हज़रत मौलाना मुहम्मद यूसुफ़ साहब की अहम तक़रीर, लोगों के हालात दुरुस्त क्यों नहीं है? लोगों के Problems दुरुस्त कैसे होगी? |Hazratji Molana Yousuf Bayan in Hindi| Dawat-e-Tabligh

रईसुत्तब्लीग़ हज़रत मौलाना मुहम्मद यूसुफ़ साहब (रह०) की
एक अहम तक़रीर
यह तक़रीर मियां जी मुहम्मद ईसा की बयाज़ से लफ़्ज़ व लफ़्ज़ नक़ल की गई है।
लोगों के हालात दुरुस्त क्यों नहीं है? – Hazratji Molana Yousuf
भाई दोस्तो ! बड़ी दिक़्क़त की बात यह है कि अपनी ग़लतकारी की बुनियाद पर हमारा ज़ेहन इंफ़िरादी बन चुका है, दीन के बारे में भी और दुनिया के बारे में भी, यहां के बारे में भी और आख़िरत के बारे में भी ज़ेहन यह बन गया कि बस अपनी ज्ञात वाले हाल में लगा रहे, ख्वाह दीन का हाल हो या दुनिया का, इससे अपना मस्अला हल हो जाएगा, हालांकि शख़्सी अह्वाल पर ताक़त खर्च करने से बला व मुसीबत कम नहीं होती, बल्कि इज़ाफ़ा ही होता है। इज्तिमाई अह्वाल को जब तक ठीक न बनाया जावे, उस वक़्त तक शख़्सी हालात दुरुस्त होना मुश्किल है। अगर इज्तिमाई ज़िंदगी की ख़राबी पर कोई इज्तिमाई मुसीबत आ पड़े, तो फिर हर किसी की शख़्सी भी बिगड़ती चली जावेगी और इसके ख़िलाफ़ अगर इज्तिमाई जिंदगी को बेहतर बनाने को सई की जा रही होगी, तो एक-एक शख़्स का इंफ़िरादी मस्अला भी बेहतर होता चला आवेगा, जब किसी क़ौम, मुल्क या उम्मत का इज्तिमाई मस्अला बिगड़ा हुआ हो और ताक़त उसकी दुरुस्तगी पर लगाई जावे, तो वह इज्तिमाई भी दुरुस्त हो जाता है और हर किसी का शख़्सी भी दुरुस्त हो जाता है। हमें ग़लतफ़हमी होती है कि फ़्लां तदबीर के न करने की वजह से मामला बिगड़ा है, हालांकि हमारे एक-एक मस्अले का बिगड़ना और बनना इज्तिमाई मसले के साथ है।
हां, अगर थोड़े से आदमी इज्तिमाई मस्अले पर ताक़त लगावें, तो सबके इज्तिमाई और इफ़िरादी मस्अले दुरुस्त हो जाएंगे और अगर कुछ। लोग भी पूरी क़ौम में उसका फ़िक रखने वाले न हुए तो इज्तिमाई के साथ हर किसी का शख्सी मस्अला भी बिगड़ जाएगा और सिवाए हसरत व यास के कुछ हासिल न होगा। इज्तिमाई मस्अले के बिगड़ने की सूरत में अगर क़ौम के औलिया अल्लाह उसके सुधार के लिए रास्तों को रो-रोकर भी दुआएं करेंगे तो उनकी दुआएं भी हालात को बेहतर नहीं बना सकतीं।
अगर अल्लाह तआला के यहां से फ़ैसला हो जाए कि किसी मुल्क के इंसान भूखे मरें तो अगर भूख से बचने के लिए एक-एक शख़्स पूरी तरह जान भी खपा रहा होगा, तब भी एक-एक करके भूख से हलाक हो जाएंगे। अपनी ज्ञात के मस्अले में लग जाना ही तो इज्तिमाई के बिगाड़ का ज़रिया है। जूं-जूं अपनी ज्ञात के लिए जान खपावेगा, उसी क़दर इज्तिमाई हालात बिगड़ते जाएंगे और यहां तक बिगड़ेंगे कि हदीसों में आता है कि लोग क़ब्रों पर से गुजरते हुए हसरत करेंगे कि काश, हम भी क़ब्रों में होते, आदमी-आदमी को काट कर खा जावेगा,
