Sadqa किसको देना चाहिए | Paisa लोगों की मदद में लगा दिया Dawat~e~Tabligh

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Sadqa किसको देना चाहिए | Paisa लोगों की मदद में लगा दिया Dawat~e~Tabligh
Sadqa किसको देना चाहिए | Paisa लोगों की मदद में लगा दिया Dawat~e~Tabligh

Paisa लोगों की मदद में लगा दिया 

  • हज़रत उसमान रज़ि० की हिक्मत यहूदी के साथ

सय्यदना हज़रत उसमान गनी रजि० को अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने खूब माल दिया था। लेकिन उनके दिल में माल की मुहब्बत नहीं थी। वह अपना माल अल्लाह की राह में ख़र्च करने से कभी दरेग नहीं करते थे। बेरे रूमा एक कुंआ था जो एक यहूदी की मिल्कियत में था। उस वक़्त मुसलमानों को पानी हासिल करने में काफ़ी मुश्किल का सामना था वह उस यहूदी से पानी खरीदते थे। जब सय्यदना उसमान गनी रजि० ने देखा कि मुसलमानों को पानी हासिल करने में काफ़ी दुशवारी का सामना है तो वह यहूदी के पास गए और फरमाया कि यह कुंआ फरोख्त कर दो।

उसने कहा, मेरी तो बड़ी कमाई होती है मैं तो नहीं बेचूंगा। यहूदी का जवाब सुनकार सय्यदना उसमान गनी रज़ि० ने फ़रमाया कि आप आधा बेच दें और क़ीमत पूरी ले लें वह यहूदी न समझ सका । अल्लाह वालों के पास फ़िरासत होती है। यहूदी ने कहा, हां ठीक है, आधा हक़ दूंगा और क़ीमत पूरी लूंगा। चुनांचे उसने क़ीमत पूरी ले ली और आधा हक़ दे दिया और कहा कि एक दिन आप पानी निकालें और दूसरे दिन हम पानी निकालेंगे।

जब सय्यदना उसमान गनी रजि० ने उसे पैसे दे दिए तो आपने एलान करवा दिया कि मेरी बारी के दिन मुसलमान और काफ़िर सब बगैर क़ीमत के अल्लाह के लिए पानी इस्तेमाल करें जब लोगों को एक दिन मुफ्त पानी मिलने लगा तो दूसरे दिन ख़रीदने वाला कौन होता था। चुनांचे वह यहूदी चन्द महीनों के बाद आया और कहने लगा, आप मुझसे बाक़ी आधा भी खरीद लें आपने बाक़ी आधा भी खरीद कर अल्लाह के लिए वक्फ कर दिया।

(खुतबाते फ़क़ीर, जिल्द 9, पेज 37  )

अपने गरीब सोहोर और बच्चों को सदका दिया

  • सिल-ए-रहमी पर एक अजीब क़िस्सा

एक बार हुज़ूर-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने औरतों को ख़ैरात करने का हुक्म दिया, और फ़रमाया कि और कुछ न हो तो ज़ेवर ही को ख़ैरात करें, जैनव रज़ियल्लाहु अन्हा ने यह हुक्म सुनकर अपने ग्राविन्द अब्दुल्लाह विन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से कहा कि तुम जाकर रसूलुल्लाह सल्ल० से पूछो, अगर कोई हर्ज न हो तो जो कुछ मुझे खैरात करना है वह मैं तुम ही को दे दूँ। तुम भी तो मुहताज हो, अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ि० ने कहा कि खुद तुम जाकर पूछो। यह मस्जिदे – नब्बी सल्ल० के दरवाज़े पर हाज़िर हुईं, वहाँ देखा तो एक बीबी और खड़ी थीं और वह भी इसी ज़रूरत से आई थीं, हैबत के मारे उन दोनों को जुर्रअत न पड़ती थी कि अन्दर जाकर खुद हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पूछतीं।

बिलाल रज़ि० निकले तो उन दोनों ने कहा कि हज़रत से जाकर कहो कि दो औरतें खड़ी पूछती हैं कि हम लोग अपने खाविन्दों पर, और यतीम बच्चों पर, जो हमारी गोद में हों, सद्क़ा कर सकते हैं या नहीं बिलाल रजि० से चलते-चलते यह भी कह दिया कि तुम यह न कहना कि हम कौन हैं? हज़रत बिलाल रजि० ने अर्ज किया हज़रत सल्ल० ने फ़रमाया कि कौन पूछता है? हज़रत बिलाल रज़ि० ने कहा कि एक क़बील-ए-अंसार की बीबी हैं और एक ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा । आप सल्ल० ने फ़रमाया कि कौन जैनव ( रज़ियल्लाहु अन्हा ) ? उन्होंने कहा कि अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु की बीवी आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कह दो कि उनको दोहरा सवाब मिलेगा, क़रावत की पासदारी का अलग और सद्क़ा करने का अलग।

-बुखारी व मुस्लिम

हज का पैसा छोटे बच्चे को दे दिया

  •  अजीबो-गरीब हज

हज़रत अब्दुल्लाह रह० रसूलुल्लाह सल्ल० की हदीसों के माहिर थे। नवी सल्ल० के मिजाज और दीन की हक़ीक़त को खूब समझते थे वह जानते थे कि सही दीनदारी क्या है?

