आपको कहां तलाश करूं? इन तीनों जगहों में से किसी एक जगह ज़रूर मिल जाऊंगा। हश्र के मैदान में प्यारे नबी के बुलन्द मर्तबे का ज़ुहूर…..
Maiden-e-hashr में prophet Mohammad का मर्तबा
हश्र के मैदान में प्यारे नबी के बुलन्द मर्तबे का ज़ुहूर
शिफाअते कुबरा, मकामे महमूद, उम्मते मुहम्मदिया की बड़ाई
हज़रत अबू सईद खुदरी रिवायत फ़रमाते हैं कि आंहज़रत सैयदे आलम ने इर्शाद फरमाया कि क़ियामत के दिन आदम की तमाम औलाद का मैं सरदार हूंगा (यानी सरदार होना सब पर साफ़ हो जाएगा। गो हक़ीक़त में सरदार अब भी आप ही हैं) और मैं इस पर फन नहीं करता हूं (बल्कि यह ब्यान हक़ीकत और नेमत का इज़हार है); और मेरे हाथ में हम्द का झंडा होगा और मैं इस पर फख़ नहीं करता हूं; और उस दिन हर बनी आदम और उनके अलावा सब नबी मेरे झंडे के नीचे होंगे और ज़मीन में सबसे पहले मैं ज़ाहिर हूंगा।’
– तिर्मिज़ी
दूसरी रिवायत में है कि आंहज़रत सैयदे आलम ने फ़रमाया कि जब क़ियामत का दिन होगा तो मैं नबियों के आगे-आगे हूंगा और उन पर ख़तीब’ और शफाअत करने वाला हूंगा यह बगैर फ़न के ब्यान कर रहा हूं।
– तिर्मिज़ी
हम सब का सरदार कौन है?
हज़रत अबू हुरैरः रिवायत फ़रमाते हैं कि एक दावत में हम रसूलुल्लाह के साथ थे। एक दस्त (बकरी का) आपकी खिदमत में पेश किया गया। आप को दस्त पसन्द था। उसमें से आप अपने मुबारक दांतों से थोड़ा-सा खाया और उस वक्त इर्शाद फ्रमाया कि क़ियामत के दिन मैं सब इंसानों का सरदार हूंगा। तुमको मालूम है इसके (जाहिर होने) की क्या शक्ल होगी? फिर खुद ही जवाब में इर्शाद फ़रमाया कि एक ही मैदान में अल्लाह तआला तमाम अगलों-पिछलों को जमा फ़रमाएंगे; देखने वाला सबको देखेगा और पुकारने वाला सब को सुनायेगा और सूरज उनसे क़रीब होगा । इसलिए लोगों को ऐसी घुटन और बेचैनी होगी जो ताकत उ और बर्दाशत से बाहर होगी।
हमलोग की सिफारिश कौन करेगा?
इस घुटन और बेचैनी की वजह से लोग (आपस में) कहेंगे कि जिस हाल और जिस मुसीबत में तुम हो, ज़ाहिर है क्या किसी ऐसे (बुज़ुर्ग) शख़्स को नहीं खोजते जो तुम्हारे रब के दरबार में सिफारिश कर दे। फिर कुछ से कहेंगे कि तुम्हारे बाप आदम इसके अह्ल (काबिल) हैं, उनसे अर्ज़ करो। चुनांचे उनके पास आकर कहेंगे कि ऐ आदम ! आप अबुल बशर’ हैं। अल्लाह ने फ़रिश्तों को हुक्म दिया तो उन्होंने आपको सज्दा किया और आपको जन्नत में ठहराया। क्या आप अपने रब से हमारे लिए सिफारिश नहीं कर देते? आप देखते नहीं हैं, हम किस मुसीबत और परेशानी में हैं? हज़रत आदम फ़रमायेंगे, यकीन जानो कि मेरे रब को आज इस क़दर गुस्सा है कि इससे पहले न कभी हुआ और न इसके बाद कभी हरगिज़ इतना गुस्सा होगा और यह हक़ीक़त है कि मेरे रब ने मुझे पेड़ (के पास जाने) से रोका था जिसकी मुझसे नाफरमानी हो गयी? नफ़्सी-नफ्सी-नफ्सी (मुझे अपनी ही फिक्र है। तुम लोग मेरे आलावा किसी दूसरे के पास चले जाओ। ऐसा करो कि नूह के पास पहुंचो (और उनसे दरख्वास्त करो) इसलिए लोग हज़रत नूह के पास पहुचेंगे और अर्ज़ करेंगे कि आप ज़मीन वालों की तरफ (कुफ्फार को ईमान की दावत देने के लिए) सबसे पहले रसूल थे। अल्लाह ने आपको शुक्रगुज़ार बन्दा फरमाया है। क्या आप नहीं देख रहे हैं कि हम