या हमने तेरे जिस्म को ठीक न रखा था और क्या तुझे हमने ठंढे पानी से तर नहीं किया था। Qayamat के दिन के सवाल क्या है, क्या ये लोग तुमको पूजा करते थे ।’ क्या हर चिजो का हिसब होगा? |क्या Qayamat के दिन कीमत वसूल hogi ? | Dawat-e-Tabligh

क्या हर चिजो का हिसब होगा? |क्या Qayamat के दिन कीमत वसूल hogi ? | Dawat-e-Tabligh
क्या हर चिजो का हिसब होगा? |क्या Qayamat के दिन कीमत वसूल hogi ? | Dawat-e-Tabligh

क्या हर चिजो / नेमतों का हिसब होगा? 

नेमतों का हाल

क़ियामत के दिन नेमतों का सवाल होगा। क़ुरआन शरीफ में इर्शाद है :

फिर अलबत्ता ज़रूर तुमसे उस दिन नेमतों की पूछ होगी) ।

हज़रत अबू हुरैरः से रिवायत है कि आहज़रत सैयदे आलम ने इर्शाद फ़रमाया कि बिलाशुब्हा क़ियामत के दिन नेमतों में से सबसे पहले (तन्दुरुस्ती और ठंढे पानी का सवाल होगा और) यूँ पूछा जाएगा कि क्या हमने तेरे जिस्म को ठीक न रखा था और क्या तुझे हमने ठंढे पानी से तर नहीं किया था।

– तिर्मिज़ी शरीफ

अल्लाह तआला ने जो कुछ भी इनायत फ़रमाया है बगैर किसी हक के दिया है । उनको यह हक है कि अपनी नेमत के बारे में सवाल करें और यह पकड़ करें कि जिन नेमतों में तुम रहे बोलो, इन नेमतों का क्या हक अदा किया और मेरी इबादत में कितना लगे और इन नेमतों के इस्तेमाल के बदले क्या लेकर आये? यह सवाल बड़ा ही कठिन होगा। मुबारक हैं वे लोग जो खुदा की नेमतों के शुक्रिए में नेक अमल करते रहते हैं और आख़िरत की पूछ से कांपते हैं। इसके ख़िलाफ़ वे बदकिस्मत हैं जो अल्लाह की नेमतों से पलते-बढ़ते हैं और नेमतों में डूबे हुए हैं, लेकिन खुदा की तरफ उनका ध्यान नहीं और ख़ुदा के सामने झुकने का ज़रा ख़्याल नहीं । अल्लाह तआला की अनगिनत नेमतें हैं। क़ुरआन शरीफ़ में इर्शाद है :

(अगर तुम अल्लाह की नेमतों को गिनोगे, तो गिन नहीं सकते ) । फिर साथ ही यह भी फ़रमाया :

बिला शुव्हा इन्सान बड़ा ज़ालिम (और) नाशुक्रा है।

बिला शुब्हा यह इंसान की बड़ी नादानी और ज़ुल्म है कि मख़्लूक के ज़रा-से भी एहसान का भी शुक्रिया अदा करता है और जिससे कुछ मिलता है, उससे दबता है और उसके सामने वा-अदब खड़ा होता है। हालांकि ये देने वाले मुफ़्त नहीं देते, बल्कि किसी काम के बदले या आगे किसी काम के मिलने की उम्मीद में देते-दिलाते हैं। अल्लाह तआला, पैदा करने वाले मालिक, गुनी और गनी बनाने वाले हैं, वे बगैर किसी गरज़ के देते हैं। लेकिन उनके हुक्मों पर चलने और उनके आगे सज्दा करने से इंसान भागता-फिरता है, यह बड़ी बदकिस्मती है। अल्लाह की नेमतों को कोई कहाँ तक गिनेगा। जो नेमत है हर एक का मुहताज है। एक बदन की सलामती और तन्दुरुस्ती ही को ले लीजिए। कैसी बड़ी नेमत है। जब प्यास लगती है तो गुटा गुट ठंढा पानी पी जाते हैं। यह पानी किसने पैदा किया है? इस पैदा करने वाले के हुक्मों पर चलने और शुक्रगुज़ार बन्दा बनने की भी फिक्र है या नहीं? यह गौर करने की बात है।

Qayamat के दिन के सवाल क्या है? 

