बदन के अंगों की गवाही, कुछ मेरे काम न आया मेरा माल । मुझसे जाती रही, मेरी हुकूमत ।’ इस ख़्याल से मैं डरता रहा और फ़िक्र में घुलता रहा। आज दिल खुश करने वाला नतीजा देख रहा हूं। जुर्म न मानने पर गवाहियां | अच्छे बुरे कर्मो का बदला | Dawat-e-Tabligh

मुशरिकों का इंकार कि हम मुशरिक न थे
सूरः अन्आम में फ़रमाया :
‘और वह वक्त भी याद करने के काबिल है जिस दिन हम इन सब को जमा करेंगे, फिर मुश्रिकों से कहेंगे कि तुम्हारे वे शरीक, जिनके माबूद होने के तुम मुद्दई थे, कहां गये। फिर उनके शिर्क का अंजाम बस यही होगा कि यूँ कहेंगे कि अल्लाह की कसम ! जो हमारा परवरदिगार है, हम मुश्कि न थे।’
इसके बाद फरमाया :
‘ज़रा देखो तो किस तरह झूठ बोला अपनी जानों पर और जिन चीज़ों को वे झूठ-मूठ तराशा करते थे, वे सब गायब हो गयीं।’
इन्कार तो करेंगे मगर इन्कार से निजात कहां मिलेगी । आमालनामों और गवाहों के ज़रिए इल्ज़ाम साबित हो ही जाएगा। जिनकी पूजा करते थे, वे भी इन्कारी होंगे।
सूरः यूनुस में फ़रमाया :
‘और उनके शरीक कहेंगे कि तुम हमारी इबादत नहीं करते थे । सो हमारे तुम्हारे दर्मियान ख़ुदा काफी गवाह है कि हमको तुम्हारी इबादत की ख़बर भी न की।
जुर्म न मानने पर गवाहियां
बदन के अंगों की गवाही
इंसान बड़ा झगड़ालू है और उसकी बहस की तबीयत क़ियामत के दिन भी अपना रंग दिखायेगी और अल्लाह तआला से भी हुज्जत करेगा। उस वक्त गवाहों के जरिए उसकी हुज्जत ख़त्म कर दी जाएगी। खुद इंसान के अंग उसके ख़िलाफ गवाही देंगे। जैसा कि सूरः यासीन में फ़रमाया :
‘आज हम उनके मुंहों पर मुहर लगा देंगे और उनके हाथ हमसे कलाम करेंगे और उनके पांव उन कामों की गवाही देंगे।’ हज़रत अनस ने रिवायत ब्यान फ़रमायी कि (एक बार ) आंहज़रत की ख़िदमत में हम बैठे हुए थे कि उसी बीच अचानक आपको हँसी आ गयी और (हमसे) फ़रमाया, क्या तुम जानते हो मैं क्यों हँस रहा हूं? हमने अर्ज़ किया कि अल्लाह और उसको रसूल ही ख़ूब जानते हैं। फ़रमाया कि (क़ियामत के दिन) बन्दे जो अल्लाह से सवाल व जवाब करेंगे, इस मंज़र को याद करके मुझे हँसी आ गयी। बन्दा कहेगा कि ऐ रब ! क्या आपने मुझे ज़ुल्म से (बचाने का एलान फ़रमाकर) मुत्मईन नहीं फ़रमाया है। अल्लाह तआला फरमाएंगे कि हां, मैंने यह वादा किया है। इसके बाद बन्दा कहेगा कि मैं अपने मामले में किसी की गवाही न मानूंगा। हां, अगर मेरे ही अंदर से कोई गवाही दे दे तो एतबार कर सकता हूं। अल्लाह तआला फरमायेंगे कि आज अपने बारे में तेरा खुद गवाह होना काफी है और लिखने वालों की गवाही भी काफ़ी है। (आंहज़रत सैयदे आलम ने फ़रमाया कि इसके बाद उसके मुंह पर मुहर लगा दी जाएगी (और अल्लाह की तरफ़ से) उसके अंगों को हुक्म होगा कि बोलो। चुनांचे उसके अंग उसके अमल को ज़ाहिर कर देंगे। यह किस्सा देखकर बंदा अपने अंगों से कहेगा कि दूर ! दूर! तुम ही को अज़ाब से बचाने के लिए तो मैं बहस कर रह था। -मुस्लिम शरीफ़
