इस्लाम हक़ है, इसकी मेहनत के लिए 4 महीने मांगते हैं, इसके लिए चार लाईन की मेहनत है। सुनने की मेहनत दुनिया की मोहब्बत ka nuksan, Amr Bil Maroof Wa Nahi Anil Munkar क्या है ?| इस्लाम की मेहनत- Dawat-e-Tabligh

इस्लाम की मेहनत
इस्लाम हक़ है, इसकी मेहनत के लिए 4 महीने मांगते हैं, इसके लिए चार लाईन की मेहनत है।
● सुनने की मेहनत – तालीम
● बोलने की मेहनत – दावत
● सोचने की मेहनत – ज़िक्र
● मांगने की मेहनत – दुआ
ईमान मुजाहिदा से पकेगा, दावत देने से बनेगा, हिजरते सफ़र से फैलेगा, हुकूकुल इबाद से बचेगा।
(मौलाना अहमद लाट साहब, इज्तिमाअ भोपाल)
दाई अपनी इज्तिमाई फ़िक्रों के साथ इंफ़िरादी नेकियाँ भी करता रहे।
हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! तुममें से आज रोज़ा किसने रखा है? हज़रत अबू वक्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा मैंने। फिर आप सल्ल० ने पूछा तुममें से आज किसने किसी बीमार की इयादत की है? हज़रत अबू बक्र रजियल्लाहु अन्हु ने कहा मैंने। फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा : तुममें से आज कौन किसी जनाज़े में शरीक हुआ है? हज़रत अबू चक्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा में फिर आप सल्ल० ने पूछा : आज 1 किसने किसी मिस्कीन को खाना खिलाया है? हज़रत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा मैंने। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जो आदमी एक दिन में यह सारे काम करेगा यह जन्नत में जरूर जाएगा।
-हयातुस्सहावा, हिस्सा 2 पेज 648
अल्लाह वालों के अक्वाल व इरशादात और उनके मलपूजात आज भी मुर्दा दिलों को जिन्दा करने की तासीर रखते हैं। उनके मलफूज़ात पढ़कर और सुनकर ख़ुदा और उसके रसूल सल्ल० की मोहब्बत में तरक्की होती है, सहाबा रज़ि० की मोहब्बत दिल में मोजज़न होती है, अमले- सालेह का जज्बा बेदार होकर आखिरत का यकीन ताज़ा होता है, आख़िरत की फिक्र सारी फिक्रों पर गालिब आ जाती है, इन बुजुर्गों के इरशादात के ज़रिए न सिर्फ ये कि कुरआन व हदीस की अज़मत दिल में जड़ पकड़ती है बल्कि कुरआन व हदीस के बहुत से मआरिफ व हकायक खुलते हैं, तब्लीगी जद्दोजेहद के मुनाफे व फवायद सामने आते हैं, अल्लाह के कलिमे और दीन को बलन्द करने की दिल में उमंग पैदा होती है।
Amr Bil Maroof Wa Nahi Anil Munkar क्या है ?
अम्र बिल् मारूफ़, नहय अनिल मुन्कर की अजीब ख़स्लतें
हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: क्या मैं तुम्हें ऐसे लोग न बतलाऊं जो न नवी होंगे और न शहीद, लेकिन उनको अल्लाह के यहाँ इतना ऊंचा मक़ाम मिलेगा कि क़यामत के दिन नबी और शहीद भी उन्हें देखकर खुश होंगे और वह नूर के खास मिम्बरों पर होंगे और पहचाने जाएंगे। सहाबा ने पूछा कि या रसूलुल्लाह ! वह कौन लोग हैं? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : यह वे लोग हैं जो अल्लाह के बंदों को अल्लाह का महबूब बनाते हैं और अल्लाह तआला को उसके बंदों का महबूब बनाते हैं और लोगों के औरवाह बनकर जमीन पर फिरते हैं। मैंने अर्ज किया यह बात तो समझ में आती है कि वह अल्लाह को उसके बंदों का महबूब बनायें। लेकिन यह बात समझ में नहीं आ रही कि वह अल्लाह के बंदों को अल्लाह का महबूब कैसे बनायेंगे? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : ये लोग अल्लाह के बंदों को उन कामों का हुक्म देंगे जो काम अल्लाह को महबूब और पसंद हैं और उन कामों से रोकेंगे जो अल्लाह को पसंद नहीं हैं, वे बंद जब उनकी बात मानकर अल्लाह के पसंदीदा काम करने लग जाएंगे तो ये बंदे अल्लाह के महबूब बन जाएंगे।
-हयातुस्सहावा, हिस्सा 2, पेज 805
अम्र बिल् मारूफ़ को कब छोड़ दिया जाएगा?
