Malla बोला तुम्हारी पूरी zindagi बरबाद हुई। Duniya की पूरी zindagi लगा दी। नफ़्स की हर ख़्वाहिश पूरी नहीं हो सकती। Kabar की ज़मीन भी मँहगी क्यों होगी ? | जनाब लफ्ज़ गाली होती थी – Dawat~e~Tabligh in Hindi…

Malla बोला तुम्हारी पूरी zindagi बरबाद हुई
- मल्लाह बोला मैंने तो अपनी आधी उम्र खोई मगर तुमने तो अपनी पूरी उम्र डुबोई
एक बार चन्द तलबा तफ़रीह के लिए एक कश्ती पर सवार हुए। तबीयत मौज पर थी, वक़्त सुहाना था। हवा निशात अंगेज़ और कैफ आवर थी और काम कुछ था यह नौ उम्र तलवा खामोश कैसे बैठ सकते थे। जाहिल मल्लाह दिलचस्पी का अच्छा जरिया और फ़िक्ररेबाजी, मज़ाक़ व तफ़रीह तवा के लिए बेहद मौजूं था। चुनांचे एक तेज तर्रार साहबजादे ने उससे मुखातिब होकर कहा,
“चचा मियां! आपने कौन-से उलूम पढ़े हैं।” मल्लाह ने जवाब दिया, “नियां में कुछ पढ़ा-लिखा नहीं हूँ” साहबजादे ने ठंडी सांस भरकर कहा, “अरे आपने साइंस नहीं पढ़ी ?” मल्लाह ने कहा, “मैंने तो उसका नाम भी नहीं सुना।” दूसरे साहबज़ादे बोले, “ज्योमेट्री और अलजेबरा तो आप ज़रूर जानते होंगे?”
अब तीसरे साहबजादे ने शोशा छोड़ा, “मगर आपने जोगराक्रिया और हिस्ट्री तो पढ़ी ही होगी?” मल्लाह ने जवाब दिया, “सरकार यह शहर के नाम हैं या आदमी के? मल्लाह के इस जवाब पर लड़के अपने हंसी न ज़ब्त कर सके और उन्होंने कहकहा लगाया। फिर उन्होंने पूछा, “चचा मियां तुम्हारी उम्र क्या होगी ?” मल्लाह ने बताया “यही कोई चालीस साल ।” लड़कों ने कहा “आपने अपनी आधी उम्र बर्बाद की और कुछ पढ़ा-लिखा नहीं।”
मल्लाह बेचारा ख़फ़ीफ़ होकर रह गया और चुप साध ली। क़ुदरत का तमाशा देखिए कि कश्ती कुछ ही दूर गई थी कि दरिया में तूफ़ान आ गया। मौजें मुंह फैलाए हुए बढ़ रही थीं और कश्ती हिचकोले ले रही थी। मालूम होता था कि अब डूबी तब डूबी दरिया के सफ़र का लड़कों को पहला तजुव था। उनके औसान ख़ता हो गए, चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं, अब जाहिल मल्लाह की बारी आई, उसने बड़ी संजीदगी से मुंह बनाकर पूछा, “भय्या तुमने कौन-कौन-से इल्म पढ़े हैं?” लड़के उस भोले-भाले मल्लाह का मक्सद न समझ सके और कॉलिज या मदरसे में पढ़े हुए उलूम की लम्बी फरिस्त गिनवानी शुरू कर दी, और जब वे ये भारी भरकम मरऊवकुन नाम गिना चुके तो उसने मुस्कुराते हुए पूछा, “ठीक है, यह सब तो पड़ा लेकिन क्या तैराकी भी सीखी है? अगर ख़ुदा न खास्ता कश्ती उलट जाए तो किनारे कैसे पहुंच सकोगे लड़कों में कोई भी तैरना नहीं जानता था। उन्होंने बहुत अफ़सोस के साथ जवाब दिया, “चचा जान यही एक इल्म हमसे रह गया है, हम इसे नहीं सीख सके।”
