जो Jannat में दाखिल होगा, उसमें हमेशा रहेगा। Jannat में किसी को Maut न आएगी। न उससे निकाले जाएंगे, न निकलना चाहेंगे । कौन गुमराह न हो स्केगा ? |आराफ़ क्या है ? |मौत खतम | Dawat-e-Tabligh….

क़ियामत का दिन कितना बड़ा होगा ?
- क़ियामत के दिन की लंबाई
क़ियामत का दिन बहुत लंबा होगा। हदीस शरीफ़ में इसकी लंबाई 50,000 वर्ष बतायी गयी है।’ यानी पहली बार सूर फूंकने के वक्त से लेकर बहिश्तयों के बहिश्त में जाने और दोज़खियों के दोज़ख़ में करार पकड़ने तक पचास हज़ार वर्ष की मुद्दत होगी। इतना बड़ा दिन मुश्किों, काफिरों और मुनाफिकों के लिए बड़ा सख्त होगा। ईमान वाले बंदों के लिए अल्लाह आता आसानी फरमा देंगे। चुनांचे हदीस शरीफ में है कि आहज़रत ने उस दिन के बारे में सवाल किया गया जिसकी लंबाई पचास हजार वर्ष की होगी कि उस दिन की लंबाई का क्या ठिकाना है (भला वह कैसे कटेगा ?)
आप ने इर्शाद फ़रमाया कि कुसम उस ज़ात की जिसके कब्ज़े में मेरी जान है, बिला शुव्हा वह दिन मोमिन पर इतना आसान कर दिया जाएगा कि फर्ज़ नमाज़ जो दुनिया में पढ़ा करता था, उससे भी हल्का होगा।’ खट से गुज़र भी जाएगा और हौल व मुसीबत होने की वजह से परेशानी भी न होगी ।
मौत की मौत
दोजख में हमेशा के लिए काफिर और मुश्रिक मुनाफिक ही रहेंगे और उनको उसमें कभी मौत न आयेगी, न अज़ाब हल्का किया जाएगा। जैसा कि सूरः फातिर में इर्शाद है :
‘और जो लोग काफिर हैं, उनके लिए दोजख की आग है न तो उनको कुज़ा आयेगी कि मर ही जाएं और न दोज़ख़ का अज़ाब ही उनसे हल्का किया जाएगा। हम हर काफिर को ऐसी ही सजा देते हैं।’
गुनाहगार मुसलमान जो दोजख में जाएंगे। सजा भुगतने के बाद जन्नत में दाखिल कर दिए जाएंगे। जो जन्नत में दाखिल होगा, उसमें हमेशा रहेगा। जन्नत में किसी को मौत न आएगी। न उससे निकाले जाएंगे, न निकलना चाहेंगे ।
क्या मौत अब कभी नहीं आएगी?
