हयात के आख़िरी लम्हे अब तो मंज़िल तै हो चुकी क्या इसका इन्तिजाम हो जाएगा?’ मरज का आख़िरी और जानलेवा हमला , जकात अदा कर दीजिए Doctor का phone आया, तबियत की ख़राबी | हर तरफ जमाअतें भेज दो | Dawat-e-Tabligh….

परिचय
नापायदार हयात के आख़िरी लम्हे
दावत व तब्लीग़ के क़ाइद व रहनुमा मौलाना मुहम्मद यूसुफ़ वर्र दल्लाहु मज़-जअहू की वफ़ात ऐसा अलमनाक बाक़िया है, जिसकी याद मुद्दतों ताजा रहेगी और हजारों दिल इस अलमिया से टीस महसूस करते रहेंगे। यह वाक़िया कोई अनोखा वाक़िया नहीं है, इस फ़ानी दुनिया में हर आने वाले को आख़िरकार जाना है, लेकिन कई वजहों से इस वाक़िए की अलमअंगेज़ी ज़्यादा है। इनमें से एक वजह यह थी कि यह हादसा इस तेज़ी से वाक़े हुआ कि सामने देखने के बावजूद इसका यक़ीन नहीं आ रहा था। मौलाना रह० की बीमारी भी अचानक जाहिर हुई और इंतिक़ाल भी यकायक ही हुआ। इस वाक़िया की, जो तफ़्सीली बातें मुश्फ़िक़ मुकर्रम मौलाना मुफ़्ती जैनुल आविदीन साहब की बातों और उनकी दी हुई डायरी से मिल सकीं और जो बातें कुछ दूसरे दोस्तों से हुई, वे नीचे दी जा रही हैं ।
जी चाहता है हम मदीना तैयिवा में रहें
आखिरी दिनों में मौलाना अलैहिर्रहमः 27 ज़ीक़ादा (31 मार्च) आप रायविन्ड में थे। दोपहर के वक़्त ख़ास दोस्तों के हलके में बैठे थे, फ़रमाने लगे, ‘जी चाहता है, यहां (पाकिस्तान में) भी तब्लीगी काम चल जाता और हिन्दुस्तान में भी और हम मदीना तैयिवा में रहते। दोस्तों ने इस इज़्हारे आरज़ू को कोई अहमियत न दी। सफ़र जारी रहा। लाहौर तशरीफ़ ले आए और प्रोग्राम के मुताबिक़ अपनी कोशिशों में लग गए।
तबियत की ख़राबी
अब तो मंज़िल तै हो चुकी
जुमा की रात, यानी 28 ज़ीक़ादा (पहली अप्रैल, जुमारात) कोई सवा आठ बजे का वक़्त है, कुछ मुख़िलस कारकुन इसरार कर रहे थे कि मौलाना इस वक़्त ख़िताब फरमाएं। हजरत मौलाना मरहूम बहुत थके हुए थे और तबियत भी मुतास्सिर थी। खुसूसी अस्वाब मौलाना इनामुल हसन साहब और मौलाना मुफ्ती जैनुल आबिदीन भी साथ में थे। मौलाना मरहूम ने तबियत की ख़राबी का जिक्र फ़रमाया। मोहतरम मुफ़्ती जैनुल आबिदीन से फ़रमाने लगे, मुफ़्ती साहब! यह सीने का दर्द एक अर्से से चल रहा है। ये डॉक्टर हज़रात इसका इलाज नहीं कर पा रहे। मुफ़्ती साहब ने अर्ज किया, हज़रत ! इससे पहले तो आपने कभी इसका जिक्र नहीं फ़रमाया। फिर मुफ़्ती साहब क़रीब बैठे हुए हकीम साहब से फ़रमाने लगे, हकीम साहब! इस दर्द के बारे में क्या राय है? हकीम साहब ने फ़रमाया, गैस की वजह से दर्द है। अभी खाने के बाद दवा दे दी जाएगी। यह शिकायत इनशाअल्लाह दूर हो जाएगी। मौलाना रह० फ़रमाने लगे —
मुफ़्ती साहब! मेरी तख़ीस भी सुनिए। मुफ़्ती साहब और दूसरे अह्वाब मुतवज्जह हुए। मौलाना ने फ़रमाया, जब मुझे यह दर्द परेशान करता है तो मैं ख्याल करता हूं कि मैं सुपारी बहुत ज़्यादा खाता हूं, सुपारी के कुछ टुकड़े ऊपर आ गए हैं, तो मैं पानी का एक गिलास पी लेता इससे दर्द कम नहीं होता तो मैं एक गिलास और पी लेता हूं, दर्द रुक जाता है, तो मैं समझ लेता हूं कि ऊपर चढ़े सुपारी के टुकड़े नीचे चले गए हैं। मौलाना यह सब कुछ दिल्लगी के तौर पर कह रहे थे और अह्वाब भी इस बातचीत में इसी एतबार से शरीक थे।