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद  रिवायत फरमाते हैं कि आहज़रत सैयदे आलम ने इर्शाद फ़रमाया कि क़ियामत के दिन इंसान के क़दम हिसाब की जगह से न हट सकेंगे, जब तक कि उससे पांच चीज़ों का सवाल न हो जाए गा ——

1) उम्र का सवाल होगा कि किन चीज़ों में ख़त्म कर दी ?

2) जवानी का सवाल होगा कि कहां बर्बाद कर दी?

3) माल का सवाल होगा कि कहां से कमाया ?

4) और कहां खर्च किया?

5) इल्म का सवाल होगा कि (दीन और दीनियात का) जो इल्म था उस पर क्या अमल किया?

– तिर्मिज़ी शरीफ

क्या Qayamat के दिन कीमत वसूल hogi ?

हज़रत अनस ने फरमाया कि आहज़रत सैयदे आलम ने इर्शाद फरमाया कि क़ियामत के दिन इंसान के तीन दफ्तर होंगे। एक दफ्तर में उसके नेक अमल लिखे होंगे। दूसरे दफ़्तर में उसके गुनाह दर्ज होंगे और एक दफ्तर में अल्लाह की वे नेमतें दर्ज होंगी जो उसको ख़ुदा की तरफ से दुनिया में दी गई थीं। अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल सबसे छोटी नेमत से फ़रमायेंगे कि अपनी कीमत उसके नेक अमल में से ले लें। चुनांचे वह नेमत उसके तमाम नेक अमल को अपनी कीमत में लगा लेगी और इसके बाद अर्ज करेगी कि (ऐ रब!) आपकी इज्ज़त की कसम ! अभी मैने पूरी कीमत वसूल नहीं की है। अब इसके बाद गुनाह बाकी रहे और नेमतें भी बाकी रहीं (जिनकी कीमत अदा नहीं हुई है) रहे नेक अमल! सो वे सब ख़त्म हो चुके। क्योंकि सबसे छोटी नेमत अपनी कीमत में तमाम नेक अमल को लगा चुकी हूँ, पस अल्लाह तआला किसी बन्दे पर रहम करना चाहेंगे (यानी मग्फिरत फरमा कर जन्नत अता फरमाना चाहेंगे) तो फ़रमायेंगे कि ऐ मेरे बन्दे ! मैंने तेरी नेकियों को बढ़ा दिया और तेरे गुनाहों से आंखें बचायीं ।

रिवायत करने वाले कहते हैं कि शायद आंहज़रत ने इस मौके पर खुदा-ए-पाक का इशदि गरामी नकुल फरमाते हुए यह भी फ़रमाया कि मैंने तुझे अपनी नेमतें (यों ही बग़ैर किसी बदले में) बख़्श दीं।

-तर्गीब अनिल बज़्ज़ार

क्या Allah paiso का भी हिसाब लेंगे ?

हज़रत अनस से रिवायत है कि आहज़रत ने इर्शाद फ़रमाया कि क़ियामत के रोज़ इंसान को बकरी के बच्चे की तरह (बेहक़ीक़त और बेहैसियत होने की हालत में) लाया जाएगा, फिर अल्लाह के सामने खड़ा कर दिया जाएगा। अल्लाह तआला फरमायेंगे कि मैंने तुझे दिया और नेमतों से मालामाल किया, तूने क्या किया? वह जवाब देगा कि ऐ रब! मैंने माल जमा किया और नफा पर नफा कमाकर उसे बढ़ाया और जितना शुरू में था, उससे बहुत ज्यादा बढ़ाकर छोड़ आया हूं। इसलिए आप मुझे इजाज़त दीजिए। मैं सारा आपके दरबार में लाकर हाज़िर कर देता हूं। अल्लाह का इर्शाद होगा (यहां से वापस जाने का क़ानून नहीं है) जो पहले से यहां भेजा था वह दिखाओ। इस फरमान के जवाब में वह फिर वही कहेगा कि ऐ रब। मैंने माल जमा किया और नफा पर नफा कमाकर उसे बढ़ाया और जितना शुरू में था उससे बहुत ज्यादा बढ़ाकर छोड़ आया। पस मुझे वापस भेज दीजिए मैं सारा माल लाकर आपके दरबार में हाज़िर कर देता हूं।

खुलासा यह है कि वह यही जवाब देगा और चूंकि कुछ पहले से वहां के लिए इस दुनिया से न भेजा था। इसलिए वह नतीजे के तौर पर ऐसा शख्स निकलेगा जिसने ज़रा भलाई (अपने लिए) पहले से न भेजी थी। चुनांचे उसको दोज़ख़ की तरफ रवाना कर दिया जाएगा। —तिर्मिज़ी शरीफ

पैग़म्बरों के समझाने पर समझे या नहीं? 

