इबन-ए-आदम (insaan) की हक़ीक़त | Aadam अलैहिसलाम को Duniya में क्यों भेजा गया ? Dawat~e~Tabligh

Prophet Aadam se Galti kyu hui , इब्ने-ए-आदम (inasaan) की हक़ीक़त | Aadam अलैहिसलाम को Duniya में क्यों भेजा गया ? Dawat~e~Tabligh in Hindi..

इबन-ए-आदम (insaan) की हक़ीक़त | Aadam अलैहिसलाम को Duniya में क्यों भेजा गया ? Dawat~e~Tabligh
इबन-ए-आदम (insaan) की हक़ीक़त | Aadam अलैहिसलाम को Duniya में क्यों भेजा गया ? Dawat~e~Tabligh

Aadam अलैहिसलाम को Duniya में क्यों भेजा गया ? 

तशरीह : खुल्लाने आलम ने आलम को पैदा फ़रमाकर जहां आलम के जुमला हवादिस तय फ़रमाकर लिख दिए थे उसके साथ ही नस्ले इंसानी की सबक आसूजी के लिए तकदीर के एक वाक्रिए का जिक्र भी कर दिया है। वह यह है कि हमारी ही मशीयत थी कि ज़मीन में अपना एक ख़लीफ़ा बनाएं, इसलिए हमने ही आदम अलैहि० को पैदा फ़रमाया और हमने ही उनको गेहूं खाने से मना किया और फिर हमने ही उनको उसकी क़ुदरत देकर उनसे उसका इरतकाव भी कराया, उसके बाद फिर हमने ही आदम अलैहि० को मुख़ातिब करके यह सवाल किया, “ऐ आदम क्या हमने तुमको इस दरख्त के पास फटकने से मना नहीं कर दिया था. और क्या इससे भी ख़बरदार नहीं कर दिया था कि देखो शैतान तुम्हारा बड़ा पक्का दुश्मन है उसके कहे में न आना, फिर तुम उन सब बातों को फरामोश करके क्यों गेहूं खा बैठे?

अब नस्ले इंसानी को खूब सुन लेना चाहिए कि उसके जवाब में हज़रत आदम अलैहि० ने जो जवाब दिया वह सिर्फ़ गिरया व ज्ञारी था, उसके सिवा एक हर्फ़ तक मुंह से नहीं निकला और कलिमाते इस्तिगफ़ार भी उस वक़्त कहने की जुरंत की जबकि परवरदिगार ही की तरफ से उनका इल्का किया गया। इस वाक़िए में भी बड़ा सबक़ था कि जो ख़ालिक़ और मालिक हो उससे सवाल करने का हक़ किसी को नहीं पहुंचता। यह हक़ सिर्फ उसी का है कि वह अपनी मख़्लूक से बाजपुर्स करे। यहां मुमकिन था कि किसी के दिल म बस्वसा गुज़र जाता कि शायद हज़रत आदम अलैहि० के दिल में उस वक़्त जवाब न आ सका होगा, इसलिए आलिमुल गैव में इस अकीदे के हल के लिए भी एक महफ़िल मुकालिमा मुस्तव फरमाई गई और आलिमुल ग़ैब में कश्फ़ इसरार के लिए यह भी एक तरीका है और गुफ़्ता आय दर हदीसे दीगरों, की सूरत से मामले की हकीकत बाजेह कर दी गई।

यहां अबुल बशर से मुकालिमा के लिए मशीयते इलाही ने उनकी औलाद में से ऐसे फ़रजन्द को मुंतखव फ़रमाया जो फ़ितरतन तेज़ मिज़ाज और नाज़-परवरदा थे ताकि उनसे गुफ़्तुगू की इब्तिदा कर सकें और उनके सामने सवाल व जवाब के लिए यही मौज़ू रख दिया और जिमन में यह वाज़ेह कर दिया कि अबुल बशर के पास जवाब तो था और ऐसा था कि हज़रत मूसा अलैहि० जैसा ऊलुल अज़्म पैग़म्बर भी उसके जवाब से आजिज़ हो गया। यहां मामला मलूक का मलूक के सामने था, लेकिन जब यही मामला खालिक के सामने पेश आया था तो आदम अलैहि ऐसे लाजवाब थे कि गिरिया व ज़ारी के सिवा उनके पास कोई और जवाब ही न था।

