जो दुनिया की जिंदगी में अपने ख़्याल में नेक काम करते हैं। जैसे पानी पिलाने कि लिए जगह का इंतिज़ाम करते हैं और मजबूर की मदद कर गुज़ारते हैं … Kaun लोग घाटे में हैं? | किसके लिए नेक काम का फैदा नहीं ? | Dawat-e-Tabligh

कौन से लोग घाटे में हैं?
- काफ़िरों की नेकियाँ बेवज़न होंगी
सूरः कहफ के आख़िरी रकू में इर्शाद है :
‘आप फरमा दीजिए, क्या हम तुमको ऐसे लोग बताएं जो आमाल के एतबार से बड़े घाटे में हैं। (ये) वे लोग हैं जिनकी कोशिश अकरात गयी दुनिया की जिंदगी में और वे समझते रहे कि खूब बनाते हैं काम! ये वहीं हैं, जो इंकारी हुए अपने रब की आयतों के और उसकी मुलाकात के सिवा अकरात गए उनके अमल पस हम कियामत के दिन उनके लिए तौल कायम करेंगे।’
कामयाबी क्या है?
यानि सबसे ज़्यादा टूटे और ख़सारे वाले हकीकत में वे लोग हैं, जिन्होंने वर्षों दुनिया जोड़कर खुश हुए और यह यकीन करते रहे कि हम बड़े कामयाब और बामुराद हैं। कल हज़ारपति थे। आज लखपति हो गए। पिछले साल म्युनिस्पिल बोर्ड के मेम्बर थे। इस चुनाव में मेम्बर पार्लियामेंट बन गये ग़रज़ कि इसी फेर में ज़िंदगी गुज़ारी अल्लाह को न माना। उसकी आयतों का इन्कार किया, क़ियामत के दिन अल्लाह के सामने हाज़िरी से झुठलाया। मरने के बाद क्या बनेगा, इसको कभी न सोचा, सिर्फ दुनिया की तरक्कियों और कामयाबियों को बड़ा कमाल समझते रहे। जब क़ियामत के दिन हाज़िर होंगे तो कुफ़ और दुनिया की मुहब्बत और दुनिया की कोशिश ही उनके आमालनामों में होगी, वहां ये चीजें बेवज़न होंगी और दोज़ख़ में जाना पड़ेगा। उस वक्त आँखें खुलेंगी कि कामयाबी क्या है?
किसके लिए नेक काम का फैदा नहीं ?
यहूदी और ईसाई, मुश्कि और काफिर, जो दुनिया की जिंदगी में अपने ख़्याल में नेक काम करते हैं। जैसे पानी पिलाने कि लिए जगह का इंतिज़ाम करते हैं और मजबूर की मदद कर गुज़ारते हैं यह अल्लाह के नामों का विर्द (बार-बार पढ़ना) रखते हैं ‘इला गैरि जालिक’ । इस किस्मके काम भी आख़िरत में उनको निजात न दिलाएंगे। साधू और राहि (योगी, संसार-त्यागी) जो बड़ी-बड़ी रियाज़तें (तपस्या) करते हैं और मुजाहिदा करके नफ्स को मारते हैं और यहूदियों और ईसाइयों के राहिब और पादरी जो नेकी के ख्याल से शादी नहीं करते। इस किस्म के तमाम काम बेफायदा हैं। आख़िरत में कुफ़ की वजह से कुछ न पाएंगे। काफिर की नेकियां मुर्दा हैं, वे कियामत के दिन नेकियों से खाली हाथ होंगे। सूरः इब्राहीम में इर्शाद हैं:
यानी (इन काफ़िरों को अगर अपनी निजात के मुतअल्लिक यह ख़्याल हो कि हमारे आमाल हमको नफा देंगे तो इसके मुतअल्लिक सुन लो कि) जो लोग अपने परवरदिगार के साथ कुफ़ करते हैं। उनकी हालत (अमल के एतबार से) यह है कि जैसे राख हो, जिसे तेज़ आंधी के दिन में तेज़ी के साथ उड़ा ले जाए (कि इस शख़्स में राख का नाम व निशान न रहेगा, इसी तरह) इन लोगों ने जो अमल किए थे, उनका कोई हिस्सा उनको हासिल न होगा (बल्कि राख की तरह सब जाय व बर्बाद हो जाएंगे और कुफ्र व गुनाह ही कियामत के दिन साथ होंगे। यह काफी दूर की गुमराही हैं) कि गुमान तो यह है कि हमारे अमल नफा देने वाले होंगे और फिर ज़रूरत के वक्त कुछ काम भी न आएंगे।’
साहिबे तफ़सीरे मज़हरी ‘फ ला नुकीमु लहुम यौमल कियामति वज़्ना’ की तफ़सीर में लिखते हैं कि अल्लाह तआला के नज़दीक काफ़िरों के अमल का कोई एतबार या अहमियत न होगी। फिर हुज़ूरे अकदस का इर्शाद, हज़रत अबू हुरैरः से नकुल फरमाया है (जो इस किताब में पहले गुज़र भी चुका है) कि (कियामत के दिन) कुछ लोग भारी- भरकम (पोज़ीशन के एतबार से या जिस्म की मोटाई के लिहाज़ से) मोटे-ताज़े आएंगे, जिनका वज़न अल्लाह के नज़दीक मच्छर के पर के बराबर भी न होगा। इसके बाद सैयदे आलम ने इर्शाद फरमाया कि (मेरी ताईद के लिए) तुम चाहो तो यह आयत पढ़ लोः ‘फ ला नुकीमु लहुम यौमल कियामति वज्ना’
