मख़्सूस आमाल जो मख़्सूस मुसीबतों से नजात दिला देते हैं। इसमें उन मख़्सूस आमाल का ज़िक्र है जो मख़्सूस मुसीबतों से नजात दिलवाने वाले हैं। ख़ुदा की क़ुदरत Web Stories|कर्म जो मुसिबत से बचा लेते हैं – Dawat-e-Tabligh…

इंसान ki भाव और क़ीमत Kab बढ़ती जाती है ?
ईमान और इस्लाम की ख़ुदा के यहाँ क़द्र है, हर 10 साल पर मोमिने कामिल का भाव और क़ीमत बढ़ती जाती है। और मोमिन का दर्जा ख़ुदा के यहाँ बढ़ता रहता है मुस्नद अहमद और मुस्नद अबू यझूला में हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि बच्चा जब तक बालिग नहीं होता उसके नेक अमल उसके वालिद या वालिदैन के हिसाब में लिखे जाते हैं और जो कोई बुरा अमल करे तो वह न उसके हिसाब में लिखा जाता है, न वालिदैन के।
फिर जब वह बालिग हो जाता है तो कलमे हिसाब उसके लिए जारी हो जाता है और दो फ़रिश्ते जो उसके साथ रहने वाले हैं उनको हुक्म दिया जाता है कि उसकी हिफ़ाज़त करें और कुव्वत बहम पहुंचायें, जब हालते इस्लाम में चालीस साल की उम्र को पहुंच जाता है तो अल्लाह तआला उसको (तीन क़िस्म की बीमारियों से) महफूज़ कर देते हैं। जुनून, जजाम और बर्स से, जब पचास साल को उम्र को पहुंचता है तो अल्लाह तआला उसका हिसाब हल्का कर देते हैं, जब साठ साल को पहुंचता है तो अल्लाह तआला उसको अपनी तरफ़ रुजूअ की तौफ़ीक़ दे देते हैं।
जब सत्तर साल को पहुचंता है तो सब आसमान वाले उससे मोहब्बत करने लगते हैं और जब अस्सी साल को पहुंचता है तो अल्लाह तआला उसके हसनात का लिखते हैं और सव्यिआत कों मआफ़ फ़रमा देते हैं।फिर जब नव्वे साल की उम्र हो जाती है तो अल्लाह तआला उसके सब अगले पिछले गुनाह मआफ़ फ़रमा देते हैं,
और उसको अपने घर वालों के मामले में शफ़ाअत करने का हक़ देते हैं और उसकी शफाअत क़बूल फ़रमाते हैं और उसका लकब अमीनुल्लाह और असीरुल्लाह फ़िल् अर्जे (यानी ज़मीन में अल्लाह का क़ैदी) हो जाता है। (क्योंकि इस उम्र में पहुंचकर अक्सर इंसान की कुव्वत ख़त्म हो जाती है, किसी चीज़ में लज़्ज़त नहीं रहती, क़ैदी की तरह उम्र गुज़ारता है और जब अरज़ल उम्र को पहुंचता है तो उसके तमाम वह नेक अमल नाम-ए-आमाल में बराबर लिखे जाते हैं जो अपनी सेहत व क़व्वत के ज़माने में किया करता था और अगर उससे कोई गुनाह हो जाता है तो वह लिखा नहीं जाता।
– तफ्सीर इब्ने कसीर, हिस्ता 3, पेज 409-410, मआरिफुल कुरआन, हिस्सा 1, पेज 230
इंसान ki भाव और क़ीमत Kab बढ़ती जाती है ? Web Stories
ख़ुदा की क़ुदरत
इब्ने अबी हातिम की मरफ़ूअ हदीस में है कि मुझे इजाजत दी गई है। कि मैं तुम्हें अर्श के उठाने वाले फ़रिश्तों में से एक फ़रिश्ते की निस्बत ख़बर दूँ कि उसकी गर्दन और कान के नीचे की लौ के दर्मियान इतना फ़ासला है कि उड़ने वाला परिंदा सात सौ साल तक उड़ता चला जाये, इसकी इसनाद बहुत उम्दा हैं और इसके सब रावी सक्कहू हैं।
– तफ्सीर इब्ने कसीर, हिस्सा 5, पेज 420
लोगो से अच्छा Bartab
- हुज़ूरे अकरम सल्ल० का अपने साथियों के साथ मामला
हज़रत जरीर बिन अब्दुल्लाह बजली रज़ियल्लाहु अन्हु हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए। हुज़ूर सल्ल० एक घर में थे जो सहाब-ए-किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम से भरा हुआ था। हज़रत जरीर दरवाज़े पर खड़े हो गये। उन्हें देखकर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दाएँ-बाएँ जानिब देखा। आपको बैठने की कोई जगह नज़र न आई। हुजूर सल्ल० ने अपनी चादर उठाई उसे लपेट कर हज़रत जरीर रज़ियल्लाहु अन्हु की तरफ़ फेंक दिया और फ़रमाया, इस पर बैठ जाओ । हज़रत जरीर रज़ियल्लाहु अन्हु ने चादर लेकर अपने सीने से लगा ली और उसे चूमकर हुज़ूर सल्ल० की खिदमत में वापस कर दिया और अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह ! अल्लाह आप सल्ल० का ऐसे इक्राम फ़रमाये जैसे आप सल्ल० ने मेरा इक्राम फ़रमाया। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, जब तुम्हारे पास किसी क़ौम का क़ाबिले एहतिराम आदमी आये तो “तुम उसका इकराम करो।-हयातुस्सहावा, हिस्सा 2, पेज 563
