काबिलियत नहीं रखने वाले को Position / Seat देना | Hukumat बुरी क्यों होती है ? – Dawat~e~Tabligh

ना- अहल को कोई ओहदा सुपुर्द करनाबूरे Hukumat के जुल्म से कैसे बचे ? एक सच्चा Musalman. काबिलियत नहीं रखने वाले को Position/ Seat देना | Hukumat बुरी क्यों होती है? Web Stories – Dawat~e~Tabligh in Hindi… 

काबिलियत नहीं रखने वाले को Position / Seat देना | Hukumat बुरी क्यों होती है ? - Dawat~e~Tabligh
काबिलियत नहीं रखने वाले को Position / Seat देना | Hukumat बुरी क्यों होती है ? – Dawat~e~Tabligh

काबिलियत नहीं रखने वाले को Position/ Seat देना

  • ना- अहल को कोई ओहदा सुपुर्द करना

एक हदीस में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इर्शाद है कि जिस शख़्स को आम मुसलमानों की कोई ज़िम्मेदारी सुपुर्द की गई हो फिर उसने कोई ओहदा किसी शख्स को महज दोस्ती व तअल्लुक की मद में बगैर अहलियत मालूम किए हुए दे दिया उस पर अल्लाह की लानत है न उसका फर्ज मक्यूल है न नफिल यहां तक कि वह जहन्नम में दाखिल हो जाये।

-जमउलू-फ़वाइद, पेज 375

कुछ रिवायात में है कि जिस शख्स ने कोई ओहदा किसी शख्स के सुपुर्द किया हालांकि उसके इल्म में था कि दूसरा आदमी इस ओहदे के लिए इससे ज्यादा क़ाबिल और अहल है तो उसने अल्लाह की ख़्यानत की और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की और सब मुसलमानों की आज जहाँ निज़ामे-हुकूमत की अबतरी नज़र आती है वह सब कुछ इस कुरआनी तालीम को नज़रअंदाज कर देने का नतीजा है कि तअल्लुकात और सिफ़ारिशों और रिश्वतों से ओहदे तक्सीम किये जाते हैं। जिसका नतीजा यह होता है कि ना अहल और ना काबिल लोग ओहदों पर काबिज होकर ख़ुदा की मलूक को परेशान करते हैं और सारा निज़ामे-हुकूमत बर्बाद हो जाता है इसलिए आहज़रत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक हदीस में इर्शाद फ़रमाया :

यानी जब देखो कि कामों की ज़िम्मेदारी ऐसे लोगों के सुपूर्द कर दी गई जो उस काम के अहल और क़ाबिल नहीं तो अब इस फ़साद का कोई इलाज नहीं, क्रियामत का इंतज़ार करो। (यह हिदायत सहीह बुख़ारी किताबुल इल्म में है ।)

-मआरिफुल कुरआन, हिस्सा 2, पे

Hukumat बुरी क्यों होती है?

  • आमाल अच्छे तो हाकिम अच्छे और अगर आमाल ख़राब तो हाकिम ख़राब।

मिश्कात में हुलैया विन अबी नईम की रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला फ़रमाता है कि मैं अल्लाह हूँ, मेरे सिवा कोई माबूद नहीं, मैं सब बादशाहों का मालिक और बादशाह हूँ, सब बादशाहों के दिल मेरे हाथ में हैं। जब मेरे बंदे मेरी इताअत करते हैं तो मैं उनके बादशाहों और हुक्काम के दिलों में उनकी शफ़क्त और रहमत डाल देता हूँ और जब मेरे बंदे मेरी नाफ़रमानी करते हैं तो उनके हुक्काम के दिल उन पर सख्त कर देता हूँ । वह उनको हर तरह का बुरा अज़ाब चखाते हैं, इसलिए हुक्काम और उमरा को बुरा कहने में अपना वक्त बर्बाद न करो, बल्कि अल्लाह तआला की तरफ़ रुजूअ करो और अपने अमल की इस्लाह की फ़िक्र में लग जाओ, ताकि तुम्हारे सब कामों को दुरूस्त कर दूँ ।

