Zinda रहने की Tamanna | Dawat-e-Tabligh

“मुझे जीने और जिंदा रहने की तमन्ना सिर्फ इसी वजह से होती है कि अपनी जिंदगी मे एक मर्तबा तो इन किताबों को पढ़ ही डालू”। Zinda रहने की Tamanna | Dawat-e-Tabligh

Zinda रहने की Tamanna | Dawat-e-Tabligh
Zinda रहने की Tamanna | Dawat-e-Tabligh

कोपी में लिखना

इस साल इज्तिमा-ए-रायविंड के मौके पर मौलाना मुहम्मद यूनुस पालनपूरी इब्ने हजरत मौलाना मुहम्मद उमर पालनपूरी रहमतुल्लाहि अलैहि से बंदे की मुलाक़ात हुई। मुलाक़ात के दौरान आलमी उमूर पर गुफ्तगू हुई, चलते-चलते मौलाना की एक कापी पर नज़र पड़ी। पूछने पर बताया कि वह मुख्तलिफ़ किताबों के मुताले के दौरान जो मुफ़ीद और अहम नादिर बात सामने आती उसको अपनी कापी में लिखते रहते ताकि ज़रूरत के वक्त इससे फ़ायदा उठाया जा सके। यह हमारे अकाबिर और अहले-इल्म का तरीका भी रहा है। वर्ना कभी कभी बहुत-सी मुफ़ीद और अहम बातें मुताले के दर्मियान आकर गुज़र जाती हैं और बाद में याद करने पर भी याद नहीं आतीं कि कहाँ पढ़ी थीं और उस वक्त अफ्सोस के अलावा कुछ हासिल नहीं होता। इसलिए कहा गया हैं :

इल्म एक शिकार

(इल्म एक शिकार है और लिखना उसके लिए बेड़ी है! यानी लिखने से इल्म महफ़ूज़ हो जाता है)

और यह मुताले का ज़ौक़ बज़ाहिर मौलाना को अपने वालिदे मुहतरम लिसानुद्दावत हज़रत मौलाना मुहम्मद उमर पालनपूरी रहमतुल्लाहि अलैहि से विरासत में मिला है कि ‘अलू वल-दु सिरून लि-अबीहि’ और बंदे ने अक्सर हज़रत पालनपूरी रहमतुल्लाहि अलैहि को देखा कि मुताले के दौरान इस्तिग़राक़ की कैफ़ियत होती और पूरे तौर से किताब की तरफ़ मुतवज्जेह हो जाते तफ़्सीर का हज़रत को इतिहाई ज़ौक़ था। एक मर्तबा मुझसे फ़रमाया : जी चाहता है अब हदीस की किताबें देखूं लेकिन क्या करूं कुरआने करीम ऐसा गहरा समंदर है कि इसमें गोता खाते जाओ और मोतियाँ निकालते जाओ, वह मोतियाँ निकलती ही रहती हैं। 

गुमराह होने से bachna

कुरआने करीम के समंदर में गोता खाने से फुरसत नहीं मिल रही कि हदीस के समंदर में गोते खाऊ, लेकिन यह तफ्सीर कुरआन में अव्वल दर्जा में तफ़्सीरुल कुरआन बिल् कुरआन (कुरआने करीम की आयात की तफ्सीर दूसरी आयात से), दूसरे दर्जे में तफ्सीरुल कुरआन बिलू हदीस और फिर तफ़्सीरुल कुरआन व अक्रवालुस्-सहावा वत्-ताविईन के कायल और दाई भी थे और तफ्सीर बिर राय से बहुत डरा करते थे और उसपर रोते और लरजते और काँपते देखा है। अरबों के मजूमा में भी फ़रमाते थे कि तुमको नसीहत करता हूँ और तुम भी अपनी औलाद को और नसों को नसीहत कर देना कि कुरआन करीम को हदीस और सहावा के वास्ते के बगैर न समझना वरना गुमराह हो जाओगे और गुमराह कर दोगे।

जिंदा रहने की तमन्ना

मुतालआ और कुतुब बीनी के जाक़ व शीघ्र का यह हाल था कि एक मर्तबा निजामुद्दीन में बंदा हज़रतजी रह० के साथ उनके कमरे में दाखिल हुआ। कमरे की अलमारियों में किताबें सजी हुई थीं। पलंग पर बैठते हुए रो दिये और उन किताबों की तरफ़ इशारा करते हुए बंदे से फ़रमाया : “अल्लाह तआला इनके मुसन्निफ़ीन को जजा-ए-ख़ैर मरहमत फ़रमाये, उन्होंने कितनी मेहनत से यह किताबों लिखी थीं और आज सिर्फ़ इनका पढ़ना मुश्किल हो रहा है, लेकिन मौलवी उस्मानः इनको बेकार न समझना कि ख़्वाहमख्वाह इतनी किताबें लिख दीं।” और फ़िर फ़रमाया : “दिल में भी यह बात न लाना बल्कि दावत व तब्लीग के ज़रिये अल्लाह ताला उन किताबों की एक-एक लाईन और एक-एक मस्ले व ये को इंसानों की जिंदगियों में जिंदा करेगा और कर रहा है” और फिर फ़रमाया, “मुझे जीने और जिंदा रहने की तमन्ना सिर्फ इसी वजह से होती है कि अपनी जिंदगी मे एक मर्तबा तो इन किताबों को पढ़ ही डालू”।