पैग़म्बरों से सवाल

क़ुरआन शरीफ में इर्शाद है :

-सूरः आराफ

‘सो हमको ज़रूर पूछना है उनसे जिनके पास पैग़म्बर भेजे गये और ज़रूर पूछना है पैग़म्बरों से।’

इसकी तशरीह (व्याख्या) दूसरी आयतों में इस तरह फरमायी :

-सूरः कसस

‘और जिस दिन उनसे पुकार कर पूछेगा कि तुमने पैगम्बरों को क्या जवाब दिया। सो उस दिन उनसे सब मज़ामीन गुम हो जाएंगे पर वे आप में भी पूछ-पाछ न कर सकेंगे।’ यानी रिसालत के बारे में सवाल होगा कि तुम पैग़म्बरों के समझाने पर समझे या नहीं? पैग़म्बरों को तुमने क्या जवाब दिया? इस सवाल का कोई जवाब न बन पड़ेगा।

दूसरी जगह इर्शाद है :

‘जिस दिन अल्लाह तआला जमा फरमायेंगे सब पैगम्बरों को फिर सवाल फरमायेंगे कि तुमको क्या जवाब मिला। वे कहेंगे हमको ख़बर नहीं! बेशक आप छिपी बातों के जानने वाले हैं।’

यह सवाल अंबिया किराम अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम से उनकी उम्मतों के सामने होगा कि जब तुम उनके पास हक की दावत ले गये तो उन्होंने क्या जवाब दिया। उस वक्त अल्लाह की बड़ाई ज़ाहिर होगी। उसके कहर से सब डर रहे होंगे। बेइंतिहा डर की वजह से अल्लाह तआला के सामने जवाब में ‘ला इलम लना’ (हमको कुछ ख़बर नहीं) से ज़्यादा कुछ न कह सकेंगे।

सूरः निसा में फ़रमाया :

‘फिर उस वक्त क्या हाल होगा। जब बुलाएंगे हम हर उम्मत में से (उसका) हाल बताने वाला और तुमको उन लोगों) के मुतअल्लिक गवाही देने वाला बनाकर लाएंगे।’

इससे हर उम्मत का नबी और हर ज़माने के नेक और मोतबर लोग मुराद हैं कि वह क़ियामत के दिन लोगों की नाफरमानी और फ़रमांबरदारी ब्यान करेंगे और सबके हालात की गवाही देंगे। यह जो फ़रमाया, ‘व जिअना बि क अला हा उलाइ शहीदा०’ (कि ऐ मुहम्मद तुमको उनके मुतअल्लिक गवाही देने वाला बना कर लाएंगे) इसका मतलब यह है कि दूसरे नवियों की तरह आप भी अपनी उम्मत के हालात व आमाल के बारे में गवाही देंगे और यह भी हो सकता है कि ‘हा उलाइ’ का इशारा नबियों की तरफ हो। जिसका मतलब यह होगा कि सैयदे आलम हज़रत मुहम्मद रसूलुल्लाह हज़रत अंबिया-ए-किराम की सच्चाई पर गवाही देंगे जबकि उनकी उम्मत उनको झूठा बताएंगी। एक बात यह भी हो सकती है कि ‘हा उलाइ’ का इशारा काफिरों की तरफ हो, जिनका ज़िक्र पिछली आयत ‘यौम इज़िय्य वदुल्लजी न क रू’ में हो चुका है। इस शक्ल में मतलब यह होगा कि जिस तरह पिछले नवी अपनी उम्मत के फासिकों व काफ़िरों के फिस्क व कुफ की गवाही देंगे। ऐसे ही आप भी ऐ मुहम्मद! इनकी बदआमाली पर गवाह बनेंगे, जिससे उनकी ख़राबी व बुराई और ज़्यादा साबित होगी।