लड़कों का जवाब सुनकर मल्लाह ज़ोर से हंसा और कहा, “मियां मैंने तो अपनी आधी उम्र खोई मगर तुमने तो आज पूरी उम्र डुबोई, इसलिए कि इस तूफ़ान में तुम्हारा पढ़ा-लिखा होना काम न आएगा, आज तैराकी तुम्हारी जान बचा सकती है और वह तुम जानते ही नहीं।”
आज भी दुनिया के बड़े-बड़े तरक्कीयाफ्ता मुल्कों में जो बज़ाहिर दुनिया की क़िस्मत के मालिक बने हुए हैं, सूरतेहाल यही है कि जिंदगी का सफ़ीना गरदाब में है, दरिया की मौजें खूंखार नहंगों की तरह मुंह फैलाए हुए बढ़ रही हैं साहिल दूर है और ख़तरा क़रीब लेकिन कश्ती के मुअजिज और सायक सवारों को सब कुछ आता है मगर मल्लाही का फन और तैराकी का इल्म नहीं आता दूसरे अलफाज़ में उन्होंने सब कुछ सीखा है, लेकिन भले, शरीफ, ख़ुदाशनासी और इंसानियत-दोस्त इंसानों की तरह ज़िंदगी गुज़ारने का फ़न नहीं सीखा। इक़बाल ने अपने अशआर में इस नाजुक सूरते हाल और इस अजीब व ग़रीब तज़ाद की तसवीर खींची है, जिसका इस बीसवीं सदी का मज़हब और तालीमयाफ़्ता फ़र्द बल्कि मुआशिरा का मुआशिरा शिकार है :
ढूंढने वाला सितारों की गुजरगाहों का अपने अफ़कार की दुनिया में सफ़र कर न सका अपनी हिक्मत के ख़मो पेच में उलझा ऐसा आज तक फ़ैसलए नफ़ा व ज़रर कर न सका जिसने सूरज की शुआओं को गिरफ़्तार किया जिंदगी की शबे तारीक सहर कर न सका।
– तोहफ़ए कश्मीर, पेज 101
नफ़्स की हर ख़्वाहिश पूरी नहीं हो सकती
एक बादशाह के यहां बेटा नहीं था। उन्होंने अपने वज़ीर से कहा, “भाई! कभी अपने बेटे को ले आना।” अगले दिन वज़ीर अपने बेटे को लेकर आया। बादशाह ने उसे देखा और प्यार करने लगा। बादशाह ने कहा, “अच्छा, इस बच्चे को आज के बाद रोने न देना।” उसने कहा, “बादशाह सलामत! इसकी हर बात कैसे पूरी की जाए।” बादशाह ने कहा, “इसमें कौन-सी बात है, मैं सबसे कह देता हूं कि बच्चे को जिस चीज़ की ज़रूरत हो उसे पूरा कर दिया जाए और उसे रोने न दिया जाए।” वज़ीर ने कहा, “ठीक है, अब आप इस बच्चे से पूछें क्या चाहता है?” चुनांचे बादशाह ने बच्चे से पूछा, तुम क्या चाहते हो? उसने कहा, हाथी । बादशाह ने कहा कि यह तो बड़ी आसान फ़रमाइश है। चुनांचे उसने एक आदमी को हुक्म दिया कि एक हाथी लाकर बच्चे को दिखा दो।
वह हाथी लेकर आया। बच्चा थोड़ी देर तो खेलता रहा लेकिन बाद में फिर रोना शुरू कर दिया। बादशाह ने पूछा, अब क्यों रो रहे हो? उसने कहा, एक सूई चाहिए। बादशाह ने कहा यह तो कोई ऐसी बात नहीं। चुनांचे एक सूई मंगवाई गई। उसने सूई के साथ खेलना शुरू कर दिया। थोड़ी देर के बाद उस बच्चे ने फिर रोना शुरू कर दिया। बादशाह ने कहा, अरे अब तू क्यों रो रहा है? वह कहने लगा, इस हाथी को सूई के सुराख में से गुजारें यह बिलकुल नामुमकिन था। लिहाजा बच्चे की यह ख़्वाहिश पूरी नहीं की जा सकती। इसी तरह नफ़्स की भी हर ख़्वाहिश पूरी नहीं की जा सकती। लिहाज़ा सवाल पैदा होता है कि उसका कोई इलाज होना चाहिए। उसका इलाज यह है कि उसकी इस्लाह हो जाए।