फिर साहिबे तफ़सीरे मज़हरी आयत के इन लफ़्ज़ों की दूसरी तफ़सीर करते हुए फ़रमाते हैं इन (काफिरों) के लिए तराजू खड़ी भी न की जाएगी। और तौलने का मामला उनके साथ होना ही नहीं, क्योंकि उनके (नेक) अमल वहां पर अकारत हो जाएंगे, इसलिए सीधे दोज़ख़ में डाल दिए जाएंगे। आयत में आये लफ़्ज़ों के तीसरा मानी ब्यान करते हुए फ़रमाते हैं, या यह मानी है कि काफिर अपने जिन अमल को नेक समझते हैं, क़ियामत की तराज़ू में उनका कुछ वज़न न निकलेगा। (क्योंकि वहां इस नेक काम में वज़न होगा जिन्हें ईमान की दौलत हासिल करते हुए, इख्लास के साथ (अल्लाह की खुशी हासिल करने के लिए) दुनिया में किया गया था ।
इसके बाद अल्लामा सुयूती (रह०) से नकुल फ़रमाते हैं कि इल्म वालों का इसमें इख़्तिलाफ़ है कि ईमान वालों के अमल का सिर्फ वजन होगा या काफ़िरों के अमल भी तौले जाएंगे। एक जमाअत का कहना है कि सिर्फ मोमिनों के अमल तौले जाएंगे (क्योंकि काफ़िरों की नेकियां तो अकरत हो जाएंगी, फिर जब नेकी के पलड़े में रखने के लिए कुछ न रहा तो एक पलड़ा क्या तौला जाए?) इस जामअत ने ‘फ् ला नुकीमु लहुम यौमल कियामति वज़्ना’ से दलील ली है। दूसरी जमाअत कहती है कि काफ़िरों के अमल भी तौले जाएंगे। (लेकिन वह बेवज़न निकलेंगे)। उनकी दलील आयत ‘व मन ख़फ्फ़त मवाज़ीनुहू फ उलाइ कल्लज़ी न ख़सिरू अन्फुसहुम फी जहन्नन म ख़ालिदून’ से है, जिसका तर्जुमा यह है, ‘और जिनकी तौल हल्की निकली, तो ये वे लोग हैं जो हार बैठे अपनी जान। ये दोजख में हमेशा रहेंगे। दलील ‘हुम फीहा ख़ालिदून’ से है। मतलब यह है कि अल्लाह तआला ने इस आयते करीमा में हल्की तील निकलने वालों के बारे में फरमाया है कि वह दोज़ख़ में हमेशा रहेंगे। इससे मालूम हुआ कि काफिरों के आमाल भी तौले जाएंगे क्योंकि इस पर सब का इत्तिफाक है कि मोमिन कोई भी दोज़ख़ में हमेशा न रहेगा।
इसके बाद साहिबे तपहीरे मज़हरी अल्लामा कुर्तबी का कौल नकल फ़रमाते हैं कि हर एक के आमाल नहीं तौले जाएंगे (बल्कि इसमें तफसील है और वह यह है कि) जो लोग बगैर हिसाब जन्नत में जाएंगे या जिनको दोजख में बगैर हिसाब हश्र का मैदान कायम होते ही जाना होगा इन दोनों जमाअतों के आमाल न तौले जाएंगे और इनके अलावा बाकी मोमिनों व काफिरों के अमल का वज़न होगा।
साहिबे तफसीरे मज़हरी इसके बाद फरमाते हैं कि अल्लामा कुर्तबी का यह इर्शाद दोनों जामअतों के मस्लकों और दोनों आयतों (आयत सूरः कहफ और आयत सूरः मूमिनून) के मतलबों को जमा कर देते हैं ।
हज़रत हकीमुल उम्मत कुट्टुस सिर्रहू (ब्यानुल क़ुरआन में) सूरः आराफ के शुरू में एक मुफीद तम्हीद के बाद इर्शाद फ़रमाते हैं कि, ‘पस इस मीज़ान में ईमान व कुफ़ भी वज़न किया जाएगा और इस वज़न में एक पलड़ा ख़ाली रहेगा और एक पलड़े में अगर वह मोमिन व काफिर अलग-अलग हो जाएंगे (तो) फिर ख़ास मोमिनों के लिए एक पल्ले में उनके हसनात’ और दूसरे पल्ले में उनके सैयिआत’ रखकर उन अमल का वज़न होगा और जैसा कि दुर्रे मंसूर में हज़रत इब्ने अब्बास से रिवायत किया गया है कि अगर हसनात ग़ालिब हुए तो जन्नत और अगर सैयिआत ग़ालिब हुए तो दोज़ख़ और अगर दोनों बराबर हुए तो आराफ तज्वीज़ होगी। फिर चाहे शफाअत से पहले सज़ा या सज़ा के बाद मग्फ़िरत हो जाएगी ( और दोज़ख़ वाले और आराफ़ वाले जन्नत में दाख़िल हो जाएंगे)।