एक हदीस में है कि उसकी रान और गोश्त और हड्डियां उसके अमल की गवाही देंगी।
– मुस्लिम शरीफ़ अन अबी हुरैरः
ज़मीन की गवाही
हज़रत अबू हुरैरः से रिवायत है कि आंहज़रत सैयदे आलम ने इन आयत ‘यौ म इज़िन तुहद्दिसु अख़बारहा’ (उस दिन ज़मीन अपनी ख़बरें ब्यान कर देगी) तिलावत फरमाकर सवाल फरमाया, क्या तुम जानते हो ज़मीन के ख़बर देने का क्या मतलब है? । सहाबा ने अर्ज़ किया कि अल्लाह और उसका रसूल ही ख़ूब जानते हैं। आंहज़रत ने फ़रमाया कि ज़मीन के ख़बर देने का मतलब यह है कि वह मर्द व औरत के ख़िलाफ़ उसके आमाल की गवाही देगी जो उसकी पीठ पर किये थे। वह कहेगी कि (उसने मुझ पर फ़्लां-फ़्लां दिन फ़्लां-फ़्लां अमल किया था। यह है ज़मीन की ख़बर देना ।
-अहमद व तिर्मिज़ी शरीफ
आमालनामे अच्छे बुरे कर्मो का report
क़ियामत के दिन आमालनामे पेश किये जाएंगे। किरामन कातिबीन जो दुनिया में बन्दों के आमाल रिकार्ड करते हैं । आमालनामे की शक्ल में पेश कर दिए जाएंगे। सूरः जासिया में फ़रमाया :
और (उस दिन) आप हर फिर्के को देखेंगे कि (ख़ौफ़ की वजह से ) ज़ानू के बल गिरे पड़े होंगे। हर फिर्का अपने नामा-ए-आमाल की तरफ बुलाया जाएगा (और उनसे कहा जाएगा) कि आज तुमको तुम्हारे कामों का बदला दिया जाएगा। यह हमारा दफ़्तर है जो तुम्हारे मुकाबले में ठीक-ठीक बोल रहा है और हम तुम्हारे आमाल को लिखवा लिया करते थे।’ सूरः बनी इस्राईल में फ़रमाया :
‘और हमने हर इंसान का अमल उसके गले का हार कर रखा है और क़ियामत के दिन हम उसका आमालनामा निकाल कर सामने कर देंगे जिसको वह खुला हुआ देख लेगा ( और उससे कहेंगे) पढ़ ले अपना आमालनामा। आज तू खुद अपना हिसाब लेने वाला काफ़ी है।’
आमालनामों में सब कुछ होगा और मुज्मि डरे हुए हैरत और हसरत करेंगे
आमालनामों में सब कुछ होगा और बदअमल आमालनामों को देख कर डर जाएंगे और जो भी दुनिया में किया था, सब मौजूद पाएंगे। सूरः कहफ में . इर्शाद है :
‘और आमालनामा रख दिया जाएगा तो आप मुज्रिमों को देखेंगे कि उसमें जो कुछ होगा उससे डर रहे होंगे और कहते होंगे कि हाय! हमारी कमबख़्ती इस नामा-ए-आमाल की अजीब हालत है कि बगैर कलमबंद किए हुए उसने न कोई छोटा गुनाह छोड़ा, न कोई बड़ा गुनाह छोड़ा और जो कुछ उन्होंने किया, सब कुछ मौजूद पाएंगे और आपका रव किसी पर जुल्म न करेगा।’
आमालनामों की तकसीम
हर शख़्स का आमालनामा उसके सुपुर्द किया जाएगा जो लोग नेक और निजात पाने वाले होंगे, उनके आमालनामे दाहिने हाथ में दिए जाएंगे और जो लोग बदअमल और दोज़ख़ में गिरने वाले होंगे, उनके आमालनामे बाएं हाथ में और पीठ के पीछे से दिए जाएंगे !
