दीन का रंग भरा जिंदगियों में तूने, काम पूरा किया सदियों का दिनों में तूने । एक दुनिया तेरी आवाज़ से बेदार हुई, हर कठिन राह तेरी सई से हमवार हुई ।….. तास्सुरात

तास्सुरात
बर वफ़ात हसरते आयात रईसुल मुवल्लिग़ीन हज़रत मौलाना मुहम्मद यूसुफ़ साहब देहलवी नव्वरल्लाहु मरक़दहू
-मौलाना मस्ऊद अली आज़ाद फ़तहपुरी मद्दजिल्लहू
ऐ कि तू सिलसिला-ए-रुश्द व हिदायत का नगीं
जामा-ए-सिदक़ व सफ़ा पैकरे ईमान व यक़ीन ।
जान फिर डाल दी बेजान तनों में तूने
फूंक दी रूह नई मुर्दा दिलों में तूने ।
इक चुभन दिल की नुमायां तेरे हर रंग में थी
इक तड़प दीन की जाहिर तेरे हर ढंग में थी
मश्अले नूरे हिदायत का अलमदार भी तू
उम्मते अहमदे मुख़्तार का ग़मख्वार भी तू।
वह तेरी सई- ए- मुसलसल जो शब व रोज़ में थी
आग दर असल वह तेरे दिले पुरसोज में थी
तपिशे दिल ने तेरी फूंक दिए दिल कितने
तूने तूफ़ानों से पैदा किए साहिल कितने ।
एक दुनिया तेरी आवाज़ से बेदार हुई
हर कठिन राह तेरी सई से हमवार हुई ।
आईना दारे नुबूवत तेरे औसाफ़े जली
कार फ़रमा मेरे अख़लाक़ में खुल्ने नबवी ।
ऐ गुले ताज़ा बहारे चमनिस्ताने रसूल
तेरी ख़ुश्बू से महक उठा गुलिस्ताने रसूल !
हर शजर बाग़ नुबूवत का समर बार हुआ
यह चमन तेरे क़दम से गुल व गुलज़ार हुआ।
हर जलालत को हिदायत की हुई जलवा गरी
तूने बख़्शा शबे तारीक को नूरे सेहरी ।
इस तरह तूने जमाने को पुकारा कि बहम
हो गए सारे कमरबस्ता अरब हों कि अजम ।
रूहपरवर तेरा नग्मा असर अन्दाज़ हुआ
सुन लिया जिसने वह तेरा ही हम आवाज़ हुआ।
कर गई काम यहां तक तेरी जादू नज़री
रहज़नों में हुई पैदा सिफ़ते राहबरी ।
दीन का रंग भरा जिंदगियों में तूने
काम पूरा किया सदियों का दिनों में तूने ।
तेरी जांबाज़ी पे अल्लाह को प्यार आ ही गया
मुज़दा-ए-वस्ल तुझे आख़िरे कार आ ही गया
देखकर रज़्मगहें ज़ीस्त से बेगाना तुझे
मुद्दतों रोएगी अब हिम्मते मरदाना तुझे।
ताजियत अब तेरी किससे करूं किससे न करूं
कौन दीन दार ज़माने में है, जिससे न करूं ।
नाम लेवा तेरे हर चंद हैं ग़मगीन व हज़ीं
बस ही क्या है मगर ऐ साकिने फ़िरदौसे बरीं ।
रहमतें तुझ पे हों अल्लाह की दिन-रात मुदाम
और हम सबकी तरफ़ से भी शब व रोज़ सलाम
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