इस मरहले पर मौलाना इनामुल हसन साहब ने फ़रमाया, हज़रत ! अब उम्र पचास को पहुंच चली, अब आपको मुहतात रहना चाहिए। वे वक़्त खाना, लम्बी से लम्बी तक़रीरें और वे वक़्त सोना। अब इस उम्र में बहुत ज़्यादा एहतियात की ज़रूरत है। हजरत मौलाना मुहम्मद यूसुफ़ साहब ने इंतिहाई संजीदगी से फ़रमाया, ‘अब तो मंज़िल तै हो चुकी ।’
मौलाना इनामुल हसन: अभी तो मश्रिक्क़ी ताक़तों में फ़ैसला कराना है, इसके बाद इस्लाम के चमकने का ज़माना आएगा। अभी तो सिर्फ़ बात समझाई जा रही है।
मौलाना मुहम्मद यूसुफ़ रह० : पॉलीसी तै हो चुकी। अब तो दूसरे अमल करें।
मौलाना इनामुल हसन साहब उम्र अगर मश्वरे से से करना हो तो कर सीजिए। मौलाना मुहम्मद यूसुफ़ रह० : हजरत वालिद अलैहिर्रहमः की उम्र कितनी थी?
मौलाना इनामुल हसन : 63 वर्ष
मौलाना मुहम्मद यूसुफ़ रह०: हुजूरे अकरम सल्ल० और सैयदना अबूबक रजि० की उम्र?
मौलाना इनामुल हसन 63 साल
इस पर मौलाना अलैहिर्रहमः फ़रमाने लगे-अच्छा चलें, लोग इन्तिजार कर रहे हैं, कुछ कह दें। यह फ़रमाया और मस्जिद की तरफ चल दिए। मिंबर पर तशरीफ़ फ़रमा हुए और ख़िताब शुरू फ़रमा दिया।
इस ख़िताब में मामूल से ज़्यादा वजाहत थी और बातें ऐसी फ़रमा रहे थे जो आज ही नहीं इस दावत के रहनुमाओं के लिए लम्बी मुद्दत तक काम आने वाली हैं?!
Namaz में ध्यान
आपने शुरू में ‘अल्लाह की सिफ़ात पर यकीन और इबादत में एहसान की हालत पैदा करने पर जोर दिया और फ़रमाया कि अगर नमाज़ वह नमाज हो जो अल्लाह को सामने देखते हुए अदा की जाए, तो इस नमाज से वह सब कुछ मिलता है, जिसके लिए इंसान न जाने क्या कुछ करता है। आपने यह वाक्रिया इसी सिलसिले में फ़रमाया —
सैयदना उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के जमाने में क़स्त पड़ा। हज़रत उमर रजि० ने अम्र विन आस रजि० को लिखा। उन्होंने जवाब में लिखा कि गल्ले से लदे हुए ऊंटों का ऐसा क़ाफ़िला भेज रहा हूं जिसका पहला ऊंट मदीना तैयिया में और आख़िरी ऊंट मिस्र में होगा इस ग़ल्ले से बहुत अच्छा इन्तिज़ाम किया। एक ऊंट में दस-दस हजार लोगों को खाना खिलाया जा रहा था। इसी दौरान एक आदमी ने ख्वाब में हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को देखा। आपने उस सहावी से फ़रमाया, उमर रजि० से कहो, तुम्हें क्या हो गया? तुम तो बहुत अक्लमंद थे।
यह ख़्वाब हजरत उमर फ़ारूक़ रजि० को सुनाया गया। ताबीर (स्वप्न फल) समझ में न आई। लोगों से पूछते रहे कि बताओ मुझमें कौन-सी तब्दीली वाक् हुई है। जिस पर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह बात फ़रमाई है? एक आदमी ने कहा, बात सिर्फ़ इतनी है कि उमर की नमाज़ हक़ीक़ी और बनी हुई थी। दुआ कुबूल होती है तो उसे छोड़कर इंतिज़ाम के चक्कर में क्यों पड़े हुए हो ?