Allah Ka हज़रत ईसा से सवाल

हज़रत ईसा से सवाल

क़ियामत के दिन हज़रत ईसा से यही सवाल होगा जैसा कि सूरः माइदः में फरमाया

‘और जबकि अल्लाह तआला फ़रमायेंगे कि ऐ ईसा बिन मरयम ! क्या तुमने उन लोगों से कह दिया था कि मुझको और मेरी मां को ख़ुदा के अलावा माबूद बना लो।”

हज़रत ईसा का जवाब

‘हज़रत ईसा जवाब देंगे कि मैं तो आपको (हर ऐब) से बरी जानता हूं। मुझे किसी तरह मुनासिब न था कि ऐसी बात कहूं जिसके कहने का मुझे हक नहीं। मगर ( अल्लाह की पनाह ! ) मैंने कहा होगा तो आप जानते होंगे। आप तो मेरे दिल की बात जानते हैं और मैं आप के इल्म में जो कुछ है, उसको नहीं जानता। बेशक आप तमाम ऐबों को ख़ूब जानते हैं। मैंने उनसे सिर्फ वही कहा जिसका आपने मुझे हुक्म दिया (और वह) यह कि तुम अल्लाह की इबादत करो जो मेरा भी रब है और तुम्हारा रब भी और मैं जब तक उनमें रहा, उनपर मुत्तला रहा। फिर जब आपने मुझे उठा लिया तो आप ही उन पर मुत्तला रहे और आप हर चीज़ की पूरी ख़बर रखते हैं। अगर आप उनको सज़ा दें तो यह आप के बन्दे हैं और अगर आप इनको माफ़ फ़रमा दें, तो आप अज़ीज़ व हकीम हैं।

लेकिन काफ़िर और मुश्कि की मग्फ़िरत का कानून नहीं है। ज़रूर ही ईसाई दोज़ख़ में जाएंगे। अपने पैग़म्बरों की हिदायत को छोड़कर खुद ही गुमराह और काफ़िर हुए। यकीनन अज़ाब झेलेंगे।

फरिश्तों की पूजा

फरिश्तों से ख़िताब

सूरः सबा में इर्शाद फ़रमाया :

‘और जिस दिन अल्लाह तआला जमा फ़रमायेगा इन सबको फिर फ़रिश्तों में सवाल फ़रमायेगा। क्या ये लोग तुमको पूजा करते थे ।’

दुनिया में बहुत-से मुश्कि फ़रिश्तों को ख़ुदा की बेटियां बताते थे और उनके हैकल (बुत) बनाकर पूजते थे। कुछ उलमा का कहना है कि बुतपरस्ती की शुरुआत फ़रिश्तों की पूजा से हुई। क़ियामत के दिन मुश्किों को सुनाकर अल्लाह जल्ल ल शानुहू फ़रिश्तों से सवाल फ़रमायेंगे, क्या ये लोग तुमको पूजते थे। शायद सवाल का मतलब यह हो कि तुमने तो उनसे ऐसा नहीं किया और तुम इनके काम से खुश तो नहीं हुए? और इस सवाल का मक़सद भी हो सकता है कि फ़रिश्तों का यह जवाब मुश्किों के सामने सुनवा दिया जाए कि न हमने उनको शिर्क की तालीम दी, न उनकी इस हरकत से खुश हुए ! ताकि मुश्किों को यह यकीन हो जाए कि अपने अमल के हम खुद अकेले ज़िम्मेदार हैं।

फरिश्तों का जवाब

आगे इसी आयत के बाद फरमाया :

‘फरिश्ते जवाब में अर्ज़ करेंगे कि तेरी जात पाक है। तू ही हमारा वली है न कि वह। बल्कि वह पूजा करते थे जिनों की। उनमें अकसर उन्हीं को मानते थे।’

यानी आपकी ज़ात इससे पाक है कि किसी दर्जे में भी कोई आपका शरीक हो, हम क्यों ऐसी बात कहते और क्यों शिर्किया हरकतों से खुश रहते। हमारी खुशी आपकी खुशी है। इन नालायकों से हमको क्या वास्ता ? ये बदबख़्त हक़ीक़त में हमारी पूजा करते भी न थे। नाम हमारी पूजा का लेते और पूजते शैतानों को थे! शैतान उनको जिस तरफ मोड़ते, उधर ही मुड़ जाते थे। चाहे फ़रिश्तों का नाम लेकर, चाहे किसी नबी का, किसी वली और शहीद, पीर-फ़क़ीर का ।

आगे फ़रमाया :

