बद-नज़री के नुक्सान। लड़कियों और औरतों को देखने के 3 बड़े नुक्सान। बद-नज़री से परहेज़ का ख़ास इनाम। गैर-महरम को देखने के नुक्सान | Ladkiyo को नहीं देखने से 2 इनाम- Dawat~e~Tabligh in Hindi…

बद-नज़री के नुक्सान
- बद-नज़री से तौफ़ीके अमल छिन जाती है।
हजरत शेखुल हदीस मौलाना मुहम्मद जकरिया रह० फरमाते थे-
बद-नज़री निहायत ही मुहलिक मर्ज है। एक तजुर्बा तो मेरा भी अपने बहुत-से अहबाब पर है कि जिके शगल की इब्तदा में सात व जोश की कैफियत होती है मगर बद-नजरी की वजह से इबादत की हलावत और लगत फ़ना हो जाती है और उसके बाद रफ़्ता-राफ़्ता इवादात के छूटने का जरिया भी बन जाता है।” (आप बीती 6/418)
मिसाल के तौर पर अगर सेहतमंद नवजवान शख्स को बुखार हो जाए और उतरने का नाम ही न से तो सागरी और कमज़ोरी की वजह से उसके लिए चलना-फिरना मुश्किल हो जाता है कोई काम करने को दिल नहीं चाहता। बिस्तर पर पड़े रहने को जी चाहता है। इसी तरह जिस शख्स को बद-नज़री की बीमारी लग जाए वह बातिनी तौर पर कमजोर हो जाता है। नेक अमल करना उसके लिए मुश्किल हो जाता है। दूसरे लफ्जों में उससे अमल की तौफीक छीन ली जाती है। नेक काम करने की नीयत भी करता है तो बद-नज़री की वजह से नीयत में फुतूर आ जाता है। बकौल शाएर :
तैयार थे नमाज़ को हम सुनके जिके हूर
जलवा बुतों का देखकर नीयत बदल गई।
लड़कियों और औरतों को देखने के 3 बड़े नुक्सान
- बदनज़री के तीन बड़े नुक़सानात
बदनज़री से इंसान के अंदर नफ़्सानी स्वाहिशात का तूफान उठ खड़ा होता है और इंसान उस सैलाब की रौ में बह जाता है। इसमें तीन बड़े नुक्रसानात वुजूद में आते हैं:
1. बदनज़री की वजह से इंसान के दिल में ख़्याली महबूब का तसब्बुर पैदा हो जाता है। हसीन चेहरे उसके दिल व दिमाग पर क़ब्ज़ा कर लेते हैं। वह शख़्स चाहता है कि मैं उन हसीन शक्लों तक रसाई हासिल नहीं कर सकता, मगर इसके बावजूद तहाइयों में उनके तसब्बुर से लुत्फ़अंदोज़ होता है। बाज़ मर्तबा तो घंटों उनके साथ ख्याल की दुनिया में बातें करता है; मामला इस हद तक बढ़ जाता है कि
तुम मेरे पास होते हो गोया जब कोई दूसरा नहीं होता
बदनज़री के साथ ही शैतान इंसान के दिल व दिमाग पर सवार हो जाता है और उस शख्स से शैतानी हरकतें करवाने में जल्दी करता है। जिस तरह वीरान और खाली जगह पर तुंद व तेज आंधी अपने असरात छोड़ती है उसी तरह शैतान भी उस शख्स के दिल पर अपने असरात छोड़ता है, ताकि उस देखी हुई सूरत को खूब आरास्ता व मुज़य्यन करके उसके सामने पेश करे और उसके सामने एक खूबसूरत बुत बना दे ऐसे शख़्स का दिल रात-दिन उसी बुत की पूजा में लगा रहता है, वह ग्राम आरजुओं और तमन्नाओं में उलझा रहता है। इसी का नाम शहवतपरस्ती, ख्वाहिशपरस्ती, नफ़्सपरस्ती है। इरशादे बारी तआला है :
“और उसका कहना न मान जिसका दिल हमने अपनी याद से ग़ाफ़िल कर दिया और वह अपनी ख़्वाहिश की पैरवी करता है और उसका काम हद से बढ़ गया है।”
(अल-कहफ़ : 28)
उन ख्याली माबूदों से जान छुड़ाए बगैर न तो ईमान की हलावत नसीब होती है, न क़ुर्बे इलाही की हवा लगती है। बक़ौल शाएर बुतों को तोड़ तखय्युल के हों कि पत्थर के