Dua के लिए हाथ उठाए
हज़रत उमर फ़ारूक़ रजि० ने दुआ के लिए हाथ उठाए, दुआ की तो बादलों का नाम व निशान नहीं था। दुआ जारी रही, बादल उठे और उन्हीं में से आवाज़ आई, ‘अल-गौसु या अवा हफ़्स’ (अबू हफ़्स उमर! तुमने जो मदद तलब की थी, वह मदद आ गई है।) मौलाना अलैहिर्रहमः फ़रमा रहे थे—
Prophet Mohammad के तारिके पर कामयाबी
अगर तुमने अपनी दुकान में, अपने कारोवार में और अपने तौर-तरीक़ों में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के तरीक़ों को दाखिल कर लिया • और सब कुछ हुजूर सल्ल० के तरीके पर किया, तो इस तरीके से बनाया हुआ झोंपड़ा मुश्किों और काफ़िरों की ढाई लाख से बनी हुई कोठी से ज़्यादा क़ीमती है और अगर तुमने अपने घर के नक्शे में हुजूर सल्ल० के तरीक़े पर अमल किया, तो तुम्हारे झोंपड़े को राकेट नहीं तोड़ सकेगा । हुजूर सल्ल० के तौर-तरीक़ों की वजह से तुम्हारा यह झोंपड़ा क़ीमती है। जो तुमने बे-क़ीमत मिट्टी से बनाया, यह क़ीमती कैसे बनी, इस मिट्टी की तो कोई क़ीमत नहीं है, यह तो वे क़ीमत ही है, क़ीमत तो हुजूर सल्ल० के तरीके की है अगर सातों जमीन व आसमान कोठी हो और सबको सोने से भर दिया जाए तो हुजूर सल्ल० के तरीके पर बनी हुई पांव धरने और पाख़ाना करने की जगह के बराबर नहीं और यक़ीन करो कि हुज़ूर सल्ल० की मुआशरत से अल्लाह तआला मिलेगा, हालात दुरुस्त होंगे और अगर यहूदी और ईसाई के रास्ते पर मुआशरत उठाओगे तो हालात ख़राब से ख़राबतर होते चले जाएंगे।
इस क़िस्म के असरदार और दिलनशीं होने वाले जुम्लों से भरपूर तक़रीर ख़त्म की, मामूल के मुताबिक़ जमाअत की तश्कील की। इसके बाद अब्दुल हमीद पुरी के साहबजादे का निकाह हुआ और मामूल के ख़िलाफ़ आपने मुख़्तसर दुआ फ़रमाई और मस्जिदे बिलाल पार्क से मिली हुई रिहाइशगाह की तरफ चल दिए।
दिल का हमला
अहाता मकान में दाख़िल हुए तो गश खाकर गिर पड़े। दोस्तों ने उठाया और चारपाई पर लिटा दिया। मोहतरम एहसान साहब भागे हुए मस्जिद में आए और मुफ़्ती जैनुल आबिदीन साहब से कहा कि हज़रत जी को ग़शी हो गई है, किसी को लाइए। मुफ़्ती साहब हकीम अहमद हसन को लेकर फ़ौरन पहुंचे। हकीम साहब ने नब्ज़ देखी तो इंतिहाई कमज़ोर हो चुकी थी। हाफ़िज़ सिद्दीक़ साहब ने फ़ौरन जेब से जवाहर मोहरा की शीशी निकाली। मुफ़्ती साहब दूध लाए तो उसमें जवाहर मोहरा हल करके हज़रत के मुंह में चम्मच डाला। आपने ले लिया तो तीन चम्मच और डाला। इससे थोड़ी देर बाद नब्ज बहाल हो गई, पर लगभग आधा घंटे बाद पसीना आने लगा। हकीम साहब ने फिर नब्ज़ देखी और मोहतरम कुरैशी साहब ( अमीर जमाअत तब्लीग़, मरिरवी पाकिस्तान) ने कहा कि विटामिन बी का इंजेक्शन लगाना चाहिए। क़ुरैशी साहब ने कहा कि अगर इलाज करना है तो हम डॉक्टर साहब को बुलाते हैं, चुनांचे डॉक्टर मुहम्मद असलम साहब और हाजी मुहम्मद अफ़ज़ल साहब (सुलतान फ़ाउन्ड्री लाहीर) गए और कुछ अर्से के बाद डॉक्टर कर्नल जियाउल्लाह साहब को ले आए। उन्होंने मुआयना किया, इंजेक्शन और कुछ दूसरी दवाएं तज्वीज़ कीं।