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर फ़रमाते हैं कि आंहज़रत सैयदे आलम ने फ़रमाया कि जब (सारे) जन्नती जन्नत में और (सारे) दोज़ख़ी दोज़ख़ में पहुंच चुकेंगे तो मौत हाज़िर की जाएगी, यहां तक कि जन्नत और दोज़ख़ के दर्मियान लाने के बाद ज़बह कर दी जाएगी। फिर एक पुकारने वाला ज़ोर से पुकारेगा कि ऐ जन्नतियो! (अब) मौत नहीं और ऐ दोज़ख़ियो! (अब) मौत नहीं! इस एलान की वजह से जन्नतियों की खुशी बढ़ जाएगी और दोज़ख़ियों के रंज पर रंज की बढ़ोत्तरी हो जाएगी।
-मिश्कात शरीफ (बुख़ारी व मुस्लिम)
मौत खतम
हज़रत अबू सईद खुदरी से रिवायत है कि आंहज़रत सैयदे आलम ने (सूरः मरयम की आयत) ‘व अन्जिरहुम यौमल हसरति’ पढ़ी (और इसके बाद हसरत की तफ़सीर में) फ़रमाया कि मौत (जिस्म व शक्ल देकर) लायी जाएगी। गोया कि वह शक्ल व सूरत में सफेद मेंढा होगी जिसमें काले धब्बे भी होंगे और वह जन्नत और दोज़ख़ के दर्मियान वाली दीवार पर खड़ी की जाएगी। फिर जन्नत वालों को आवाज़ दी जाएगी कि ऐ दोज़ख़ वालो ! यह सुनकर वे (भी) नज़र उठाकर देखेंगे। इसके बाद उन (तमाम जन्नतियों और दोज़नियों) से सवाल होगा कि क्या तुम इसको पहचानते हो? वे सब जवाब देंगे कि हां (पहचानते हैं) यह मौत है। इस के बाद (इन सबके सामने यह एलान करने के लिए कि अब मौत न आएगी) मौत को ज़बह कर दिया जाएगा (उस वक़्त जन्नत वालों की खुशी और दोज़ख़ वालों का रंज बहुत ज़्यादा होगा)। पस अगर जन्नत वालों के लिए हमेशा ज़िन्दा और बाकी रहने का फैसला अल्लाह की तरफ से न हो चुका होता तो उस वक्त की खुशी में मर जाते और अगर दोज़ख़ वालों के लिए हमेशा के लिए मौत न आने और दोज़ख़ में हमेशा पड़े ही रहने का फैसला अल्लाह की तरफ़ से न हो चुका होता तो उस वक़्त के रंज मर जाते।
– तिआराफ़र्मिज़ी शरीफ
आराफ़ क्या है ?
- आराफ़ वाले
जन्नत वालों और दोन वालों के दर्मियान एक आइ वानी एक दीवार होगी। इस दीवार का या इस दीवार के ऊपरी हिस्से का नाम आराफ है। आराफ पर थोड़ी-सी मुद्दत के लिए उन मुसलमानों को रखा जाएगा, जिनकी नेकियां और बुराईयां वज़न में बराबर उतरेंगी। आराफ के ऊपर से ये लोग जन्नती और दोज़खी दोनों को देखते और पहचानते होंगे और दोनों फरीक से बातचीत करेंगे जिसकी तफसील सूरः आराफ में आयी है। चुनांचे अल्लाह का इर्शाद है :
उम्मीद पूरी कर दी जाएगी
‘और इन दोनों (फरीक) जन्नतियों और दोखियों के दर्मियान एक आड़ (यानी दीवार) होगी और उस दीवार या उसके ऊपरी हिस्से का नाम आराफ़ है। उस पर से जन्नती और दोज़खी सब नज़र आएंगे। आराफ के ऊपर बहुत से आदमी होंगे वे (जन्नतियों और दोज़खियों में से) हर एक को उनकी निशानी से पहचानते होंगे और ये (आराफ वाली) जन्नत वालों को पुकार कर कहेंगे कि ‘अस्सलामु अलैकुम’। अभी ये आराफ़ वाले जन्नत में दाखिल न हुए होंगे और उसके उम्मीदवार होंगे।
आगे फ़रमाया :
‘और जब इन (आराफ) वालों की निगाहें दोजख वालों की तरफ जा पड़ेंगी, तो उस वक्त (हौल खाकर) कहेंगे कि ऐ हमारे रब! हम को इन जालिम लोगों के साथ अजाब में शामिल न कीजिए फिर आराफ वालों का दोजख वालों को मलामत करने का ज़िक्र फ़रमाया :
‘और आराफ वाले दोनियों में से बहुत-से आदमियों को जिनको कि वे उनकी निशानियों से पुकारेंगे और कहेंगे कि तुम्हारी जमाअत और तुम्हारा अपने को बड़ा समझना तुम्हारे कुछ काम न आया। (अब देखो ) क्या ये (जो जन्नत में मज़े उड़ा रहे हैं)। वही (मुसलमान) हैं जिनके बारे में तुम कसमें खा कर कहा करते थे कि इन पर अल्लाह (अपनी) रहमत न करेगा। (हालांकि इन पर रहमत यह हुई कि इनसे कह दिया गया कि जाओ जन्नत में, तुम पर न कुछ डर है, न तुम रंजीदा होगे।’ -ध्यानुल कुरआन
सच्ची कामयाबी
आराफ वाले आखिर में जन्नत में दाखिल हो जाएंगे। जन्नत और दौज़न दो ही जगहें आमाल के बदले के लिए अल्लाह तआला ने मुकर्रर फरमाए हैं। जन्नत में जाना सच्ची कामयाबी है और दोज़ख़ में जाना असली घाटा और सच्चा नुकसान है। जिससे बड़ा कोई नुकसान नहीं। इस दुनिया में लोग कामयाबी और बामुरादी की कोशिश करते हैं और तरह-तरह की मुसीबतों को अलग-अलग इरादों में कामयाब होने के लिए खुशी-खुशी बरदाश्त करते हैं।
बेहतर मरने वाले कौन है ?
