Nafsani khwahishat से बचने का फ़ायदा Dawat~e~Tabligh

नफ़्स की ख्वाहिशात se bachne ka faida, अपने नफ़्स की ख्वाहिशात में पड़ने से बचा लिया तो ऐसे बन्दे का ठिकाना जन्नत होगी। Nafsani khwahishat से बचने का फ़ायदा Dawat~e~Tabligh in Hindi…

Nafsani khwahishat से बचने का फ़ायदा Dawat~e~Tabligh
Nafsani khwahishat से बचने का फ़ायदा Dawat~e~Tabligh

Nafsani khwahishat से बचने का फ़ायदा

  • अजीब किस्सा

बादशाह की बीवी ने बादशाह से कहा, ‘तू जहन्नमी है।’ बादशाह ने कहा, अगर मैं जहन्नमी हूं तो तुझे तीन तलाक, अब यह बीवी हलाल है या हराम ?

इमाम शाफ़ई रह० या किसी और फ़क़ीह के दौर का वाक़िया है कि उस वक्त का बादशाह अपनी बीवी के साथ तलिया में था। उसकी बीवी किसी वजह से उससे नाराज़ थी, बादशाह चाहता कि मुहब्बत व प्यार में वक़्त गुजारें लेकिन बीवी जली बैठी थी और चाहती थी कि उसकी शक्ल एक आंख भी न देखूं । इधर से इसरार उधर से इंकार जब बहुत देर गुज़र गई तो बादशाह ने मुहब्बत में कुछ और बात कर दी। जब बादशाह ने बात कर दी तो बीवी ने कहा, जहन्नमी दफ़ा हो यहां से जब बीवी ने इतनी बड़ी बात कह दी तो बादशाह को भी गुस्सा आ गया। चुनांचे कहने लगा, ‘अच्छा अगर मैं जहन्नमी हू तो तुझे भी तीन तलाक़ ।’ अब बादशाह ने बात तो कह दी, मगर वह दोनों पूरी रात मुतफ़क्किर रहे कि आया तलाक़ हुई भी है या नहीं।

खैर सुबह उठे तो उनके दिमाग ठंडे हो चुके थे। चुनांचे फतवा लेने के लिए मुतफ़क्किर हो गए। किसी मक़ामी आलिम के पास पहुंचे और उनको पूरी सूरतेहाल बताई और कहा कि बताएं कि तलाक़ वाक्रेअ भी हुई या नहीं, क्योंकि मशरूत थी। उन्होंने कहा, मैं इसका फ़तवा नहीं दे सकता क्योंकि मैं नहीं जानता कि तुम जहन्नमी हो या नहीं। कई और उलमा से भी पूछा गया मगर उन सबने कहा कि हम इसका फ़तवा नहीं दे सकते क्योंकि बात मश्रूत है।

बादशाह चाहता था कि इस क़द्र खूबसूरत और अच्छी बीवी मुझसे जुदा न हो। मगर मसला का पता नहीं चल रहा था कि अब हलाल भी है या नहीं। चुनांचे बड़ा मसला बना। बल्कि बादशाह का मसला तो और ज़्यादा फलता है। बिल आखिर एक फ़क़ीह को बुलाया गया और उनसे अर्ज़ किया गया कि आप बताएं। उन्होंने फ़रमाया कि मैं जवाब तो दूंगा मगर उसके लिए मुझे बादशाह से तंहाई में कुछ पूछना पड़ेगा उसने कहा ठीक है, पूछें। चुनांचे उन्होंने बादशाह से अलहदगी में पूछा कि क्या आपकी जिंदगी में कभी कोई ऐसा मौक़ा आया है कि आप उस वक़्त गुनाह करने पर क़ादिर हों, मगर आपने अल्लाह के ख़ौफ़ से वह कबीरा गुनाह छोड़ दिया हो।

बादशाह सोचने लगा। कुछ देर के बाद उसने कहा, “हां एक मर्तबा ऐ सा वाकिया पेश आया था।” पूछा, “वह कैसे ?” वह कहने लगा, “एक मर्तबा जब मैं आराम के लिए दोपहर के वक्त अपने कमरे में गया तो मैंने देखा कि महल में काम करनेवाली लड़कियों में से एक बहुत ही लड़की मेरे कमरे में कुछ चीजें संवार रही थी जब में कमरे में दाखिल हुआ 1 तो मैंने उस लड़की को कमरे में अकेले पाया। उसके हुस्न व जमाल को देखकर मेरा ख़्याल बुराई की तरफ़ चला गया। चुनांचे मैंने दरवाज़े की कुंडी लगा दी और उसकी तरफ़ आगे बढ़ा। वह लड़की एक नेक अफ़ीफ़ा और पाकदामन थी। उसने जैसे ही देखा कि बादशाह ने कुंडी लगा ली है और मेरी तरफ़ ख़ास नज़र के साथ क़दम उठा रहा है तो वह फ़ौरन घबरा गई। जब मैं उसके करीब पहुंचा तो वह कहले लगी ‘या मालिकु इत्तक़ल्लाह’। ऐ बादशाह ! अल्लाह से डर । जब उसने यह अल्फ़ाज़ कहे तो अल्लाह का नाम सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए और अल्लाह का जलाल मेरे ऊपर ग़ालिब आ गया। चुनांचे मैंने उस लड़की से कहा, अच्छा, चली जा मैंने दरवाज़ा खोला और उसे कमरे से भेज दिया। अगर में गुनाह करना चाहता तो उस वक़्त उस लड़की से गुनाह कर सकता था मुझसे कोई पूछने वाला नहीं था मगर अल्लाह के जलाल, अज़्मत और ख़ौफ़ की वजह से मैंने उस लड़की को भेज दिया और गुनाह से बाज़ आया।”

उस फ़क़ीह ने फ़रमाया कि अगर तेरे साथ यह वाक्रिया पेश आया था तो मैं फ़तवा देता हूँ कि तू जन्नती है और तेरी तलाक़ वाक्रेअ नहीं हुई है। अब दूसरे उलमा ने कहा, “जनाब! आप कैसे फ़तवा दे सकते हैं?”

उन्होंने फ़रमाया, जनाब! मैंने अपनी तरफ़ से फ़तवा नहीं दिया बल्कि यह फ़तवा तो कुरआन दे रहा है। वह हैरान हो गए कि कुरआन ने फ़तवा कहां दिया। उन्होंने जवाब में क़ुरआन की आयत पढ़ी :

कि जो अपने रब के सामने खड़े होने से डर गया और उसने

अपने नफ़्स की ख्वाहिशात में पड़ने से बचा लिया तो ऐसे बन्दे का ठिकाना जन्नत होगी।

फिर उन्होंने बादशाह को मुखातिब करके फ़रमाया, चूंकि तुमने अल्लाह के ख़ौफ़ की वजह से गुनाह को छोड़ा था इसलिए में लिखकर देता हूं कि अल्लाह तआला तुम्हें जन्नत अता फ़रमा देंगे।

अल्लाह तआला हमें मईयत का यह इस्तहज़ार नसीब फ़रमा दें, हमें गुनाहों की लज़्ज़त से महफ़ूज़ फ़रमा दें और बलिया जिंदगी गुनाहों से पाक होकर गुजारने की तौफ़ीक़ अता फरमा दें (आमीन, सुम-म आमीन)

इश्क़ की चोट तो पड़ती है सभी पर यकसां, 

ज़फ़ के फर्क से आवाज़ बदल जाती है।

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