सूरः इन्शिकाक़ में फ़रमाया :
‘ऐ इंसान! अपने रब के पास पहुंचने तक काम में कोशिश कर रहा है। फिर (उस काम के बदले ) से तू मिलेगा सो वह शख़्स जिसका आमालनामा उसके दाहिने हाथ में दे दिया गया सो उससे आसान हिसाब लिया जाएगा और वह (हिसाब से फारिग होकर) अपने मुतअल्लिक लोगों के पास खुश-खुश आएगा और जिस शख़्स का आमालनामा (बायें हाथ में) उसकी पीठ के पीछे से दिया जाएगा सो वह मौत को पुकारेगा और जहन्नम में दाख़िल होगा। दुनिया में उसका यह हाल था कि ( आख़िरत में बेफिक्र होकर) अपने बाल बच्चों में खुश-खुश रहा करता था और यह ख़्याल कर रखा था (उसको खुदा की तरफ) लौटना नहीं है। लौटना क्यों न होता। उसका रब उसको ख़ूब देखता था ।’
कर्मो का report
जो शख़्स दुनिया में खुश-खुश रहा। दुनिया की जिंदगी को असल समझकर उसी में मस्त रहा और आख़िरत की ज़रा फिक्र न की और आख़िरत की बातों को झूठा समझा। क़ियामत के दिन सख़्त मुसीबत और रंज व गम में पड़ा रहेगा। इसके ख़िलाफ़ जो लोग दुनिया में रहते हुए, आख़िरत की फिक्र में घुले जाते थे और मरने के बाद वाली हालत की उन को फिक्र लगी रहती थी, वे क़ियामत के दिन दाहिने हाथ में आमालनामा लेकर खूब खुश होंगे बदअमल यहां खुश हैं और नेक अमल वहां खुश होंगे ।
आमालनामों के मिलने पर नेक बंदों को बेहद खुशी और बुरों का बेहद रंज
सूरः हाक्कुः में इसे और ज़्यादा खोल दिया गया है, चुनांचे इर्शाद है : “उस दिन तुम लोग पेश किये जाओगे और तुम्हारा कोई भेद छिपा न रहेगा।
अच्छे कर्मो का बदला
- इसके बाद दाहिने हाथ में किताब मिलने वालों के लिए फ़रमाया :
‘सो जिनके दाहिने हाथ में किताब दी जाएगी तो ( खुशी में कहेगा लीजियो, पढ़ियो मेरा आमालनामा)। मेरा तो अकीदा ही था कि बेशक मेरा हिसाब मिलना है । सो वह शख़्स बड़ी पसंदीदा जिंदगी में होगा। बुलंद बहिश्त में होगा। जिसके मेवे झुके हुए होंगे और उनसे कहा जाएगा कि खाओ और पियो रचकर । यह बदला है उन (नेक) कामों का जो तुमने पिछले दिनों में पहले से (आगे) भेज दिए थे।’
दाहिने हाथ में आमालनामे का मिलना निजात पाने और मक़बूल होने की निशानी होगी। ऐसा आदमी मारे खुशी के हर एक को दिखाता फिरेगा कि लो ! आओ मेरा आमालनामा पढ़ो और यह भी कहेगा कि मैंने दुनिया में यह समझ रखा था कि हिसाब पेश होना है। इस ख़्याल से मैं डरता रहा और फ़िक्र में घुलता रहा। आज दिल खुश करने वाला नतीजा देख रहा हूं।
बुरे कर्मो का बदला
- इसके बाद बाएं हाथ में किताब मिलने वालों की हालत का इस तरह ज़िक्र फ़रमाया :
‘ और जिसके बाएं हाथ में किताब दी जाएगी, सो वह कहेगा कि काश! मुझे मेरा आमालनामा न मिलता और मुझे ख़बर ही न होती कि मेरा क्या हिसाब है। काश! वही मौत (मेरा) काम तमाम करने वाली होती (और मुझे दोबारा जिंदगी न मिलती)। कुछ मेरे काम न आया मेरा माल । मुझसे जाती रही, मेरी हुकूमत ।’