‘सो, आज मालिक नहीं तुम में से कोई एक दूसरे के नफा का, न नुक्सान का और हम कह देंगे यह जालिमों से कि चखो उस आग का अज़ाब जिसे तुम झुठलाते थे।’

Tabligh करने का हुकुम

हज़रत नूह की उम्मत के ख़िलाफ उम्मते मुहम्मदिया की गवाही

हज़रत अबू सईद से रिवायत है कि रसूले करीम ने इर्शाद फरमाया कि कियामत के दिन हज़रत नूह को लाया जाएगा और उनसे सवाल होगा कि क्या तुमने तब्लीग (प्रचार) की ? वे अर्ज़ करेंगे कि या रब! मैंने सच में तब्लीग की थी। उनकी उम्मत से सवाल होगा कि बोलो क्या इन्होंने तुमको हुक्म पहुंचाये? वे कहेंगे कि नहीं! हमारे पास तो कोई नजीर (यानी डराने वाला) नहीं आया। इसके बाद हज़रत नूह से पूछा जाएगा कि तुम्हारे दावे की तस्दीक की गवाही देने वाले कौन हैं? वे जवाब देंगे कि हज़रत मुहम्मद और उनके उम्मती हैं। यहां तक वाकिआ नकल करने के बाद आंहज़रत 8 ने अपनी उम्मत को ख़िताब करके फरमाया कि इसके बाद तुमको लाया जाएगा और तुम गवाही दोगे कि बेशक हज़रत नूह ने अपनी क़ौम को तब्लीग की थी। इसके बाद आंहज़रत सैयदे आलम ने (सूरः बकरः की) नीचे की आयतें तिलावत फ़रमायीं :

‘और हमने तुमको एक ऐसी जमाअत बना दी है जो बहुत दर्मियानी है ताकि तुम दूसरी उम्मतों के लोगों के मुकाबले में गवाह बनो। और तुम्हारे लिए रसूलुल्लाह गवाह बनें।’

यह बुख़ारी शरीफ की रिवायत है। मुस्नद इमाम अहमद (रह०) की एक रिवायत से ज़ाहिर होता है कि हज़रत नूह के अलावा दूसरे नबी की उम्मतें भी इंकारी होंगी और कहेंगी कि हमको तब्लीग़ नहीं की गई। उनके नबीयों से सवाल होगा कि तुमने तब्लीग की। वे कहेंगे कि जो हमने तब्लीग़ की थी। इस पर उनसे गवाह मांगे जाएंगे तो वे हज़रत मुहम्मद और उनकी उम्मत को गवाही में पेश करेंगे। चुनांचे हज़रत मुहम्मद और उनकी उम्मत से सवाल होगा कि इस बारे में आप हज़रात क्या कहते हैं। जवाब में अर्ज़ करेंगे-जी, हम पैग़म्बरों के दावे की तस्दीक करते हैं? उम्मते मुहम्मदिया से सवाल होगा कि तुमको इस मामले में क्या ख़बर है? वे जवाब में अर्ज़ करेंगे कि हमारे पास हमारे नबी तशरीफ लाये और उन्होंने ख़बर दी कि तमाम पैगम्बरों ने अपनी-अपनी उम्मत की तब्लीग की।

आयत का आम होना ‘लि तकूनू शुहदा अ अलन्नास’ भी इसको चाहता है कि हज़रत नूह के अलावा दूसरे नबियों की उम्मतों के मुकाबले में भी उम्मते मुहम्मदिया गवाही देंगी।

Kya Tabligh Sach ma krna Hai? 