एक बार आप हज को जा रहे थे। सफ़र में एक मक़ाम पर एक लड़की को देखा कि कूड़े पर से कुछ उठा रही है। ज़रा और क़रीब गए तो क्या देखते हैं कि बेचारी एक मरी हुई चिड़िया को जल्दी-जल्दी एक चीथड़े में लपेट रही है। हज़रत वहीं रुक गए और हैरत व मुहब्बत के साथ उस गरीब बच्ची से पूछा, “बेटी! तुम इस मुर्दार चिड़िया का क्या करोगी भी और अपने फटे-पुराने मैले कपड़ों को संभालते हुए रुंधी हुई आवाज़ में बोली “ चचा मियां! हमारे अब्बा को कुछ ज्ञालिमों ने क़त्ल कर दिया। हमारा सब माल छीन लिया और सारी जायदाद हथिया ली। अब मैं हूं और मेरा एक भाई है। ख़ुदा के सिवा हमारा कोई सहारा नहीं। अब हमारे पास न खाने के लिए कुछ है, और न पहनने के लिए। कई-कई वक्त हम पर ऐसे ही गुज़र जाते हैं। इस वक़्त भी छः वक़्त के फ़ाक़े से हैं। भय्या घर में भूख से निढाल पड़ा है। मैं बाहर निकली कि शायद कुछ मिल जाए। यहां आई तो यह मुर्दार चिड़िया पड़ी मिली। हमारे लिए यह भी बड़ी नेमत है।” यह कहते हुए फ्राका की मारी बच्ची फूट-फूट कर रोने लगी।  

हज़रत का दिल भर आया। बच्ची के सर पर हाथ रखा और खुद भी रोने लगे। अपने ख़ज़ानची से पूछा, “इस वक़्त तुम्हारे पास कितनी रकम है?” हज़रत एक हजार अशरफियां हैं?” खजानची ने जवाब दिया।

“मेरे ख्याल में मर्व तक पहुंचने के लिए बीस अशरफ़ियां काफ़ी होंगी।”

हज़रत ने पूछा । “जी हां, बीस अशरफियां घर तक पहुंचने के लिए बिल्कुल काफ़ी है।” ख़ज़ानची ने जवाब दिया।

“तो फ़िर तुम बीस अशरफ्रियां रोक लो और बाकी सारी रकम इस लड़की के हवाले कर दो। हम इस साल हज को नहीं जाएंगे। यह हज काबा के हज से भी ज़्यादा बड़ा है।” हज़रत ने फ़ैसलाकुन अंदाज़ में कहा।

खजानची ने सारी रक्रम लड़की के हवाले कर दी ग़म और फ्राक़ा से कुम्हलाया हुआ चेहरा एक दम खिल उठा और लड़की की आंखों में ख़ुशी के आंसू तैरने लगे और तेज-तेज कदम उठाती हुई खुशी-खुशी अपने घर को लौट गई।

हज़रत ने ख़ुदा का शुक्र अदा किया और ख़ज़ानची से फ़रमाया, “चलो अब यहीं से घर को वापस चलें, ख़ुदा ने यहीं हमारा हज काबूल फरमा लिया।”

क़ाबिले-रश्क़ बंदा

सबसे ज्यादा क़ाबिले-रश्क़ बंदा

अबू उमामा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि मेरे दोस्तों में बहुत ज़्यादा क़ाबिले-रश्क मेरे नज़दीक वह मोमिन है जो सुबके बार (यानी दुनिया के साज व सामान और माल व अयाल के लिहाज़ से बहुत हल्का-फुल्का) हो, नमाज़ में उसका बड़ा हिस्सा हो और अपने रब की इबादत ख़ूबी के साथ और सिफ़ते एहसान के साथ करता हो और उसकी इताअत और फ़रमांवरदारी उसका शिआर हो। और यह सबकुछ इख़्फ़ा के साथ और खिलवत में करता हो और वह छुपा हुआ और गुमनामी की हालत में हो, और वह उस पर साबिर व क़ाने हो, फिर रसुलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने हाथ से चुटकी बजाई (जैसे कि किसी चीज़ के हो जाने पर इन्हारे तअज्जुब या इज्हारे हैरत के लिए चुटकी बजाते हैं) और फरमाया जल्दी आ गई उसकी मौत, और उस पर रोने वालियाँ भी कम हैं और उसका तर्का (छोड़ा हुआ सामान) भी बहुत थोड़ा-सा है।

-मुस्नद अहमद, जामेज तिर्मिजी, सुनन इब्ने माजा

फायदा:- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इर्शाद का मतलब यह है कि अगरचे मेरे दोस्तो और अल्लाह के मक़बूल बन्दों के अलवान व अहवाल मुख़्तलिफ़ हैं, लेकिन उनमें बहुत ज़्यादा क़ाबिले-रश्क़ ज़िन्दगी उन अहले-ईमान की है, जिनका हाल यह है कि दुनिया के साज़ व सामान और माल व अयाल के लिहाज़ से वह बहुत हल्के, मगर नमाज़ और इबादत में उनका ख़ास हिस्सा है, और इसके बावजूद ऐसे ना-मारूफ़ और गुमनाम कि आते-जाते कोई उनकी तरफ़ उंगली उठाके नहीं कहता कि यह फ़्लां बुजुर्ग और फ़्लां साहब हैं, और उनकी रोज़ी बस बक़द्रे किफ़ाफ़, लेकिन वह उस पर दिल से साबिर व क़ाने… जब मौत का वक्त आया तो एक दम रुख़्सत, न पीछे ज़्यादा माल व दौलत और न जायदादों, मकानात और बागात की तक्सीम के झगड़े, और न ज़्यादा उन पर रोने वालियाँ |

बिला शुव्ह बड़ी क़ाबिले-रश्क़ है अल्लाह के ऐसे बन्दों की ज़िन्दगी, और अल्हम्दु लिल्लाह इस क़िस्म की ज़िन्दगी वालों से हमारी यह दुनिया अब भी खाली नहीं है ।

-मआरिफुल हदीस, हिस्सा 2, पेज 88

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