Fazar नमाज़ की नीयत , Zohar नमाज़ की नीयत, Asar नमाज़ की नीयत , Magrib नमाज़ की नीयत , Isha नमाज़ की नीयत , वाजिब नमाज़ की नीयत, Sunnat namazo की नीयत , नफ़्ल namazo की नीयत…

Fazar नमाज़ की नीयत
मैं नीयत करता हूँ दो रक्अत नमाज़ फ़र्ज़ फज्र, वास्ते अल्लाह के, रुख मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़ ।
Zohar नमाज़ की नीयत
मैं नीयत करता हूँ चार रक्अत नमाज़ फ़र्ज़ ज़ुहर, वास्ते अल्लाह के, रुख मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़ ।
Asar नमाज़ की नीयत
मैं नीयत करता हूँ चार रक्अत नमाज़ फ़र्ज़ अस्र, वास्ते अल्लाह के, रुख मेरा काबा शरीफ़ की तरफ।
Magrib नमाज़ की नीयत
मैं नीयत करता हॅू तीन रक्अत नमाज़ फ़र्ज़ मग़रिब, वास्ते अल्लाह के, रुख मेरा काबा शरीफ़ की तरफ।
Isha नमाज़ की नीयत
मैं नीयत करता हूँ चार रक्अत नमाज़ फ़र्ज़ इशा, वास्ते अल्लाह के, रुख़ मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़ ।
वाजिब नमाज़ की नीयत
मैं नीयत करता हूँ, तीन रक्अत नमाज़ वित्र वाजिब, वास्ते अल्लाह के, रुख मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़ ।
दिन-रात में सिर्फ तीन रक्अत वित्र वाजिब हैं, जो इशा के बाद पढ़े जाते हैं। अगर आप जमाअत से नमाज़ पढ़ रहे हैं तो आपके ज़ेहन में यह भी होना चाहिए कि मैं इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ रहा हूँ।
Sunnat namazo की नीयत
मैं नीयत करता हूँ 2 या 4 रक्अत नमाज़ सुन्नत, वक़्त फज्र, जुहर, अस्र, मरिब या इशा, वास्ते अल्लाह के, रुख़ मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़ ।
नफ़्ल namazo की नीयत
सुन्नत नमाज़ ही की तरह नफ़्ल नमाज़ की नीयत भी की जाती है, सिर्फ नमाज़ सुन्नत के बजाय नमाज़ नफ्ल कहा जाता है।
वुज़ू, गुस्ल और नमाज़ में कुछ काम फ़र्ज़ हैं, कुछ वाजिब, कुछ सुन्नत और कुछ मुस्तहब कुछ चीजें ऐसी हैं जिनको वुज़ू, गुस्ल और नमाज़ में नहीं करना चाहिए, ये मकरूह कहलाती हैं। हम इन कामों और चीज़ों को अलग-अलग लिख रहे हैं
Jumma की नमाज कैसी पड़ी जाती है ?
जुम्आ के दिन जुहर के चार फ़र्ज़ी के बजाय नमाज़ जुआ दोगाना अदा किया जाता है। नमाज़ से पहले दो अज़ानें होती हैं। पहली अज़ान नमाज़ की अज़ान होती है। दूसरी अज़ान ख़ुत्बे की।
पहली अज़ान के बाद आप सुन्नतें पढ़िए, खुत्बे की अज़ान के बाद फ़ौरन ख़ुत्बा शुरू हो जाता है। ख़ुत्बा पूरी तवज्जोह से सुनना चाहिए। इस वक़्त कोई दूसरा काम करना या नमाज़ पढ़ना दुरुस्त नहीं, मना है। जुम्आ की नमाज़ के लिए गुस्ल करना सुन्नत है। ख़ुश्बू लगाना और पाक-साफ़ कपड़े पहन्ना मुस्तहब है।
जब आप मस्जिद में या जामा मस्जिद में दाख़िल हों तो पहले बैठिए नहीं बल्कि अगर सुन्नतें पढ़नी हैं तो फ़ौरन सुन्नतें पढ़नी शुरू कर दीजिए। इस तरह इन सुन्नतों का सवाब दोगुना होगा – एक उस वक़्त की सुन्नतों या नफ़्लों का और दूसरा तहीयतुल-मस्जिद का लेकिन अगर आप बैठ गये, फिर खड़े होकर सुन्नतें पढ़ने लगे, तो सिर्फ सुन्नतों या नफ़्लों का सवाब मिलेगा, तहीयतुल-मस्जिद का सवाब नहीं मिलेगा, क्योंकि बैठ जाने के बाद तहीयतुल-मस्जिद का वक़्त ख़त्म हो जाता है। अगर आपने वुज़ू भी किया था फिर मस्जिद में दाख़िल होकर सुन्नतें पढ़नी शुरू कर दीं तो आपको तीन सवाब मिल सकते हैं, बशर्ते कि आप नीयत कर लें
1. वक़्त की सुन्नतों या नफ़्लों का,
2. तहीयतुल – वुज़ू का,
3. तहीयतुल-मस्जिद का ।
‘तहीयत’ का मतलब अदब है, यानी वुज़ू और मस्जिद में दाख़िल होने का यह अदब है कि दोगाना नफ़्ल आप तहीयतुल-मस्जिद या तहीयतुल वुज़ू की नीयत से अदा करें या उन सुन्नतों या नफ़्लों में, जो आप पढ़ें, तहीयतुल वुज़ू और तहीयतुल-मस्जिद की नीयत कर लें ।