हज़रत हुज़ैफ़ा रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि मैंने नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में अर्ज़ किया कि या रसुलुल्लाह! अम्र बिल् मारूफ़ और नहय अनिल मुन्कर नेक लोगों के आमाल के सरदार हैं, इन दोनों को कब छोड़ दिया जाएगा? आप सल्ल० ने फ़रमाया, जब तुममें वे ख़राबियाँ पैदा हो जाएंगी जो बनी इस्राईल में पैदा हुई थीं।
मैंने पूछा या रसूलुल्लाह ! बनी इस्राईल में क्या ख़राबियाँ पैदा हो गई थीं? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जब तुम्हारे नेक लोग दुनिया की वजह से फ़ाज़िर लोगों के सामने दीनी मआमलात में नम बरतने लगें और दीनी इल्म बद्तरीन लोगों में आ जाये और बादशाहत छोटों के हाथ लग जाये तो फिर उस वक्त तुम ज़बरदस्त फ़िले में मुब्तला हो जाओगे। तुम फ़िल्मों की तरफ़ चलोगे और फ़ितने बार-बार तुम्हारी तरफ़ आएंगे।
-हयातुस्सहावा, हिस्सा 2, पेज 806
दीन का पैगाम
बुज़ुर्गों के मलफ़ूज़ात व मकतूबात के आइने में बुज़ुर्गों की कुलबी कैफियात, और अन्दरूनी एहसासात और दीने इस्लाम की तरक्की के लिए जज्बाए कुर्बानी का अंदाज़ हमारे सामने आकर हम को अमल की दावत देता है, इन ही बर्गुज़ीदा बन्दों में हज़रत जी मौलाना मोहम्मद यूसुफ साहब रहमतुल्लाहि अलैहि हैं, जिन्हों ने अपने वालिदे मोहतरम मौलाना मोहम्मद इल्यास साहब नव्वरल्लाहु मरकदहू के इन्तिकाल के बाद उस ज़माने के अकाविरीन के मश्विरे से इस दावत वाले अज़ीम काम की जिम्मेदारी संभाल कर अल्लाह के दीन का पैगाम बेशुमार इन्सानों तक पहुंचाया, और उसके लाखों बन्दों को उसकी राह पर लगाया। हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्ल0 की तालीमात को राज करने (फैलाने) में कोई कसर नहीं छोड़ी, अमीरों को, गरीबों को, आलिमों को आमियों को और अपने वक़्त की अहम शख़्सियतों को अपने अन्दर के दर्द, फिक्र और अपनी कुव्वते ईमानी की तासीर से मुतअस्सिर किया, और अपने वालिद माजिद अलैहिर्रहमा के नक्शे कदम पर चल कर उम्मते मुसलिमा के अन्दर इस्लाही जद्दो-जेहद में आखिर दम त मशगूल रहे।
दुनिया की मोहब्बत ka nuksan
हज़रत मआज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि हुज़ूर सल्लल्लाहु वसल्लम ने फ़रमाया तुम अपने रब की तरफ़ से एक वाज़ेह रास्ते पर होगे जबतक तुममें दो नशे ज़ाहिर न हो जाएँ। एक जहालत का नशा, दूसरा जिंदगी की मोहब्बत का नशा, और तुम अम्र बिल् मारूफ़ और नय अनिल मुन्कर करते रहोगे और अल्लाह के रास्ते में जिहाद करते रहोगे लेकिन, जब दुनिया की मोहब्बत तुममें ज़ाहिर हो जाएंगे तो फिर तुम अम्न बिल मारूफ़ और नह्य अनिल मुन्कर नहीं कर सकोगे, और अल्लाह के रास्ते में जिहाद न कर सकोगे, उस ज़माने में क़ुरआन और हदीस को बयान करने वाले उन मुहाजिरीन और अंसार की तरह होंगे जो शुरू में इस्लाम लाए थे।
– हयातुस्सहाबा हिस्सा 2, पेज 805
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