यहां एक शुब्हा किया जा सकता है और वह यह कि उम्मते मुहम्मदिया नबीयों से ज़्यादा सच्ची और एतबार के बिल तो नहीं है। फिर नबीयों की सच्चाई को उम्मते मुहम्मदिया की गवाही से साबित करने का क्या मतलब होगा? जवाब यह है कि ज़्यादा एतबार के और सच्चे तो हज़रात अंबिया-ए-किराम अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम ही हैं लेकिन चूंकि इस मुकद्दमे के फ़रीक़ हो गये। इसलिए दूसरे गवाहों की ज़रूरत होगी भले ही वे गवाह नबियों से कम दर्जे के होंगे। और उनके एतबार वाला होने की गवाही प्यारे नबी दे देंगे जैसे कोई तहसीलदार (जो खुद भी साहिबे इज्लास होता है) किसी गुस्ताख़ चपरासी के मुकदमे में फ़रीक बन जाए तो हाकिमे आला के इज्लास में तहसीलदार से गवाह तलब किये जाएंगे। भले ही वे रुत्वे में तहसीलदार से छोटे दर्जे के हों और फिर उन गवाहों की सच्चाई को देख कर फैसला किया जाएगा। यहीं से एक और शुब्हे का जवाब भी साफ हो जाता है। शुव्हा यह है कि रिसालत व तब्लीग के इंकारी इस मौके पर यह कह सकते है कि जब हमने नबियों को सच्चा न माना तो उनकी उम्मत (यानी उम्मते मुहम्मदिया) को क्यों सच्चा मानें? जवाब यह है कि ऐसा कहने का उनको हक़ न होगा क्योंकि मुद्दआ अलैह अगर उन गवाहों को झूठा साबित कर दे तो गवाह रद्द होंगे। गवाह पेश हो जाने के बाद मुद्दआ अलैह की तरफ से सिर्फ यह कह देना काफ़ी न होगा कि हम इनको सच्चा नहीं मानते। साथ ही इस हकीकत से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि मुद्दआ अलैह गवाहों को सच्चा माने या न माने, फैसला देने के लिए हाकिम के नज़दीक उनका सच्चा होना काफी है।

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उम्मते मुहम्मदिया ka makaam

कुछ रिवायतों में यह भी आया है कि जब उम्मते मुहम्मदिया दूसरी उम्मतों के मुकाबले में उनके नबियों की ताईद में गवाही देगी तो सैयदे आलम हज़रत मुहम्मद से सवाल होगा कि क्या तुम्हारी उम्मत लायक है कि उनकी गवाही मोतवर मानी जाए? आहज़रत सैयदे आलम अपनी उम्मत की अदालत की गवाही देंगे। यानी यह फ़रमायेंगे कि हां यह सच कहते हैं और इनकी गवाही मोतबर है। बेशक इस उम्मत का बड़ा मर्तबा है और बहुत बड़ाई हैं। जिसका हश्र के मैदान में अगलों-पिछलों के सामने जुहूर होगा। उम्मते मुहम्मदिया की गवाही पर हज़रात अंबिया किराम अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम के हक में अल्लाह के दरबार में फैसला होना और अंबिया किराम अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम के मुख़ालिफों का मुजिम करार पाकर सज़ा पाना इस उम्मत के लिए बड़े ऊंचे दर्जे की इज़्ज़त है।.           -ध्यानुल कुरआन

उम्मते मुहम्मदिया ki gawahi

यहाँ एक सवाल और पैदा होता है और वह यह है कि जब उम्मते मुहम्मदिया नबियों की तब्लीग के वक्त मौजूद न थी तो उनकी गवाही कैसे एतबार की होगी? जवाब यह है कि गवाही का भरोसा सिर्फ यकीन पर है और महसूसात गैर साबित बिल बह्य (वह्य के अलावा की महसूस चीज़ों) में यकीन हासिल होना बगैर देखे मुम्किन नहीं। इसलिए गवाही का मदार (आश्रय) मुशाहदा (देखना) को बना दिया गया है और नबियों की तब्लीग व रिसालत का वाकिया अगर्चे महसूस भी है और मुशाहद (जिसे देखा जाए) भी है, लेकिन उम्मते मुहम्मदया की गवाही का एतबार के काबिल होना देखने की वजह से नहीं, बल्कि वह्य से साबित होने की वजह से होगा और वह्य से मुशाहदे जैसा बल्कि उससे भी ज़्यादा यकीन हासिल होता है। और यकीन ही असल गवाही का मदार है। जैसे कोई डॉक्टर किसी मुर्दा को जिसके बदन पर कोई ज़ाहिरी निशानी (जख्म वगैरह न हो) देखकर अपनी महारत के ज़रिए यह इज़्हार कर दे कि यह शख्स मर्ज़ से नहीं बल्कि किसी भारी चोट से मरा है और इस वजह से कातिल की इन्कुवाइरी का हुक्म हो जाए तो इसके बावजूद कि डॉक्टर उसकी मौत के वक्त मौजूद न था चूंकि सेहत के कायदों की वजह से ‘भारी चोंट’ वजह बतायी गयी, इसलिए इसका एतबार किया गया।

-ब्यानुल कुर आन

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