माँ के क़ातिल, डाकू और बागी की नमाज़े जनाज़ा नहीं। Doctor मौत के वक्त नशे का इंजक्शन न दे। खुदकशी करने वाले की नमाज-ए-जनाज़ा पढ़ें या नहीं। जुमे के दिन इंतिक़ाल होने की फ़ज़ीलत। जुमे के दिन मरना | Kin logo के लिए जनाजा की नमाज नहीं है ? – Dawat~e~Tabligh in Hindi…

Kin logo के लिए जनाजा की नमाज नहीं है ?
- बागी, डाकू और माँ के क़ातिल की नमाज़े जनाज़ा नहीं
सवाल :- क़ातिल को सजा के तौर पर क़त्ल कर दिया जाये। उसकी नमाज़े जनाज़ा के बारे में क्या हुक्म है? अगर वालिदैन का क़ातिल हो उस सूरत में क्या हुक्म है? फ़ासिक, फ़ाजिर और जानी की मौत पर उसकी नमाज़े जनाज़ा के बारे में क्या हुक्म है?
जवाब :- नमाज़े जनाज़ा हर गुनाहगार मुसलमान की हैं, अलबत्ता बाग़ी और डाकू को अगर मुक़ाबले में मारे जायें तो उनका जनाज़ा न पढ़ा जाये, न उनको गुस्ल दिया जाये। उसी तरह जिस शख़्स ने अपने माँ-बाप में से किसी को क़त्ल कर दिया हो और उसे क़िसासन क़त्ल किया जाये तो उसका जनाज़ा भी नहीं पढ़ा जाएगा और अगर वह अपनी मौत मरे तो उसका जनाज़ा पढ़ा जाएगा। ताहम सरबर – आवुरदा लोग उसके जनाज़े में शिरकत न करें।
-आपके मसाइल और उनका हल, हिस्सा 3, पेज 132
खुदकशी करने वाले की नमाज-ए-जनाज़ा पढ़ें या नहीं
सवाल :- खुदकशी करने वाले मुसलमान की नमाज़े जनाज़ा पढ़नी जायज़ है या नहीं?
जवाब :- बेशक खुदकुशी गुनाहे कबीरा है मगर शरीअते मुतहिरा ने इसकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ने की इजाजत दी है। अगर कुछ मज़हबी मुक़तदा ज्जरन लोगों की इब्रत के लिए नमाज़े जनाज़ा में शिरकत न करें तो उसकी गुंजाइश है मगर अवाम पर जरूरी है कि नमाज़े जनाज़ा पढ़ें, नमाज़े जनाजा पढ़े वगेर दफन न करें।
हदीस में है कि मुसलमान की नमाज़े जनाज़ा तुम पर लाज़िम है, वह नेक कहो या बद।
दुर्रे मुख्तार में है
तर्जमा :- जो आदमी खुद को अमदन कत्ल करे तो उसको गुस्ल दिया जाये और उसकी नमाज़े जनाज़ा भी पढ़ी जाये। इसी पर फ़तवा है।
-शामी, हिस्सा 1, पेज 815, फ़ताबा रहीमीया, हिस्सा 1, पेज 367
जुमे के दिन मरना
- जुमे के दिन इंतिक़ाल होने की फ़ज़ीलत
सवाल :- जुमे के दिन मौत की फ़ज़ीलत वारिद हुई है, यह फ़ज़ीलत कब से है और कहाँ तक है?
जवाब :- हदीस शरीफ़ से साबित है कि जुमे के दिन या जुमे की रात को बफ़ात पाने वाला मुसलमान मुनकर व नकीर के सवाल व जवाब से महफूज़ रहता है।
हज़रत अबदुल्लाह बिन उमर रज़ि० से रवायत है कि रसूल सल्ल० ने फ़रमायाः
तर्जमा :- जो मुसलमान जुमा के दिन या रात में मरता है अल्लाह तआला उस को कब्र के फ़ितने (यानी सवाल व जवाब या अज़ाबे कुब्र) से बचाव लेते हैं (मुहम्मद अमीन)
जुमे के दिन मरना – Web Story
मरते वक्त ये नहीं करे
- मौत के वक्त मरीज़ के क़रीब जाकर मत कहो कि मुझे पहचानते हो कि नहीं
अगर मरीज एक दफा कलिमा पढ़ से तो उसके साथ बार-बार बातें त करो और उसका आखिरी कलाम कलिमा ही रहने दें। ऐसा न हो कि बहन आकर कहे, मुझे पहचान रहे हो, मैं कौन हूं? उस वक्त उससे अपनी पहचान मत करवाएं और ख़ामोश रहें हैं ताकि उसका पढ़ा हुआ कलिमा अल्लाह तआला के यहां क़बूल हो जाए ये चीजें साहिबे दिल लोगों के पास बैठकर समझ में आती हैं वरना असर रिश्तेदार उस पर जुल्म करते हैं और उसे उस वक्त कलिमे से महरूम कर देते हैं। अल्लाह करे कि मौत के वक़्त कोई साहिबे दिल पास हो जो बन्दे को उस वक्त कलिमा पढ़ने की तल्क्रीन कर दे। आमीन!
