ilm सिखने में सारा पैसा लगा दिया। इल्म हासिल किया। ilm se शोहरत। ilm में izzat। इल्म sikhne के लिए सफ़र | ilm की वजह से दिल से mohabbat – Dawat~e~Tabligh in Hindi…

इल्म sikhne के लिए सफ़र
हज़रत अब्दुल्लाह ने रसूलुल्लाह सल्ल० की हदीसें जमा करने के लिए बहुत दूर-दूर के सफ़र किए। शहर-शहर घूमते, मुल्क-मुल्क की खाक छानते, ‘जहां किसी बड़े आलिम का ज़िक्र सुनते, बस वहीं पहुंचने की ठान लेते और हदीसे रसूल सल्ल० के मोतियों से अपने दामन को भरने की कोशिश करते। शाम, मिस्र, कूफ़ा, वसरा, यमन, हिजाज़ कौन-सा मुल्क था जहां हज़रत अब्दुल्लाह रह० इल्म के शौक़ में न पहुंचे हों इल्म के लिए आपने मुसीबतें झेलीं। क्योंकि उस ज़माने का सफ़र आजकल का-सा तो था नहीं कि तेज़ रफ़्तार सवारियों में बैठकर चन्द घंटों में आदमी कहीं से कहीं पहुंच जाए। उस जमाने में या तो लोग पैदल चलते या फिर ऊंटों और खच्चरों पर सफ़र करते।
और एक शहर से दूसरे शहर तक पहुंचने में महीनों लग जाते। लेकिन हज़रत अब्दुल्लाह रह० हदीस के शौक में उन तकलीफों से हरगिज़ न घबराते। रास्ते की दुश्वारियों ने कभी उनके क़दम न रोके। वह अपने जमाने के तमाम बड़े और मुमताज़ आलिमों के पास पहुंचे और हदीसे रसूल सल्ल० के उन जिंदा चश्मों से इल्म की प्यास बुझाई। हज़रत के मशहूर शागिर्द इमाम अहमद बिन हंबल रह० फ़रमाते हैं, “दीन का इल्म हासिल करने के लिए हज़रत अब्दुल्लाह रह० से ज्यादा सफ़र करनेवाला उनके ज़माने में कोई और न था ।”
हज़रत अब्दुल्लाह रह० का ख़ुद अपना बयान है कि “मैंने चार हज़ार उस्तादों से इल्म हासिल किया।” ज़ाहिर है कि यह चार हज़ार उस्ताद किसी एक शहर में तो होंगे नहीं उन सबके पास पहुंचने के लिए आपने तूल-तवील सफ़र किए होंगे और सालों मुशक्कतें बरदाश्त की होंगी। एक मर्तबा किसी ने उनसे पूछा, आप कब तक इल्म हासिल करते रहेंगे? फ़रमाया, “मौत तक, हो सकता है कि वह बात मुझे अब तक मालूम न हुई हो जो मेरे काम की हो ।”
इल्म सिखने में सारा पैसा लगा दिया
एक मर्तबा उनके वालिद ने कारोबार के लिए उनको पचास हज़ार दिरहम दिए। हज़रत ने वह रक्कम ली और सफ़र पर चल दिए। दूर-दूर मुल्कों के सफ़र किए। बड़े-बड़े आलिमों की खिदमत में पहुंचे, उनसे फ़ैज़ हासिल किया और हदीसे रसूल सल्ल० के दफ़्तर के दफ़्तर जमा करके घर वापस आए।
हज़रत मुबारक रह० बेटे की आमद की ख़बर सुनकर इस्तकबाल के लिए गए पूछा, “कहो बेटे तिजारती सफ़र कैसा रहा? क्या कुछ कमाया ?” 7 हज़रत अब्दुल्लाह रह० ने निहायत इत्मीनान और संजीदगी से जवाब दिया, “अब्बा जान! ख़ुदा का शुक्र है, मैंने बहुत कुछ कमाया। लोग तो ऐसी तिजारतों में रकम लगाते हैं जिनका नफा बस इस दुनिया की जिंदगी ही में मिलता है। लेकिन मैंने अपनी रकम एक ऐसी तिजारत में लगाई है जिसका फ़ायदा दोनों जहां में मिलेगा।” हज़रत मुबारक रह० बेटे की यह बात सुनकर बहुत ख़ुश हुए। पूछा, “वह कौन-सी तिजारत है जिसका नफ़ा तुम्हें दोनों जहां में मिलेगा? बताओ तो सही क्या कमाकर लाए हो?” हज़रत अब्दुल्लाह ने हदीस के दफ्तरों की तरफ इशारा करते हुए कहा, “यह है वह दोनों जहां में नफ़ा देनेवाला माल, प्यारे रसूल सल्ल० के इल्म का ख़ज़ाना।
मैंने इसी ख़ज़ाने को हासिल करने में अपनी सारी दौलत लगा दी हजरत मुबारक का चेहरा ख़ुशी से चमक उठा। आंखों में खुशी के आंसू तैरने लगे। उठे बेटे को गले लगाया। दुआएं दीं, अल्लाह का शुक्र अदा किया। बेटे को घर ले गए और तीस हज़ार की और रक़म देकर कहा, “बेटे ! यह लो, और अगर तुम्हारी कामयाब तिजारत में कोई कमी रह गई हो तो उसको पूरा कर लो। अल्लाह तआला तुम्हारी तिजारत में बरकत दे और उसके नफ़े से दोनों जहान में तुम्हें मालामाल करे। ” (आमीन !)