इसी तरह अबू दाऊद व नसई में हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से • रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, “जब अल्लाह तआला किसी अमीर और हाकिम का भला चाहते हैं तो उसको अच्छा वज़ीर और अच्छा नाइब दे देते हैं कि अगर अमीर से कुछ भूल हो जाये तो वह उसको याद दिला दे और जब अमीर सही काम करे तो वह उसकी मदद करे, और जब किसी हाकिम व अमीर के लिए कोई बुराई मुक़द्दर होती है तो बुरे आदमियों को उसका वज़ीर और मातहत बना दिया जाता है।

-मआरिफुल कुरआन, हिस्सा 3, पेज 359

एक सच्चा Musalman 

  • एक अंग्रेज़ जज ने फ़ैसला किया कि मुसलमान हार गए इस्लाम जीत गया।

कांधला में एक मर्तबा एक ज़मीन का टुकड़ा था, उस पर झगड़ा चल पड़ा। मुसलमान कहते थे कि यह हमारा है, हिन्दू कहते थे कि यह हमारा है, चुनांचे यह मुकद्दमा बन गया। अंग्रेज़ की अदालत में पहुंचा। जब मुकद्दमा आगे बढ़ा तो मुसलमान ने एलान कर दिया कि यह ज़मीन का टुकड़ा अगर मुझे मिला तो में मस्जिद बनाऊंगा, हिन्दुओं ने जब सुना तो उन्होंने जिद में कह दिया कि यह टुकड़ा अगर हमें मिला तो हम इस पर मन्दिर बनाएंगे। अब बात तो दो इंसानों की इंफ़िरादी थी, लेकिन इसमें रंग इज्तिमाई बन गया, यहां तक कि इधर मुसलमान जमा हो गए और उधर हिन्दू इकट्ठा हो गए और मुकद्दमा एक खास नाइयत का बन गया। अब सारे शहर में कत्ल व गारत हो सकती थी, खून खराबा हो सकता था, तो लोग भी बड़े हैरान थे कि नतीजा क्या निकलेगा? अंग्रेज जज था वह भी परेशान था कि इसमें कोई सुलह व सफाई का पहलू निकाले, ऐसा न हो कि यह आग अगर जल गई तो इसका वुझाना मुश्किल हो जाए जज ने मुकद्दमा सुनने के बजाए एक तज्वी पेश की कि क्या कोई ऐसी सूरत है कि आप लोग आपस में बातचीत के जरिए मसले का हल निकाल लें? तो हिन्दुओं ने एक तज्वीज पेश की कि हम आपको एक मुसलमान का नाम तंहाई में बताएंगे, आप अगली पेशी पर उनको बुला लीजिए और उनसे पूछ लीजिए अगर वह कहें कि यह मुसलमानों की ज़मीन है तो उनको दे दीजिए और अगर वह कहें कि यह मुसलमानों की ज़मीन नहीं, हिन्दुओं की है तो हमें दे दीजिए।

जब जज ने दोनों फ़रीक़ों से पूछा तो दोनों फ़रीक उस पर राजी हो गए। मुसलमानों के दिल में यह थी कि मुसलमान हुआ तो वह मस्जिद बनाने के लिए बात करेगा। चुनांचे अंग्रेज ने फैसला दे दिया और महीने या चन्द दिनों की तारीख दे दी कि भई उस दिन आना और में उस वुड्ढे को भी बुलवा लूंगा। अब जब मुसलमान बाहर निकले तो बड़ी खुशियां मना रहे थे सब कूद रहे थे नारे लगा रहे थे। हिन्दुओं ने अपने लोगों से पूछा कि तुमने क्या कहा? उन्होंने कहा कि हमने एक मुसलमान आलिम को हकम बना लिया है कि वह अगली पेशी पर जो कहेगा उसी पर फ्रेसला होगा, अब हिन्दुओं के दिल मुरझा गए और मुसलमान खुशियों से फूले नहीं समाते थे लेकिन इंतिज़ार में थे कि अगली पेशी में क्या होता है।

