वोह कितने किस्म के लोग हैं जिनके कब्र के सवालात नहीं होते ? आठ क़िस्म के लोग जिन से हज़रत Yousuf अलैहिस्सलाम की Kabar के बारे में क़िस्सा । 8 लोगो कौन है जिन से kabar में सवाल नहीं होगा ? | Kafan कौन दे ? Dawat~e~Tabligh in Hindi…

Kin लोगो se kabar में सवाल नहीं होगा ?
- आठ क़िस्म के लोग जिन से क़ब्र में सवाल नहीं किया जाएगा
शामी में लिखा है कि जिन लोगों से सवाल नहीं किया जाएगा वे आठ क़िस्म के लोग हैं।
1. शहीद
2. इस्लामी मुल्क की सरहद की हिफ़ाज़त करने वाला।
3. मरज़े ताऊन में इंतिक़ाल होने वाला।
4. ताऊन के ज़माने में ताऊन के अलावा किसी मरज़ से मरने वाला जबकि वह उस पर साबिर और सवाब की उम्मीद रखने वाला हो।
5. सिद्दीक़ ।
6. बच्चे ।
7. जुमे के दिन या रात में मरने वाला।
8. हर रात सूरः तबारकल्लज़ी पढ़ने वाला और कुछ हज़रात ने इस सूरः के साथ सूरः सज्दा को भी मिलाया है। और अपने मरज़े मौत में कुल हुवल्लाहु अहद पढ़ने वाला और शारह रहमतुल्लाहि अलैहि ने इशारा फ़रमाया कि इनमें अंबिया अलैहिस्सलाम का इज़ाफ़ा किया जाएगा इसलिए कि वह सिद्दीक़ीन से दर्जे में बढ़े हुए हैं।
– शामी, पेज 872
जुमे के दिन मरना | Kin logo के लिए जनाजा की नमाज नहीं है ? – Dawat~e~Tabligh
Kafan कौन दे ?
- अबूज़र रज़ि का ईमान अफ़रोज़ वाक़िया मेरा कफ़न वह दे जिसने हुकूमते उसमानी में नौकरी न की हो।
हज़रत अबू ज़र ग़िफ़ारी रज़ि० जंगल में रहते थे। मौत का वक़्त आ गया। उन दिनों वहां कोई नहीं था। सिर्फ़ हज के दिनों में इराक़ के हाजी वहां से जाते थे। उस वक़्त हज का मौसम था। उनकी सिर्फ़ एक बीवी और एक बेटी थी। अब उनका कफ़न-दफ़न कौन करेगा, गुस्ल कौन देगा, जनाज़ा कौन पढ़ेगा, कब कौन खोदेगा? बीवी कहने लगी कि अब क्या बनेगा हमारा, तुम्हारा मसला यह हो गया, हम क्या करें? कहने लगे ‘मा कज़बतु मा कुजिबतु’ । न तुमसे झूठ कहूंगा, न मुझसे झूठ कहा गया। मैं एक महफ़िल में बैठा था, मेरे आक़ा ने फ़रमाया कि तुममें से एक आदमी ऐसा है, अकेला मरेगा, अकेला उठेगा, जनाज़ा मुसलमानों की एक जमाअत पढ़ेगी, जितने आदमी उस महफ़िल में थे, वे सारे मर गए, शहरों में, मैं अकेला बच गया हूँ जंगल में। मालूम नहीं कौन आएगा, कहां से आएगा, और ख़बर सच्ची है, लिहाजा गम न करो, मेरा जनाज़ा पढ़ने कोई आएगा।
यह तक़वा की ऐसी निशानी है कि अल्लाह और उसके रसूल का इल्म उनके दिलों में उतरा हुआ था। देखो, मुम्बई के बाज़ार वालों से पूछो कि अल्लाह का दीन क्या कहता है? उस तिजारत में तुम्हें पता है किस तरीके से वह कारोबार चलाया जाएगा 1 कि अल्लाह और उसका हबीब नाराज न हो जाए? कोई नहीं बता सकता, इसी तरह जमींदारों से पूछ लो, तो भाई किस तरह जमींदारी करनी है कि अल्लाह और उसका रसूल राज़ी हो जाए और नाराज़ न हो? जो सारे ताजिर कर रहे हैं वह यह भी कर रहा है, यह झूठ बोल रहा है।
