लोगो का paisa बिना पूछे खर्च कर देना Dawat~e~Tabligh

अपनी रिआया के साथ Insaaf करो और यह भी याद रखो कि यह बादशाहत की Adalat में हाज़िर होंगे, तुमने लोगो के माल को गैर-मुस्तहिक लोगों पर खर्च किया। बादशाहत हमेशा नहीं रहेगी। यह यक़ीनन दूसरों के पास चली जाएगी। लोगो का paisa बिना पूछे खर्च कर देना Dawat~e~Tabligh in Hindi..

लोगो का paisa बिना पूछे खर्च कर देना Dawat~e~Tabligh
लोगो का paisa बिना पूछे खर्च कर देना Dawat~e~Tabligh

लोगो का paisa बिना पूछे खर्च कर देना

  •  हज़रत सुफ़ियान सौरी रह० का दर्द भरा ख़त हारून रशीद हर नमाज के बाद पढ़ते थे और रोते थे

इमाम इब्ने बलवान व गजाली (राह०) वगैरह ने जिक किया है कि जब हारून रशीद खलीफतुल मुस्लिमीन बने तो तमाम उलमा किराम उनको मुबारकबाद देने के लिए उनके पास गए, लेकिन हज़रत सुफियान सीरी रह नहीं गए हालांकि हारून रशीद और सुफ़ियान सौरी एक-दूसरे के साथी और दोस्त थे। चुनांचे हज़रत सुफियान के न आने से हारून रशीद को बड़ी तकलीफ हुई और उसने हज़रत सुफ़ियान के नाम एक खत लिखा जिसका मतन यह है :

है।” “शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहमवाला अब्दुल्लाह हारून अमीरुल मोमिनीन की तरफ से अपने भाई सुक्रियान सीरी की तरफ़ ।

बाद सलाम मसनून! आप जानते हैं कि अल्लाह तआला ने मोमिनीन के दर्मियान ऐसी भाईचारगी और मुहब्बत बदीअत की है कि जिसमें कोई गर्ज नहीं। चुनांचे मैंने भी अपसे ऐसी ही मुहब्बत और भाईचारगी की है कि अब न मैं उसको तोड़ सकता हूं और न उससे जुदा हो सकता हूँ। यह ख़िलाफ़त का जो तीक अल्लाह तआला ने मेरे पर डाल दिया है, अगर यह मेरे गले में न होता तो मैं ज़रूर आपकी मुहब्बत की बिना पर आपके पास ख़ुद आता। यहां तक कि अगर मैं चलने में माजूर होता तो घिसट कर आता। चुनांचे अब जबकि में ख़लीफ़ा हुआ तो मेरे तमाम दोस्त व अहबाब मुझे मुबारकबाद देने के लिए आए। मैंने उनके लिए अपने खजानों के मुंह खोल दिए और क्रीमती से कीमती चीज़ों का अतिया देकर अपने दिल और उनकी आंखों को ठंडा किया लेकिन आप तशरीफ़ नहीं लाए हालांकि मुझे आपका शदीद इंतिज़ार था। यह व्रत आपको बड़े जो-शौक और मुहब्बत की बिना पर लिख रहा हूं। ऐ अबू अब्दुल्लाह आप अच्छी तरह से जानते हैं कि मोमिन की जियारत और मुवासितत की जीत है इसलिए आपसे दरखास्त है कि जैसे ही मेरा यह ख़त आपको मिले तो जितनी भी जल्दी मुमकिन हो तशरीफ़ लाइए।”

हारून रशीद ने यह ख़त उबाद तालकानी नामी एक शख्स को दिया और कहा कि यह ख़त सुफ़ियान सीरी को पहुंचाओं और ख़ास तौर से यह हिदायत की कि ख़त सुफ़ियान के हाथ में ही देना और वह जो जवाब दें उसको गौर से सुनना और उनके तमाम अहवाल अच्छी तरह मालूम करना । उबाद कहते हैं कि मैं उस ख़त को लेकर कूफ़ा के लिए रवाना हुआ और वहां जाकर हज़रत सुफ़ियान को उनकी मस्जिद में पाया। हज़रत सुफ़ियान ने मुझको दूर से देखा तो देखते ही खड़े हो गए और कहने लगे “मैं मर्दूद : शैतान से अल्लाह समीअ व अलीम की पनाह चाहता हुं, उस शख्स से जो रात में आता है या यह कि वह कोई ख़ैर मेरे पास लेकर आए।”