यह जब होगा कि हर किसी का जज्बा जानवरों की तरह सिर्फ़ अपनी ही ज्ञात के लिए हो, ऐसे इंसान इंसानों के जामे से दरिंदे होते हैं, सारी परेशानी इस वजह से है कि वक़्त तो इज्तिमाई मस्अलों के लिए कुर्बानी देने का है और कोशिश इस बात की कर रहे हैं कि अच्छा है, जब तक दुकान चलती रहे चलाओ या ज़मीन में लगा जावे, लगे रहो, महज़ अपने लगने से मसाइल दुरुस्त नहीं होते, बल्कि अल्लाह पाक ही बिगाड़ते हैं और वह ही बनाते हैं।
यक़ीन इस बात पर जमाना है कि जिस चीज़ पर अल्लाह पाक ताक़त लगवाना चाहते हैं, उसमें लगने से तो मसाइल ठीक होते हैं और जिन मलूक़ों पर इंसान ख़ुद से ताक़त खर्च करता है, उससे मसाइल बिगड़ते हैं, इफ़िरादी भी बिगड़ते हैं और इज्तिमाई भी ताकतें जब मख़्लूक़ पर खर्च होने लगें, तो ख़ुदा का ग़ज़ब नाजिल होता है और नतीजा यह होता है कि जो एक दूसरे के हमदर्द होते हैं, वे जानलेवा होते हैं। जिस तरह चीजें अल्लाह की मख़्लूक़ हैं, उसी तरह हालात भी अल्लाह की मख़्लूक़ हैं, सूरज मखलूक है, चांद मखलूक़ है, जमीन व आसमान मख्लूक है, और सारे जानवर भी मख्लूक है।
लोगों के हालात दुरुस्त कैसे होगी?- Hazratji Molana Yousuf
हालात चीज़ों की मखलूक नहीं हैं, हालात मुस्तकिल तौर पर अल्लाह की महलूक हैं। यह बात नहीं कि अगर किसी ने चाहा तो अम्न कर दिया और चाहा तो फ़साद कर दिया, नहीं, बल्कि ये हालात अल्लाह पाक के लाने से जाहिर होते हैं। जिस तरह सूरज अल्लाह की मखलूक है, इसी तरह वह रौशनी, जो उसमें से निकल रही है, वह भी उसकी मख्लूक है। जब चाहते हैं, सूरज से रौशनी निकालते हैं और जब चाहते हैं, सल्ब फ़रमा लेते हैं। किसी हथियार से आदमी नहीं मर जाता, बल्कि जिस तरह वह आदमी अल्लाह की मखलूक है, उसी तरह उसकी मौत भी अल्लाह की मख्लूक है। जब अल्लाह पाक मारना चाहते हैं, तो मौत वाक्रे होती है। इसी तरह इज़्ज़त व जिल्लत, फ़क़र च फ़ाक़ा वगैरह सब अल्लाह पाक ही की मख्लूक हैं। हमें ग़ल्ले से पेट का भरना नज़र आता है और इसी तरह से दूसरी चीज़ों में हम ग़लत तौर पर • अहवाल को देखने के आदी हो गए हैं और ग़लत तख़य्युल क़ायम करते हैं,
हालांकि कुरआन पाक में साफ़-साफ़ इर्शाद है कि पानी हम उतारते हैं, खेती हम उगाते हैं। एक औरत अगर ख़ुदा की मखलूक़ है तो उसके अन्दर में जो बच्चा है, वह भी अल्लाह ही की मख्लूक़ है। मख़्लूक किसी वक़्त ख़ालिक नहीं बन जाती। जो पहली चीज़ को बनाने वाला है, दूसरी को भी वही बना देगा। किसी मख्लूक़ को मख़्लूक़ में (से जाहिर होता) देखकर (उस मख्लूक पर) ताक़त खर्च होगी, तो मस्अला बिगड़ेगा। रोटी खाने में पेट भरना (यानी पेट भरने की लाजिमी ख़ासियत ) नहीं है। हजरत मुआविया रजि० फ़रमाते थे कि कभी मेरी यह हालत थी कि रोटी खाते-खाते मेरा जबड़ा दुख जाता था और पेट नहीं भरता था।
जो कुछ भी है, ज़मीन से लेकर आसमान तक और जो इस वक़्त मौजूद है और जो आगे आने वाला है, सारी ही चीजें अल्लाह की मख़्लूक़ हैं और सारे अहवाल भी उसकी मख्लूक़ हैं, तो बस जब कुछ लेना हो, उसके लेने के लिए अल्लाह ही पर ताक़त सर्फ़ की जाए। अगर ख़ौफ़ से घबराहट है, तो भी राबता अल्लाह पाक से ही पैदा किया जावे। जिस ख़ौफ़ को अल्लाह पाक से हटवाओगे, वह हमेशा के लिए हट जावेगा। अगर मख़्लुक़ पर ताक़त लगा कर के कोई चीज हासिल की तो वजूद तो उसका भी अल्लाह ही के पैदा करने से होगा, फिर भी महतूक के वास्ते से आने की सूरत में वह फ़ानी होगी। जो शख़्स अल्लाह से न ले, बल्कि मख्लूक से ले, तो बहुत ही पछताना पड़ेगा, इसलिए कि जो मलूक मलूक में से आएगी, वह फ़ानी होगी और उसके फ़ना पर हसरत व अफ़सोस होगा और जो चीज़ अल्लाह से आएगी, वह हमेशा के लिए होगी।
