मांग पूरी करने पर मां-बाप इसरार करते रहेंगे बल्कि यह तमन्ना करेंगे कि काश! इस पर हमारा और भी ज्यादा कर्ज होता। जिस जानवर के लात मारी गयी थी, मां-बाप apna हक कब मांगे गे ?| जानवरों का बदला | Dawat-e-Tabligh

कियामत के दिन सबसे बड़ा ग़रीब
हज़रत अबू हुरैरः से रिवायत है कि आहज़रत ने एक बार अपने सहाबा से सवाल फरमाया, क्या तुम जानते हो कि ग़रीब कौन है? सहाबा ने अर्ज़ किया हम तो उसे गरीब समझते हैं कि जिसके पास दिरहम (रुपया-पैसा) और माल व अस्वाब न हो। इसके जवाब में आहज़रत सैयदे आलम ने इर्शाद फ़रमाया कि बेशक मेरी उम्मत में से (हकीकी) मुफ़्लिस वह है जो कियामत के दिन नमाज़ और रोज़े और ज़कात लेकर आएगा (यानी उसने नमाजें भी पढ़ी होंगी, रोज़े भी रखे होंगे और ज़कात भी अदा की होगी) और (इन सबके बावजूद इस हाल में (हश्र के मैदान में) आयेगा कि किसी को गाली दी होगी और किसी को तोहमत लगायी होगी और किसी का (नामुनासिब और नाहक मारा होगा। (और चूंकि क़ियामत का दिन इंसाफ़ और सही फैसलों का दिन होगा) इसलिए (उस शख़्स का फैसला इस तरह किया जाएगा कि जिस-जिस को उसने सताया होगा और जिस-जिस का हक़ मारा होगा सबको उसकी नेकियां बांट दी जायेंगी) कुछ कियां इस हक़दार को दे दी जाएंगी। फिर अगर हुक़ूक़ पूरा न होने से पहले उसकी नेकियां ख़त्म हो जाएं तो हक़दारों के गुनाह उसके सिर डाल दिए जाएंगे। फिर उसको दोज़ख़ में डाल दिया जाएगा।
– मुस्लिम
बदला कैसे मिलेगा ?
रिवायत करने वाले कहते हैं कि हमने अर्ज किया- ऐ अल्लाह के रसूल ! बदला कैसे दिलाया जाएगा हालांकि हम नंगे, बेखला और बिल्कुल ख़ाली हाथ होंगे? जवाब में सरवरे आलम ने इर्शाद फरमाया कि नेकियों और बुराइयों से लेन-देन होगा ।
-अहमद
हज़रत अबू हुरैरः से रिवायत है कि जिसने अपने ख़रीदे हुए गुलाम का जुल्म से एक कोड़ा भी मारा था, क़ियामत के दिन उसको बदला दिलाया जाएगा।
-तर्गीब
मां-बाप apna हक कब मांगे गे ?
मां-बाप भी हक छोड़ने पर राज़ी न होंगे
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद ने फरमाया कि हज़रत रसूले करीम ने इर्शाद फ़रमाया कि (अगर मां-बाप का अपनी औलाद पर क़र्ज़ होगा तो जब क़ियामत का दिन होगा तो अपनी औलाद से उलझ जाएंगे (कि ला हमारा क़र्ज़ अदा कर) । वह जवाब देगा कि मैं तो तुम्हारी औलाद हूं। वे इस जवाब का कुछ असर न लेंगे और मांग पूरी करने पर इसरार करते रहेंगे बल्कि यह तमन्ना करेंगे कि काश! इस पर हमारा और भी ज्यादा कर्ज होता।
-तब्रानी
सबसे पहले मुद्दई व मुद्दआ अलैह
हज़रत उक्बा बिन आमिर से रिवायत है कि आहज़रत सैयदे आलम ने इर्शाद फ़रमाया कि क़ियामत के दिन सबसे पहले मुद्दई व मुद्दआ अलैह दो पड़ोसी होंगे।
-अहमद
जानवरों का हक
जानवरों के फैसले
क़ियामत के दिन सभी का हिसाब होगा। हर मज़्लूम के हक में इंसाफ होगा। हज़रत अबू हुरैरः रिवायत फ़रमाते हैं कि आंहज़रत ने इर्शाद फ़रमाया कि तुम ज़रूर-ब ज़रूर हक वालों को उनके हक़ कियामत के दिन अदा करोगे यहां तक कि बे-सींगों वाली बकरी को (जिसे दुनिया में सींगों वाली बकरी ने मारा था) सींगों वाली बकरी से बदला दिलाया जाएगा।
– मुस्लिम शरीफ़
सूर नवा के आखिर में इर्शाद है :
‘वह दिन यकीनी है, सो जिसका जी चाहे अपने रब के पास ठिकाना बना रखे। बेशक हमने तुमको एक नज़दीक आने वाले अज़ाब से डरा दिया है, जिस दिन हर शख्स अपने अमल को देख लेगा। जो उसने पहले से आगे भेज दिए थे और काफिर कहेगा, काश मैं मिट्टी हो जाता!’