उबाद फ़रमाते हैं कि जब मैं मस्जिद के दरवाज़े पर अपने घोड़े से उतरा तो सुफ़ियान नमाज़ के लिए खड़े हो गए, हालांकि यह किसी नमाज़ का वक़्त नहीं था। चुनांचे मैं फिर उनकी मज्लिस में हाज़िर हुआ और वहां पर मौजूद लोगों को सलाम किया। मगर किसी ने भी मेरे सलाम का जवाब न दिया और न मुझे बैठने को कहा, यहां तक कि किसी ने मेरी तरफ़ नज़र उठाकर देखने की ज़हमत भी न की। उस माहौल में मुझ पर कपकपी तारी हो गई और बदहवासी में मैंने वह ख़त हज़रत सुफ़ियान की तरफ़ फेंक दिया। हज़रत सुफ़ियान की नज़र जैसी ही ख़त पर पड़ी तो वह डर गए और ख़त से दूर हट गए; गोया वह कोई सांप है। फिर कुछ देर बाद सुफ़ियान ने अपनी आस्तीन के कपड़े से उस ख़त को उठाया और अपने पीछे बैठे हुए एक शख़्स की तरफ़ फेंका और कहा कि तुममें से कोई शख़्स इसको पढ़े, क्योंकि मैं अल्लाह से पनाह मांगता हूं किसी ऐसी चीज़ के छूने से जिसको किसी ज़ालिम ने छू रखा हो ।

चुनांचे उनमें से एक शख्स ने उस ख़त को खोला इस हाल में कि उसके हाथ भी कांप रहे थे। फिर उसने उसको पढ़ा। ख़त का मज़मून सुनकर सुफ़ियान किसी मुताज्जुब शख़्स की तरह मुस्कुराए और कहा कि इस ख़त को पलट कर उसकी पुश्त पर जवाब लिख दो। अहले मज्लिस में से किसी ने हज़रत सुफ़ियान से अर्ज़ किया कि हज़रत वह ख़लीफ़ा हैं, लिहाज़ा अगर किसी कोरे साफ़ काग़ज़ पर जवाब लिखवाते तो अच्छा था। हज़रत सुफ़ियान ने फ़रमाया कि नहीं इसी ख़त की पुश्त पर जवाब लिखो इसलिए कि अगर उसने यह कागज़ हलाल कमाई का इस्तेमाल किया है तो उसको इसका बदला दिया जाएगा और अगर यह कागज़ हराम कमाई का इस्तेमाल किया है तो अंक़रीब उसको अजाब दिया जाएगा। इसके अलावा हमारे पास कोई ऐसी चीज़ न रहनी चाहिए जिसे किसी जालिम ने हुआ हो, क्योंकि यह चीज दीन में खराबी का बाइस होगी।

फिर उसके बाद सुफियान सौरी ने कहा कि लिखो ” शुरू करता हूं अल्लाह के नाम से जो निहायत रहमवाला और बड़ा मेहरबान है।”

सुफ़ियान की जानिब से उस शख़्स की तरफ़ जिससे ईमान की मिठास और क्रिराअते कुरआन की दौलत को छीन ली गई।

बाद सलाम मसनून !

