Ladkiyo का ladko के sath kaam करना | लड़कीया गैर mardo से कैसे baat करें – Dawat~e~Tabligh

औरत की awaz, औरत Azan क्यों नहीं दे सकती ? लड़कियों का mard के पास tuition फडना | Ladkiyo का ladko के sath kaam करना | लड़कीया गैर mardo से कैसे baat करें – Dawat~e~Tabligh….

Ladkiyo का ladko के sath kaam करना | लड़कीया गैर mardo से कैसे baat करें - Dawat~e~Tabligh
Ladkiyo का ladko के sath kaam करना | लड़कीया गैर mardo से कैसे baat करें – Dawat~e~Tabligh

औरत Azan क्यों नहीं दे सकती ?

औरत की आवाज़ अगरचे सतर नहीं है। यवक्ते जरूरत वह गैर-महरम मर्द से गुफ्तगू कर सकती है या फोन सुन सकती है, मगर यह भी हक़ीक़त है कि उसकी आवाज़ में कशिश होती है। इसी लिए फ़ुक़हा ने औरत को अज़ान देने से मना किया। चूंकि अज़ान ख़ुश इल्हानी के साथ दी जाती है। इससे फ़ितना पैदा होने का ख़तरा होता है। इसका सुबूत इस बात से मिलता है कि एक रेडियो अनाउंसर के कई नादीदा आशिक़ होते हैं। आवाज़ का जादू भी अपना असर दिखाता है, इसलिए गैर-मेहरम से बातचीत के दौरान मुनासिब लहजे में बातचीत करने का हुक्म दिया गया है।

औरत की awaz

 जो औरतें मजबूरी की वजह से खरीद व फ़रोख्त और लेन-देन का काम खुद करती हैं वह बहुत खतरे में होती हैं। दुकानदार, दर्जी, जुबेल, मंधारीवाला, रंगरेज, डॉक्टर और हकीम से बहुत मोहतात अंदाज़ में बात करनी चाहिए। मर्द लोग तो पहले ही औरत को शीशे में उतारने के लिए तैयार होते हैं, अगर कोई औरत जरा-सा ढीलापन दिखाए तो बात बहुत दूर निकल जाती है। जुबेल का काम तो वैसे ही जेब व जीनत के मुताल्लिक होता है। कई औरतें अंगूठी और चूड़ियां खरीद कर मर्द से कहती हैं कि पहना दें। जब हाथ ही हाथ में दे दिया तो पीछे क्या रहा ।

मुझे सहल हो गई मंजिलें तो खिजां के दिन भी बदल गए।

तिरा हाथ हाथ में आ गया तो चिराग रह के जल गए ॥

डॉक्टर या हकीम को बीमारी के मुताल्लिक कैफियात बतानी हों तो निहायत एहतियात बरती जाए। ऐसा न हो कि जिस्म का इलाज करवाते करवाते दिल का रोग लगा बैठें। कई डॉक्टर हज़रात मरीज़ा का इलाज करते हुए खुद मरीज़े इश्क़ बन  जाते हैं।

लड़कियों का mard के पास tuition फडना

बाज़ लोग अपनी नौजवान बच्चियों को मर्द उस्ताद के पास tuition पढ़ने भेजते हैं या उन्हें ट्यूशन पढ़ाने अपने घर बुलाते हैं। दोनों सूरत में नाइज बुरे होते हैं। शरअ शरीफ़ से गफलत बरतने का अंजाम हमेशा बुरा होता है। शागिर्द को उस्ताद के पास बैठकर बातें करने का मौक़ा मिलता है तो शैतान मशवरा देता है कि किताबें पढ़ने के साथ-साथ एक दूसरे की शख्सियात के बारे में भी मालूमात हासिल करो। जब पर्सनल लाइफ़ की बातें शुरू हो जाती हैं तो हरामकारी के दरवाजे खुल जाते हैं ट्यूशन पढ़नी था टेंशन पल्ले पड़ गई। मर्दों को भी औरतों से गुफ़्तुगू करते वक़्त एहतियात करनी चाहिए। अल्लामा जज़री रह० ने लिखा है कि :

“नबी अकरम सल्ल० ने इस बात से मना किया है कि मर्द अपनी बीवी के सिवा किसी दूसरी औरत के सामने नर्मी से बातचीत करे, जिससे औरत को मर्द में दिलचस्पी पैदा हो जाए।”

(अननिहाया)