Duniya की पूरी zindagi लगा दी
- एक निराला सूरज गुरूब हुआ तो उसकी रौशनी कुछ और फैल गई
जिहाद के लिए तो हज़रत हर साल ही जाते । 181 हि० में जिहाद से वापस आ रहे थे। मौसिल के क़रीब हैअत नामी बस्ती में पहुंचे तो तबीयत बिगड़ गई। आप समझ गए कि अब आखिरी वक्त है। फ़रमाया :
“मुझे फ़र्श से उठाकर ज़मीन पर डाल दो।”
नज़र रह० ने आपको जमीन पर डाल तो दिया, लेकिन मेहरबान आका की यह हालत देखकर बेइख़्तियार रोने लगे। हज़रत ने पूछा, रोते क्यों हो? नज़र रह० ने कहा, “हज़रत! एक वह जमाना था कि दौलत की रेल-पेल थी, शान व शौकत थी और जाह व जलाल की ज़िंदगी थी। और एक यह वक्त है कि आप मुसाफ़िरत में हैं। अज़ीज़ व अकारिव दूर हैं, गरीबी की जिंदगी है। बेबसी है, और फिर आप खाक पर पड़े हुए हैं, यह सब देखकर मेरा दिल भर आया और वेइख़्तियार मेरी आंखों से आंसू जारी हो गए।”
हज़रत अब्दुल्लाह ने फ़रमाया : “नज़र! रंज की कोई बात नहीं। मैंने हमेशा ख़ुदा से यही दुआ की कि ख़ुदाया मेरी जिंदगी मालदारों की-सी हो ! कि किसी के सामने हाथ न फैलाऊं और तेरी राह में खुले दिल से दौलत लुटाऊं और मेरी मौत ग़रीबों और खाकसारों की-सी हो कि तेरी खिदमत में ग़रीब और बेबस बनकर पहुंचूं कि तुझे रहम आए। ख़ुदा का शुक्र है कि मेरी दुआ क़बूल हुई।”
रमज़ान का मुबारक महीना था कि इब्ने मुबारक रह० ईमान व अमल का तोहफ़ा लिए अपने रब के हुज़ूर पहुंचे और वह सूरज हमेशा के लिए गुरूव हो गया जिसने 63 साल तक मिस्र, शाम, कृफा, बसरा, यमन और हिजाज को अपनी इल्मी रौशनी से चगमगाया। मगर यह एक निराला ही सूरज था। गुरुब हुआ तो उसकी रौशनी कुछ और फैल गई। आज तक सारी दुनिया उसकी रौशनी से जगमगा रही है। और जब तक ख़ुदा चाहेगा जगमगाती रहेगी। अल्लाह की हजार-हज़ार नेमतें उन पर ख़ुदा तौफ़ीक़ दे कि हम भी उनकी फैलाई हुई रौशनी में चलें ।
जनाब लफ्ज़ गाली होती थी
- लफ्ज़ ‘जनाब’ किसी ज़माने में गाली होती थी
उर्दू जवान के कुछ अल्फाज़ ऐसे हैं कि उनका हर-हर हाफ बड़ा बामानी हर्फ़ T होता है। मिसाल के तौर पर एक जगह पर कुछ अंग्रेजी लोग थे वे दीनी तलबा को बहुत तंग करते थे। वे अरबी मदारिस के तलबा को कभी कुरबानी का मेंढा कहने, कभी कुछ कहते, कभी कुछ कहते एक दिन ये सब तलबा मिल-बैठे और कहने लगे कि अंग्रेज़ी-ख्वां लोगों के लिए कोई ऐसा लफ़्ज़ बनाएं जिसमें उनकी सारी सिफ़ात आ जाएं। उन्होंने एक-दूसरे से कहा कि उनमें होता क्या है। एक ने कहा कि इनमें बड़ी जिहालत होती है। दूसरे ने कहा कि ये लोग बड़े नालायक होते हैं। तीसरे ने कहा कि ये बड़े अहमक होते हैं। चौथे ने कहा कि वे तो बड़े बेवकूफ होते हैं। इसके बाद उन्होंने कहा कि ये सब बातें ठीक हैं, हम इन चारों अल्फ़ाज़ के पहले हर्फ़ को लेकर एक लफ़्ज़ बनाते हैं।