जानवरों का बदला
दुर्रे मंसूर में इस आयत की तफ़सीर में बहुत-सी हदीस की किताबों के हवाले से हज़रत अबू हुरैरः से नकुल किया है कि क़ियामत के दिन सारी मख्लूक जमा की जाएगी चौपाए भी और (इनके अलावा) ज़मीन पर चलने वाले भी और परिंदे भी और इनके अलावा हर चीज़ उस वक्त अल्लाह की अदालत से जो फ़ैसले होंगे, उनमें यह भी होगा कि बे-सींगों वाले जानवरों की सींगों वाले जानवर से बदला दिलाया जाएगा। फिर उनसे कह दिया जाएगा कि मिट्टी हो जाओ उस वक्त काफिर की जुबान से (बड़ी हसरत से) यह निकलेगा कि काश में मिट्टी होता!
-दुर्रे मंसूर
मशहूर तफ़सीर लिखने वाले हज़रत मुजाहिद ने फ़रमाया कि जिस जानवर के चोंच मारी गयी थी। उसे चोंच मारने वाले जानवर से और जिस जानवर के लात मारी गयी थी, उसे लात मारने वाले जानवर से बदला दिलाया जाएगा। यह माजरा इंसानों के सामने होगा जिसे वह देखते रहेंगे। इसके बाद जानवरों के कह दिया जायेगा कि मिट्टी हो जाओ। न तुम्हारे लिए जन्नत है, न दोज़ख़ है। उस वक्त काफिर (जानवरों की यह ख़लासी बल्कि हमेशा के अज़ाब से बचने की कामयाबी को देखकर उनपर रश्क करेंगे और) कह उठेंगे कि हम (भी) मिट्टी हो जाते ।
क्या दुनिया तकलीफ की जगह है ?
दुनिया काम करने की जगह है; सोचने की जगह है; तकलीफ की जगह है; दुख की जगह है। इस दुनिया में जो आदमी दुनिया ही के लिए अमल और मेहनत करेगा और दुनिया ही के रंज व फिक्र में घुलेगा। यकीनी तौर पर आख़िरत में ख़ाली हाथ पहुंचेगा। जिसने यहां अपने को न सिर्फ जानवरों से अच्छा बल्कि नेक बन्दों से भी अच्छा समझा और अल्लाह के रसूल की बात को ठुकराया और आख़िरत से बेफिक्र रहा। आख़िरत में बर्बाद और बेआबरू होगा और न सिर्फ नेक बन्दे उससे अच्छे साबित होंगे बल्कि जानवर भी नतीजे के तौर पर उससे अच्छे रहेंगे और उस वक्त बड़ी हसरत और नाउम्मीदी के साथ पुकार उठेगा कि काश ! मैं भी मिट्टी हो जाता। हिसाब न लिया जाता, दोज़ख़ में न गिरता। काश! ज़मीन फट जाती और मैं हमेशा कि लिए ज़मीन का पैवंद हो जाता जैसा कि सूरः निसा में फ़रमाया :
‘जिन लोगों ने कुफ़ किया और रसूल की नाफरमानी की, उस दिन तमन्ना करेंगे कि काश! हम ज़मीन का पैवंद हो जाएं।’
इसके ख़िलाफ़ कि जिन लोगों ने दुनिया को आख़िरत के अमल की जगह समझकर वहां के लिए फिक्र किया और वहां की फिक्र में घुला वे वहां कामयाब होंगे। दुनिया में उनका हाल था कि खुदा के डर से कहते थे कि काश हम मिट्टी हो जाते। मतलब यह कि ईमान वाले यहां अपने को दूसरी मलूक से कम समझ कर आख़िरत की कामयाबी हासिल करेंगे और हक के इंकारी क़ियामत के दिन अपने को जानवरों से बदतर यकीन करेंगे और नाकाम होंगे।