और वह भी झूठ बोल रहे हैं, वह सूद पर चल रहा है, यह भी सूद पर चल रहे हैं, लेकिन अबूजर गिफारी रजि० पर एक दिन गुज़र गया, दूसरा दिन गुजर गया, तीसरे दिन उन पर मौत के आसार आ गए, बेटी को बुलाया कि बेटी, आज मेहमान जरूर आएंगे मेरे जनाजे में रोटी पकाओ ताकि मेहमानों की में कमी न आए, मैं ज़रूर मर जाऊंगा। उनको खाना पकाने में लगा दिया और बीवी से कहा कि तू जा रास्ते में बैठ, कोई न कोई ज़रूर आएगा। वह जाकर बैठ गई रास्ते में अल्लाहु अकबर काफी अर्सा गुज़र गया, उम्मीद नाउम्मीदी में बदल गई कि अचानक इराक़ की सड़क से गुबार उठता हुआ नज़र आया। जब गुबार का पर्दा फटा तो बीस (20) ऊंटनियों के सवार नमूदार हुए। उनकी बीवी ने सामने से खड़े होकर इशारा किया।
जब उन्होंने औरत को जंगल और तहाई में देखा तो अपनी सवारियां मोड़ लीं, तो उस औरत ने कहा कि एक अल्लाह का बन्दा मर रहा है, उसका जनाज़ा पढ़ लो तो तुम्हें अज्र मिलेगा। उन्होंने कहा कि वह कौन है? कहा कि अल्लाह के हबीब का साथी अबूज़र गिफारी है। सारे यक दम रोने लगे और कहा कि हमारे मां-बाप अबूजर रजि० पर कुरवान। यह अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि० थे और उनके 19 साथी। गवी निज़ाम कैसे चला कि हज़रत उसमान रजि० हज पर पहुंचे हुए हैं, हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि० से मशविरा तलब कोई चीज थी, तो उनसे कहलवा भेजा कि बैठे हो तो खड़े हो जाओ और खड़े हो तो चल पड़ो, हर हाल में मक्का आकर मुझसे मिलो, तुमसे मशविरा करना है, हज मिले या न मिले इसकी फ़िक्र न करो, लेकिन फ़ौरन मक्का पहुंच जाओ। ज़ाहिरी सबब तो यह बना लेकिन अंदर का सबब अबूज़र गिफ़ारी रजि० का जनाजा बना कि उनका जनाजा कौन आकर पढ़ेगा? इन हज़रात ने उमर का एहराम बांधा हुआ था, तो ये हज़रात सवारियों से उतरे और दौड़ते हुए आए। अबूजर रज़ि० इसी इत्मीनान में हैं।
पहले ही पता था कि कोई आएगा, लेकिन अबूज़र रज़ि० तक्क्रबा के इतने बड़े मक़ाम पर पहुंचे हुए हैं कि फ़रमाते हैं, जिसने उसमान रजि० की हुकूमत की नौकरी की हो वह मुझे कफ़न न दे। उन 19 में से हर एक ने हुकूमत में मुलाज़िमत की थी, अलबत्ता उनमें से एक नौजवान खड़े हुए कि मैंने आज तक हुकूमत की नौकरी नहीं की है और यह एहराम भी मैंने अपने हाथ से बनाया है। कहा, वस ठीक है तू मेरा सारा इंतिज़ाम करेगा। फिर उनका इंतिक़ाल हो गया। यह सारे उनको दफ़न करके चलने लगे। बेटी ने कहा अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि० से कि ऐ चचा खाना तैयार है। कहा, यह खाना पहले से कैसे तैयार हो गया। कहा मेरे बाबा ने कहा था कि आज मेरे मेहमान आएंगे मेरा जनाज़ा पढ़ने के लिए, उनकी ख़िदमत में ग़फ़लत न हो, इसलिए पहले से खाना तैयार करके रखना। अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि० ने फ़रमाया, वाह रे वाह ! अबूजर रजि० ज़िंदा भी सखी और मरकर भी सखी।