सूरः इन्शिकाक में फ़रमाया कि पीठ के पीछे से बदअमलों को आमालनामे दिए जाएंगे। दोनों को मिलाने से मालूम होता है कि बाएं हाथ में जिनको आमालनामे दिए जाएंगे, सो पीछे से दिए जाएंगे। गोया फ़रिश्ते उनकी सूरत देखना पसंद न करेंगे और मुम्किन है कि मशकें बंधी हों, इसलिए आमालनामा पीठ की तरफ से बाएं हाथ में देने की नौबत आये।
अमल (karmo) का वज़न
अल्लाह तआला हमेशा से सारी मलूक के अमल को जानता है। अगर क़ियामत के मैदान मे सिर्फ अपनी जानकारियों की बुनियाद पर अमल का बदला व सज़ा दें तो उनको इसका भी हक़ है। लेकिन हश्र के मैदान में ऐसा न किया जाएगा। बल्कि बन्दों के सामने उनके आमालनामे पेश कर दिए जाएंगे। वज़न होगा, गवाहियां होंगी, मुज्रिम इंकारी भी होंगे और दलील से जुर्म भी साबित किया जाएगा ताकि सजा भुगतने वाले यों न कह सकें कि हमपर ज़ुल्म करके बेवजह अज़ाब में डाला गया।
सूरः अन्आम में फ़रमाया :
‘और तौल उस दिन ठीक होगी सो जिन की तौलें भारी पड़ीं, वही लोग बामुराद होंगे और जिनकी तौलें हल्की पड़ीं, सो वही हैं जिन्होंने अपना आप नुकसान किया। इस वजह से कि वे हमारी आयतों का इंकार करते थे।
हज़रत सल्मान से रिवायत है कि आहज़रत सैयदे आलम ने फरमाया कि कियामत के दिन (आमाल तौलने की) तराज़ू रख दी जाएगी (और वह इतनी-ही लम्बी-चौड़ी होगी कि अगर उसमें सारे आसमान व ज़मीन रखकर वज़न किए जाएं तो सब उसमें आ जाएं। उसको देखकर फ़रिश्ते ख़ुदा के दरबार में अर्ज़ करेंगे कि यह किसके लिए तौलेगी। यह सुनकर फरिश्ते अर्ज़ करेंगे कि ऐ अल्लाह ! आप पाक हैं। जैसा इबादत का हक है, हमने ऐसी इबादत आप की नहीं की ।
-अत्तर्गीव वत्तहींब
हमेश की काम्याबी / नाकामी
हज़रत अनस सैयदे आलम से रिवायत करते हैं कि आप ने इर्शाद फ़रमाया (कियामत के दिन) तराज़ू पर एक फ़रिश्ता मुकर्रर होगा। ( अमल का वज़न करने के लिए) इंसान इस तराज़ू के पास लाये जाते रहेंगे। जो आएगा, तराज़ू के दोनों पलड़ों के दर्मियान खड़ा कर दिया जाएगा। पस अगर उसके तौल भारी हुए। तो वह फ़रिश्ता ऐसी बुलंद आवाज़ से पुकार कर एलान करेगा जिसे सारी मख्लूक सुनेगी कि फ़्लां हमेशा के लिए सआदतमंद’ हो गया। अब कभी इसके बाद बदनसीब न होगा और अगर उसके तौल हल्के रहे तो वह फ़रिश्ता ऐसी बुलंद आवाज़ से पुकार कर एलान करेगा, जिसे सारी मख़्तूक सुनेगी कि फ़्लां हमेशा के लिए नामुराद हो गया, अब इसके बाद खुशनसीब न होगा।
-तर्गीय व तहब
अच्छे और बुरे कर्मो का वजना
हज़रत शाह अब्दुल कादिर साहब रहमतुल्लाह अलैहि ‘मौज़िहुल क़ुरआन’ में लिखते हैं कि हर शख्स के अमल वज़न के मुवाफिक लिखे जाते हैं। एक ही काम है। अगर इख़्लास व मुहब्बत से शरई हुक्म के मुवाफिक़ किया गया और सही मौके पर किया गया तो उसका वज़न बढ़ गया और दिखावे को किया या हुक्म के मुवाफिक न किया था ठिकाने पर न किया तो वज़न घटा लिया, आख़िरत में वे काग़ज़ तुलेंगे, जिसके नेक काम भारी हुए तो बुराइयों से माफी मिली और (जिसके नेक काम) हल्के हुए तो पकड़ा गया।
कर्मो के Report का वजन कैसे तुलेंगे ?