इशा की नमाज़ अदा की गई
इन दवाओं के इस्तेमाल के बाद देखा कि इजाबत कपड़ों में ही हो गई है। तहारत और तयम्भुम के बाद इशा की नमाज पढ़वाई गई। नमाज के बाद तमाम अहबाब आपके पास ही रहे, लगभग पौने तीन बजे नींद आ गई तो अक्सर ख़ुद्दाम कमरे से बाहर चले गए।
सुबह सवा पांच बजे आंख खुली तो फ़रमाया कि नमाज का वक्त हो गया? मुफ़्ती जैनुल आविदीन साहब ने फ़रमाया, हजरत हां! आपने फ़रमाया, क्या वुजू कराएंगे? मुफ्ती साहब ने फ़रमाया, नहीं तयम्मुम मौलाना अलैहिर्रहमः
ने पूछा, क्या नमाज़ बैठकर अदा करूं? मुफ़्ती साहब ने कहा, नहीं हज़रत ! सिर्फ़ इशारे से। चुनांचे यह नमाज्ञ इशारे से अदा हुई। नमाज़ के बाद मौलाना साहब रह० ने फ़रमाया, चाय पिलाओगे?
मुफ़्ती साहब ने अर्ज किया, ‘हजरत जी चाहता है कि थोड़ी देर और सो जाऊं, फिर चाय पिएंगे।’ तो फ़रमाया, ‘मेरा भी जी सोने को चाहता है। ‘चुनांचे आप सो गए।
मुफ्ती साहब सात बजे आए तो हज़रत मरहूम गहरी नींद सो रहे थे और खरटि से रहे थे। वह बाहर बैठ गए। हकीम अहमद हसन साहब और कुरैशी साहब भी तशरीफ़ लाए और बाहर ही बैठ गए। सात बजे जागे ये तीनों हज़रात आपके पास बैठ गए।
मौलाना रह० : (मुफ़्ती जैनुल आबिदीन से मुख़ातब होकर) रात क्या हुआ मुफ़्ती साहब : हज़रत ! चक्कर आ गया था। था?
मौलाना रह० : (हकीम अहमद हसन ने मुखातब होकर) ‘मेरी नब्ज़ देखिए!’ उन्होंने नब्ज़ देखी और कहा, ‘अलहम्दु लिल्लाह ! अब तो ठीक है!’
मौलाना रह० ने हकीम साहब से पूछा, ‘रात क्या हुआ था?”
हकीम अहमद हसन साहब दिल का दौरा था। मौलाना ने मुफ़्ती साहब की ओर देखा, तो मुफ़्ती साहब आगे बढ़े।
मेरे तो दिल ही नहीं है
मुफ़्ती साहब : (मुफ़्ती साहब ने हज़रत के हाथ पर अपना मुंह रखा और अर्ज किया) ‘हजरत इन हकीमों, डॉक्टरों को दिल के हाल का क्या पता? दिल का हाल तो दिल बनाने वाला जाने या दिल वाला जाने।’
मौलाना रह० : ( इस पर हंसे और फ़रमाया), ठीक है और मेरे तो दिल ही नहीं। फ़िक्र की बात तो यह है कि मरने के बाद क्या होगा ? कुरेशी साहब हजरत डॉक्टर साहब को बुलाया है, वह आकर तपसीली मुआयना करेंगे, तो मालूम होगा कि रात क्या हुआ था।
मौलाना अलैहिर्रहमः: आप यह इसलिए कह रहे होंगे कि मुझे फ़िक्र लग जाए। जहां और सब दौरे पड़ते रहे, एक दौरा यह भी पड़ गया। यह कोई फ़िक्र की बात नहीं, फ़िक्र की बात तो यह है कि मरने के बाद क्या होगा?
हर तरफ जमाअतें भेज दो
इसके बाद हजरत मौलाना मुहम्मद यूसुफ़ रह० ने साथियों से पूछा कि क्या जमाअतें रुख्सत कर दी हैं?