वह वाज़ेह रहना चाहिए कि जो सवाल हज़रत मूसा अलैहि० की जानिब से यहां हज़रत आदम अलैहि० के सामने पेश किया गया है, वह यह नहीं है. कि आपने गेहूं खाया क्यों? बल्कि यह है कि आपने हमको इस दारे तकलीफ़ में रहने की मुसीबत में क्यों डाल दिया? मगर चूंकि यहां आना गेहूं खाने के नतीजे में हुआ था, इसलिए इसका ज़िक्र भी ज़िमनन आ गया है। उलमा ने लिखा है कि अपनी मुसीबत के लिए तक़दीर का उज्ज करना किसी के लिए भी जाइज़ नहीं है, चंजाय कि नबी के लिए वरना तो फिर तमाम बिसाते शरीअत ही दरहम-बरहम हो जाती है और दुनिया अपने तमाम मजसी के लिए तक़दीर का उच्च पेश करके अपना पीछा छुड़ा सकती है। पस आदम अलैहि० ने तक़दीर का उन अपनी मुसीबत के लिए नहीं किया बल्कि दुनिया में आने की जो मुसीबत उनकी औलाद को पेश आ गई है उसकी तसल्ली व तशफ़ी के लिए किया था मतलब यह था कि यह मुसीबत तुम्हारे लिए पहले से मुक़द्दर हो चुकी थी, फिर जो बात पहले से मुक़द्दर हो चुकी थी उसका बाइसे गो में ही हुआ लेकिन इस पर मुझे मलामत करना दुरुस्त नहीं।

यह तो शुदनी अम्र था, लोकर रहा मुसीबत में तकदीर का जिक्र करना रिक्षा- ब- कज़ा की अलामत है और गुनाह पर तक़दीर की आड़ लेना इतिहाई जसारत है। आज भी दुनिया इस किस्म के मीक्रे में तकदीर ही का तल्किरा करके अपने दिल की तसल्ली का सामान किया करती है। मसलन अगर कोई शख़्स तिजारत का एक शोबा छोड़कर दूसरा शोबा इख्तियार कर ले और उसमें उसको काफी नुकसान हो जाए तो अगर लोग उस तब्दीली पर उसको मलामत करें तो उनसे पीछा छुड़ाने और अपने नफ़्स को तसल्ली देने के लिए वह तकदीर का ही पहलू इख़्तियार करता है और कहता है कि मेरे मुकद्दर की बात थी इसलिए नुकसान होना था, हो गया। हाफिज इब्ने तेमिया रह० ने अपनी मुख्तलिफ तसानीफ़ में इस वाक्रिये की भी तीजीह फ़रमाई है और यही सबसे मुस्तहसिन और बेतकल्लुफ़ भी है, मगर इसकी पूरी वज्राहत हाफ़िज़ इब्ने कव्यिम रह० ने फ़रमाई है, उसके अलावा भी और जवाबात दिए गए हैं। मगर यह सब तकल्लुफ मालूम होते हैं। हाफ़िज़ इब्ने क्रव्यम रह० ने उनकी तर्दीींद भी फ़रमाई है।

(देखो शिफ़ाउल अलील, पेज 18, व शरह अक़ीदतुल तहाविया, पेज 79, अलबिदाया वन्निहाया, जिल्द 1, पेज 85, तर्जुमान सुन्नह, जिल्द 3, पेज 69, हदीस नं० 914 )

इब्ने-ए-आदम (insaan) की हक़ीक़त

  • इब्ने आदम की हक़ीक़त (जिसने अपने आपको पहचाना उसने अपने रब को पहचाना )

