Roji मैं बरकत | अगर paise नहीं हो तो सदका कैसे करे ? – Dawat~e~Tabligh

Allah ने कौन सी 2 बाते Duniya बनाने से फले लिखी ? नेमतों को kaise बढ़ाए ? बंदे के साथ कितने फ़रिश्ते होते हैं ? Roji मैं बरकत | अगर paise नहीं हो तो सदका कैसे करे ? – Dawat~e~Tabligh in Hindi…

Roji मैं बरकत | अगर paise नहीं हो तो सदका कैसे करे ? - Dawat~e~Tabligh
Roji मैं बरकत | अगर paise नहीं हो तो सदका कैसे करे ? – Dawat~e~Tabligh

अगर paise नहीं हो तो सदका कैसे करे ?

  • हज़रत अलबा बिन जैद रज़ि ने अपनी आबरू का अजीब सदक़ा किया

हज़रत अलबा बिन ज़ैद रजि० का हुज़ूर सल्ल० के साथ जाने का कोई इंतिज़ाम न हो सका तो रात को निकले और काफ़ी देर तक रात में नमाज़ पड़ते रहे। फिर रो पड़े और अर्ज किया ऐ अल्लाह आपने जिहाद में जाने का हुक्म दिया है और उसकी तर्गीब दी है, फिर आपने न मुझे इतना दिया कि मैं उससे जिहाद में जा सकूं और न अपने रसूल को सवारी दी जो मुझे (जिहाद में जाने के लिए) दे देते। लिहाज़ा किसी भी मुसलमान ने माल या जान या इज़्ज़त के बारे में मुझ पर ज़ुल्म किया हो वह माफ़ कर देता हूं और उस माफ़ करने का अज्र व सवाब तमाम मुसलमानों को सदक़ा कर देता हूं।

और फिर वह सुबह लोगों में जा मिले। हुज़ूर सल्ल० ने फ़रमाया, आज रात को सदक़ा करनेवाला कहां है? तो कोई न खड़ा हुआ आप सल्ल० ने दोबारा फ़रमाया, सदक़ा करनेवाला कहां है? खड़ा हो जाए। चुनांचे हजरत अलवा रजि० ने खड़े होकर हुज़ूर सल्ल० को अपना सारा वाक़िआ सुनाया। हुज़ूर सल्ल० ने फ़रमाया, तुम्हें खुशख़बरी हो उस ज्ञात की क़सम जिसके कब्जे में मेरी जान है! तुम्हारा यह सदक़ा मक़बूल खैरात में लिखा गया है।

हज़रत अबू अबस बिन जबर रज़ि० कहते हैं कि हज़रत अलबा बिन जैद बिन हारिसा रज़ि० हुज़ूर सल्ल० के सहाबा में से हैं। जब हुज़ूर सल्ल० ने सदका करने की तर्गीय दी तो हर आदमी अपने हैसियत के मुताबिक़ जो उसके पास था, वह लाने लगा। हज़रत अलवा विन जैद रजि० ने कहा, ऐ अल्लाह ! मेरे पास सदक्का करने के लिए कुछ भी नहीं है। ऐ अल्लाह ! तेरी मख़्लूक में से जिसने भी मेरी आबरूरेज़ी की है, मैं उसे सदक़ा करता हूँ (यानी उसे माफ़ करता हूँ) । हुज़ूर सल्ल० ने एक मुनादी को हुक्म दिया जिसने यह एलान किया कि कहां है वह आदमी जिसने गुज़िश्ता रात अपनी आबरू का सदक़ा किया? उस पर हज़रत अलवा बिन जैद रजि० खड़े हुए। हुज़ूर सल्ल० ने फ़रमाया तुम्हारा सदक़ा क़बूल हो गया।

( हयातुस्सहाबा, जिल्द 1, पेज 582  )

बंदे के साथ कितने फ़रिश्ते होते हैं ? 

  • हर इंसान के साथ 24 घंटों में 20 फ़रिश्ते रहते हैं

तफ़्सीर इब्ने जरीर में आया है कि हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आये और आप सल्ल० से पूछा कि फ़रमाइये बंदे के साथ कितने फ़रिश्ते होते हैं । आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया-एक तो दाँए तरफ़ नेकियों का लिखने वाला जो बाँए तरफ़ वाले पर अमीर है। जब तू कोई नेकी करता है तो वह एक के बजाये दस लिखता है। जब तू कोई बुराई करे तो बाँए वाला दाँए वाले से उसको लिखने की इजाज़त तलब करता है, वह कहता है कि ज़रा ठहर जाओ, शायद तौबा व इस्तिग़फ़ार करे।

तीन मर्तबा वह इजाज़त मांगता है तब भी अगर उसने तौबा न की तो यह नेकी का फ़रिश्ता उससे कहता कि अब लिख ले। (अल्लाह हमें इससे छुड़ाये) यह तो बड़ा बुरा साथी है, इसे खुदा का लिहाज़ नहीं यह उससे नहीं शरमाता। अल्लाह का फ़रमान है कि इंसान जो बात ज़बान पर लाता है उस पर निगहबान मुक़र्रर और मुहय्या हैं और दो फ़रिश्ते तेरे आगे पीछे हैं। फ़रमाने ख़ुदा है :

हर शख़्स (कि हिफ़ज़त) के लिए कुछ फ़िरिशते (मुकर) हैं जिन की बदली होती होती रहती है, कुछ उस के आगे कुछ उसके पीछे कि वह बहुक्मे खुदावंदी उस कि हिफ़ाज़त करते हैं