कुछ उलमा का कहना है कि कियामत के दिन आमाल को जिस्म देकर हाज़िर किया जाएगा और ये जिस्म तुलेंगे और इन जिस्मों के वज़नों के हल्का या भारी होने पर फैसले होंगे। काग़ज़ों का तुलना या आमाल को जिस्म देकर तौला जाना भी नामुम्किन नहीं है और आमाल को बग़ैर वजन दिए यूँ ही तौल देना भी कादिरे मुत्लक की क़ुदरत से बाहर नहीं है। आज जब कि साइंस का दौर है। आमाल को तौल में आ जाना बिल्कुल समझ में आ जाता है ये आजिज़ बन्दे, जिनको अल्लाह जल्ल जलालुहू व अम्म म नवालुहू ने थोड़ी-सी समझ दी है, धर्मामीटर के ज़रिए जिस्म की गर्मी की मिक़दार बता देते हैं और इसी तरह के बहुत-से आले (यंत्र) हैं जो जिस्मों के अलावा दूसरी चीज़ों की मिकदार मालूम करने के लिए बनाए गए हैं तो उस एक खुदा की क़ुदरत से यह कैसे बाहर माना जाए कि अमल तौल में न आ सकेंगे। अगर किसी को यह शुब्हा हो कि अमल तो महसूस होने वाला वुजूद नहीं रखते और वुजूद में आने के साथ ही फ़िना होते रहते हैं फिर उनका आख़िरत में जमा होना और तौला जाना क्या मानी रखता है? तो इसका जवाब यह है कि जिस तरह तक़रीरों को रिकार्ड कर लिया जाता है तो वह रेडियो स्टेशन से फैलायी जाती रहती हैं। हालांकि बंद कमरे में जब मुकुर्रिर (वक्ता) तक़रीर करता है तो एक दम आन की आन में सब नहीं कह देता, बल्कि एक-एक हर्फ़ अदा होता है, इसके बावजूद भी सारी तक़ीर महफ़ूज़ (सुरक्षित) हो जाती है। तो जबकि अल्लाह जल्ल ल जलालुहू ने अपने बन्दों को लफ़्ज़ों और बातों की पकड़ में लाकर इकट्ठा करने और रिकार्ड में लाने की ताक़त दी है तो वह खुद इसकी क़ुदरत क्यों न रखेगा कि अपनी मख़्लूक के अमल व हरकत का पूरा रिकार्ड तैयार रखे जिसमें से एक ज़र्रा और शूशा भी गायब न हो और महसूस तौर पर क़ियामत के दिन उनका वज़न सबके सामने ज़ाहिर हो जाए।
एक बंदे के Karmo अमल का वज़न
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रिवायत फ़रमाते हैं कि आंहज़रत सैयदे आलम ने इर्शाद फरमाया कि बिलाशुव्हा क़ियामत के दिन सारी मख़्लूक के सामने अल्लाह तआला मेरे एक उम्मती को (पूरे मज्मे से) अलग करके उसके समाने निन्नानवे दफ्तर खोल देंगे। हर दफ्तर वहां तक होगा जहां तक निगाह पहुंचे। (इन दफ्तरों में सिर्फ गुनाह होंगे) इसके बाद अल्लाह जल्ल