आपको बताया गया, हां, तमाम जमाअत रुसत कर दी गई हैं। मौलाना अलैहिर्रहमा ने फ़रमाया, ‘हर तरफ़ जमाअतें भेज दो। हजरत उमर रजि० ने यही फ़रमाया था।’
मौलाना मुफ़्ती जैनुल आबिदीन के रोजनामचे की इबारत यह है “उस वक्त हज़रत मरहूम हश्शाश-वश्शाश थे, न चेहरे पर बीमारी की अलामतें थीं और न आवाज में कमजोरी थी। मैंने अर्ज किया, हजरत! चाय लाएं। फ़रमाया, हां। चुनांचे चाय की दो प्यालियां लेटे-लेटे डॉक्टर साहब की हिदायत के मुताबिक़, छोटी चायदानी से पिलाई गई। चाय के बाद हज़रत फ़रमाने लगे, क्या पान खिलाओगे? मैंने अर्ज किया, जरूर खिलाएंगे। मैंने मौलाना इनामुल हसन साहब से पान मांगा, उन्होंने फ़रमाया, आज छालिया और तम्बाकू मामूल से कम देना है और दोनों चीजें कम डालीं। कारी मुहम्मद रशीद साहब ने मुझसे पान लिया कि मैं तोड़-तोड़ के मुंह में रखूंगा। जब यह पान लेकर हाजिर हुए तो फ़रमाया, दिखलाओ और फ़रमाया, तम्बाकू कम करो। उन्होंने कम किया, फिर फ़रमाया और कम करो तो और कम किया। इसके बाद पान खा लिया और ग़ालिब ख्याल यही है कि यह आखिरी पान था।’
आराम फ़रमा लें
मौलवी इलयास साहब का बयान मुफ़्ती साहब के तबस्सुत से यों पहुंचा है कि ‘इसके बाद मैंने अर्ज़ किया, हजरत आराम फ़रमा लें, चिल्ला भर की नींद जमा है कुछ तलाफ़ी हो जाए और हम खड़े हो गये। उस वक़्त कुरैशी साहब से मुखातिब होकर फ़रमाया, आज जाना भी है, तो मैंने अर्ज किया, हज़रत इन्शाअल्लाह जाएंगे और अपने घर जाना है, जब जी चाहेगा, चले जाएंगे। इस पर क़ारी मुहम्मद रशीद साहब से पूछा, तेरी क्या राय है? तो उन्होंने अर्ज किया, हजरत! जाना है, मगर आज नहीं तो फ़रमाया, दोनों तरफ़ वाले परेशान होंगे? (मुराद सहारनपुर और दिल्ली थी) कुरैशी साहब ने अर्ज की कि हज़रत ! फ़ोन से इत्तिला कर देते हैं। फ़रमाया, बहुत अच्छा (और हम दोनों जगह सुबह ही तार से इत्तिला दे चुके थे) और एहसान से कहा, तेल लगा दो। वह तेल लगाने लगे, हम बाहर चले गए।
Doctor का phone आया
साढ़े आठ बजे, डॉक्टर असलम का फ़ोन आया कि कर्नल साहब एक घंटे तक आ सकेंगे, मगर वह लगभग 11 बजे आए और आकर तफ़्सीली मुआयना किया और हज़रत से पूछा, हज़रत ! आप क्या खाएंगे? तो हज़रत ने फ़रमाया, जो आप फ़रमाएंगे। डॉक्टर साहब ने फ़रमाया, जी बहुत ख़ुश हुआ, यह हमारा काम है और मरीज़ अगर हमारी राय पर चले तो हमें इलाज में आसानी होती है। अच्छा यह है कि पेशाब भी लेटे हुए करें, वरना कोई उठावे और चारपाई पर पेशाब किया जाए, करवट ख़ुद न लें, यहां तक कि चादर अगर ऊपर सरकानी हो, तो कोई और सरकाए, ख़ुद न हिलें और ग़िज़ा कम खाएं, मगर बार-बार खाएं, ताकि सिजाइयत पूरी हो, और मेदे पर बोझ न हो जो कुछ खाना है, यह इन साथियों को बता दूंगा ।