चुनांचे उन्होंने एक लफ़्ज़ बनाया ‘जनाव’ जीम से जाहिल, नून से नालायक, अलिफ़ से अहमक़, वे से बेवकूफ़ उसके बाद उन्होंने हर अंग्रेज़ी- ख्वा को जनाब कहना शुरू कर दिया। यह लफ़्ज़ ऐसा मशहूर हुआ कि आज किसी को पता ही नहीं कि यह बना कैसे था सब एक-दूसरे को जनाब कहते फिरते हैं। आज उर्फ आम में जनाब बमानी बारगाह है जैसा कि हज़रत बमानी बारगाह है। जनाब और हज़रत ये दोनों अल्फ़ाज़ एज़ाज़ी बन गए हैं। अल्लाह का शुक्र है कि आजकल अंग्रेजी पढ़े-लिखे भी खूब दीनदारी में आगे बढ़ रहे हैं।
(खुतबात फ़क़ीर, जिल्द 9, पेज 19)
Kabar की ज़मीन भी मँहगी क्यों होगी ?
- एक ज़माना आएगा कि कब्र की ज़मीन भी मँहगी हो जाएगी
अबूजर रजि० फरमाते हैं कि एक मर्तबा रसूलुल्लाह सल्ल० गधे पर सवार हुए और मुझे अपने पीछे विठा लिया। फिर फ़रमाया
(1) “अगर किसी जमाने में लोग भूख की शिद्दत में मुब्तला हों, ऐसी भूख कि उसकी वजह से तुम अपने बिस्तर से उठकर नमाज़ की जगह भी न आ सको तो बताओ उस वक़्त तुम क्या करोगे।” उन्होंने अर्ज़ किया कि यह तो ख़ुदा तआला और उसका रसूल सल्ल० ही ज़्यादा जान सकते हैं। फ़रमाया, “देखो उस वक़्त भी किसी से सवाल न करना।”
(2) अच्छा अबू ज़र बताओ अगर लोगों में मौत की एक गर्म बाज़ारी हो जाए कि एक कब्र की कीमत एक गुलाम के बराबर जा पहुंचे, भला ऐसे ज़माने में तुम क्या करोगे?” वह बोले कि इसको तो अल्लाह तआला और उसका रसूल सल्ल० ही ज़्यादा जानते हैं। फ़रमाया, “देखो, सब्र करना।” उसके बाद आप सल्ल० ने फ़रमाया
(3) “अगर लोगों में ऐसा क़त्ल व क़िताल हो कि खून हिजारजैत तक बह जाए, भला उस वक़्त तुम क्या करोगे?” उन्होंने अर्ज़ किया यह बात तो अल्लाह तआला और उसका रसूल सल्ल० ही ज़्यादा जानते हैं। फ़रमाया, “बस अपने घर में घुसे रहना और अंदर से अपना दरवाज़ा बन्द कर लेना।” उन्होंने अर्ज किया, अगर इस पर छूट न सकूं फरमाया कि “फिर जिस कबीले में के हों, वहां चले जाना।” उन्होंने अर्ज़ किया। अगर मैं भी अपने हथियार संभाल लूं फ़रमाया, “तो तुम भी फ़ितने में उनके शरीक समझ जाओगे। इसलिए शिरकत हरगिज़ न करना और अगर तुमको डर हो कि तलवार की चमक तुमको ख़ौफ़ज़दा कर ढेगी तो अपनी चादर का पल्ला अपने मुंह पर डाल लेना और क़त्ल होना गवारा कर लेना, तुम्हारे और क़ातिल के गुनाह सब के सब क़ातिल ही के सर पड़ जाएंगे ” (इब्ने हिब्बान, तर्जुमानुस्सुन्नह, जिल्द 4, पेज 274)
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