अबू नऐम ने ‘हलया’ में हज़रत मुहम्मद बिन कअब क़रज़ी से रिवायत किया है। वह फ़रमाते हैं कि मैंने तौरात में या फ़रमाया इब्राहीम अलैहिस्सलाम के मुसहफ़ (सहीफ़ों) में पढ़ा तो उसमें यह पाया कि अल्लाह तआला फ़रमाता है : ऐ इब्ने आदम (आदम के बेटे ) तून ● अदल इंसाफ़ से काम न लिया। मैंने तुझे उस वक्त पैदा किया जबकि तू कुछ भी न था और तुझे एक मुअतदिल व मुनासिब इंसान बनाया और तुझको मिट्टी के खुलासा (बानी गिजा) से बनाया, फिर मैंने तुझको नुत्फ़े से बनाया जो कि (एक मुक़रर्र मुद्दत तक) एक महफ़ूज़ मक़ाम (यानी रहम) में रहा। फिर मैंने उस नुत्फ़े को खून का लोथड़ा बना दिया, फिर मैंने उस खून के लोथड़े को (गोश्त की बोटी बना दिया, फिर मैंने इस बोटी (के कुछ हिस्सों) को हड्डियाँ बना दिया। फिर मैंने उन हड्डियों पर गोश्त चढ़ा दिया। फिर मैंने (उसमें रूह डालकर उसको एक दूसरी ही ( तरह की ) मख्लूक बना दिया। ऐ इब्ने आदम! क्या यह सब मेरे अलावा भी कोई कर सकता है।

फिर मैंने आँतों को हुक्म दिया कि फैल जाओ और हिस्सों को हुक्म दिया कि अलग-अलग हो जाओ तो आँतें अपनी तंग जगह के बाद कुशादा हो गई और हिस्से आपस में ख़ालत-मलत हो जाने के बाद अलग-अलग हो गये। फिर रहम पर मुक्कर्रर फ़रिश्ते को मैंने हुक्म दिया कि तुमको तुम्हारी माँ के पेट से निकाले। मैंने तुझको बाज़ू के नर्म परों पर निकाला फिर मैं तेरी तरफ़ मुतवज्जह हुआ तू एक कमज़ोर मख्लूक था- न तो तेरे दाँत थे जिससे तू काट सकता और न दात थी जिससे तू चबा सकता। मैंने तेरे लिए तेरी माँ के सीने में एक रंग पैदा की जो तेरे लिए गर्मियों में ठंडा दूध निकालती और सर्दियों में गर्म दूध और उसको तेरी जिल्द, गोश्त और ख़ून और रंगों (की अफ़ज़ाइश व पैदावार) का ज़रिया बनाया। फिर मैंने तेरी माँ के दिल में तेरे लिए रहमत डाली और तेरे वालिद के दिल में मुहब्बत पैदा की कि दोनों मेहनत व मशक्कत करते हैं और तेरी परवरिश करते हैं और तुझे ग़िज़ा फ़राहम करते हैं और जब तक तुझे न सुला दें खुद नहीं सोते ।

ऐ इब्ने आदम ! यह सब मैंने इसलिए नहीं किया कि तू इन सब चीज़ों का हक़दार था और न ही अपनी किसी ज़रूरत को पूरा करने के लिए किया ( हाजत पूरी करने के लिए किया)। ऐ इब्ने आदम ! फिर जब तेरे दाँत (चीज़ों को) काटने लगे और तेरी दाढ़ (सख़्त चीज़) तोड़ने लगी तो मैंने तुझ को गर्मियों में उसके मौसमी फल खिलाए और सर्दियों के फल उसके मौसम में, फिर जब तूने जान लिया कि मैं तेरा पालनहार हूँ तो तूने मेरी नाफरमानी शुरु कर दी। अगर अब भी तू मेरी नाफ़रमानी करे फिर मुझे पुकारे तो मैं क़रीब हूँ (तेरी) दुआ को क़बूल करने वाला हूँ | तू मुझे पुकार कि मैं बहुत बख़्शने वाला, बहुत रहम करने वाला हूँ।

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