Hazratji Maulana Yousuf ताज़ियतनामा, इसे उन्होंने बरक़रार ही नहीं रखा, बल्कि इसमें और चार चांद लगा दिए थे।….
ताज़ियतनामा

– मौलाना अब्दुल माजिद दरियाबादी, एडीटर ‘सिदके जदीद’
शेखुत्तब्लीग़ मौलाना मुहम्मद यूसुफ़ कांधलवी सुम-म देहलवी की शख्सियत हिन्दुस्तानगीर (ओल इंडिया) सी नहीं रही थी, ओल वर्ल्ड (आफ़ाक़गीर) हो चुकी थी। बर्मा, जापान वग़ैरह तो फिर एशिया ही के मुल्क हैं। इनकी तब्लीग़ी जमाअतें तो ईमान का कलिमा पढ़ती हुई, यूरोप और अफ्रीक़ा और अमरीका के मुल्कों तक पहुंच चुकी थीं और कितनों को कलिमा शहादत पढ़ा चुकी थीं। एक हैरतअंगेज़ जादुई-सा दीनी निज़ाम उनकी मनातीसी शख़्सियत ने, इस बेदीनी के दौर में, दुनिया भर में क़ायम कर दिया था और इस तहरीक की जो क़ियादत इन्हें अपने वालिद माजिद मौलाना मुहम्मद इलयास रहमतुल्लाहि अलैहि से वरसे में मिली थी, इसे उन्होंने बरक़रार ही नहीं रखा, बल्कि इसमें और चार चांद लगा दिए थे। अभी उम्र ही क्या थी, पूरे पचास के भी न थे, ज़ाहिर में तन्दुरुस्त व तवाना, इसी तब्लीग़ ही के सिलसिले में (और यही तो उनका मुस्तक़िल काम दिन-रात का रह गया था) लाहौर गए हुए थे, ठीक दावत व इर्शाद की हालत में, रात के वक़्त, दिल का दौरा पड़ा और जुमा के दिन ख़ुद ज़िक्रे इलाही करते करते दूसरों को ज़िक्रे इलाही की तालीम देते देते अपने मालिक व मौला के हुजूर में हाज़िर हो गए। परदेस की मौत वह भी ठीक ज़िक्र व ताअत के शगल में जुमा का दिन बहुत बड़ी जनाज़े की जमाअत, ये सब चीजें मरहूम व मग्र के आमाले सालिहा के अजीम जखीरे के साथ सोने पर सुहागे का काम कर गईं और जन्नत के इस मुसाफ़िर के अंजाम को रश्क के क़ाबिल बना गईं। ताज़ियत के मुस्तहिक़ मरहूम के रिश्तेदार, ख़ास तौर से उनके ससुर और चचेरे भाई बुजुर्ग मौलाना मुहम्मद जकरिया शेखुल हदीस मदरसा मज़ाहिरे उलूम सहारनपुर ही नहीं, सारी उम्मत, पूरी मिल्लत है और सदमा हर कलिमा पढ़ने वाले का ज्ञाती व शख़्सी है। मौलाना का इल्मी दर्जा भी किसी बहुत बड़े फ़ाज़िल से कम न था । उनकी शरह मआनिल आसार, तहावी की शरह फ़िक़्ह व हदीस दोनों की एक यादग ख़िदमत है।
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