डॉक्टर साहब बाहर आ गए। बाहर आकर उन्होंने हमें खाने न खाने की चीजें बता दीं। उसी वक़्त कुरैशी साहब ने पूछा कि हज़रत पर जाने का भी तकाजा है, कब तक अन्दाज़ा है? तो डॉक्टर साहब ने फरमाया कि पन्द्रह दिन से पहले सफ़र मेरे नज़दीक मुनासिब नहीं है और ख़ुदा हर चीज पर क्रादिर है। इसके बाद डॉक्टर साहब मकान से बाहर आ गए। मैंने अर्ज किया, क्या अन्दाज़ा है मरज़ और सेहत के बारे में, तो डॉक्टर साहब ने फ़रमाया, हमला इतना शदीद था कि इससे बच पाना मेरे लिखे पढ़े में नहीं है और इसकी रिपेयर भी उतनी ही अजीब है और यही रिपेयर यों ही चली तो इनशाअल्लाह फिर यह दौरा कभी न होगा, मगर तीन दिन इंतिहाई एहतियात के हैं ।
डॉक्टर साहब रवाना हो गए, हम अन्दर आ गए तो हज़रत ने पूछा, क्या कहते हैं? हमने अर्ज किया, अलहम्दु लिल्लाह, बहुत मुतमइन हैं और तोस, हल्का सा मक्खन, चाय ज्यादा दूध की, किनो संगतरा, केला, शोरबा यख्नी, सब्जी वीरह खाने को बताया है। अंडा-गोश्त कुछ दिन के लिए मना है। इस पर फ़रमाया, चाय पिला दो। कुरैशी साहब ने तोस पर हल्का सा मक्खन लगा कर खिलाया, चाय पिलाई, इसके बाद अर्ज किया कि हजरत आराम फरमाएं, हम उठकर चले गए।
जकात अदा कर दीजिए
इस हमले के होने के तुरन्त बाद हज़रत अलैहिर्रहमः ने मौलाना इनामुल हसन साहब से फ़रमाया कि ‘अमा फ़िल अस्वारि (मौलाना मरहूम की किताब) पर जो रकम लगी हुई है, उसकी जकात अदा कर दीजिए। मौलाना इनामुल हसन ने कहा, ‘हजरत, बहुत अच्छा’। साथ ही कहा, हजरत! मैं आपके साथ रहा हूं, माफ़ फ़रमा दीजिए। आपने फ़रमाया, माफ़ किया।
मरज का आख़िरी और जानलेवा हमला
नाश्ते के बाद हजरत मरहूम मम्फर आराम फ़रमाने लगे, नींद आ गई। डेढ़ बजे मुफ्ती जैनुल आबिदीन साहब अन्दर तारीफ़ ले गए तो आप आराम फरमा रहे थे। मुफ़्ती साहब, डॉक्टर कर्नल जियाउल्लाह साहब की राय सुनने के बाद बहुत ज़्यादा तश्वीश महसूस कर रहे थे। चुनांचे उन्होंने जुमा के खुत्बे से पहले अस्बाब को इस ओर मुतवज्जह किया कि यह इलाज- मुआलजा तो जाहिरी तद्वीरें हैं मोमिन की हक़ीक़ी सबीर तो जिंदगी बख़्शने वाले और सेहत अता फ़रमाने वाले रब से दुआ है। हज़रत की हालत तश्वीश से खाली नहीं। खूब खूब दुआएं की जाएं जो वसीला दुआ मंजूर कराने का है, वह अख़्तियार किया जाए। हुजूरे सरवरे कौनैन सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जिन ज्ञरियों को दुआ की कुबूलियत के लिए असरदार फ़रमाया है, वे सब अख्तियार किए जाएं, सदक़ात किए जाएं, रोजे रखे जाएं, रो-रोकर दुआएं की जाएं।
इस हिदायत के बाद मुफ्ती साहब ने जुमा का ख़ुत्बा शुरू किया। दूसरे ख़ुत्बे के आखिर में आवाज़ आई कि मुफ़्ती साहब और क़ाज़ी (अब्दुल क़ादिर) साहब को हजरत बुला रहे हैं। क्राजी साहब तो उठकर चले गए, मुफ़्ती साहब ने खुत्वा खत्म किया और नमाज पढ़ाई अभी दुआ के लिए हाथ उठाए ही थे कि फिर आवाज आई कि मुफ़्ती साहब जल्दी आएं। चुनांचे मुफ़्ती साहब फ़ौरन भागे, कमरे में पहुंचे तो हालत ख़तरनाक थी।
मुफ़्ती साहब और मौलाना इनामुल हसन साहब हज़रत को अस्पताल ले जाने पर मश्वरा कर रहे थे। इसी बीच हज़रत ने इन लोगों को देखा और कुछ ऊंची आवाज़ से कहा-
फ़रमाया ‘क्या इसका इन्तिजाम हो जाएगा?’