ल शानुहू उनसे सवाल फ़रमायेंगे कि क्या तू इन आमालनामों में से किसी चीज़ का इंकार करता है? क्या मेरे (मुकर्रर किए हुए) लिखने वालों ने तुझ पर कोई ज़ुल्म किया है (कि कोई गुनाह किए बगैर लिख लिया हो या करने से ज्यादा लिख दिए हों)? वह अर्ज करेगा कि ऐ परवरदिगार! नहीं !! ( न इंकार है, न ज़ुल्म का दावा है) इसके बाद अल्लाह जल्ल ल शानुहू सवाल फरमायेंगे कि क्या तेरे पास इन बदआमालियों का कोई उन है? वह अर्ज़ करेगा कि ऐ परवरदिगार ! मेरे पास कोई उज्ज नहीं !
इसके बाद अल्लाह का इर्शाद होगा कि हां बेशक तेरी एक नेकी हमारे पास महफ़ूज़ है (वह भी तेरे सामने आती हैं) इसके बाद एक पुर्जा निकाला जाएगा जिसमें लिखा होगा और उस बन्दे से फ़रमाया जाएगा कि जा ! अपने आमाल का वज़न होता देख ले। वह बन्दा अर्ज़ करेगा कि ऐ मेरे रब! (तौलना-न-तौलना बराबर है। मेरी हलाकत ज़ाहिर है, क्योंकि इन दफ्तरों की मौजूदगी में इस पुर्जे की क्या हकीकत है? अल्लाह जल्ल ल शानुहू फरमायेंगे कि यकीन जान। तुझ पर आज ज़ुल्म न होगा (तौलना ज़रूरी है)। चुनांचे वह सारे दफ़्तर (इंसाफ की तराज़ू के एक पलड़े में और वह पुर्जा दूसरे पलड़े में रख दिया जाएगा और (नतीजे के तौर पर) वे दफ़्तर हल्के रह जाएंगे और वह पुर्जा (इन सब दफ़्तरों से) भारी निकलेगा, इसके बाद सैयदे आलम ने फरमाया कि बात (असल यह है कि) अल्लाह के नाम की मौजूदगी मे कोई चीज़ वज़नी न हो सकेगी।
– तिर्मिज़ी, इब्ने माजा
Allah का नाम लेना
यह इख्लास और दिल में अल्लाह का डर और अल्लाह तआला से मुहब्बत व तअल्लुक के साथ पढ़ने की बरकत है। अल्लाह का नाम लेना भी उसी वक्त नेकी बनता है जबकि खुलूस के साथ पढ़ा जाए। यूँ काफ़िर भी कभी-कभी कलिमा पढ़ देते हैं लेकिन उनका यह नामे इलाही ख़ाली जुबान से ले लेना आख़िरत में उनको निजात न दिलायेगा। ईमान भी हो; इख़्लास भी; तभी नेकी में जान पड़ती है और वज़नदार बनती है।
सबसे अच्छा कर्म
सबसे ज़्यादा वज़नी अमल
हज़रत अबुद्दर्दा से रिवायत है आहज़रत ने इर्शाद फ़रमाया कि बिला शुब्हा सबसे ज़्यादा वज़नी चीज़ जो कियामत के दिन मोमिन की तराज़ू में रखी जाएगी, वह अच्छे अख़्लाक़ होंगे फिर फ़रमाया कि बिला शुब्हा अल्लाह गंदगी और बेहयाई वाले से बुग्ज़ (कपट) रखते हैं।.
-मिश्कात शरीफ