15 आदाब Masjid के। जो मकानात जिकरुल्लाह, तालीमे- कुरआन, तालीम-दीन के लिए मख़्सूस हों वह भी मसजिद के हुक्म में है Masjid में pyaz खा कर जाना क्यू मना है ? | आदाब Masjid ke- Dawat~e~Tabligh Web Stories in Hindi…

15 आदाब Masjid ke
- मसाजिद के पन्द्रह आदाब
1. अव्वल यह कि मस्जिद में पहुंचने पर अगर कुछ लोगों को बैठा देखे तो उनको सलाम करें और कोई न हो तो लेकिन यह उस सूरत में है जबकि मस्जिद के हाज़ीरीन नफ़्ली तिलावत व तस्बीह वगैरह में मश्गुल न हों वर्ना उनको सलाम करना दुरुस्त नहीं
2. दूसरे यह कि मस्जिद में दाखिल होकर बैठने से पहले दो रक्अत तहय्यितुल मस्जिद की पढ़े, यह भी जब है कि इस वक़्त नमाज पढ़ना मकरूह न हो, जैसे ठीक आफ़ताब के निकलने या छुपने या इस्तिका निस्कुन्नहार (दोपहर) का वक्त न हो
3. तीसरे वह है कि मस्जिद में खरीद व फ़रोत न करे।
4. चौथे यह कि वहाँ तीर और तलवार न निकाले ।
5. पाँचवें यह कि मस्जिद में अपनी गुमशुदा चीज़ तलाश करने का एलान न करे।
6. छठे यह कि मस्जिद में आवाज बुलन्द न करे।
7. सातवे यह कि वहां दुनिया की बातें न करे ।
8. आठवें यह कि मस्जिद में बैठने की जगह में किसी से झगड़ा न करे ।
9. नवें यह कि जहाँ तक में पूरी जगह न हो वहाँ घुसकर लोगों पर तंगी पैदा न करे।
10. दसवें यह कि किसी नमाज़ पढ़ने वाले के आगे से न गुज़रे ।
11. ग्यारहवें यह कि अपने बदन के किसी हिस्से से खेल न करे।
12. बारहवें यह कि अपनी उंगलियाँ न चटखाये ।
13. तेरहवें यह कि मस्जिद में थूकने, नाक साफ़ करने से परहेज़ करे ।
14. चौदहवें यह कि नजासत से पाक व साफ़ रहे, और किसी मजनूँ को साथ न ले जाये।
15. पन्द्रहवें यह कि यहाँ कसरत से जिकरुल्लाह में मशगूल रहे।
क़र्तबी ने यह पन्द्रह आदाब लिखने के बाद फ़रमाया है जिसने यह काम कर लिये उसने मस्जिद का हक़ अदा किया और मस्जिद उसके लिए हिर्ट्ज़ व अमान की जगह बन गई ।
– मआरिफुल क़ुरआन, हिस्सा 6, पेज 416, पारा 18, सूरः नूर
Masjid ke आदाब- Web Stories
Masjid कौन-कौन सा है ?
- जो मकानात जिकरुल्लाह, तालीमे- कुरआन, तालीम-दीन के लिए मख़्सूस हों वह भी मसजिद के हुक्म में है
तफ़्सीर बहरे-मुहीत में अबू हय्यान ने फ़रमाया की लफ्ज़ कुरआन में आम है। जिस तरह मसाजिद उसमें दाख़िल हैं इसी तरह वह मकानात जो ख़ास तालीमे-कुरआन, तालीमे-दीन व वञ्ज्ञ्ज व नसीहत या जिक्र व शगल के लिए बनाये गये हों जैसे मदारिस और ख़ानक़ाहें वह भी इस हुक्म में दाख़िल हैं, उनका भी अदब व एहतिराम लाज़िम है।
-मआरिफुल कुरआन, हिस्सा 6, पेज 417, पारा 18 सूरः नूर
Masjid को कैसे बनाएं ?