अल्लाह तआला ने अपने रसूलों और किताबों के ज़रिए हश्र व नश्र और हिसाब व किसास, मीज़ान, पुलसिरात, जन्नत – दोज़ख़ के हालात से और सच्चे नफा-नुकसान और वाकई कामयाबी से ख़बरदार फ़रमा दिया है और नेक आमाल के अच्छे बदले से कभी तफसील से, कभी बेतफ़सील बताकर भले कामों के करने पर उभारा और उसकी ताकीद फ़रमा दी है। दुनिया में जो आता है। ज़रूर मेहनत व कोशिश और अमल करता है, भले-बुरे सभी दौड़-धूप करते और जान व माल और वक्त खर्च करते हैं। उसमें ज्यादा बदकिस्मत कोई भी नहीं है, जिसने जिंदगी की बेहतरीन पूंजी और जान व माल के सरमाए को दोज़ख़ के काम में खर्च करके बेइंतिहा घाटा ख़रीदा और अपनी जान को आख़िरत के अज़ाब में डाला। मरना तो सब ही को है। मगर बेहतर मरने वाले वे हैं जो जन्नत के लिए जीते और मरते हैं। यही बन्दे कामयाब और बामुराद हैं। सूरः आले इमरान में फ़रमाया :
‘हर जान को मौत का मज़ा चखना है और तुमको पूरे बदले कियामत ही के दिन मिलेंगे। सो जो आदमी दोज़ख़ से बचा लिया गया और जन्नत में दाखिल किया गया, पस वह कामयाब हुआ और दुनिया की जिंदगी धोखे के सिवा कुछ भी नहीं है ।’
कौन गुमराह न हो स्केगा
अल्लाह तआला ने जब हज़रत आदम व हज़रत हौवा को ज़मीन पर भेजा था तो फ़रमा दिया था कि जो मेरी हिदायत की पैरवी करेगा, सो वह गुमराह न होगा, न बदकिस्मत होगा और यह फ़रमा दिया था कि जो मेरी हिदायत की पैरवी करेगा तो ऐसों पर न कुछ डर होगा, न ऐसे लोग दुखी होंगे और जो कुफ़ करेंगे और झुठलाएंगे हमारे हुक्मों को, ये दोज़ख़ वाले होंगे, उसमें हमेशा रहेंगे। सूरः ताहा और सूरः बकरः में यह एलान मौजूद है। जिसने दुनिया में इस एलान पर कान धरा और अल्लाह की हिदायत को माना । बेशुव्हा न यहां राह से भटका हुआ है, न आख़िरत में नामुराद और बदकिस्मत होगा और जिसने अल्लाह की हिदायत को पीठ पीछे डाला, उसने हुक्मों को झुठलाया; दोज़ख़ में जा कर अपने किरदार (चरित्र) का बदला पाएगा।