नोट : यह क़िस्सा अबूज़र रजि० का मुख्तलिफ़ अल्फ़ाज़ से अक्सर तारीख़ी किताबों में मौजूद है। (देखिए, सीरतुस्सहाबा, असदुल ग़ाबा, हयातुस्सहावा )
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हज़रत Yousuf अलैहिस्सलाम की Kabar के बारे में क़िस्सा
- हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की क़ब्र के बारे में हैरत अंगेज़ क़िस्सा।
इब्ने अबी हातिम की एक हदीस में है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम किसी एराबी के हाँ मेहमान हुए। उसने आप सल्ल० की बड़ी ख़ातिर तवाज़ो की, वापसी में आप सल्ल० ने फ़रमाया, कभी हमसे मदीने में भी मिल लेना। कुछ दिनों बाद एराबी आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया। हुज़ूर सल्ल० ने फ़रमाया कुछ चाहिए? उसने कहा, हाँ एक ऊँटनी दीजिए, साथ हौदज के और एक बकरी दीजिए जो दूध देती हो। आप सल्ल० ने फ़रमाया, अफ़सोस तूने बनी इसराईल की बुढ़िया जैसा सवाल न किया। सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने पूछा वह वाक़िआ क्या है? आप सल्ल० ने फ़रमायाः जब हज़रत कलीमुल्लाह बनी इसराईल को लेकर चले तो रास्ता भूल गये हज़ार कोशिश की लेकिन राह न मिली, आपने लोगों को जमा करके पूछा, यह क्या अंधेर है? तो उल्मा-ए-बनी इसराईल ने कहा, बात यह है कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने अपने आख़िर वक़्त में हमसे अहद लिया था कि जब हम मिस्र से चलें तो उनके ताबूत को भी यहाँ से अपने साथ लेते जायें। 1 हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने पूछा कि तुममें से कौन जानता है कि हज़रत यूसुफ़ अलैहि० की तुरबत कहाँ है? सबने इनकार कर दिया कि हम नहीं जानते।
हममें एक बुढ़िया के सिवाए और कोई भी हज़रत यूसुफ़ अलैहि० की क़ब्र से वाक़िफ़ नहीं, हज़रत मूसा अलैहि० ने उस बुढ़िया के पास आदमी भेजकर उसे कहलवाया कि मुझे हज़रत यूसुफ़ अलैहि० की क़ब्र दिखला, बुढ़िया ने कहा, हाँ दिखलाऊंगी लेकिन पहले अपना हक़ ले लूँ। हज़रत मूसा अलैहि० ने कहा, तू क्या चाहती है? उसने जवाब दिया कि जन्नत में आपका साथ मुझे हासिल हो हज़रत मूसा अलैहि० पर उसका यह सवाल बहुत भारी पड़ा, उस वक्त वह्य आई कि इस बात को माल लो, उसकी शर्त को मंजूर कर लो। अब वह आपको एक झील के पास ले गई जिसके पानी का रंग भी मुतगय्यिर हो गया था। कहा कि इसका पानी निकाल डालो। जब पानी निकाल डाला और ज़मीन नज़र आने लगी तो कहा अब यहाँ खोदो। खोदना शुरू हुआ तो क़ब्र ज़ाहिर हो गई, ताबूत साथ रख लिया, अब जो चलने लगे तो रास्ता साफ़ नज़र आने लगा और सीधी राह लग गई।
– तफ्सीर इब्ने कसीर, हिस्सा 4, पेज 33
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