2. बद – नज़री का दूसरा नुक़सान यह है कि इंसान का दिल व दिमाग मुतफ़र्रिक चीज़ों में बंट जाता है। यहां तक कि वह अपने मसालेह व मुनाफ़े को भूल जाता है। घर में हसीन व जमील नेकोकार और वफादार बीवी मौजूद होती है, मगर उस शख्स का दिल बीवी की तरफ़ माइल ही नहीं होता। बीवी अच्छी नहीं लगती। ज़रा-ज़रा-सी बात पर उससे उलझता है, घर की फ़िज़ा में बेसुकूनी पैदा हो जाती है, जबकि यही शख्स बेपर्दा घूमनेवाली औरतों को इस तरह ललचाई नज़रों से देखता है जिस तरह शिकारी कुत्ता अपने शिकार को देखता है। बसा औक़ात तो उस शख्स का दिल काम-काज में भी नहीं लगता। अगर तालिबे इल्म है तो पढ़ाई के सिवा हर चीज़ अच्छी लगती है। अगर ताजिर है तो कारोबार से दिल उकता जाता है। कई घंटे सोता है मगर पुरसुकून निंद से महरूम रहता है। देखनेवाले समझते हैं कि सोया हुआ है जबकि वह खयाली महबूब के सब्बुर में खोया हुआ होता है।
3. बद- नज़री का तीसरा बड़ा नुकसान यह है कि दिल हक़ व बातिल और सुन्नत व विदअत में तमीज करने से आरी हो जाता है। बसीरत छिन जाती है। दीन के उलूम व मआरिफ़ से महरूमी होने लगती है। गुनाह का काम उसको गुनाह नज़र नहीं आता। फिर ऐसी सूरते हाल में दीन के मुताल्लिक शैतान उनको शुकूक व शुब्दात में मुस्तला कर देता है। उसे दीनी नेक लोगों से बदगुमानियां पैदा होती हैं, वहां तक कि उसे दीनी शक्ल व सूरत वाले लोगों से ही नफ़रत हो जाती है। वह बातिल पर होते हुए भी अपने आपको हक़ पर समझता है और बिल आख़िर ईमान से महरूम होकर दुनिया से जहन्नम हो जाता है। अल्लाह हम सबकी हिफ़ाज़त । आमीन!
गैर-महरम को देखने के नुक्सान
- बद-नज़री से कुव्वते हाफ़िज़ा कमजोर होती है।
हजरत मौलाना खलील अहमद सहारनपुरी रह० फरमाया करते थे कि गैर-महरम औरतों की तरफ़ या नव उम्र लड़कों की तरफ़ शहवत की नज़र डालने से क्रुव्वते हाफ़िज़ा कमज़ोर हो जाती है। इसकी तस्दीक़ के लिए यह सुबूत काफ़ी है कि बद नज़री करनेवाले फ्फाज़ को मंजिल याद नहीं रहती और जो तलचा हिफ़्ज़ कर रहे हों उनके लिए सबक़ याद करना मुसीबत होता है। इमाम साफाई रह० ने अपने उस्ताद इमाम की रह० से क्रुव्वते हाफ़िज़ा में कमी की शिकायत की तो उन्होंने मासियत से बचने की वसीयत की इमाम शाफ़ई रह० ने इस गुफ़्तुगू को शेर का जामा पहनाते हुए फ़रमाया : यानी मैंने इमाम शाफ़ई रह० से अपने हाफ़िज़े की कमी की शिकायत की। उन्होंने वसीयत की कि ऐ तालिबे इल्म गुनाहों से बच जाओ; क्योंकि इल्म अल्लाह तआला का नूर है और अल्लाह तआला का नूर किसी गुनाहगार को अता नहीं किया जाता।
Ladkiyo को नहीं देखने से 2 इनाम मिलेंगे
- बद-नज़री से परहेज़ का ख़ास इनाम
जो शख्स अपनी निगाहों की हिफाजत कर ले उसे आखिरत में दो इनामात मिलेंगे-
(1) हर निगाह की हिफाज़त पर उसे अल्लाह तआला का – दीदार नसीब होगा
(2) ऐसी आंखें क्रियामत के दिन रोने से महफूज रहेंगी।
हदीस पाक में है : नबी करीम सल्ल० ने इरशाद फ़रमाया कि हर आंख क्रियामत के दिन रोएगी सिवाए उस आंख के जो ख़ुदा की हराम करदा चीज़ों को देखने से बन्द रहे और वह आंख जो ख़ुदा की राह में जागी रहे और वह आंख जो ख़ुदा के ख़ौफ़ से रोए, गो उसमें से मक्खी के सर के बराबर आंसू निकले।
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