इल्म हासिल किया
- मुबारक की आंखों में ख़ुशी के आंसू तैरने लगे
हज़रत अब्दुल्लाह का वतन मर्व खुरासान का एक मशहूर इल्मी शहर है जहां बड़े-बड़े आलिम मौजूद थे। हर तरफ इल्म का चर्चा था। फिर उनके वालिदैन की इंतिहाई ख़्वाहिश भी यह थी कि उनका प्यारा बेटा इल्म के आसमान पर सूरज बनकर चमके उसके लिए शुरू ही से हजरत की तालीम | व तर्बियत पर सूसी तवज्जोह दी गई और जमाने के रिवाज के मुताबिक उनकी पढ़ाने लिखाने की पूरी-पूरी कोशिश की गई। दरअस्त इल्म का शौक उनको जवानी में हुआ। कितनी मुबारक थी वह घड़ी जब हज़रत अब्दुल्लाह रह० को अल्लाह तआला ने तौबा की तौफ़ीक़ बख़्शी और उनकी ज़िंदगी में एक पाकीज़ा इंकलाब आया और हर तरफ़ से मुंह फेरकर वह पूरी यकसूई के साथ दीन का इल्म हासिल करने में लग गए और फिर तो उनके शौक़ का यह हाल हुआ कि अपना सब कुछ इल्म की राह में लुटा दिया।
ilm se शोहरत
दूर-दूर के लोग उनसे फ़ैज़याब हुए। हर जगह उनके इल्म व फ़ज़्ल के चर्चे होने लगे। बड़े-बड़े उलमा को उनके देखने का शौक था, उनसे मिलने की तमन्ना थी। हर जगह उनकी बुज़ुर्गी और कमाल के तजकिरे थे। उनके इल्म व फ़ज़्ल की क़द्र थी। हज़रत सुफ़ियान सौरी रह० अगरचे उनके उस्ताद थे और खुद हज़रत अब्दुल्लाह रह० भी उनको बहुत मानते थे लेकिन वह भी हज़रत के इल्म व कमाल से बहुत मुतास्सिर थे। एक बार खुरासान के रहने वाले किसी शख़्स ने हज़रत सुफ़ियान रह० से कोई मसला पूछा तो फ़रमाया, भाई मुझसे क्या पूछते हो? तुम्हारे वहां तो खुद मंत्रिक व मगरिब के सबसे बड़े आलिम मौजूद हैं, उनसे पूछो। उनके होते हुए हमसे पूछने की क्या ज़रूरत है? उन्हीं सुफ़ियान रह० का वाक़िआ है कि एक बार किसी ने हज़रत अब्दुल्लाह को “मश्रिक़ का आलिम” कह दिया तो बहुत ख़फ़ा हुए और डांट कर कहा, अब्दुल्लाह को “मश्रिक्र व मगरिब का आलिम” कहा करो।
आपकी शोहरत दूर-दूर फैल चुकी थी। बेदेखे लोगों को आपसे अक़ीदत थी। एक बार हज़रत हम्माद बिन जैद रह० की ख़िदमत में पहुंचे। ये उस वक़्त के बहुत बड़े मुहद्दिस थे। इराक़ के शैख़ माने जाते थे। जब हज़रत अब्दुल्लाह रह० उनके पास पहुंचे तो पूछा, आप कहां से आए हैं? हज़रत ने फ़रमाया, खुरासान से। शैख इराक़ रह० ने कहा, खुरासान तो बहुत बड़ा मुल्क हैं, खुरासान के किस शहर से आए हो ? हज़रत ने बताया कि ‘सर्व’ से। मरो का नाम सुनते ही शेखे इराक़ रह० ने पूछा कि तब तो आप हज़रत अब्दुल्लाह को जानते होंगे? हज़रत ने फ़रमाया, वह तो आपकी खिदमत में मौजूद है। शेख़ इराक़ हज़रत हम्माद बिन जैद रह० की निगाहें अक़ीदत से झुक गई। उठकर हज़रत अब्दुल्लाह रह० को गले से लगाया और निहायत इज्ज़त व एहतिराम से पेश आए।
ilm की वजह से दिल से mohabbat
- मक़बूलियत