किस मुसीबत में हैं और हमारा क्या बुरा हाल बना हुआ है? क्या आप अपने रब के दरबार में हमारे लिए सिफारिश नहीं कर देते ? हज़रत नूह जवाब में फ़रमायेंगे, यकीन जानो मेरे रब को आज इतना गुस्सा है कि कभी ऐसा गुस्सा न इससे पहले हुआ और न हरगिज़ कभी इसके बाद होगा और यह सच है कि मैंने अपनी क़ौम के लिए बददुआ की थी (मुझे इस पर पकड़े जाने का डर है) नफ़्सी नफ़्सी नफ़्सी। तुम लोग मेरे अलावा किसी और के पास पहुंच जाओ। ऐसा करो कि इब्राहीम के पास जाओ।
इसके बाद लोग हज़रत इब्राहीम के पास आएंगे और उनसे अर्ज़ करेंगे कि आप अल्लाह के नबी और ज़मीन वालों में (चुने हुए) अल्लाह के दोस्त हैं। हमारे लिए अपने रब के सामने सिफ़ारिश फ़रमा दीजिए। आप देख ही रहे हैं कि हमारा क्या हाल बना हुआ है? हज़रत इब्राहीम उनको जवाब देंगे। यक़ीन जानो, मेरे रब को आज इस क़दर गुस्सा है कि न कभी ऐसा गुस्सा इससे पहले हुआ, न हरगिज़ कभी इसके बाद होगा और यह सच है कि मैंने तीन झूठ’ बोले थे (गो दीनी मस्लहत और दीनी ज़रूरत से हुए थे, लेकिन ख़ौफ़ हैं कि कहीं मेरी पकड़ न हो जाए) यह फ़रमा कर उन तीन मौकों का ज़िक्र फ़रमाया, जिनमें उनसे झूठ निकला था । (आख़िर में हज़रत इब्राहीम फ़रमायेंगे) नफ़्सी नफ़्सी- नफ़्सी (तुम मेरे अलावा किसी और के पास चले जाओ)। ऐसा करो तुम मूसा के पास पहुंचो।
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1. जिन तीन झूठों का ज़िक्र इस हदीस पाक में है। उनकी कैफियत (अवस्था) ज़रूरत व मस्लहत दूसरी रिवायत में ज़िक्र हुई है। ऐसे मौकों पर झूठ बोलना मना नहीं है। लेकिन हज़रत इब्राहीम खलीलुल्लाह अपने बुलंद मर्तबे की वजह से ख़ौफ़ करेंगे कि गो जायज़ था, मगर झूठ तो था। ख़लीलुल्लाह से उसका होना शायद पकड़ में आये, जिनके रुत्वे हैं सिवा, उनको सिवा मुश्किल है।
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चुनांचे लोग हज़रत मूसा के पास आएंगे और उनसे अर्ज़ करेंगे कि ऐ मूसा ! आप अल्लाह के रसूल हैं। आपको अल्लाह ने अपने पैग़ामों के ज़रिए और अपने साथ हमकलामी (बात करने) के ज़रिए लोगों पर फजीलत दी। आप अपने रब के सामने हमारी सिफारिश कर दीजिए, आप देख रहे हैं कि हमारा कैसा हाल बना हुआ है। हज़रत मूसा जवाब देंगे कि यक़ीन जानो कि मेरे रब को आज इस क़दर गुस्सा है कि ऐसा गुस्सा इससे पहले न हुआ, न हरगिज़ इसके बाद कभी होगा। यह सच है कि मैंने एक शख़्स को क़त्ल किया था जिसके कत्ल करने का (ख़ुदा की तरफ़ से) मुझे हुक्म न था।’ नफ़्सी-नफ्सी-नफ़्सी, तुम लोग मेरे अलावा किसी और के पास जाओ। ऐसा करो कि ईसा के पास पहुंचो।
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हज़रत मूसा ने एक दिन देखा कि दो आदमी आपस में लड़ रहे हैं। एक उनकी क़ौम का था और दूसरा दुश्मनों की कौम से था। हज़रत मूसा की कौम वाले ने उनसे मदद चाही। इसलिए आपने उस आदमी को एक घूंसा मार दिया जो उनकी कौम वाले पर जुल्म कर रहा था। मारा तो था सज़ा के लिए, तंबीह करने के लिए। मगर हुक्म खुदा का ऐसा हुआ वह मर गया। हज़रत मूसा शर्मिंदा हुए। • अल्लाह तआला से माफी मांगी। अल्लाह तआला ने माफ कर दिया इसी किस्से की तरफ इशारा है।