यह ख़त तुमको इसलिए लिख रहा हूं ताकि तुमको मालूम हो जाए कि मैंने तुमसे अपना दीनी रिश्ता यानी भाई-चारगी और मुहब्बत को मुंक़ता कर लिया है और यह बात याद रखना कि तुमने अपने ख़त में इस बात का इक़रार किया है कि तुमने अपने दोस्त व अहबाब को शाही खजाने से मालामाल कर दिया है। लिहाज़ा अब मैं इस बात का गवाह हूं कि तुमने मुसलमानों के बैतुल-माल का गलत इस्तेमाल किया है और मुसलमानों के बगैर इजाज़त के अपने निसाब पर खर्च किया और इस पर तुरह यह कि तुमने मुझसे भी इस आरजू का इज़हार किया कि मैं तुम्हारे पास आऊं। लेकिन याद रखो मैं इसके लिए कभी राजी न होऊँगा मैं और मेरे अहले मज्लिस जिसने भी तुम्हारे सात को सुना वह सब तुम्हारे ख़िलाफ़ गवाही देने के लिए इंशाअल्लाह कल क्रियामत के दिन ख़ुदाबंद कुद्दूस की अदालत में हाज़िर होंगे कि तुमने मुसलमानों के माल को गैर-मुस्तहिक लोगों पर खर्च किया।

ऐ हारून! जरा मालूम करो कि तुम्हारे इस फ्रेअल पर अहले इल्म, ख़ादिमे कुरआन, यतीम बेवा औरतें, मुजाहिदीन, आलिमीन सब रानी थे वा नहीं? क्योंकि मेरे नजदीक मुस्तहिक और गैर-मुस्तहिक दोनों की इजाजत लेनी जरूरी थी। इसलिए ऐ हारून! अब तुम इन सवालात के जवाबात देने के लिए अपनी कमर मजबूत कर लो। क्योंकि अंकरीब तुमको अल्लाह जल्ल शाहू के सामने जो आदिल व बाहिक्मत है हाज़िर होना है। लिहाजा अपने नफ़्स को अल्लाह से डराओ जिसने कुरआन की तिलावत और इल्म की मजलसों को छोड़कर जालिम और ज़ालिमों का इमाम बनना क़बूल कर लिया।

ऐ हारून! अब तुम सरीर पर बैठने लगे और हरीर तुम्हारा लिबास हो गया और ऐसे लोगों का लश्कर जमा कर लिया जो रिआया पर जुल्म करते हैं, मगर तुम इंसाफ़ नहीं करते। तुम्हारे ये लोग शराब पीते हैं, मगर तुम कोड़े दूसरों पर लगाते हो। तुम्हारे यही लश्कर (अफ़सरान) चोरी करते हैं मगर तुम हाथ काटते हो बेकुसूर लोगों के तुम्हारे यह कारिन्दे कत्ले आम करते हैं, मगर तुम ख़ामोश तमाशाई बने हो ऐं हारून कस मैदाने हथ कैसा होगा जब अल्लाह तआला की तरफ़ से पुकारने वाला पुकारेगा कि “ज़ालिमों को और उनके साथियों को हाज़िर करो।”

तो तुम उस वक्त आगे बढ़ोगे इस हाल में कि तुम्हारे दोनों हाथ तुम्हारी गर्दन से बंधे होंगे और तुम्हारे इर्द-गिर्द तुम्हारे जालिम मददगार होंगे और अंजामकार तुम उन जालिमों के इमाम बनकर दोजख की तरफ जाओगे उस दिन तुम अपने हसनात तलाश करोगे तो वह दूसरों की मीज़ान में होंगे और तुम्हारी मीज़ान में बुराइयां ही बुराइयां नज़र आएंगी और फिर तुमको कुछ नज़र नहीं आएगा हर तरफ अंधेरा ही अंधेरा होगा। लिहाजा अब भी वक़्त है कि तुम अपनी रिआया के साथ इंसाफ़ करो और यह भी याद रखो कि यह बादशाहत तुम्हारे पास हमेशा नहीं रहेगी। यह यक़ीनन दूसरों के पास चली जाएगी। चुनांचे यह अम्र ऐसा है कि बाज़ इससे दुनिया व आखिरत संवार लेते हैं और बाज़ दुनिया व आखिरत दोनों बर्बाद कर लेते हैं।