Doctor मौत के वक्त नशे का इंजक्शन न दे
जब आप देखें कि किसी की मौत का वक़्त क़ीब है तो उसे डॉक्टरों से बचाएं। अल्लाह उन डॉक्टरों को हिदायत दे कि वे मौत की अलामात ज़ाहिर होने के बाद भी उसे नशे का टीका लगा देते हैं। नशे का टीका लगने की व जह से उस बेचारे को कलिमा पढ़ने की तौफीक ही नहीं मिलती और वह इसी तरह दुनिया से चला जाता है। इसलिए जब पता चल जाए कि अब गीत का वक्त करीब है तो डॉक्टर को डांट कर कहें कि ख़बरदार इसे नशे का इंजेक्शन मत लगाना, क्योंकि हम मुसलमान हैं और मोमिन मरने के लिए हर वक़्त तैयार होता है उससे कह दें कि जनाब! आप अपनी तरफ से इसका इलाज कर चुके हैं, अब चूंकि मौत की अलामत ज़ाहिर हो रही हैं इसलिए इसे अल्लाह के हुज़ूर में पहुंचने के लिए तैयारी करने दें और इसे होश में रहने दें ताकि आखिरी वक्त में कलिमा पढ़ कर दुनिया से रुख्सत हो।
जो लोगो से उधर ले उसका जनाज़ा की नमाज़
- मक़रूज़ की नमाज़े-जनाज़ा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नहीं पढ़ाते थे
हदीस पाक में आया है कि हुज़ूर पाक सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ऐसे लोगों की नमाज़े-जनाज़ा नहीं पढ़ाते थे जिनके ऊपर दूसरों का हक होता। इसलिए नमाज़ से पहले हुजूर सल्ल० मालूम कर लिया करते थे कि इस पर किसी का हक तो नहीं इसी वजह से एक बार एक सहावा का जनाज़ा पढ़ाने से इनकार कर दिया मगर हज़रत अबू क्रतादा अंसारी रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनके क़र्ज़ की अदायगी की ज़िम्मेदारी ली उसके बाद आप सल्ल० ने नमाज़े जनाज़ा अदा की।
हज़रत अबू क़तादा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास एक आदमी का जनाजा लाया गया ताकि आप सल्ल० उसकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ा दें तो आप सल्ल० ने फ़रमाया कि तुम अपने साथी की नमाज़े जनाज़ा पढ़ लो क्योंकि उनके जिम्मे क़र्ज़ है तो हज़रत अबू क़तादा रज़ि० ने कहा कि इसकी अदायगी मेरे ज़िम्मे है, तो आप सल्ल० ने फ़रमाया, पूरा करोगे? तो उन्होंने कहा, जी हाँ मैं अदा करूंगा।
फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उन सहाबी की नमाज़े जनाज़ा -नसाई शरीफ, पेज 315 पढ़ा दी। नोट:- जब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर फ़तूहात हुई तो
मक़रूज़ के क़र्ज़ का जिम्मा खुद ले लेते थे और जनाजे की नमाज़ पढ़ाते थे ।
– आपके मसाइल और उनका हल, हिस्सा 3, पेज 131,
रहमतुल- लिलू-आलमीन, हिस्सा 1, पेज 266
मय्यत पर रोने वाली को अज़ाब
नौहा करने वाली ने अगर अपनी मौत से पहले तौबा न की, तो उसे क़ियामत के दिन गंधक का कुर्ता और खुजली का दुपट्टा पहनाया जाएगा। मुसलिम में भी यह हदीस है और रिवायत है कि यह जन्नत – दोज़ख़ के दर्मियान खड़ी की जाएगी, गंधक का कुर्ता होगा और मुँह पर आग खेल रही होगी।
-तफ्सीर इब्ने कसीर, हिस्सा 3, पेज 85
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