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चुनांचे लोग हज़रत ईसा के पास जाएंगे और उनसे अर्ज़ करेंगे कि ऐ ईसा! आप अल्लाह के रसूल हैं और उसका कलिमा हैं जिसे अल्लाह ने मरयम तक पहुंचाया और अल्लाह की तरफ़ से रूह हैं। आपने गहवारा में लोगों से बात की (ये आप के फ़ज़ाइल हैं) अपने पालनहार के दरबार में हमारी सिफारिश फ़रमा दीजिये। आप देख ही रहें हैं कि हमारा क्या बुरा हाल बना हुआ है? वह फरमाएंगे कि यक़ीन जानो मेरे रब को आज इतना गुस्सा है कि ऐसा गुस्सा न इससे पहले हुआ, न हरगिज़ कभी इसके बाद होगा।
यहां पहुंचकर प्यारे नबी ने हज़रत ईसा की किसी ‘भूल’ का ज़िक्र नहीं फ़रमाया जिसे याद करके वह सिफारिश का उज़ करेंगे (बल्कि इसके बाद यह फ़रमाया कि हज़रत ईसा फ़रमायेंगे) नफ़्सी नफ़्सी नफ़्सी (और यह फ़रमायेंगे कि) मेरे अलावा किसी और के पास चले जाओ, ऐसा करो कि मुहम्मद के पास पहुंचो।
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दूसरी रिवायत में है कि इस मौके पर हज़रत ईसा शफाअत न कर सकने की वजह यह व्यान फरमायेंगे अल्लाह से परे मेरी इबादत की गयी।
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आंहज़रत सैयदे आलम ने फ़रमाया कि अब मेरे पास लोग आयेंगे और कहेंगे कि ऐ मुहम्मद ! आप अल्लाह के रसूल हैं और नबियों के आख़िरी नबी हैं और अल्लाह ने आप का सब कुछ बख़्श दिया। अपने रब के दरबार में आप हमारे लिए सिफारिश फ़रमा दीजिए। आप देख ही रहे हैं कि हम किस बदहाली में हैं।
इसलिए मैं रवाना हो जाऊंगा और अर्श के नीचे आकर अपने रब के लिए सज्दा में पड़ जाऊंगा। फिर अल्लाह तआला मुझपर अपनी वे तारीफें और वह बेहतरीन सना (गुणगान) खोलेंगे जो मुझ से पहले किसी पर न खोली गयी थी। फिर अल्लाह का इर्शाद होगा कि ऐ मुहम्मद ! सर उठाओ और मांगो। तुम्हारा सवाल पूरा किया जाएगा। सिफारिश क़ुबूल की जाएगी। चुनांचे मैं सर उठाऊंगा और (अल्लाह के दरबार में) अर्ज़ करूंगा कि ऐ रब ! मेरी उम्मत पर रहम फ़रमा, ऐ रब! मेरी उम्मत पर रहम फ़रमा। ऐ रब ! मेरी उम्मत के उन लोगों को जिन पर कोई हिसाब नहीं है, जन्नत के दरवाज़ों में से दांए दरवाज़े से दाख़िल कर दे और उस दरवाज़े के अलावा दूसरे दरवाज़ों में भी वे साझी हैं (यानी उनको यह भी इख़्तियार है कि इस दरवाज़े के अलावा दूसरे दरवाज़ों से दाख़िल हो जाए) इसके बाद आंहज़रत ने इर्शाद फ़रमाया कि क़सम उस जात की, जिसके क़ब्ज़े में मेरी जान है, जन्नत के दरवाज़ों (की इतनी बड़ी चौड़ाई है कि उन) के दोनों किनारों के दर्मियान जो फासला है, वह इतना लम्बा है कि जितना मक्का और हिज्र के दर्मियान का रास्ता है या (फ़रमाया कि जैसे) मक्का और बसरा के दर्मियान का रास्ता है। -अत्तर्गव वत्तहब (बुख़ारी व मुस्लिम)
दूसरी रिवायत में है (जिसे रिवायत करने वाले हज़रत अनस हैं) कि आंहज़रत ने शफाअत का वाक़िया ब्यान फ़रमा कर यह आयत तिलावत फ़रमाई :
(क़रीब है कि आप का रब आपको मकामे महमूद में खड़ा करेगा) फिर फरमाया कि यह मकामे महमूद है जिसका वादा (अल्लाह तआला ने तुम्हारे नबी से किया है।
-बुखारी व मुस्लिम
Prophet Mohammad के उम्मती होन की पहचान
उम्मते मुहम्मदिया की पहचान