ला इला-ह इल्लल्लाहु का मतलब यही है कि तमाम मस्अलों को एक ज्ञात बारी तआला से ही हल कराना है, इसलिए वे तदबीरें अख़्तियार करो जो उससे लेने की हैं। अगर अल्लाह तआला से लेने की तदबीरें अपनाई जाएंगी, तो दुनिया में भी मिलेगा और आख़िरत में भी। ग़ैर-ख़ुदा पर ताक़त के बग़ैर कुछ लगा कर हम जो समझ रहे हैं कि चीजों से कुछ पैदा हो रहा है, तो उसमें शिर्क की बू आती है। कोई मख्लूक अल्लाह पाक के हुक्म दे नहीं सकती। कुरआन पाक में जगह-जगह बतलाया गया है कि मख़्लूक़ात में कुछ न समझे, बल्कि अक़ीदा रखे कि अल्लाह ही करने वाले हैं। इसी को तौहीद कहते हैं। जिस तरह मख़्लूक़ से फ़ायदा उठाने की तदबीरें हैं, उसी तरह अल्लाह तआला से लेने की भी तदबीरें हैं, सारे अहकाम बाद को आते हैं।
Allah पर यक्क़ीन – Hazratji Molana Yousuf
पहला हुक्म यह है कि अल्लाह पाक पर यक्क़ीन पैदा हो जाए और उसी के पैदा करने के लिए इंसानों में कोशिश की जाए। इस सिलसिले में अगर थोड़ा-सा यहां ख़ौफ़ बरदाश्त कर लिया जाएगा, तो हमेशा के ख़ौफ़ से छुटकारा हो जाएगा, थोड़ी सी भूख-प्यास बरदाश्त कर ली जाएगी, तो हमेशा की भूख व प्यास से मिल जाएगी, थोड़ा वक़्त बीवी-बच्चों की जुदाई में गुजर गया तो हमेशा का साथ नसीब होगा। हज़रात सहाबा किराम रजि० ने थोड़े दिन भूख-प्यास बरदाश्त की तो इस दुनिया में भी बड़ी-बड़ी सलतनतों के दबे हुए ख़ज़ाने तक उनके पैरों में आ पड़े। ज़रूरत है कि जाती तास्सुर किसी चीज़ का न रहे, तब ही मुल्क व माल के फ़िल्मों से बचाव हो सकता है और अल्लाह के लिए हर किसी से मामला करना आ जावे, जब रुपया न हो, तो भी मुतास्सिर न हो और जब रुपया आ जाए तो उससे भी मुतास्सिर न हो। ऐसे ही लोग सालेह हैं जो मख्तूक़ का तास्सुर ख़त्म कर दें। ग़रज्ञ यह कि इस वक्त के बिगाड़ की वजह सिर्फ़ यही है कि हम सब जो अल्लाह पाक के हुक्मों पर जान खपाने वाले होते, वह मख्लूक पर जान खपाने और उसी से लेने के ग़लत तसव्वुर के आदी हो गए।
अल्लाह पाक के हुक्मों पर जान खपाने पर जिस क़दर अल्लाह की मददों का यक़ीन होगा, उसी क़दर ग़ैब से दरवाजे खुलते जावेंगे। अगर ख़ुदा के दीन के लिए जान खपाने वालों की मिक्दार बढ़े और उस पर यक़ीन हो तो चूंकि सारी मख्लूक़ात अल्लाह की ज्ञात से वाबस्ता है, हमारी मग़बात हों या मक्रूहात, अल्लाह ही की तरफ़ से हैं। जब यह बात है तो दिनों को पूरी तरह मख़्लूक़ में अल्लाह पाक का यक़ीन पैदा करने के लिए ठोकरें खाएं और रातों को उसकी जनाब में पूरी तरह गिरया व ज़ारी से दुआएं मांगें तो इनशाअल्लाह हर तरह इज्तिमाई व इंफ़िरादी अह्वाल दुरुस्त और मुवाफ़िक़ हो जाएंगे।