और एक फ़रिश्ता तेरे माथे के बाल थामे हुए है। जब तू खुदा के लिए तवाज़ो और फ़रावानी करता है वह तुझे बुलंद दर्जा कर देता है और जब तू अल्लाह के सामने सरकशी और तकब्बुर करता है तो वह तुझे पस्त और आजिज़ कर देता है और दो फ़रिश्ते, तेरे होंटों पर हैं। जो दुरूद तू मुझ पर पढ़ता है उसकी वह हिफ़ाज़त करते हैं। एक फ़रिश्ता तेरे मुँह पर खड़ा है कि कोई साँप वगैरह जैसी चीज़ तेरे हल्क़ में न चली जाये और दो फ़रिश्ते तेरी आँखों पर हैं। यह दस फ़रिश्ते हर बनी आदम के साथ हैं। फिर दिन के अलग हैं और रात के अलग हैं, यूँ हर शख़्स के साथ 20 फ़रिश्ते मिन जानिबिल्लाह मुवक्किल हैं।

– तफ्सीर इब्ने कसीर, हिस्सा 3, पेज 32

Roji मैं बरकत

  • एक मर्दे सालेह का अजीब किस्सा- हमेशा बावुजू रहिए रोज़ी में बरकत होगी

हज़रत फ़ज़्ल अली कुरैशी रह० की ज़मीन थी। उसमें ख़ुद हल चलाते थे। खुद पानी देते थे, खुद काटते, खुद बीज निकालते, फिर वह गंदुम घर आती थी फिर रात को इक्षा के बाद मियां-बीवी उसे पीसा करते और उस आटे से बनी हुई रोटी खानकाह में मुरीदों को खिलाई जाती थी। आप अंदाज़ा कीजिए कि हज़रत रह० यह सब कुछ खुद करते थे। हज़रत की आदत थी कि हमेशा बावुज़ू रहते थे, घरवालों की भी यही आदत थी। एक दिन हज़रत ने खाना पकवाया और ख़ानक़ाह में ले आए। अल्लाह अल्लाह सीखनेवाले सालिकीन आए हुए थे, वह खाना हज़रत ने उनके सामने रखा।

जब वे खाने लगे तो आपने उनसे कहा कि “फकीरो (हज़रत कुरैशी मुरीदों को फकीर कहते थे) तुम्हारे सामने जो रोटी पड़ी है उसके लिए हल चलाया गया तो कुजू के साथ, फिर बीज डाल गया तो वुज़ू के साथ, फिर उसको पानी दिया तो वुज़ू के साथ, फिर उसको काटा गया तो वुज़ू के साथ, फिर गंदुम भूसे से अलग किया गया तो वुज़ू के साथ, फिर गंदुम को पीसा गया तो वुज़ू के साथ, फिर आटा गूंदा गया तो बुज़ू के साथ, फिर रोटी पकाई गई तो वुज़ू के साथ, फिर आपके सामने खाना लाकर रखा गया तो वुज़ू के साथ। काश कि तुम बुज़ू के साथ इसे खा लेते!” हदीस शरीफ़ में है- हमेशा बावुज़ू रहिए, रोज़ी में बरकत होगी।

(लम्बी हदीस है देखिए बिखरे मोती, जिल्द  3

नेमतों को kaise बढ़ाए ?

  • नेमतों की बक़ा का आसान नुस्खा

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त फ़रमाते हैं- ‘लइन श-करतुम ल-अइज़ीदन्नकुम’ ( इबराहीम : 7) अगर तुम शुक्र अदा करोगे तो हम अपनी नेमतें जरूर बिल जरूर और ज़्यादा अता करेंगे गोवा शुक एक ऐसा अमल है कि जिसकी वजह से नेमतें बाकी रहती भी हैं और बढ़ती भी चली जाती हैं।

टूटे रिश्ते वह जोड़ देता है,

बात रब पर जो छोड़ देता है। 

उसके लुत्फ़ व करम का क्या कहना,

लाख मांगो करोड़ देता है।

यही वजह है कि हमेशा मांगने वालों को अपने मांगने में कमी का शिकवा रहा जबकि देने वाले के ख़ज़ाने बहुत ज़्यादा हैं और मांगने वालों के दामन छोटे हैं जो जल्दी भर जाते हैं।

Allah ने कौन सी 2 बाते Duniya बनाने से फले लिखी ?

  • क़ुरआन की वह दो आयतें जिसको तमाम मखलूक की पैदाइश से दो हज़ार साल पहले खुद रहमान ने अपने हाथ से लिख दिया था

हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु की रिवायत में है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने दो आयतें जन्नत के ख़ज़ाइन में से नाज़िल फ़रमाई हैं जिसको तमाम मलूक की पैदाइश से दो हज़ार साल पहले खुद रहमान ने अपने हाथ से लिख दिया था। जो शख़्स उनको इशा की नमाज़ के बाद पढ़ ले तो वह उसके लिए क्रयामुल्लेल यानी तहज्जुद के क्राइम मक्काम हो जाती है। मुस्तदरक हाकिम और बैहली की रिवायत में है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि अल्लाह ने सूरः बक़रः को इन दो आयतों पर ख़तम फ़रमाया है जो मुझे इस खजान-ए-ख़ास से अता फरमाई हैं जो अर्श के नीचे हैं इसलिए तुम ख़ास तौर पर इन आयतों को सीखो, और अपनी औरतों और बच्चों को सिखाओ इसी लिए हज़रत उमर फारूक रज़ियल्लाहु अन्हु और अली मुर्तजा रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया कि हमारा ख़्याल यह है कि कोई आदमी जिसको कुछ भी अक्ल हो वह सूरः बकरः की इन दोनों आयतों को पढे बगैर न सोयेगा।

Note – वह दो आयतें सूरः बक़रः की आखिरी दो आयतें हैं।

-मआरिफुल कुरआन, हिस्सा 1, पेज 694

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