हज़रत अबुद्दर्दा ने फरमाया कि आहज़रत सैयदे आलम से एक आदमी ने पूछा : ऐ अल्लाह के रसूल ! आप (क़ियामत के दिन ) सारी उम्मत से लेकर आप की उम्मत तक दुनिया में आयी थी, अपनी उम्मत को कैसे पहचानेंगे? इसके जवाब में आप ने इर्शाद फ़रमाया कि वुज़ू के असर से उनके चेहरे रौशन होंगे और हाथ और पांव सफेद होंगे। इनके अलावा और कोई इस हाल में न होगा। और मैं उनको इस तरह भी पहचानूंगा कि उनके आमालनामे उनके दाहिने हाथ में दिए जाएंगे और इस तरह भी उनको पहचानूंगा कि उनकी जुर्रियत उनके आगे दौड़ती होगी।
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कुरआन शरीफ में है कि जिनके आमालनामे दाहिने हाथ में दिए जाएंगे, उनसे आसान हिसाब होगा और अपने बाल-बच्चों में खुश-खुश लौटकर जाएंगे। इसमें उम्मते मुहम्मदिया को ख़ास नहीं किया गया। इसलिए इस हदीस शरीफ में यह फ़रमाया कि मैं अपनी उम्मत को इस तरह पहचानूंगा कि उनके आमालनामे सीधे हाथों में किसी ऐसी शक्ल से उनको आमालनामे मिलेंगे जो दूसरी उम्मतों के साथ न होगा या यह समझो कि उम्मते मुहम्मदिया को सबसे पहले दिए जाएंगे।
( हाशिया मिश्कात)
क्योंकि उम्मते मुहम्मदिया (अला साहिबस्सलातु वस्सलाम) सब उम्मतों से ज़्यादा होगी।
– तिर्मिज़ी
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Prophet Mohammad कहा मिलेंगे ?
हज़रत अनस ने फ़रमाया कि मैंने नबी करीम से अर्ज़ किया कि आप क़ियामत के दिन मेरे लिए सिफारिश फ़रमा दें। आप ने इर्शाद फ़रमाया कि हां, मैं कर दूंगा। मैंने अर्ज़ किया, आपको कहां तलाश करूं? फ़रमाया पहले पुलसिरात पर तलाश करना। मैंने अर्ज़ किया, वहां आपसे मुलाकात न हो तो कहां तलाश करूं? फ़रमाया आमाल की तराज़ू के पास तलाश करना! मैंने अर्ज़ किया; वहां भी मुलाक़ात न हो तो कहां हाज़िर हूं? फरमाया हौज़ पर तलाश करना, इन तीनों जगहों में से किसी एक जगह ज़रूर मिल जाऊंगा।
– तिर्मिज़ी
हम सब किस नाम से बुलाये जाएंगे?
अपने-अपने वापों के नाम से बुलाये जाएंगे
हज़रत अबुर्दा फरमाते हैं कि रसूले अकरम ने इर्शाद फरमाया कि तुम क़ियामत के दिन अपने नामों के साथ और अपने वापों के नामों के साथ बुलाये जाओगे। इसलिए तुम अपने नाम अच्छे रखो। आमतौर से मशहूर है कि क़ियामत के दिन लोग अपनी माँओं के नामों के साथ पुकारे जाएंगे, सही नहीं है बनायी हुई बात है।
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इमाम बुख़ारी ने अपनी जामे सहीह में बाब ‘मा युद्धअन्नास यौमल कियामति बि आबाइहिम’ कायम करके सही हदीसों से साबित किया है कि कियामत के दिन बापों के नाम से बुलावा होगा। मुआलिमुत्तंजील में माँओं के नामों के साथ पुकारने की तीन वजहें बतायी गयी हैं। लेकिन ये सब मनगढ़त हैं जो सिर्फ रिवायत के मशहूर होने की वजह से तज्चीज़ किया गये हैं। चुनांचे साहिबे मुआलिमुत्तंजील ने तीनों वजहों का ज़िक्र फ़रमाया है कि सही हदीसें इस मशहूर कौल के ख़िलाफ़ हैं।
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क़ियामत बुलन्द और पस्त करने वाली होगी
कियामत के बारे में अल्लाह का इर्शाद है :
– सूरः वाकिञः
“जिस वक़्त होने वाली वाकेअ हो जाएगी, नहीं है उसके होने में ‘कुछ झूठ। वह पस्त करने वाली है और बुलंद करने वाली है।’