Ladkiyo का ladko के sath kaam करना

बाज़ लड़कियां हालात की मजबूरी का बहाना बनाकर दफ़्तरों या कारख़ानों में मर्द हज़रात के शाना-व-शाना काम करती हैं। शैतान के लिए उन लड़कियों को जिना में फंसाना बाएं हाथ का खेल होता है। अक्सर औक़ात तो अफ़सर ही इज्जत का सत्यानास कर देता है। वरना साथ मिलकर काम करनेवाले लड़के ही मेल-मिलाप की राहें ढूंढ लेते हैं। मर्द हज़रात ऐसी सूरते हाल पैदा कर देते हैं कि लड़कियों को गुनाह में मुलव्विस होना पड़ता है। एक सख़्ती करता है कि तुम अच्छा काम नहीं करती, तुम्हारी छुट्टी करवा देनी चाहिए। लड़की डर जाती है, घबरा जाती है। दूसरा नजात धंधा बन जाता है कि मैं तुम्हारी मदद करूंगा । कुछ नहीं होने दूंगा। कुछ अर्से के बाद पता चलता है कि लड़की नजाते धंधा के फंदे में फंस चुकी होती है। दफ़्तर में काम करनेवाली लड़कियों को कम या ज्यादा ऐसे नापसन्दीदा वाक्रिआत पेश आते रहते हैं। पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं, वह नौकरी पेशा ख्वातीन जो कम गो होती हैं, किसी मर्द पर एतिबार नहीं करतीं न ही किसी से अपनी ज़िंदगी के बारे में तबादला ख़यालात करती हैं। बस काम से काम रखती हैं। जो मर्द उनसे Loose Talk यानी आज़ाद गुफ़्तुगू करने लगे उसे डांट पिला देती हैं। अगरचे वह दफ़्तर में सड़यल मशहूर हो जाएं मगर कम से कम अपनी इज़्ज़त बचा लेती हैं।

लड़कीया गैर mardo से कैसे baat करें

गैर-महरम से बातें करना भी जिना के असबाब में से एक बड़ा सबब है। इसी लिए कुरआन मजीद ने हुक्म दिया है औरतों को कि अगर उन्हें किसी वक़्त गैर-महरम मर्द से गुफ़्तुगू करने की ज़रूरत पेश आ जाए तो अपनी आवाज़ में लोच और नर्मी पैदा न होने दें। न ही पुरतकल्लुफ़ अंदाज़ से चबा- चबाकर और अल्फ़ाज़ को बना-संवार कर बातें करें। इरशादे बारी तआला है :

” और न ही चबाकर बातें करो कि जिसके दिल में रोग हो वह तमन्ना करने लगे, और तुम माकूल बात करो ।” 

(सूरा अहज़ाब आयत- 32)

औरत अगर पर्दे की ओट में भी बात करे तो आवाज़ में शीरीनी और जाज्ञवियत पैदा न होने दे, बल्कि लब व लहज़ा ख़ुश्क ही रखे। ऐसे लगी लिपटी बातें जिनको सुनकर मर्द की शहवत भड़के उनसे औरत को इज्तिनाब करना ज़रूरी है। गैर-महरम मर्द से गुफ़्तुगू नर्मी और अदा के साथ न की जाए, बल्कि साफ़ खुली और धुली बात हो। मुख़्तसर हो, जो बात दो फ़िक़रों में कही जाती है उसको एक में ही कहे तो बेहतर है, मर्द को भी खामखाह एक से दूसरी बात करने की हिम्मत न हो सके। जब गैर-महरम मर्द और औरत के दर्मियान बेझिझक बात करने की आदत पड़ जाती है तो मामला एक क़दम आगे और बढ़ता है। यानी एक दूसरे को देखने को दिल चाहता है। इसकी दलील कुरआन मजीद से मिलती है कि अंबियाए किराम तो एक लाख चौबीस हज़ार के लगभग आए, मगर उनमें से किसी ने दुनिया में अल्लाह तआला को देखने की ख्वाहिश जाहिर नहीं की, सिर्फ़ हज़रत मूसा अलैहि० ने कहा :

“ऐ मेरे परवरदिगार ! मुझे अपना दीदार करा दीजिए।”

(आराफ, 143)

मुफ़स्सिरीन ने लिखा है कि चूंकि हज़रत मूसा अलैहि० कोहे तूर पर रब्बे करीम से हम कलामी के लिए जाया करते थे। लिहाजा कलीमुल्लाह होने की वजह से उनके दिल में महबूबे हक़ीक़ी को देखने का शौक़ पैदा हुआ। इससे साबित हुआ कि बात से बात बढ़ती है। पहले बात करने का मरहला तय होता है फिर देखने की नौबत आती है। जब देख लिया जाए तो का शौक़ पैदा होता है। दिल कहता है कि : मुलाक़ात

न तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा

दोनों इंसान हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें

जब हिजाब उतर जाता है तो मेल-मिलाप का सिलसिला शुरू हो जाता है, जिसका नतीजा ज़िल्लत व रुसवाई के सिवा कुछ नहीं।

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