- रफ़ा-ए-मसजिद का मतलब
अल्लाह तआला ने इजाजत दी है मस्जिदों को बुलन्द करने की, इजाज़त देने से मुराद उसका हुक्म करना है और बुलन्द करने से मुराद उनकी ताज़ीम करना। हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया कि बुलन्द करने के हुक्म में अल्लाह तआला ने मस्जिदों में लव काम करने और लग्व कलाम करने से मना फ़रमाया है। -इब्ने कसीर
रफ़ा-ए-मसाजिद का मपहूम जम्हूर सहावा व ताबिर्डन के नज़दीक यही है कि मस्जिदें बनाई जायें और उनको हर बुरी चीज़ से पाक साफ रखा जाये कुछ हजरात ने इसमें मसजिदों की जाहिरी शान व शौकत और तामीरी बुलन्दी को भी दाखिल करार दिया है।
हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने मसजिदे नव्धी की तामीर साल की लकड़ी से शानदार बनाई थी और हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रह० 1 ने मसजिदे नब्बी में नक्श व निगार और तामीरी खूबसूरती का काफ़ी एहतिमाम करवाया था और यह जमाना अजला सहावा का था किसी ने उनके काम पर इनकार नहीं किया और बाद के बादशाहों ने तो मसजिदों की तामीरात में बड़े अम्बाल खर्च किये हैं। वलीद बिन अब्दुल मुल्क ने अपने जुमान-ए-ख़िलाफ़त में दमिश्क की जामा मसजिद की तामीर व तजुइन पर पूरे मुल्क शाम की सालाना आमदनी से तीन गुना ज्यादा माल खर्च किया। उनकी बनाई हुई मसजिद आज तक कायम है। इमाम आज़म अबू हनीफ़ा रह० के नज़दीक अगर नाम व नमूद और शोहरत के लिए न हो। अल्लाह के नाम और घर की ताज़ीम की नीयत से कोई शख़्स मसजिद की तामीर शानदार बुलन्द व मुस्तहकम खूबसूरत बनाये तो कोई मनाही नहीं बल्कि उम्मीद सवाब की है।
– मआरिफुल कुरआन, हिस्सा 6, पेज 415, पारा 18, सूरः नूर
Masjid में pyaz खा कर जाना क्यू मना है ?
अक्रमा व मुजाहिद रह०, इमामे तफ़्सीर ने फ़रमाया कि रफ़अ से मुराद मस्जिद का बनाना है। जैसे बिना-ए-काबा के बारे में है: कुरआन में आया है कि इसमें रफ़ा-ए-क़वाइद से मुराद बिना-ए-क़वाइद है। और हज़रत हसन बसरी रह० ने फ़रमाया कि रफ़अ मस्जिद से मुराद मसाजिद की ताज़ीम व एहतिराम और उनकी नजासतों और गंदी चीज़ों से पाक रखना है जैसा कि हदीस में आया है कि मस्जिद में जब कोई नजासत लाई जाये तो मस्जिद उससे इस तरह सिमटती है जैसे इंसान की खाल आग से ।
हज़रत अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि जिस शख्स ने मस्जिद में से नापाकी और गंदगी और तकलीफ़ देने वाली चीज़ को निकाल दिया अल्लाह तआला उसके लिए जन्नत में घर बना देंगे।
-इब्न माजा
और हज़रत आईशा रज़ियल्लाहु अन्य फरमाती है कि राह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें हुक्म दिया कि हम अपने घरों में भी मस्जिद यानी नमाज़ पढ़ने की मस जगह बनायें और उनको पाक साफ रखने का एहतिमाम करें।
और असल बात यह है कि लफ़्ज़ में मस्जिदों का बनाना भी दाख़िल है और उनकी तअज़ीम व तक्रीम और पाक व साफ़ रखना भी, पाक व साफ़ रखने में यह भी दाखिल है कि हर नजासत और गंदगी से पाक रखें, और यह भी दाख़िल है कि उनको हर बदबू की चीज़ से पाक रखें। इसीलिए रसूले करीम सल्ल० ने लहसुन या प्याज़ खाकर बगैर मुँह साफ़ किये हुए मस्जिद में आने से मना फ़रमाया है जो आम हदीस की किताबों में मारूफ है, सिग्रेट हुक्का तम्बाकू का पान खाकर मस्जिद में जाना भी उसी हुक्म में है। मस्जिद में मिट्टी का तेल जलाना, जिसमें बबू होती है वह भी उसी हुक्म में है।
सही मुस्लिम में हज़रत फ़ारूक़ आज़म रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है फ़रमाया कि मैंने देखा है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जिस शख्स के मुँह से लहसुन या प्याज़ की बदबू महसूस फ़रमाते थे उसको मस्जिद से निकाल कर बक्रीअ में भेज देते थे, और फ़रमाते थे कि जिसको लहसुन प्याज़ खाना ही हो तो उसको ख़ूब अच्छी तरह पकाकर खाये कि उनकी बदबू मारी जाये। हज़रात फुकहा ने इस हदीस से इस्तिदलाल करके फ़रमाया कि जिस शख्स को कोई ऐसी बीमारी हो कि उसके पास खड़े होने वालों को उससे तक्लीफ़ पहुंचे उसको भी मस्जिद से हटाया जा सकता है, उसको खुद चाहिए कि जब ऐसी बीमारी में है तो नमाज़ घर में पढ़े।
– मआरिफुल कुरआन, हिस्सा 6 पेज 414, पारा 18 सूरः नूर
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