मुफ़्ती साहब ने कहा कि हज़रत इसका इन्तिज़ाम इनशाअल्लाह यकीनन हो जाएगा। जब अल्लाह के इस मुख्लिस और इताअत शआर बन्दे को यह यकीन हो गया कि उनका कमरा नर्सों से पाक होगा और वह इस शदीद मजबूरी के आलम में, महज़ अल्लाह के फ़ज़्ल से इस मुन्कर से बचे रहेंगे, तो आप अस्पताल तशरीफ़ ले जाने पर राजी हो गए और फ़रमाया कि लुंगी की जगह पाजामा पहना दो, चुनांचे पाजामा पहना दिया गया।
हम तो चले
बड़ी जल्दी से, अल्लाह की ओर दावत देने वाले को कार पर लिटा कर अस्पताल पहुंचाने के लिए ले चले। मुफ़्ती साहब अस्पताल में इन्तिज़ामी उमूर के लिए दूसरी गाड़ी में रवाना हो गए। हज़रत महूम के साथ कुरैशी साहब, मौलवी इलयास साहब और कुछ दूसरे लोग थे।
हज़रत महूम पहले तो सुबह-शाम की मस्तून दुआएं ऊंची आवाज़ से पढ़ते रहे, फिर आवाज़ धीमी हुई और आखिर में सिर्फ़ होंठ दिल रहे थे। आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी।
इसी बीच आपने मालूम किया कि, ‘तुम्हारा अस्पताल कितनी दूर है? कुरैशी साहब ने जवाब दिया, ‘हज़रत लगभग दो फलांग। इस पर पर आपने फ़रमाया, अच्छा, फिर हम तो चले यह आखिरी जुम्ला था जो अह्वाब ने सुना, इसके बाद होंठ हिलते रहे और महसूस हो रहा था कि आप दुआएं पढ़ रहे हैं।
बत्ले जलील अल्लाह के हुज़ूर
मोहतरमनल आबिदीन अपनी डायरी में लिखते हैं, अस्पताल पहुंचने पर मैंने देखा, मुंह और नाक से एक झाग निकली हुई थी और गौर से देखा तो नाक के सांस से झाग मिल रही थी, इसके अलावा चेहरा, आंख और नब्ज़ पर मौत के निशान जाहिर हो चुके थे। दुनिया भर को सफ़र कराने वाले ने आज चलते-चलते जान जहानें अफ़रीं के सुपुर्द कर दी। उस वक़्त तीन बजने में दस मिनट बाक़ी थे। चार बजे नाशे मुबारक को लेकर वापस बिलाल पार्क आ गए। दफ़न के बारे में मश्वरा हुआ, ते पाया कि हजरत शेख से पूछा जाए। साढ़े चार बजे सहारनपुर बात हुई। साबिरी साहब खुद न थे, उनके आदमी को पैग़ाम दिया कि हजरत शेख़ से अर्ज करें। हजरत जी रह० का वक़्त आ चुका, दफ़न कहां किया जाए? और उससे ताकीद से कहा कि हम साढ़े पांच बजे पूछेंगे, तुम जवाब लेकर फ़ोन पर रहना। चुनांचे साढ़े पांच बजे जवाब ● मिला कि निजामुद्दीन लाना है। आपकी सई का हर मरहला अल्लाह ने आसान किया और 1½ बजे चार्टर जहाज निज़ामुद्दीन रवाना हुआ और जिंदगी भर के उस मुसाफ़िर ने एक सफ़र मौत के बाद भी कर डाला और पूरी दुनिया के इंसान इस बड़ी नेमत से महरूम हो गए। अस्पताल में वफ़ात के वक्त ये दो जुम्ले बार-बार मेरी जुबान पर आते थे,
दिल्ली से मिलने वाली इत्तिलाआत के मुताबिक हजरत मौलाना मुहम्मद यूसुफ़ नव्वरल्लाहु मर्कदहू का जनाजा हज़रत शेखुल हदीस मौलाना मुहम्मद जकरिया साहब ने पढ़ाया और आपको हफ्ते के दिन 30 जीक़ादा 1384 हि० (3 अप्रैल 1965 ई०) साढ़े नौ बजे सुबह आपके जलीलुल क़द्र वालिद मौलाना मुहम्मद इलयास साहब रह० के पहलू में दफ़न कर दिया गया।