चुनांचे हिन्दुओं ने मुफ़्ती इलाही बख़्श कांधलवी रह० का नाम बताया जो शाह अब्दुल अजीत रह० के शामिदों में से थे और अल्लाह ने उनको सच्ची-सच्ची जिंदगी अता फरमाई थी। मुसलमान ने देखा कि मुफ़्ती साहब तशरीफ लाए हैं तो वे सोचने लगे कि मुफ्ती साहब तो मस्जिद की ज़रूर बात करेंगे। चुनांचे जब अंग्रेज़ ने पूछा कि बताइए मुफ़्ती साहब यह जमीन का टुकड़ा किसकी मिल्कियत है? उनको चूंकि हक़ीक़ते हाल का पता था, उन्होंने जवाब दिया कि यह जमीन का टुकड़ा तो हिन्दुओं का है। अब जब उन्होंने यह कहा कि यह हिन्दू का है तो अंग्रेज़ ने अगली बात पूछी कि क्या अब हिन्दू लोग इसके ऊपर मन्दिर तामीर कर सकते हैं? मुफ्ती साहब ने फ़रमाया, जब मिल्कियत उनकी है तो ये जो चाहें करें; चाहे घर बनाएं या मन्दिर बनाएं, यह उनका दलियार है।

चुनांचे फ़ैसला दे दिया गया कि यह जमीन हिन्दुओं की है, मगर अंग्रेज ने फैसले में एक अजीब बात लिखी, फैसला करने के बाद लिखा कि “आज इस मुकदमे में मुसलमान हार गए मगर इस्लाम जीत गया।” जब अंग्रेज़ ने यह बात कही तो उस वक्त हिन्दुओं ने कहा कि “आपने तो फ़ैसला दे दिया। हमारी बात भी सुन लीजिए, हम इसी वक़्त कलिमा पढ़कर मुसलमान होते हैं और आज यह एलान करते हैं कि अब हम अपने हाथों से यहां मस्जिद बनाएंगे।” तो अक्ल कह रही थी कि झूठ बोलो कि मस्ज़िद बनेगी मगर हज़रत मुफ़्ती साहब ने सच बोला और सच का बोल बाला करके सच्चे परवरदिगार ने उस जगह मस्जिद बनवा कर दिखा दी। कई मर्तबा नज़र आता है कि झूठ बोलना आसान रास्ता है, लेकिन झूठ बोलना आसान रास्ता नहीं है। यह कांटों भरा रास्ता हुआ करता है, झूठे से अल्लाह तआला नफ़रत करते हैं, इंसान नफरत करते हैं, इंसान एतिमाद खो बैठता है। एक झूठ को बोलने के लिए कई झूठ बोलने पड़ते हैं, लिहाज़ा झूठी ज़िंदगी गुज़ारने के बजाए सच्ची ज़िंदगी को आप इख़्तियार कीजिए, उस पर परवरदिगार आपकी मदद फरमाएगा। 

बूरे Hukumat के जुल्म से कैसे बचे

  • हाकिम के शर से बचने का मुजर्रव नुस्खा

अगर किसी शख्स को किसी हाकिम, बादशाह या किसी से भी शर का ख़तरा हो या यह समझे कि अगर मैं उसके पास जाऊंगा तो मेरी जान ख़तरे में पड़ जाएगी तो ऐसे शख़्स को चाहिए कि वह डर और शर से बचने के लिए यह अमल करे। अमल यह है कि ऐसे शख्स के पास जाने से पहले यह कलिमात पढ़े “काफ़ हा या ऐन साद० हामीम० ऐन-सीन काफ०” फिर इन तीनों कलिमात के दस हुरफ़ों को इस तरह शुमार करे कि दाएं हाथ के अंगूठे से शुरू करे और बाएं हाथ के अंगूठे पर ख़त्म करे। जब इस तर्कीब से शुमार कर ले तो दोनों हाथ की मुट्ठियां बन्द कर ले और दिल में सूरह फील पढ़े। जब “तरमीहिम” पर पहुंचे तो इस लफ़्ज़ “तरमीहिम” को दस मर्तबा पढ़े और हर मर्तबा एक उंगली खोलता जाए। ऐसा करने से इंशाअल्लाह मामून रहेगा। 

(ल हैवान, जिल्द 3, पेज 280)

  • Chair में बैठ कर बयान करने की दलील Dawat~e~Tabligh

    Chair में बैठ कर बयान करने की दलील Dawat~e~Tabligh

  • नाखून कब काटना चाहिए? Dawat~e~Tabligh

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  • Kiska जूठा खा सकते है? - Dawat~e~Tabligh

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