Allah को माना ना
(1) ऐ मेरे परवरदिगार ! अगर मेरे गुनाह बढ़ गये (तो क्या हुआ)
मैं जानता हूँ कि आपकी माफ़ी मेरे गुनाहों से बढ़ी हुई है।
(2) अगर आपकी रहमत के उम्मीदवार सिर्फ़ नेक ही हों तो
गुनाहगार किसे पुकारें और किससे उम्मीद रखें।
(3) ऐ मेरे परवरदिगार मैं तेरे हुक्म के मुताबिक़ तुझे जारी व आजिज़ी से पुकारता हूँ,
तू अगर मेरा हाथ नाकाम वापस लौटा देगा (यानी मुझे मायूस कर देगा)
तो कौन है रहम करने वाला ?
(4) मेरे पास तो सिर्फ़ आप
के बेहतरीन दरगुज़र की उम्मीद के सिवा कोई सहारा नहीं,
फिर बात यह है कि मुसलमान भी हू।
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दुआ मांगना न छोड़ो
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