और अब ख़त के आखिर में यह बात गौर से सुनो कि आइंदा कभी मुझको ख़त मत लिखना और अगर तुमने ख़त लिखा तो भी याद रखना अब कभी मुझसे किसी जवाब की उम्मीद मत रखना। वस्सलाम।”

ख़त मुकम्मल कराके हज़रत सुफ़ियान ने उसको क्रासिद की तरफ़ फेंकवा दिया। उस पर न अपनी मुहर लगाई और न उसको छुआ। क़ासिद (उबाद) कहते हैं कि ख़त के मज़मून को सुनकर मेरी हालत गैर हो गई और दुनिया से एक दम इल्तिफ़ात जाता रहा। चुनांचे मैं ख़त लेकर कूफ़ा के बाज़ार में आया और आवाज़ लगाई कि है कोई ख़रीदार जो उस शख्स को ख़रीद सके जो अल्लाह तआला की तरफ जा रहा हो। चुनांचे लोग मेरे पास दिरहम और दीनार लेकर आए। मैंने उनसे कहा कि मुझे माल की जरूरत नहीं, मुझे तो सिर्फ़ एक जुब्बा और क़तवानी उबा चाहिए। चुनांचे लोगों ने ये चीजें मुझे मुहैया कर दीं। चुनांचे मैंने अपना वह क्रीमती लिवास उतार दिया जिसे मैं दरबार में हारून के पास जाते वक्त पहनता था और फिर मैंने घोड़े को भी हंका दिया। उसके बाद में नंगे सर पैदल चलता हुआ हारून रशीद के महल के दरवाजे पर पहुंचा। महल के दरवाज़े पर लोगों ने मेरी हालत को देखकर मेरा मजाक उड़ाया और फिर अंदर जाकर हारून से मेरी हाज़िरी की इजाज़त ली। चुनांचे मैं अंदर गया।

हारून रशीद ने जैसे ही मुझको देखा, खड़ा हो गया, और अपने सर पर हाथ मारते हुए कहने लगा “हाय बर्बादी, चाय खराबी, नासिद आबाद हो गया और भेजने वाला बर्बाद हो गया, अब उसे दुनिया की क्या जरूरत है। इसके बाद हारून ने बड़ी तेज़ी से मुझसे जवाब तलब किया। चुनांचे जिस तरह सुफ़ियान सौरी ने वह ख़त मेरी तरफ़ फेंकवाया था उसी तरह मैंने यह ख़त हारून रशीद की तरफ़ उछाल दिया। हारून रशीद ने फ़ौरन झुक कर अदब से उस ख़त को उठा लिया और खोलकर पढ़ना शुरू किया। पढ़ते-पढ़ते हारून रशीद के रुख़्सार आंसुओं से तर हो गए यहाँ तक कि हिचकी बंध गई।

हारून रशीद की यह हालत देखकर अहले दरबार में से किसी ने कहा कि अमीरुल मोमिनीन सुफ़ियान की यह जुर्रत कि वह आपको ऐसा लिखे, अगर आप हुक्म दें तो हम अभी सुफ़ियान को पकड़कर कैद कर लाएं ताकि उसको एक इबरत अंगेज़ सज़ा मिल सके। हारून ने जवाब दिया कि “ऐ मगरूर ! दुनिया के गुलाम सुफ़ियान को कुछ मत कहो। उनको उनकी हालत पर रहने दो। बखुदा दुनिया ने हमको धोखा दिया और यह वदवख्त बना दिया। तुम्हारे लिए मेरा यह मशवरा है कि तुम सुफ़ियान की मज्लिस में जाकर बैठी क्योंकि इस वक़्त सुफ़ियान ही हुजूर सल्ल० के हक़ीक़ी उम्मती हैं।”

क्रासिद उबाद कहते हैं कि उसके बाद हारून रशीद की यह हालत थी कि सुफ़ियान के उस ख़त को हर वक्त अपने पास रखते और हर नमाज़ के बाद उसको पढ़ते और खूब रोते यहां तक कि हारून का इंतकाल हो गया।

(हाल हैवान, जिल्द 3, पेज 266- 269)

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