शोहरत के साथ-साथ अल्लाह तआला ने उनको मक़बूलियत भी ऐसी बख्शी थी कि जहां जाते लोग हाथों हाथ लेते अक़ीदत व मुहब्बत से आपकी राह में आंखें बिछाते और आपसे मिलकर ईमान में ताजगी महसूस करते। कोई ऐसी बस्ती न थी जहां के लोग आपको दिल से न चाहते हों और आपसे मुहब्बत न करते हों
एक मर्तबा आप शहर रिक़्क़ा तशरीफ़ ले गए। ख़लीफ़ा हारून रशीद भी वहां मौजूद थे। शहर में हर तरफ़ आपके आने की चर्चा थी, इस्तकबाल की तैयारियां थीं और लोग जूक दर जूक आपको देखने और आपके दीदार से आंखों को रौशन करने के लिए चले आ रहे थे। हर तरफ़ ख़ुशी और मसर्रत से लोगों के चेहरे दमक रहे थे और हर एक बेहख्तियार खिंचा चला आ रहा था।
शाही बालाखाने पर हारून रशीद की एक लौंडी बैठी हुई यह मंजर देखा रही थी, बहुत हैरान हुई कि आख़िर ऐसा कौन-सा शख़्स है जिसको देखने और जिससे मिलने के लिए ये लोग इतने बेताब हैं और दौड़े चले आ रहे हैं। मालूम किया तो लोगों ने बताया कि मश्रिक व मगरिब के आलिम हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मुवारक रह० तशरीफ ला रहे हैं उनको देखने के लिए यह 1 मख़्लूक़ दौड़ी चली जा रही है। सच्ची बादशाही तो हज़रत अब्दुल्लाह ही को हासिल है कि लोग अपने जज़्बे और शौक़ से खिंचे चले आ रहे हैं। भला हारून की भी कोई बादशाही है कि लोग फ़ौज और डंडे के ज़ोर से हैं और सज़ा के डर से जमा होते हैं। लाए जाते
जब मौसिल के क़रीब क़स्बा हैअत में उनकी वफ़ात हुई तो लोगों की इतनी भीड़ थी कि हैअत का हाकिम हैरान था बहुत मुतास्सिर हुआ और फीरन अपनी दारुल सल्तनत बगदाद में उसकी इतिला भिजवाई।
उलमा के क़लम की रोशनाई और शहीदों के ख़ून का वज़न
इमाम ज़हबी रहमतुल्लाहि अलैहि ने हज़रत इमरान बिन हसीन रज़ियल्लाहु अन्हु से नक़ल किया है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि क़ियामत के दिन उलमा की रोशनाई जिससे उन्होंने इल्मे दीन और लिखे हैं और शहीदों के ख़ून को तौला जाएगा तो उलमा की रोशनाई का वज़न शहीदों के खून के वज़न से बढ़ जाएगा।
-मजारिफुल कुरआन, हिस्सा 3, पेज 523
ilm में izzat
- इमाम मालिक रह० ने अपनी मस्नद पर इब्ने मुबारक को बिठाया
एक मर्तबा आप मदीना मुनव्वरा तशरीफ़ ले गए और वहां इमाम मालिक रह० से मिलने के लिए पहुंचे। इमाम मालिक रह० अपनी शाहाना शान के तथ तलवा को हदीस पढ़ाने में मशगुल थे, ज्यों ही आपको देखा फ़ौरन अपनी जगह से उठे, आपसे गले मिले और निहायत इज्जत के साथ आपको अपनी मस्नद पर बिठाया। इससे पहले इमाम मालिक रह० किसी के लिए मज्लिस से नहीं उठते थे और न ही किसी को इस इज्ज़त के साथ अपने क़रीब मस्नद पर बिठाया था। तलबा को इस वाक्रिए पर बड़ी हैरत थी। इमाम मालिक रह० ने भी तलबा की इस हैरत को भांप लिया। समझाते हुए फरमाया, “अजीजो यह खुरासान के प्रक्रीह हैं।”
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