कुरआन व हदीस

एक दूसरे मौके पर फ़रमाया “कुछ लोग समझते हैं कि इन किताबों का क्या फ़ायदा? हालांकि सोचने की बात है कि अगर बुखारी व मुस्लिम को इमाम बुख़ारी रहमतुल्लाहि अलैहि और इमाम मुस्लिम रहमतुल्लाहि अलैहि लिखकर हमपर एहसान न फ़रमाते तो हमें यह हदीसें कैसे पहुंचती, इसी तरह बाक़ी किताबों का हाल है।” दुआओं में हज़रत रहमतुल्लाह का यह जुमला बार-बार कानों में गूंजता है। “ऐ अल्लाह ! कुरआन व हदीस के अल्फ़ाज़ ज़बान पर जारी फ़रमा दें। कुरआन व हदीस की हक़ीक़त दिल में उतार दे। कुरआन व हदीस का अमल बदन से जारी फ़रमा दे। कुरआन व हदीस को आलम में लेकर फिरने वाला बना दे।” आमीन!

जब कोई मुफ़ीद किताब बतलाई जाती तो फ़ौरन उसको ख़रीद कर भेजने का हुक्म फ़रमाते और अपनी किताबों की अल्मारी में उसको रखते, कई बार बंदे से पाकिस्तान में छपी हुई किताबें मंगवाई और इल्मी ज़ौक़ ही का नतीजा था कि खुसूसन अहले इल्म व उल्मा, दीन व मदारिस के तलबा से इंतिहाई मोहब्बत और तवाज़ो व खुश-ख़लक़ी से पेश आते जिसकी तफ्सील का यह मौक़ा नहीं। लेकिन लिखते वक्त क्या करूँ उनकी वह मोहब्बत व शफ़क्क्त, इल्मी इंहिमाक, तफ्सीरी ज़ौक़, दुआ में इस्तिगुराक की कैफियत और तज़रों व वज़ारी, उम्मत का गुम व दर्द, उनका रोजाना सुबह निजामुद्दीन का बयान, और इज्तिमा-ए-रायविंड के वयानात और जमाअतों को रवानगी की हिदायात और अल्लाह तआला की अज़मत व क़ुदरत व जलाल को बयान करते वक्त मज्मअ पर सन्नाटे का छा जाना और दीन के पूरे आलम में जिंदा होने की दिलों में उम्मीद का वाविस्ता हो जाना और बातिल की तमाम ताक़तों और क्रूव्वतों का मकड़ी का जाला महसूस होना, गरीबों की हमदर्दी व गमख्वारी, खुशहाल घरानों की फ़िक्र, नौजवानों पर ख़ास नज़र हर एक की सलाहियत से फ़ायदा उठाना और उसकी सलाहियत के इस्तेमाल का मसूरफ़ तलाश करना, उनका तवाज़ो व इज्ज़ व मस्कनत, उनकी सादगी, उनकी नसीहतें और उनका अपने बारे में डर, उनकी फ़िक्के आखिरत, उनका क़ुरआन करीम की आयात से हर वक्त के हालात में रहबरी का लना, उनकी इज्तिमाई माल में एहतियात का हाल, उनकी पूरे आलम के हालात से जानकारी, इरतिदाद की ख़बरों से बेचैन हो जाना और फ़ोरी तौर पर जमाअतों का वहाँ भेजना, उनका पुराने काम करने वालों के जोड़ों में उम्मत पर मेहनत और उम्मत की फ़िक्र के साथ हक़ तआला शाहू के साथ खुसी तअल्लुक हासिल करने और अपनी रज़ाइल रूहानिया हसद, बुगुज़, कीना वगैरह के दूर करने पर, और इज्तिमाईयते की फ़िक़ पर जोर देना, उनका अमरीका,