कर्म जो मुसिबत से बचा लेते हैं
- मख़्सूस आमाल जो मख़्सूस मुसीबतों से नजात दिला देते हैं
अबू अब्दुल्लाह हकीम तिर्मिज़ी रहमतुल्लाहि अलैहि ने अपनी किताब नवादिरुल उसूल में यह बात ज़िक्र की है कि सहाबा की जमाअत के पास आकर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मदीने की मस्जिद में फ़रमाया कि पिछली रात मैंने अजीब बातें देखीं, देखा कि मेरे एक उम्मती को अज़ाबे क़ब्र ने घेर रखा है, आखिर उसके वुज़ू ने आकर उसे छुड़ा लिया, मैंने एक उम्मती को देखा कि शैतान उसे वहशी बनाये हुए है लेकिन अल्लाह के ज़िक्र ने आकर उसे छुटकारा दिलाया, एक उम्मती को देखा कि अज़ाब के फ़रिश्तों ने उसे घेर रखा है, उसकी नमाज़ ने आकर उसे बचा लिया, एक उम्मती को देखा कि प्यास के मारे हलाक हो रहा है जब हौज़ पर जाता है धक्के लगते हैं उसका रोज़ा आया और उसने उसे पानी पिला दिया और आसूदा कर दिया। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक और उम्मती को देखा कि अम्बिया हलके बांध-बांधकर बैठे हैं, यह जिस हलके में बैठना चाहता है वहां वाले उसे उठा देते हैं, उसी वक़्त उसका गुस्ले जनाबत आया और उसका हाथ पकड़कर मेरे पास बिठाया, एक उम्मती को देखा कि चारों तरफ़ से उसे अंधेरा घेरे हुए है और ऊपर नीचे से भी वह उसमें घिरा हुआ है कि उसका हज और उमरा आया और उसे अंधेरे में से निकालकर नूर में पहुंचा दिया।
एक उम्मत को देखा कि वह मोमिनों से कलाम करना चाहता है लेकिन वे उससे बोलते नहीं, उसी वक्त सिल-ए-रहमी आई और एलान किया कि इससे बातचीत करो, चुनांचे वह बातचीत करने लगे। एक उम्मती को देखा कि वह अपने मुँह पर से आग के शोले हटाने के लिए हाथ बढ़ा रहा है, इतने में उसकी ख़ैरात आई और उसके मुँह पर पर्दा और ओट हो गई और उसके सर पर साया बन गई। अपने एक उम्मती को देखा कि अज़ाब के फ़रिश्तों ने उसे हर तरफ़ से क़ैद कर लिया है, लेकिन उसका नेकी का हुक्म और बुराई से मना करना आया और उनके हाथों से उसे छुड़ाकर रहमत के फ़रिश्तों से मिला दिया। अपने एक उम्मती को देखा कि घुटनों के बल गिरा हुआ है और ख़ुदा में और उसमें हिजाब है। उसके अच्छे अखलाक आये और उसका हाथ पकड़कर अल्लाह के पास पहुंचा आए। अपने एक उम्मती को देखा कि उसका नाम-ए-आमाल उसके बाँए तरफ़ से आ रहा है लेकिन उसके ख़ौफ़े ख़ुदा ने आकर उसे उसके सामने कर दिया, अपने एक उम्मती को मैंने जहन्नम के किनारे खड़ा देखा, उसी वक्त उसका ख़ुदा से कपकपाना आया और उसे जहन्नम से बचा ले गया। मैंने अपने उम्मती को देखा कि उसे औंधा कर दिया गया है कि जहन्नम में डाल दिया जाए, लेकिन उसी वक्त ख़ौफ़े-ख़ुदा से उसका रोना आया और उन आँसुओं ने उसे बचा लिया।
मैंने एक और उम्मती को देखा कि पुल-सिरात पर लुढ़कनियाँ खा रहा है कि उसका मुझ पर दुरूद पढ़ना आया और हाथ थामकर सीधा कर दिया और वह पार उतर गया। एक को देखा कि जन्नत के दरवाज़े पर पहुँचा, लेकिन दरवाजा बन्द हो गया, उसी वक्त ला इला-ह इल्लल्लाह की शहादत पहुंची, दरवाज़े खुलवा दिया और उसे जन्नत में पहुंचा दिया। क्रर्तबी रहमतुल्लाह अलैहि इस हदीस को ज़िक्र करके फ़रमाते हैं कि यह हदीस बहुत बड़ी है, इसमें उन मख़्सूस आमाल का ज़िक्र है जो मख़्सूस मुसीबतों से नजात दिलवाने वाले हैं।
-तफ्सीर इब्ने कसीर, हिस्सा 3, पेज 71-72
दुनिया में इंसान, जांवर, बाकी baki chije कब paida हुई ?
कौन-सी मख़्लूक़ किस दिन पैदा की गईसही मुस्लिम और नसाई में हदीस है। हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मेरा हाथ पकड़ा और फ़रमाया, मिट्टी को अल्लाह तआला ने हफ्ते वाले दिन पैदा किया और पहाड़ों को इतवार के दिन और दरख्तों को पीर के दिन, और बुराइयों को मंगल के दिन और नूर को बुध के दिन और जानवरों को जुमेरात के दिन और आदम अलैहिस्सलाम को जुमे के दिन अम्र के बाद, जुमे की आखिरी घड़ी में अम्र के बाद से रात तक के वक्त में ।
– तफ्सीर इब्ने कसीर, हिस्सा 1, पेज 106