और दूसरे मुल्कों के औक़ाते नमाज़ के सही कराने की फ़िक्र, और फ़ल्कियात में महारत और माहिरे प्रकिया की गलतियों पर मुतनव्येह करना, उनकी अपने अमीर की इताअत, उनके मश्विरे की पाबंदी, उनका उल्मा व मशाइख से अपने बयानात में गलतियों की निशानदही के लिए पूछना और उलमा व मशाइख़ का उनको इत्मीनान दिलाना, और उनका दुनिया भर के उलमा व मशाइख के पास जहाँ तक हो सके हर साल हदिया भेजना, उनका हज़रत मौलाना यूसुफ रहमतुल्लाहि अलैहि के बयानात का एहतिमाम से मुतालआ करना, उनका सफ़र से पहले मरकज़ में रहने वालों से मिलकर जाना और माफ़ी मांगना, यहाँ तक कि अपने छोटों से भी, उनके बयान से हर तबके का मुस्तफ़ीद होना और यह समझना कि यह हमारे ही लिए फरमा रहे हैं, उनका हजरत जी मौलाना इनआमुल हसन रहमतुल्लाहि अलैहि के सामने इतिहाई अदय व तवाज़ों के साथ पेश आना और उनका बंदे को यह फ़रमाना कि मैंने हज़रत जी रहमतुल्लाहि अलैहि को चूस लिया है, उनका हर वक्त घड़ी को सामने रखकर एक-एक लम्हा को क्रीमती बनाना और वसूल करना और इस सिलसिले में शैखुल हदीस मौलाना मुहम्मद जकरिया रहमतुल्लाहि अलैहि का हवाला देना।

बडो की maanna

उनका हजरत शैख रहमतुल्लाह अलैहि से तअल्लुक और हजरत शख का उनसे तअल्लुक़, उनको सरकारे दो-आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख्वाबों में व कसरत जियारतों का होना, उनकी सीरते नब्बी पर निगाह, उनका सहावा रज़ियल्लाहु अन्हुम अजूमईन की जिन्दगी और अक्रवाल से इंफिरादी व इज्तिमाओ उसूलों की इस्तिंबात। उनके अपने रात-दिन के इज्तिमाई व इन्फ़िरादी मामूलात, उनका बुढ़ापे और कमज़ोरी की हालत में मरकज़ की सारी मयूलियतों के साथ हिफ़्ज़े कुरआन हज़रत जी रहमतुल्लाह अलैहि की इजाज़त के साथ करना, उनका बयान से पहले और बयान के बाद एहतिमाम से हज़रत जी रहमतुल्लाहि अलैहि के पास जाना और हर बात में हज़रत जी रहमतुल्लाहि अलैहि की तरफ़ रुजूअ करना ।

उनका रमज़ानुल मुबारक में एतिकाफ़, उनके क़ुरआन करीम पढ़कर सुनाने से मुर्दा दिलों का ज़िन्दा हो जाना, और सख्त से सख्त दिलों का मोम होना, और शराबियों, डाकुओं, जालिमों वगैरह की उनकी दावत सुनकर तौबा करना। उनके बयान में मज़मून का इर्तिबात वगैरह-वगैरह यह सब पहलू उमड-उमड कर सामने आ रहे हैं और मजबूर कर रहे हैं. कि उन सब पर लिखा जाए, अगर अल्लाह के फ़ज़ल और तौफ़ीक़ ने दस्तगीरी की तो उनके क़ुरआनी इफ़ादात पर लिखने का इरादा है।

बुज़ुर्गों की सवानेह और वाक्क़िआत बड़े रहबर होते हैं। हज़रत जुनैद रहमतुल्लाह अलैहि का क़ौल है :

कि इन वाक़िआत के ज़रिए अल्लाह तआला अपने दोस्तों के दिलों को मज़बूत करता और जमाता है। यह खुदाई लश्कर हैं और इसी पर कुरआन करीम की आयत से दलील है।

तर्जमा :- और सब चीज़ बयान करते हैं हम तेरे पास रसूलों के अहवाल से जिससे तसल्ली दें तेरे दिल को ।”

इमाम अबू हनीफ़ा रहमतुल्लाह अलैहि का क़ौल है कि उलमा के क़िस्से अदब सिखाते हैं, और इसकी दलील कुरआन करीम की आयत है:

तर्जमाः- ये वे लोग थे जिनको हिदायत की अल्लाह ने, सो तू चल उनके तरीके पर ।”

और इर्शाद है :

तर्जमा :- अलबत्ता उनके अहवाल से अपना हाल क्यास करना है। अकल चालों को।”

मालिक बिन दीनार रहमतुल्लाहि अलैहि का क़ौल है।

हिकायात व वाक्रिआत जन्नत के तोहफ़े हैं।

दूसरा कौल है, हिकायात ज़्यादा से ज्यादा बयान करो कि यह मोती हैं और बहुत मुमकिन है कि इसमें कोई नादिर मोती हाथ आ जाये। सुफ़ियान बिन ऐनिया रहमतुल्लाहि अलैहि का क़ौल  है: सुलहा और नेक लोगों के ज़िक्र के वक्त रहमत बरसती है। यह सब बातें हज़रत मौलाना मुहम्मद उमर रहमतुल्लाह अलैहि का नाम लिखते ही नोके क़लम पर आ गई और जी चाह रहा है कि इस पर लिखता चला जाऊं लेकिन इसी पर इक्तिफ़ा करता हूँ ।

Leave a Comment

सिल-ए-रहमी – Rista निभाने से क्या फ़ायदा होता है ? Kin लोगो se kabar में सवाल नहीं होगा ? Part-1 Kin लोगो se kabar में सवाल नहीं होगा ? Part-2 जलने वालों से कैसे बचे ? Dil naram karne ka wazifa